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Chhattisgarh Tarkash 2025: नितिन नबीन: कहीं खुशी, कहीं गम

Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 17 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश।

Chhattisgarh Tarkash 2025: रोलर युग में कड़ी और चांदा
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By Sanjay K Dixit

तरकश, 21 दिसंबर

संजय के. दीक्षित

कहीं खुशी, कहीं गम

छत्तीसगढ़ के बीजेपी प्रभारी नितिन नबीन अब पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बन गए हैं और अगले महीने पूर्णकालिक भी हो जाएंगे। नितिन के पार्टी सुप्रीमो बनने से छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेताओं का एक वर्ग खुश है तो कुछ लोगों को 440 वोल्ट का झटका लगा है। इनमें कई मंत्री शामिल हैं तो कुछ निगम-मंडलों के चेयरमैन और संगठन के बड़े नेता भी। असल में, नितिन के पास सारे नेताओं की कुंडली है कि कौन क्या गुल खिला रहा है। उन्हें उन मंत्रियों के बारे में भी पता है कि सरकार बनते ही बिना वक्त गंवाए कैसे तूफानी बैटिंग शुरू कर दी। और उनकी नोटिस में यह भी है कि संगठन का कौन नेता पोस्टिंग और सप्लाई-ठेका के जरिये अपने होने की कीमत वसूल रहा है। जाहिर है, आने वाले टाईम में मंत्रिमंडल का पुनगर्ठन होगा, फिर उसमें नितिन नबीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का असर भी दिखेगा। बता दें, नितिन छत्तीसगढ़ के पहले बीजेपी प्रभारी होंगे, जो दो साल में पूरे छत्तीसगढ़ को मथ दिया। 146 ब्लॉकों में से शायद ही कोई उनकी पहुंच से बचा होगा। रायपुर बीजेपी ऑफिस में बैठकर किस विधानसभा में कितना पोस्टर-बैनर भेजना है, वे ये भी तय करते थे और ग्राउंड पर जाकर खुद भी परखते थे कि वहां की सीट निकालने के लिए किस रणनीति पर काम करना होगा। इसके चलते छोटे-से-छोटे अल्पज्ञात कार्यकर्ताओं से भी उनके सीधे संवाद है। ऐसे में, दिल्ली में बैठकर भी छत्तीसगढ़ की चीजें उनसे अछूती नहीं रहेंगी। और चीजें जब उनकी नोटिस में रहेंगी तो जानते ही हैं क्या होगा? लिहाजा, कुछ लोगों का दुखी होना स्वाभाविक है।

सप्लायर को फटकार

बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन की छबि कितनी साफ-सुथरी है कि बिहार में लगातार 20 साल से विधायक और मंत्री होने के बाद भी उन पर अब तक कोई आरोप नहीं लगा। छत्तीसगढ़ से जुड़ा एक वाकया भी उनका काफी चर्चा में रहा था। दिसंबर 2023 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद बहुचर्चित 300 करोड़ के सीजीएमएससी कांड में जब ठेकेदार को कहीं से कोई रहम मिलता नहीं दिखा तो कुछ भाई साहबों ने उसे सलाह दी कि नितिन नबीन से जाकर मिलो, शायद वहां मोक्ष मिल जाए। सप्लायर सूटकेस लेकर पटना पहुंच गया। नितिन को पता चला कि तो उन्होंने न केवल मिलने से मना किया बल्कि स्टाफ से जमकर फटकार भी लगवाई। नितिन नबीन जब ऐसे हैं तो मंत्रियों के 40 परसेंट रेट का क्या होगा?

सातवें नंबर से टॉप पर

नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फैसला इतना चौंकाने वाला था कि किसी को सहसा यकीं नहीं हुआ। जब यह खबर आई तो वे पटना के कार्यकर्ता सम्मेलन में थे और वक्ता के तौर पर उनके बोलने का क्रम सातवें नंबर पर था। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी तथा विजय सिनहा, सांसद रविशंकर प्रसाद, विवेक ठाकुर, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव। फिर नितिन नबीन। मगर एक झटके में वे सातवें से नंबर वन पर पहुंच गए। बीजेपी में वे नंबर वन रहेंगे ही, पार्टी प्रोटोकॉल में भी पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बाद उनका स्थान होगा।

बिल्डरों को तोहफा, जनता को?

