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Chhattisgarh Tarkash 2025: प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का निरंतर 16 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश।

Chhattisgarh Tarkash 2025: प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक
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By Sanjay K Dixit

तरकश, 11 मई 2025

संजय के. दीक्षित

प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

कुछ दिन पहले कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के ट्रांसफर में सरकार ने एकाध सर्जिकल स्ट्राईक किया था। दीगर राज्य के एक बड़े नेता की सिफारिशी कलेक्टर की हरकतें जब सीमा को लांघने लगी तो सरकार ने उनकी छुट्टी कर दी। मगर टारगेट अभी भी कई हैं। सूबे में ऐसे अफसरों की कमी नहीं, जो सिफारिशों के बल पर अंगद की तरह कुर्सी पर जमे हुए हैं। किसी के लिए इस राज्य के नेता का फोन आता है, तो किसी के लिए फलां स्टेट से। पिछली कांग्रेस सरकार में एक महिला आईएएस ने दिल्ली बीजेपी के एक ऐसे बड़े आदमी से फोन कराया कि विरोधी सरकार होने के बाद भी कोई आह-उंह नहीं हुआ...स्टेट में ज्वाईनिंग का नियम तोड़ सरकार ने चुपके से ऐसे आर्डर निकाल दिया कि किसी को पता नहीं चल पाया। जबकि, ऋतु सेन को छत्तीसगढ़ आकर ज्वाईन करना पड़ा, फिर उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग मिली। आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, ये सभी सर्विसों में हो रहा है...अफसर परिस्थितिजन्य फायदा उठा रहे हैं। कायदे से तगड़ा सर्जिकल स्ट्राईक की जरूरत है। सरकार जब तक योग्य और काबिल लोगों की फील्ड में पोस्टिंग नहीं करेगी, तब तक उसके गुड गवर्नेंस का मिशन पूरा नहीं होगा। सिफारिशी पोस्टिंग वाले 10 परसेंट अधिकारी ही सरकार के सिस्टम को पलीता लगा रहे हैं।

पीएचक्यू का टॉलरेंस

भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान मानपुर-मोहला पुलिस ने पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के फौजी के छोटे भाई को इसलिए दो दिन थाने में बिठा लिया कि उसे एक लाख रुपए रिश्वत नहीं मिला। मामला छत्तीसगढ़ से खेती-किसानी के लिए एक जोड़ी बैल खरीदकर ले जाने का था। मोहला-मानपुर पुलिस ने मवेशी तस्करी का केस बनाने की धमकी देकर उसे हिरासत में ले लिया। इस बीच पीड़ित युवक की मां चल बसी...अंत्येष्टि में टाईम पर गांव नहीं पहुंच पाने पर लोगों का गुस्सा भड़क गया। बात महाराष्ट्र से होते हुए छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय तक पहुंची। अफसरों ने मानपुर-मोहला के बड़े अफसर को फोन लगाकर पूछा, तो उनका जवाब हैरान करने वाला था। जिले के अफसर ने कहा...सर, रिश्वत की रकम वापिस हो गई है तो अब क्या कार्रवाई की जाए। पीएचक्यू नाराज हुआ, तब जाकर अफसर ने अपने प्रिय वसूलीबाज थानेदार को सस्पेंड किया। याने दूसरे राज्य में छत्तीसगढ़ का नाम खराब करने की सजा सिर्फ थानेदार का निलंबन। इससे ज्यादा पीएचक्यू कुछ कर भी नहीं सकता। कौवा मारकर टांगने का पावर उसके पास है नहीं। कुछ एक्सट्रा रसूखदार केस में सिस्टम भी हाथ खड़ा कर देता है। ऐसे में फिर पोलिसिंग की बात करना बेमानी है।

कप्तान....पानी-पानी

इस सरकार में पुलिस मुख्यालय के अफसरों को कम-से-कम इस बात का फ्रीडम मिला है कि वे पुलिस अधिकारियों को आईना दिखा सकते हैं। इस मौके का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। पीएचक्यू के प्रेशर में 200 करोड़ का वाहन घोटाले पर नकैल कसा गया है। पिछले दिनों एसपी कांफ्रेंस में खुफिया चीफ अमित कुमार ने एसपी लोगों से दो टूक कहा कि न मैं और न डीजीपी साब...किसी ने एक टीआई की नियुक्ति को लेकर फोन किया होगा। तुमलोग अपने मन से थानेदारों की नियुक्ति कर रहे हो...फिर क्राईम काब में क्यों नहीं आ रहा। इस पर एसपी लोग बगले झांक रहे थे।

भावी CS एसी में और बेचारे...

