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Chhattisgarh Tarkash 2025: सोशल+पॉलिटिकल इंजीनियरिंग

Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 16 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश।

Chhattisgarh Tarkash 2025: सोशल+पॉलिटिकल इंजीनियरिंग
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By Sanjay K Dixit

तरकश, 24 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

सोशल+पॉलिटिकल इंजीनियरिंग

सियासत में आपने सोशल इंजीनियरिंग शब्द सुना होगा, मगर इससे आगे बढ़कर अब पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का दौर आ गया है। हाल में विष्णुदेव कैबिनेट का विस्तार हुआ, उसमें इसी तरह का एक नमूना दिखा। कैबिनेट में जिन तीन नए मंत्रियों को शामिल किया गया, उसमें सोशल इंजीनियरिंग के साथ पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया गया। तभी इसमें दोनों का संमिश्रण नजर आया। बहरहाल, गजेंद्र यादव के नाम पर काफी पहले से सहमति बन गई थी, मगर खुशवंत साहेब और राजेश अग्रवाल को लेकर बीजेपी में पर्दे के पीछे शह-मात का खेल चला, उससे पार्टी के दिग्गज नेता भी भौंचक रह गए....किसने किधर से बॉल फेंकी और खुरदुरी पिच पर वो इतनी स्पिन कैसे हो गई? जाहिर है, बॉल को समझने में राजनीति के बड़े-बड़े सूरमा भी चूक गए। इस गेम में क्रिकेट और शतरंज दोनों खेलों का जौहर दिखा। खेल को अपने पक्ष में करने दांव चलने में कोई कमी नहीं की गई। दिसंबर 2024 में किरण सिंहदेव को मंत्री बनाने के लिए हाथी को आगे बढ़ाया। मगर सामने वाले ने प्यादे से हाथी को मार डाला। और यह दावं उल्टा बैठ गया। फिर, दूसरी बार कैबिनेट विस्तार के समय उंट की चाल भी पिट गई। थक हारकर इस बार घोड़े को आगे बढ़ाया गया। जाहिर है, शतरंज के खेल में किसी भी दिशा में ढाई घर चलने की वजह से घोड़ा बेहद खतरनाक होता है। इस बार ऐसा ही हुआ...घोड़ा से घोड़ा को मारा गया। इस खेल का दिलचस्प पहलू यह रहा कि सोशल और पॉलिटिकल इंजीनियरिंग एक साथ साधी गई।

एक तीर, डबल निशाना?

बीजेपी की राजनीति को समझने वाले सियासी पंडितों की मानें तो कैबिनेट विस्तार में जिन लोगों ने सरगुजा में कमल खिलाया, उन्हीं के तरफ से खुशवंत साहेब का नाम भी आगे बढ़ाया गया। खैर, बीजेपी के नफे-नुकसान की दृष्टि से देखें तो खुशवंत का फैसला सही माना जा रहा है। भूपेश बघेल सरकार में मंत्री शिव डहरिया और रुद्र गुरू भले ही अपनी सीट नहीं बचा सकें, मगर ये जरूर हुआ कि 2023 के विधानसभा चुनाव में अजा के लिए रिजर्व 10 में से छह सीटें झटकने में कांग्रेस पार्टी कामयाब हो गई। बीजेपी को सिर्फ चार सीटों से संतोष करना पड़ा। इसी का हवाला देकर कैबिनेट में अजा का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का फर्मूला रखा गया। ऐसा करके एक तीर से दो निशाना किया गया। दूसरा निशाना था, लता उसेंडी को रोकना। लता उसेंडी का नाम लगभग फायनल समझा जा रहा था। मगर दूरगामी रणनीति के तहत कि अगले विस चुनाव से पहले सरगुजा का प्रतिनिधित्व कम होगा, तब बस्तर से किसी को मंत्री बनाया जा सके...इस दृष्टि से गुंजाइश बनाकर रखी गई है...ऐसा राजनीतिक समीक्षकों का दावा है।