जमीनों के गाइडलाइन रेट के युक्तियुक्तकरण से आई कयामत के बावजूद छत्तीसगढ़ के बिल्डर बड़े गदगद हैं। सरकार ने उन्हें न्यू ईयर गिफ्ट देते हुए रजिस्ट्रेशन में सुपर बिल्डअप का क्लॉज समाप्त कर दिया है। याने फ्लैट की रजिस्ट्री अब बिल्डअप एरिया के हिसाब से होगी। जाहिर है, इससे रजिस्ट्री का रेट 30 से 40 परसेंट कम हो जाएगा। ये पैसा सरकार के खजाने में जाता था। बिल्डअप एरिया के हिसाब से रजिस्ट्री होने से अब फ्लैट का रेट कम हो जाएगा। इससे फ्लैट के सेल तेज होगा। मगर प्रश्न उठता है सुपर बिल्डअप का रजिस्ट्री चार्ज नहीं लगेगा तो फिर आम आदमी से सुपर बिल्डअप का रेट कैसे? रेरा के एक्ट में भी स्पष्ट तौर से कहा गया है कि सुपर बिल्डअप डेवलपमेंट का हिस्सा है, उसका रेट अलग से नहीं लिया जा सकता। सुपर बिल्डअप में सीढ़ी से लेकर लॉन और बाल्कनी तक बिल्डर जोड देते हैं। अब आप कहेंगे कि बिल्डर को अगर सुपर बिल्डअप का रेट नहीं लेने कहा जाएगा तो वो वह फ्लैट का रेट बढ़ा देगा...याने घूमा-फिराकर वही पड़ेगा। तो इसका जवाब है...बिल्डअप-सुपरबिल्डअप के फेर में आम आदमी गुमराह हो जाता है। आमतौर पर होता ऐसा है कि कोई फ्लैट खरीदने जाता है तो उसे फुट के हिसाब से रेट बताया जाता है। बाद में जब सौदा पटने लगता है तो पता चलता है कि रजिस्ट्री इतने की नहीं, इतने सुपरबिल्डअप एरिया की होगी। ऐसे में, कस्टमर बिल्डरों के ट्रिक में फंस जाता है। इसे रेरा को देखना चाहिए। 2013 में उसका गठन ही उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए किया गया था।

सीएस का सचिवालय

मुख्यमंत्री की तरह मुख्य सचिव को भी अपने सचिवालय में अपने हिसाब से अफसर पोस्ट करने की स्वतंत्रता होती है। फिर भी सक्षम अधिकारियों को ही सीएस सचिवालय में पोस्टिंग होती है। देश के कई राज्यों में आईएएस भी सिकेट्री होते हैं और राज्य प्रशासनिक सेवा के भी। छत्तीसगढ़ में भी सुनिल कुमार ने 2003 बैच की आईएएस ऋतु सैन को अपना ज्वाइंट सिकरेट्री बनाया था। उनसे पहले आरपी बगाई के सीएस रहने के समय आईएएस ईशिता राय उनके सचिवालय में रहीं। इन दो के अलावा हमेशा राप्रसे अधिकारियों को ही सीएस सचिवालय का हेड बनाया गया। दरअसल, सीएस के सिकरेट्री को पीएमओ, डीओपीटी से लेकर भारत सरकार के मंत्रालयों तक से बात करनी होती है, इसलिए कंपिटेंट अफसरों को ही इस पद पर बिठाया जाता है। हालांकि, अमिताभ जैन ने नया प्रयोग किया था...नायब तहसीलदार कैडर से प्रमोट हुए अधिकारी को अपना सिकेट्री बनाया था। इससे उनको कितना फायदा हुआ, ये तो नहीं मालूम। मगर अब नए सीएस सचिवालय के हेड की तलाश शुरू हो गई है। कायदे से सीएस सचिवालय में आईएएस को ही बिठाना चाहिए। भले ही राजभवन की तरह एक अच्छी पोस्टिंग उसके लिए सुनिश्चित कर दी जाए।

मंत्री आगे, सिकेट्री पीछे!