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के साथ मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी सुशासन तिहार में लगातार जा रहे हैं। अमिताभ के रिटायरमेंट में अब बमुश्किल 40 दिन बच गए हैं। ऐसे में, बेचारे का मई की गरमी में घूमना लोगों को इसलिए खटक रहा कि जिनको उनके बाद प्रदेश की प्रशासनिक कमान संभालनी है, वे मंत्रालय के एसी कमरों में बैठे हुए हैं और जो पिछले पांच साल में ऐसे कई दौरे कर चुके हैं, वे जाते-जाते तपती धूप का सामना कर रहे हैं। हालांकि, सरकार की भी मजबूरी है। जिन्हें चीफ सिकरेट्री बनाना है, उसे लेकर सीएम अपने साथ घूमने लगे तो फिर सारा कुछ पहले ही एक्सपोज हो जाएगा। फिर भी, नए सीएस के लिए यह अच्छा मौका था...प्रदेश की जमीनी हकीकत से वाकिफ होने का...सारे कलेक्टरों का नब्ज भी उन्हें पता चल जाता। अब 30 जून को जो नया मुख्य सचिव बनेगा, उनको क्या पता रहेगा कि सीएम का ये 36 पेज वाला एजेंडा क्या है और कलेक्टरों ने इसमें क्या रिस्पांस दिया है।

खाता-बही वाले मंत्रीजी

खरीदी-सप्लाई का हिस्सा न पहुंचने से पीए ने मंत्रीजी को चुगली कर दी...साब जिले वाला एजेंट पैसा दबा दे रहा है। फिर क्या था...मंत्रीजी ने राजनांदगांव के अधिकारियों को बुला लिया। फिर उनके सामने खाता-बही खोलकर बैठ गए...इतने की खरीदी हुई तो फिर इसका 15 परसेंट पहुंचाए क्यों नहीं? अधिकारी बेचारे गिड़गिड़ा रहे थे...सर, टेंडर नियम से हुआ है...इसमें कुछ मिलता नहीं...मगर मंत्रीजी मानने के लिए तैयार नहीं थे...दो टूक धमकी दे डाले...ऐसा नहीं चलेगा। दरअसल, मंत्रीजी सभी जिलों में एक-एक प्रायवेट वसूली एजेंट नियुक्त कर रखे हैं। इस वजह से पीए कसमसा रहे हैं। इस वजह से मंत्री के पीए और एजेंटों में टकराव की स्थिति निर्मित होती जा रही है। सही भी है...पेट की चोट पीए लोग कैसे बर्दाश्त करेंगे।

समझदार मंत्री, समझदार अफसर

होशियार मंत्री और अफसर अपने स्टॉफ की नियुक्ति के मामले में बड़े चौकस रहते हैं। वे तगड़ी स्क्रीनिंग के बाद अपने पीए अपाइंट करते हैं। रमन सरकार के दौरान दो मंत्री इस मामले में हमेशा अलर्ट रहे तो पिछली कांग्रेस सरकार में किसी भी मंत्री ने इस महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान नहीं दिया। इस सरकार की, तो 10 में से सिर्फ एक मंत्री ऐसे हैं, जिनके स्टॉफ को अहम मामलों की भनक नहीं लग पाती। अफसरों के साथ भी यही है। ब्यूरोक्रेसी में जो अफसर स्टडी नहीं करता, उन्हें पीए अपने इशारों पर नचाते हैं। कई नौकरशाहों के पीए ऐसी फाइलों पर हस्ताक्षर करा लेते हैं, जिसमें जांच हो जाए तो जेल जाने से उन्हें कोई बचा नहीं पाएगा। फिर दूसरा इंपोर्टेंंट यह कि पीए लोगों से कनेक्ट होने में सबसे बड़े ब्रेकर होते हैं। वे मंत्री या अफसर से आसानी से मिलने नहीं देंगे। अगर मंत्री या अफसर से आपको बिना किसी अवरोध के मिलना है तो उसका एक ही उपाय है...पीए की खुशामद के साथ कुछ चढ़ावा चढ़ाते रहिये।