विभाग वितरण में डंडी

पॉलिटिकल इंजीनियरिंग करते हुए बीजेपी ने तीन नए मंत्री बना दिए मगर विभाग बांटने के मामले में टाईप डंडी मार दी। गजेंद्र यादव को स्कूल शिक्षा तो कुछ ठीक भी है, बाकी दो की स्थिति ऐसी रही कि मंत्री बनने की खुशी मनाएं या फिर मालदार विभाग न मिलने का गम। तीन में से एक मंत्री इस प्रोफाइल के हैं कि उन्हें जो पोर्टफोलियो मिला है, उसके बजट से कई गुना ज्यादा उनका खुद का कारोबार है। हालांकि, विभाग के नाम पर झुनझुना थमाना कहना सही नहीं होगा मगर यह कड़वा सत्य तो है कि ये विभाग कभी भी किसी मंत्री का मेन विभाग नहीं रहा, पुछल्ला की तरह हमेशा टिकाया जाता था। ऐसा समझा जाता है कि दोनों मंत्रियों को अपेक्षित विभाग न देकर बीजेपी के उन वर्गों को जले पर बरनाल लगाने का काम किया गया है, जिनका मानना था कि कांग्रेस से आए नेताओं को पार्टी दोनों हाथों से उपकृत कर रही है।

मंत्रियों पर लटकी तलवार!

डेढ़ साल बाद ही सही विष्णुदेव कैबिनेट अब कंप्लीट हो गया है। ऐसे शुभ अवसर पर दुखी करने जैसी बातें नहीं होनी चाहिए। मगर कुछ मंत्री खुद ही घबराए दिख रहे हैं तो उसका क्या? असल में, अंबिकापुर से राजेश अग्रवाल को मंत्रिमंडल में शामिल करने से सरगुजा के मंत्रियों का रक्तचाप बढ़ गया है। सरगुजा से इस समय रामविचार नेताम, श्यामबिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े और अब राजेश अग्रवाल मंत्री हैं। जाहिर है, बस्तर और सरगुजा में ऐसा असंतुलन है कि लगभग सभी मानकर चल रहे हैं कि आगे चलकर सरगुजा से दो-एक मंत्रियों का विकेट गिरेगा। सरगुजा से बीजेपी को अगर 14 में 14 सीटें मिलीं तो बस्तर की 12 में से आठ सीटें आईं। सरगुजा को अगर 14 में पांच का प्रतिनिधित्व मिल रहा तो बस्तर को आठ में ढाई का तो मिलना ही चाहिए। ऐसे में, विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में निश्चित तौर पर बस्तर को एक मंत्री मिलेगा ही। और, यह तय है कि अब मंत्रियों की संख्या 13 से अधिक होनी नहीं। ऐसे में, कटौती सरगुजा से ही होगी। लिहाजा, सरगुजा के मंत्रियों को घबराना जायज ही कहा जाएगा।

बीजेपी का असंतुलन

पॉलिटिकल इंजीनियरिंग करने में बीजेपी कामयाब हो गई मगर पार्टी के भीतर ही इस पर असंतोष है कि क्षेत्रवार संतुलन बनाने का प्रयास नहीं किया गया। पहली बात यह कि बस्तर से एक की तुलना में मंत्रिपरिषद में सरगुजा से पांच-पांच लोग हो गए हैं। अंबिकापुर से अखिलेश सोनी को बीजेपी कार्यकारिणी में महामंत्री बनाया गया, और वहीं से राजेश अग्रवाल को कैबिनेट मंत्री भी। इसी तरह आरंग से नवीन मार्केंडेय को महामंत्री और वहीं से खुशवंत साहेब को सरकार के मंत्री। जांजगीर में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया, मगर वहां से किसी को कार्यकारिणी में पदाधिकारी बनाने की जरूरत नहीं समझी गई। बिलासपुर जैसे सूबे के दूसरे बड़े जिले से न तो किसी को कार्यकारिणी में पद मिला और न मंत्रिमंडल में। अब देखना है कि बीजेपी के रणनीतिकार इस असंतुलन को दूर करने के लिए क्या कदम उठाते हैं।

