Chhattisgarh Tarkash 2025: पुलिस और कल्पनाएं
Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 17 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश।

तरकश, 14 दिसंबर
संजय के. दीक्षित
पुलिस और कल्पनाएं
पुलिस की कल्पना के बारे में जानकर छत्तीसगढ़ ही नहीं, दूसरे राज्यों के लोग भी हतप्रभ हैं। आईपीएस अधिकारियों के दीगर राज्यों में पोस्टेड बैचमेटों के दो दिन तक लगातार फोन घनघनाते रहे...भाई क्या हो रहा तुम्हारे राज्य में। हालांकि, छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए ये कोई नई बात नहीं है...पुलिस की अनेक कल्पनाएं हैं। पुलिस के कई लोगों ने इस स्तंभ के लेखक को फोन कर सरगुजा और दुर्ग पुलिस रेंज में तैनाती के दौरान दो कल्पनाओं के खेल के बारे में बताया, तो विश्वास नहीं हुआ...आखिर अपनी पुलिस इस किस्म के घोर कलयुग का शिकार कैसे हो सकती है? दोनों कल्पनाएं गजटेड रैंक की। एक अपने पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों को ही ट्रेप कर जेबें ढिली कर देती थीं। दूसरी, गिरोह चलाकर नामदार लोगों को शिकार बनाती थीं। ये बातें पहले की हैं, पता नहीं अब वे जहां पोस्टेड हैं, वहां क्या हो रहा होगा। बहरहाल, अंबिकापुर में एक राजपत्रित रैंक के साहब और थे। सेक्सटॉर्शन गिरोह के जरिये उन्होंने सरगुजा संभाग के कई संभ्रांत लोगों को निशाना बना अच्छा खासा पैसा बनाया। मगर तत्कालीन डीजीपी एएन उपध्याय उनके घृणित कारनामे से इतने खफा हुए कि जब तक कुर्सी पर रहे, प्रमोशन नहीं होने दिया। ये साब अभी जहां पोस्टेड हैं, आप सुनेंगे हैरान रह जाएंगे। मगर जाने दीजिए।
उछलती टोपी!
पता चला है, सेक्सटॉर्शन केस में पुलिस ने कोई कार्रवाई करने से मना कर दिया है। क्योंकि, रिपोर्ट दोनों तरफ से हुई है। हो सकता है, आम सहमति के केस को पुलिस तूल नहीं देना चाहती। मगर सोशल मीडिया में कई दिनों से पुलिस की टोपी उछल रही है। फिर सवाल यह है कि क्या इस तरह के मामलों को नजरअंदाज करने से उच्छृंखलताएं और नहीं बढ़ेंगी? और अगर पुलिस को लगता है कि सामने वाला गुनाहगार है तो उसके खिलाफ कार्रवाई से पुलिस सरेंडर क्यों कर रही? छोटे-छोटे मामलों में पुलिस आईटी एक्ट लगाकर घर से उठा लेती है और सोशल मीडिया में सरेआम टोपी उछलने पर आंख मूंद लेना...ये तो गृह और पुलिस विभाग में गजबे हो रहा है। जाहिर है, पुलिस में सभी कल्पना नहीं हैं, अच्छे और संभ्रांत घरों के अनेक अफसर कर्मठता और ईमानदारी से सेवा दे रहे हैं। मगर एक मछली, तालाब को गंदा कर देती है....इससे अच्छे लोग भी कटघरे में होंगे। इतने बड़े केस में पुलिस को कुछ तो मैसेज देना था, कम-से-कम एक जांच कमेटी ही बना देती, ताकि आगे से इस तरह की चीजां के पहले लोग दस बार सोचते। बता दें, छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग के डिरेल्ड होने की सबसे बड़ी वजह है कार्रवाई का अभाव। बड़ी-से-बड़ी घटनाओं में पुलिस मैसेज नहीं दे पा रही। पुलिस में अनुशासन बिगड़ने का बड़ा कारण सिस्टम भी है। इंस्पेक्टरों के ट्रांसफर करने का अधिकार डीजीपी को जरूर दिया गया है मगर कुछ सालों से हालत यह है कि अपने मन से वे एक दरोगा का ट्रांसफर नहीं कर सकते। एसपी और आईजी को हटाने की तो दूर की बात। एसपी की पोस्टिंग में डीजीपी का सम्मान सिर्फ एएन उपध्याय के कुर्सी पर रहने तक रहा। उपध्याय भले ही भोले-भंडारी थे मगर एसपी की पोस्टिंग उनकी जानकारी में होती थी। पुलिस का अगर औरा कायम करना है तो कड़े फैसले लेने होगे...पहले जैसे अधिकार देने होंगे। मंत्री, विधायक और नेता अपने हिसाब से थानेदारों की नियुक्ति कराते रहेंगे तो फिर छत्तीसगढ़ का अपराधगढ़ बनना तय है। मिलियन डॉलर का प्रश्न है...बरसों से बदनाम रही यूपी और बिहार की पोलिसिंग अब वंदे भारत ट्रेन की तरह पटरी पर दौड़ रही है और छत्तीसगढ़ पुलिस?
