Chhattisgarh Tarkash: चुनाव आयोग ने पैनल पलटा
Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय के. दीक्षित का निरंतर 14 वर्षां से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
तरकश, 15 अक्टूबर 2023
संजय के. दीक्षित
चुनाव आयोग ने पैनल पलटा
चुनाव आयोग ने दो कलेक्टर और तीन पुलिस अधीक्षकों को नियुक्त करने भेजे गए सामान्य प्रशासन विभाग के पैनल को पलट दिया। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में ऐसा पहली बार हुआ कि आयोग ने एक पैनल के नामों को खारिज करते हुए दूसरे पैनल के दो अफसरों को दो जिले का कलेक्टर बना दिया। बता दें, जीएडी ने बिलासपुर के लिए भीम सिंह, यशवंत कुमार और रीतेश अग्रवाल तथा रायगढ़ के लिए सारांश मित्तर, अवनीश शरण और कार्तिकेय गोयल का नाम आयोग को भेजा था। हालांकि, ये भी समझ से परे है कि अवनीश और कार्तिकेय का नाम जब आब्जर्बर के लिए भेजा जा चुका है तो फिर रायगढ़ कलेक्टर के लिए क्यों प्रस्तावित किया गया। बताते हैं, अवनीश का मिजोरम के आब्जर्बर लिए आदेश भी हो गया था। बहरहाल, आयोग ने रायगढ़ पैनल से नीचे के दोनों नामों को हरी झंडी देते हुए अवनीश को बिलासपुर और कार्तिकेय को रायगढ़ का कलेक्टर नियुक्त कर दिया। दोनों अधिकारियों ने आज ज्वाईन भी कर लिया।
तेलांगना से कम
छत्तीसगढ़ में चुनाव आयोग ने दो कलेक्टर और तीन एसपी बदले...यह फिगर तेलांगना के सामने कुछ भी नहीं। तेलांगना में हैदराबाद के पुलिस कमिश्नर समेत तीन पुलिस कमिश्नर और 10 एसपी को बदल दिया। याने पूरे 13 आईपीएस। उपर से एक कलेक्टर भी। बताते हैं, छत्तीसगढ़ की सूची भी लंबी थी। मगर राहत की बात यह कि सूची में पांच कलेक्टर, एसपी समेत आठ ही नाम आ पाए। हालांकि, ब्यूरोक्रेसी में चर्चा दूसरी सूची की भी है। उसके अनुसार कुछ और कलेक्टर, एसपी और आईजी बदले जाएंगे। लेकिन, यह भी सही है कि आयोग को चुनाव भी तो कराने हैं।
कलेक्टर का एग्जिट पोल
छत्तीसगढ़ में एक ऐसे कलेक्टर भी रहे हैं, जिन पर एग्जिट पोल कराने का आरोप लगा और आयोग ने उनकी छुट्टी भी कर दी। ये बात 2004 के लोकसभा चुनाव की है। तब महासमुंद से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी चुनाव लड़ रहे थे और उनके सामने थे दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल। तब विद्या भैया बीजेपी की टिकिट पर मैदान में उतरे थे। चुनाव के बाद आयोग को शिकायत हुई कि कलेक्टर शैलेष पाठक ने कोई एग्जिट पोल कराया है, जिसमें कांग्रेस की जीत बताई गई है। आयोग ने एक सीनियर अफसर को महासमुंद भेजकर इसकी जांच कराई और उसके अगले दिन शैलेष को हटा दिया। बता दें, यह देश का पहला चुनाव रहा, जिसमें दो कलेक्टर हटाए गए। एक ने नामंकन भरवाया, दूसरे ने चुनाव कराया और तीसरे ने काउंटिंग कराई। जब चुनाव का ऐलान हुआ तब रेगुलर कलेक्टर थे मनोहर पाण्डेय। उन पर आरोप लगा कि जोगी के नामंकन में कोई त्रुटि हो गई थी। मनोहर ने उसे सर्किट हाउस में जाकर सुधरवाया। इसके बाद पाठक आए और हिट विकेट हो गए। फिर गौरव द्विवेदी तीसरे कलेक्टर बन गए, जिन्होंने काउंटिंग कराया।
आईजी से आ गए एसपी पर
सीबीआई से डेपुटेशन से लौटे 2007 बैच के आईपीएस रामगोपाल गर्ग को अंबिकापुर का प्रभारी आईजी अपाइंट किया गया था। मगर कुछ दिनों से उनकी पोस्टिंग की चकरी उल्टी घूमनी शुरू हो गई है। रेंज के पुनर्गठन में सरकार ने उन्हें सरगुजा से हटाकर रायगढ़ का डीआईजी बनाया था और अब चुनाव आयोग ने दुर्ग का एसपी अपाइंट कर दिया है। चुनाव आयोग ने शलभ सिनहा की जगह उनकी पोस्टिंग की है। ठीक है सरगुजा में वे प्रभारी आईजी ही थे लेकिन एक बार रेंज में रहने के बाद डीआईजी तक चलता था...उनका रैंक भी यही है। मगर अब फिर से कप्तान...रामगोपाल को खटक तो रहा ही होगा।
इसलिए पुराने चेहरों पर दांव