सीएम हुए मजबूत

कैबिनेट विस्तार पर 16 अगस्त से 19 अगस्त तक करीब 80 घंटे तक उहापोह की स्थिति बनी रहने के बाद आखिरकार 20 अगस्त को तीन नए मंत्रियों ने शपथ ग्रहण कर ली। अगर इस बार शपथ टलता तो फिर पार्टी के साथ सरकार की स्थिति बड़ी खराब होती। मगर जो नाम 16 अगस्त को पब्लिक डोमेन में आए, उन्हीं तीनों ने 20 को शपथ ली। इस एपिसोड में राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय मजबूत हुए हैं।

चेंबर 12, बंगले भी 12

हरियाणा मॉडल पर छत्तीसगढ़ में 13 मंत्री तो हो गए मगर अब दिक्कत यह है कि मंत्रालय में मंत्री स्तर के 12 कमरे बनाए गए हैं, उसी तरह नवा रायपुर में भव्य हवेलियां भी 12 ही बनी हैं। दरअसल, मंत्रालय बनाते समय रमन सरकार ने नहीं सोचा होगा कि छत्तीसगढ़ में 13 मंत्री हो सकते हैं, उसी तरह पिछली कांग्रेस सरकार ने भी 12 से अधिक बंगले बनाना मुनासिब नहीं समझा। रमन सिंह सरकार ने 15 साल 12 मंत्रियों में गुजार दिए और कांग्रेस ने पांच साल। 2004 में ही हरियाणा और छत्तीसगढ़ ने 13 मंत्री कर लिया होता तो नए मंत्रियों को न मंत्रालय में बैठने की दिक्कत होती और न ही बंगले की। एक-एक विधायकों को और मंत्री बन जाने का चांस मिलता, वो अलग बात। चलिये, जो बीत गई, वो बात गई।

आईएएस का 2005 बैच

आईएएस का 2005 बैच यूनिटी के मामले में हमेशा एग्जाम्पल सेट करता रहा है। पोस्टिंग का मामला हो या सुख-दुख का, हमेशा एक-दूसरे के लिए खड़े रहते हैं...पोस्टिंग के लिए रास्ता क्रियेट कर देते हैं। इस बैच के छह में से एक ओपी चौधरी अब मंत्री बन चुके हैं। बाकी पांच में मुकेश बंसल सिकरेट्री टू सीएम हैं। रजत कुमार उद्योग के साथ जीएडी सिकरेट्री। जीएडी सीएम के पास है, यानी वे भी सीएम से कनेक्टेड हुए। एस0 प्रकाश ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ ट्रांसपोर्ट सिकरेट्री। श्याम धावड़े को ग्रामोद्योग में शिफ्थ करने के बाद शंगीता अब आबकारी विभाग की होल सोल हो गई हैं। अब नया अपडेट यह है कि कैबिनेट विस्तार में इरीगेशन मुख्यमंत्री के पास आ गया है। इसके सचिव 2005 बैच के राजेश टोप्पो हैं। याने राजेश भी अब सीएम के विभाग वाले हो गए। इस तरह 05 बैच के तीन अफसर सीधे सीएम से कनेक्टेड रहेंगे। एक तो अधिकारिक तौर पर सीएम के सिकरेट्री हैं ही और दो विभागीय सचिव के नाते उनसे जुड़ गए हैं। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में आईएएस का 2005 बैच प्रारंभ से प्रभावशाली रहा है। रमन सिंह सरकार के दौरान भी इस बैच को हमेशा वेटेज मिला। मुकेश जब एमआईटी में पढ़ने यूएस गए तो उनकी जगह रजत कुमार सीएम सचिवालय में आए थे। कांग्रेस सरकार में ये बैच पांच बरस पूरी तरह हांसिये पर रहा। मुकेश और रजत सेंट्रल डेपुटेशन का रास्ता तलाश लिए थे तो आर0 शंगिता किस्मती रहीं कि कोई विभाग नहीं मिला तो कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। राजेश टोप्पो का भी यही हाल रहा। मगर यह बैच अब फिर पुराने रौं में आ गया है।