अफसरशाही की गति
सरकार के मंत्रियों ने दो साल में अपना कितना इकबाल बनाया, ये नहीं पता मगर अफसरशाही में जिस तरह कड़ाई शुरू हुई है, उससे लगता है कि सिस्टम की गाड़ी अब गति पकड़ लेगी। 9 दिसंबर को मुख्य सचिव विकास शील ने जिस अंदाज में सिकेट्री और डायरेक्टरों की मीटिंग ली, उससे अधिकारी तबका सकते में है। विधानसभा में जिस तरह मंत्री 10 में से नौ प्रश्न के जवाब में कहते हैं, दिखवा लेंगे और फिर उसे कभी देखा नहीं जाता, उसी तरह कई अधिकारियों ने जब कहा दिखवा लूंगा तो सीएस ने कहा, दिखवा नहीं कीजिए। कई सीनियर सिकेट्री मानते हैं कि इस अंदाज में किसी चीफ सिकरेट्री ने कभी मीटिंग नहीं ली। उन्होंने बजट खर्च करने को लेकर सचिवों से ही 31 दिसंबर तक का सेल्फ टारगेट घोषित करवा लिया। 31 में अब 17 दिन बच गया है। टारगेट के चक्कर में अफसर क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियों को भूल गए हैं। चीफ सिकेट्री की नियुक्ति के समय मंत्रालय के एक वरिष्ठ अफसर ने कहा था, अमित अग्रवाल अगर सीएस बने तो ऐसी स्थिति आएगी कि कई आईएएस पांचवे फ्लोर से कूद जाएंगे। इस समय मंत्रालय के पांचवे फ्लोर से कूदने जैसी स्थिति तो नहीं है, मगर अफसरों की रात की नींद जरूर उड़ी हुई है। क्योंकि, आजकल बंद कमरे में नहीं, ऑडिटोरियम में हंड्रेड के करीब अफसरों के बीच इज्जत का सवाल है।
जुगाड़ के आईएएस
छत्तीसगढ़ में अलायड सर्विस से रिक्त आईएएस के दो पदों के लिए 10 नामों का पेनल यूपीएससी को भेज दिया गया है। जल्द ही इसके लिए डीपीसी होगी। डीपीसी में यूपीएससी चेयरमैन, डीओपीटी के सिकरेट्री या उनके नॉमिनी, छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री, सीनियर एसीएस और जीएडी सिकरेट्री शामिल होंगे। अब सवाल उठता है, 10 में से आईएएस बनने का अवसर किन दो अफसरों को मिलेगा। तो इसका जवाब है छत्तीसगढ़ में एलायड कोटे से आईएएस बनाने में कभी भी योग्यता को मापदंड नहीं बनाया गया...सिर्फ आलोक अवस्थी को छोड़कर। मध्यप्रदेश में आरएस विश्वकर्मा और सुशील त्रिवेदी जैसे नियम-कायदों के जानकार अधिकारियों को आईएएस बनाया गया था, जिन्होंने राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ आकर अपना कौशल दिखाया भी। मगर उसके बाद? विष्णुदेव सरकार सुशासन पर काम कर रही है, ऐसे में लोगों में जिज्ञासा है कि इस बार आईएएस के दो पद किसी कोटे, सिफारिश और जोर-जुगाड़ से भरे जाएंगे या काबिलियत के आधार पर। जाहिर है, सरकार के गुड गवर्नेंस की मुहिम को देखते अच्छे कंडिडेट इस बार ज्यादा आशान्वित हैं।
एक मंत्री, एक सचिव