पीए की ऐसी छुट्टी

बात निकली पीए के ब्रेकर बनने की, तो एक पुरानी घटना जेहन में आ गई। बात नवंबर या दिसंबर 2011 की होगी। सुनिल कुमार उसी समय लंबे डेपुटेशन से दिल्ली से रायपुर लौटे थे, या यों कहें बुलाए गए थे। थोड़े दिन के लिए वे यहां एसीएस स्कूल शिक्षा रहे। इसके बाद जनवरी 2012 में वे पी जाय उम्मेन के हटने के बाद सीएस बन गए थे। बहरहाल, बात मुद्दे की। सुनिल कुमार से पुरानी जान-पहचान थी, ज्वाईनिंग के बाद एकाध मुलाकात हो चुकी थी। उसके बाद एक दिन मैंने उनसे मिलने के लिए फोन लगाया, उन्होंने मुझे शाम पांच बजे का टाईम दिया। नियत टाईम पर पुराने मंत्रालय पहुंच कर उनके पीए को मैंने अपना विजिटिंग कार्ड दिया। पीए के रिप्लाई से मैं सोच में पड़ गया...सुनिल कुमार तो ऐसे नहीं करते। पीए ने स्पष्ट तौर से कहा...साब अभी मीटिंग में हैं, अभी नहीं मिल सकते। मैं बरामदे में खड़ा होकर कुछ देर सोचा। फिर तय किया कि उन्हें कम-से-कम सूचित कर दूं कि मैं टाईम पर मंत्रालय पहुंच गया था। उन्हें फोन कर बताया, मैं मिलने आया था...मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि वे बोले...आइये, अंदर आ आइये। भीतर गया तो देखा कोई मीटिंग नहीं। वे किसी फाइल को पढ़ रहे थे। कुछ देर बैठने के बाद मैं पीए के बारे में बताया...सुनकर वे आवाक रह गए। उस समय पीए को बुलाकर वे डांटे या नहीं, इसे मैं रिकॉल नहीं कर पा रहा मगर अगले दिन पता चला कि पीए की वहां से छुट्टी हो गई। जाहिर है, पीए ने वह हरकत नहीं की होती तो वो सुनिल कुमार के साथ मुख्य सचिव सचिवालय भी गया होता। सार यह है कि पीए अगर आपने ढंग का नहीं रखा तो फिर आपको वो अलोकप्रिय बना देगा। क्योंकि, हर आदमी अफसर या मंत्री से पीए की शिकायत कर नहीं पाता।

32 की जगह चार

रमन सिंह सरकार के दौर में आईएफएस अफसरों का स्वर्णिम दौर रहा। तब एक समय 32 आईएफए डेपुटेशन में राज्य सरकार में विभिन्न बोर्ड और कारपोरेशनों को संभाल रहे थे। रमन सिंह की दूसरी पारी में सुब्रमणियम सिकरेट्री टू सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए थे। नया रायपुर को बनाने वाले एसएस बजाज भी आईएफएस थे। अनिल राय लंबे समय तक पीडब्लूडी सिकरेट्री रहे तो राकेश चतुर्वेदी, संजय शुक्ला, स्व0 देवेंद्र सिंह और सुनील मिश्रा भी कई अहम पदों पर रहे। मगर अब आलम यह है कि यह संख्या चार पर सिमट गई है। अरुण प्रसाद मेंबर सिकरेट्री पौल्यूशन बोर्ड, जगदीशन डायेक्टर हार्टिकल्चर, विवेक आचार्य एमडी टूरिज्म और कल्चर तथा विश्वेष कुमार एमडी सीएसआईडीसी। दरअसल, अब आईएएस में डायरेक्टर, एमडी लेवल के अफसरों पर संख्या काफी बढ़ गई है। उधर, आईएफएस में भी उस तरह के अफसर बचे नहीं, जिनका काम अच्छा हो और राज्य सरकार में कनेक्शन भी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन सी खास वजह है कि दूरस्थ और छोटे जिले बोर्ड परीक्षाओं में बाजी मार ले जाते हैं और बड़े शहरों के कोचिंग और ट्यूशन करने वाले बच्चे पीछे?

2. भारत-पाक में सीजफायर की खबर से छत्तीसगढ़ में वो कौन तीन लोग हैं, जो सबसे अधिक खुश हुए होंगे?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

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