बीजेपी ने 43 लोगों को पहली बार टिकिट दिया है मगर इसके साथ ही रमन सरकार के सभी 12 मंत्रियों समेत बड़ी संख्या में पुराने चेहरों पर भी दांव लगाया है। पुराने लोगों को फिर से भरोसा जताने पर पार्टी शिकवे-शिकायतों का दौर जारी है। मगर ये भी सही है कि बीजेपी के पास और कोई चारा नहीं था। जाहिर है, 60 फीसदी से ज्यादा नए चेहरों को टिकिट देने का खामियाजा पार्टी कर्नाटक में भुगत चुकी है। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के खिलाफ वो भाव भी नहीं कि लोग सरकार को उखाड़ फेंकने पर अमादा हो। उपर से भूपेश बघेल जैसा 18 घंटा काम करने वाला सियासी योद्धा। पार्टी के लोगों का मानना है, महत्वपूर्ण सीटों पर अगर मजबूत लोगों को टिकिट नहीं दी गई तो नए लोग भूपेश बघेल के सामने कहां टिक पाएंगे। लोकसभा की बात अलग थी...उसमें पीएम नरेंद्र मोदी का फेस था...इसीलिए नए चेहरे को मैदान में उतारकर बीजेपी 11 में नौ सीटें झटक ली। बहरहाल, 15 साल मंत्री रहे प्रत्याशियों के पास धन-बल के साथ ही चुनाव जीतने का तजुर्बा है। फिर कोई बड़ा नेता चुनाव में उतरता है तो उसके आसपास की सीटों पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। सियासी पंडितों का भी मानना है कि 12 पूर्व मंत्रियों में से कम-से-कम 10 मंत्री टक्कर देने की स्थिति में हैं। वैसे भी इस चुनाव में बीजेपी दिल मांगे मोर के फार्मूले पर काम कर रही है। परिवारवाद का विरोध करने वाली पार्टी जशपुर राजपरिवार के दो सदस्यों को चुनावी रण में उतार दिया। प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कोटा से खड़े हुए हैं तो चंद्रपुर में उनकी भाभी संयोगिता सिंह जूदेव को पार्टी ने दूसरी बार प्रत्याशी बनाया है। हिन्दुत्व कार्ड के फेर में साजा से ईश्वर साहू को भी उतारने में पार्टी ने कोई अगर-मगर नहीं किया। ईश्वर के बेटे भूवेनश की एक सांप्रदाय के लोगों ने हत्या कर दी थी। कुल मिलाकर भाजपा का पूरा जोर सिर्फ और सिर्फ इस बात पर है कि प्रत्याशी जीतने वाला हो। और उसे अब सत्ताधारी पार्टी के मुकाबले में अगर माना जाने लगा है तो उसकी बड़ी वजह टिकिट वितरण है।
टिकिट पर दारोमदार
पिछले हफ्ते तक कांग्रेस को 51 और भाजपा को 38 सीटें देने वाले राजनीतिक प्रेक्षक अब कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। सभी को कांग्रेस की टिकिट का इंतजार है। जाहिर है, कांग्रेस जितने चेहरे बदलेगी, पार्टी का पलड़ा उतना भी भारी होगा। क्योंकि, विरोधी भी मानते हैं कि सरकार के खिलाफ उतना एंटी इंकाम्बेंसी नहीं, जितना विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ। पार्टी के लोगों का ही कहना है कि बड़ी संख्या में चेहरे बदलने होंगे, जीतने वाले प्रत्याशियों पर ही दांव लगाना चाहिए। हालांकि, दिल्ली से टिकिट पर मंत्रणा कर लौटे सीएम भूपेश बघेल ने भी यही कहा, जीतने वाले नेताओं के फार्मूले पर टिकिट दिए जाएंगे।
सियासी सबक
बिलासपुर इलाके के एक बड़े नेता के चेला ने उन्हें ऐसा सबक दिया कि नेताजी अब शायद ही किसी पर भरोसा करें। हुआ यूं कि पार्टी में टिकट को लेकर पैनल बनाते समय नेताजी ने सोचा कि सिंगल नाम देने से बेहतर है कि अपने पुराने शागिर्द का नाम जोड़ दिया जाए। चूंकि शागिर्द काफ़ी पुराना और मददगार है। लिहाजा, उन्हे इसमें उन्हें कोई ख़तरा नज़र नहीं आया। इसी बीच उम्मीदवारों के मामले में रायशुमारी को लेकर पार्टी के एक केन्द्रीय स्तर के नेता का दौरा उनके इलाक़े में हुआ। चेला ने अपने घर में लंच देने की पेशकश की तो सामान्य सी बात समझकर नेताजी ने हामी भर दी। लेकिन जब वे केन्द्रीय नेता को लेकर लंच के लिए चेले के घर पहुंचे तो वहां का आलम देखकर सकते में आ गए। वहां पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लगा था...महिला नेत्रियां केंद्रीय नेता पर पुष्पवर्षा कर रही थीं। यानी गुरू को डॉज देकर टिकिट के लिए पूरा शक्ति प्रदर्शन। काफ़िला पहुंचते ही नेताजी ने अपने पार्टी के लोगों से पूछ लिया कि “तुम लोगों को यहां किसने बुलाया....।” लेकिन जवाब मिलने से पहले ही पूरा माज़रा उन्हें समझ में आ गया कि...टिकट के इस मौसम में शागिर्द की भी आत्मा जाग गई है। नेताजी को अब पैनल में नाम जोड़वाने की भूल समझ में आ गई। मगर इस भूल के बदले उन्हे जो कुछ भी मिला, उसे सबक समझकर सीने से लगाने के अलावा उनके पास और कोई चारा भी नहीं। क्य़ोंकि आगे चुनाव है। व्यवस्था आखिर चेले को ही करनी है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या चुनाव में उल्टा पड़ने की वजह से ईडी के छापों पर ब्रेक लग गया है?
2. भाजपा द्वारा जशपुर में पैलेस विरोधी पुअर प्रत्याशी उतारने के पीछे क्या समीकरण है?