सीएम सचिवालय की कमान संभालने के बाद सुबोध सिंह ने कामकाज को स्मूथली संचालित करने के लिए एक मंत्री, एक सचिव का प्रयोग किए थे। इस समय 90 परसेंट से अधिक सचिवों के एक मंत्री हैं। यही प्रयोग अब मंत्रालय में पोस्टेड राज्य प्रशासनिक सेवा के डिप्टी सिकरेट्री में भी किया गया है। इस हफ्ते राप्रसे अधिकारियों की लंबी-चौडी लिस्ट निकली, उसमें अधिकांश को उनके अतिरिक्त विभाग से मुक्त किया गया। अभी तक एक-एक डिप्टी सिकरेट्री के पास दो-दो, तीन-तीन विभाग थे। एक विभाग की मीटिंग के लिए उप सचिव को बुलाओ तो पता चलता था दूसरे विभाग की मीटिंग में बैठे हुए हैं। इससे फाइलों के डिस्पोजल में भी विलंब हो रहा था। अफसरों के पास बहाने भी थे, क्या बताएं...हमारे पास कई विभाग हैं। अब अधिकांश डिप्टी सिकरेट्री को डबल प्रभार से मुक्त कर दिया गया है। ये दिक्कतें सचिवों के साथ होती थीं। अलग-अलग विभाग होने से अलग-अलग मंत्री होते थे। विधानसभा सत्र के दौरान कई बार एक ही टाईम में मंत्री की ब्रीफिंग हो जाती थी। अब एक सचिव के पास एक मंत्री हैं। सुशासन की दिशा में इसे अहम कदम माना जा रहा है।
ब्लैक मनी और घर से विरोध
बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली के पत्र लिखने के आठ साल बाद राज्य सरकार ने जमीनों के गाइडलाइन रेट का युक्तियुक्तकरण कर ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने का प्रयास किया। मगर इसका विरोध इस स्तर पर हुआ कि सरकार हिल गई। सरकार ने कुछ रियायतें देते हुए कुछ कंडिकाओं को बदला। अब मसला यह नहीं कि विरोध इतना संगठित और बड़े स्तर पर कैसे हुआ...यह बताने की आवश्यकता भी नहीं कि जमीन-धंधे के कारोबार में कैसे-कैसे ताकतवर और रसूखदार लोग जुड़े हैं। फिर धंधे पर चोट पड़ेगी तो कैसे कोई बर्दाश्त करेगा। सो, हंगामा तो खड़ा होना ही था। अफसरों से ये जरूर चूक हुई कि वे जमीन दलालों और भूमाफियाओं की रसूख का अंदाजा नहीं लगा पाए। दूसरा, आश्चर्य इस बात का कि गाइडलाइन रेट बढ़ने का सबसे अधिक विरोध बीजेपी के भीतर से हुआ। इतने बड़े रिफार्म का पार्टी के लीगल सेल से जुड़े नरेश गुप्ता का बयान आया, बाकी किसी एक नेता और मंत्री इसके पक्ष में सामने नहीं आए। अलबत्ता, कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों ने हंगामा कर दिया...गाइडलाइन रेट नहीं बदला तो हम चुनाव हार जाएंगे। बता दें, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री को डीओ लेटर लिख बताया था कि देश में सबसे कम गाइडलाइन रेट छत्तीसगढ़ में ब्लैकमनी का इंवेस्टमेंट तेजी से बढ़ रहा है। इससे इंकम टैक्स का काफी नुकसान हो रहा है। दूसरा छत्तीसगढ़ मनी लॉडिं्रग का हब बनते जा रहा है।
था बुखार, दवा दे दी दस्त की
गाइडलाइन रेट में मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली शीर्ष अफसरों की कमेटी ने कुछ ऐसा किया कि पूरे प्रदेश में रायता फैल गया। दरअसल, केंद्रीय भूतल परिवहन मिनिस्टर नितिन गडकरी इस बात से काफी नाराज थे कि छत्तीसगढ़ में जमीनों के वर्ग मीटर दर और हेक्टेयर दर में चार गुना से 20 गुना तक अंतर होने के कारण भू-अर्जन से पहले लोग जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े