बीजेपी के लिए अलर्ट

71 सीट वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित हो गई थी। मगर वह फिर से खड़े होने की कोशिशों में जुट गई है। रायपुर में जून में बड़ा शो करने के बाद अब पार्टी ग्रासरुट लेवल पर जाकर समुदायों में अपनी पकड़ बनाने का प्रयास कर रही। विश्व आदिवासी दिवस पर कोटा में आदिवासियों पर एक बड़ा जलसा किया गया। एक्स सीएम से लेकर आधा दर्जन से अधिक विधायक इस मौके पर मौजूद रहे। आदिवासियों को इमोशनल तौर पर पार्टी से जोड़ने के लिए कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव में मां महामाया माई से प्रार्थना कर डाली कि कोटा की पहाड़ियों में कोई खनिज संपदा न निकल जाए, जिससे हमारे आदिवासी इलाके खुदाई के शिकार हो जाएं। कहने का आशय यह है कि बीजेपी के लिए अलर्ट होने का समय आ रहा है। पार्टी के नेता इस समय सरकार होने के स्वाभाविक नफे-नुकसान के चक्कर में उलझे हुए हैं, कांग्रेस अपना घर दुरूस्त करने में भिड़ गई है।

नशे के खिलाफ मुहिम?

नशे के चलते छत्तीसगढ़ में बढ़ी अपराधिक घटनाओं को लेकर समाज कल्याण विभाग आगे आया है। सरकार के निर्देश पर समाज कल्याण विभाग के सचिव भूवनेश यादव कैम्पेन चलाने का ड्राफ्ट तैयार कर रहे हैं। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि नशाजनित अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस के साथ समाज कल्याण विभाग को भी आगे आना चाहिए। हालांकि, सच्चाई यह है कि पुलिस अगर मन से चाह लें तो नशे के चेन पर 24 घंटे के भीतर अंकुश लगाया जा सकता है।

एसपी का जोखिम

धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील कहे जाने वाले रायपुर के एक नजदीकी जिले में दुष्कर्म की शिकार एक महिला महीनों से पुलिस थाने और एसपी ऑफिस का चक्कर लगा रही है। मगर कानून के पेशे वाला मुजरिम ऐसी उंची पहुंच वाला है कि पुलिस के हाथ-पांव कांप जा रहे। हालांकि, अपनी गर्दन बचाने पुलिस ने महिला की शिकायत को रोजनामचा में दर्ज कर लिया है मगर एफआईआर नहीं कर रही। जबकि, सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट रूलिंग है कि कोई महिला अगर दुष्कर्म की शिकायत लेकर आती है तो सबसे पहले एफआईआर करना है। ऐसे में, मामला अगर कोर्ट पहुंच गया तो एसपी साब क्या जवाब देंगे? खैर, चरणवंदना पोलिसिंग की दौर में इस तरह का प्रेशर और रिस्क रहता ही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डिप्टी सीएम अरुण साव से विधि-विधायी लेकर उन्हें उससे कहीं बड़ा और एक्सपोजर वाला खेल और युवा कल्याण विभाग दिया गया है, इससे वे खुश होंगे या मायूस?

2. मंत्री केदार कश्यप से इरीगेशन लेकर उन्हें ट्रांसपोर्ट दिया गया, इसके क्या मायने हैं?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

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