कर लेते हैं, ताकि मुआवजा बढ़ सके। इससे केंद्रीय परियोजनाओं की लागत काफी बढ़ जा रही थी। मसलन, अरपा भैंसाझार परियोजना एक उदाहरण है, जिसकी लागत 300 करोड़ थी जो भू अर्जन मुआवजे के कारण बढ़कर 860 करोड रुपए हो गई थी। नीतीन गडकरी की नाराजगी को देखते सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में शीर्ष सचिवों की एक कमेटी बनाई। कमेटी ने बिना सोचे-समझे रिपोर्ट दे दी और कैबिनेट ने उसे लागू कर गांव से वर्ग मीटर दर को समाप्त करने का फैसला ले लिया। 29 जुलाई 2025 को राज्य कैबिनेट द्वारा गांव से वर्ग मीटर दर समाप्त करने के निर्णय लिए जाने के फलस्वरुप ग्रामीण इलाकों में 500 वर्ग मीटर तक के जमीन का मूल्यांकन कई कई गुना कम हो गया। शहर से लगे अर्बन क्षेत्र में इसका विशेष प्रभाव हुआ, जहां 1500 वर्ग मीटर तक जमीन का मूल्यांकन नगर निगम क्षेत्र की तरह होता था, वहां 1500 वर्ग मीटर तक जमीन का मूल्यांकन कई गुना कम हेक्टेयर दर पर होने लगा। जाहिर है, इससे लोगों का नुकसान तो होना ही था। कायदे से सिस्टम को वर्ग मीटर रेट समाप्त करने की बजाए राजस्व विभाग को टाईट कर जमीन को टुकड़े करने पर रोक लगाना था। अभनपुर के चर्चित भारतमाला समेत कई जगहों पर ऐसा ही हुआ, खरीदी-बिक्री पर रोक का ऐलान होने के बाद भी भूमाफियाओं ने जमीनों को टुकड़े कर आठ गुना मुआवजा प्राप्त कर लिया। बहरहाल, सीएस की अध्यक्षता वाली कमेटी ने बुखार में दस्त की दवा दी...इससे केस बिगड़ना ही था।
एक व्यक्ति, 7 सलेक्शन, किसकी चूक?
सात साल बाद पुलिस महकमे में सिपाहियों की भर्ती हुई। मगर वह भी मुकम्मल नहीं हो पाई। करीब छह हजार पदों पर भर्ती में यह प्रयास नहीं किया गया कि एक आदमी अनेक जिलों में अप्लाई नहीं कर सके। इसका खामियाजा यह हुआ कि एक-एक का कई जिलों में सलेक्शन हो गया। रायपुर के एक युवक का सात जिलों में चयन हुआ है। यही वजह है कि जिलों में अभी तक 50 परसेंट के आसपास ही आरक्षकों ने आमद दी है। 6000 में से मुश्किल से चार हजार के आसपास ही कांस्टेबल मिलेंगे। बड़ी संख्या में आवेदकों ने सेफ रहने के लिए कई जिलों में आवेदन कर दिया। कायदे से व्यापम से बात कर ऐसा इंतजाम करना था कि जो जिस जिले का है, उसी जिले में आवेदन करें। पुलिस मुख्यालय के सीनियर अफसर व्यापम के सीनियर अफसरों से तार्किक ढंग से बात कर लेते तो वे भी इससे सहमत हो जाते। जाहिर है, वेटिंग क्लीयर करने के बाद भी अब स्वीकृत पद नहीं भर सकेंगे और फिर से भर्ती निकालनी होगी। बे-रोजगार युवाओं में इसको लेकर बड़ा असंतोष है।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. दो बरस का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी अधिकांश मंत्री कामकाज के मामले में अपनी छाप छोड़ने में नाकाम क्यों रहे?
2. छत्तीसगढ़ की पूरी अफसरशाही इन दिनों बेहद परेशान चल रही है, इसकी वजह क्या होगी?