सरकार ने सचिवों को हर तीन महीने में अपने विभाग का रिपोर्ट कार्ड मीडिया से शेयर करने कहा था। इसके अतिरिक्त प्रेस नोट, सक्सेस स्टोरी से लेकर सोशल मीडिया पोस्ट तक में मार्किंग सिस्टम बनाया गया था। याने इतने पोस्ट पर इतने अंक मिलेंगे। इससे सचिवों का परफर्मेंस परखा जाना था। प्रेस कांफ्रेंस के लिए सरकार ने बकायदा शेड्यूल जारी किया था। इस तारीख को ये सिकेट्री प्रेस मिलेंगे तो फलां तारीख को ये। मगर आलम यह है कि 20 दिन से ज्यादा गुजर गया, अभी तक दो-तीन सचिव ही मीडिया को फेस कर पाए हैं। सचिवों से आगे मंत्री निकल गए हैं। अभी तक चार-पांच मंत्री सरकार की उपलब्धियों पर मीडिया को एड्रेस कर चुके हैं। मुख्यमंत्री के अनुमोदन से सचिवों को यह काम सौंपा गया था, इसे तो टॉप प्रायरिटी पर होना चाहिए।

सीईओ गायब?

बेमेतरा जिला पंचायत सीईओ प्रेमलता पद्माकर के आवास पर 19 नवंबर को एसीबी ने छापा मारा था। कमिश्नर लैंड रिकार्ड में पोस्टिंग के दौरान पटवारी से आरआई प्रमोशन घोटाले में उनका भी नाम है। इसी सिलसिले में एसीबी उनके घर दबिश दी। छापे में अहम साक्ष्य मिलने पर एसीबी ने उनके खिलाफ मुकदमा कायम कर लिया। इसके बाद से सीईओ का कोई पता नहीं है। पता नहीं, पंचायत या जीएडी की नोटिस में ये है भी कि नहीं? अगर नोटिस में नहीं है तो ये भी गंभीर है और नोटिस में होने के बाद भी वहां अब तक कोई पोस्टिंग नहीं करना उससे भी ज्यादा गंभीर है।

प्रशासन या तमाशा!

राजधानी रायपुर से लगभग लगा जिला है बेमेतरा। बेमेतरा में प्रशासन का क्या हाल है, आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि एक अफसर पूरे जिले का माई-बाप है। अपर कलेक्टर में प्रमोट होने के बाद प्रकाश भारद्वाज के पास अभी भी एसडीएम का प्रभार है। इसके साथ एडीएम का चार्ज भी। जिला पंचायत सीईओ के गोल होने पर कलेक्टर के कहने पर वहां का दायित्व भी संभाल रहे तो दो दिन से प्रभारी कलेक्टर भी। रणवीर शर्मा ने ट्रांसफर के बाद अपर कलेक्टर को चार्ज हैंड ओवर कर दिया। याने एक ही आदमी एसडीएम, एडीएम, अपर कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ और कलेक्टर भी। गजबे हाल है भाई प्रशासन का।

कार्रवाई या प्रमोशन?

सरकार ने कोरबा कलेक्टर अजीत बसंत का ट्रासंफर कर सरगुजा का कलेक्टर बनाया है। उनके तबादले को पूर्व गृह मंत्री ननकीराम कंवर की नाराजगी से जोड़कर देखा गया। सोशल मीडिया में भी इसी लाईन पर खबर चली। मगर ये समझ में नहीं आता कि अंबिकापुर जैसे जिले का कलेक्टर बनना कार्रवाई कैसे हुई? संभागीय मुख्यालय होने की वजह से अंबिकापुर का इम्पार्टेंस अभी भी कम नहीं हुआ है। फिर वह मुख्यमंत्री का गृह संभाग भी है। इस दृष्टि से भी सरगुजा में ठीकठाक अधिकारियों की पोस्टिंग दी जाती है। रही बात...कोरबा की तो वह कमाई-धमाई के हिसाब से टॉप का जिला हो सकता है। मगर अजीत बसंत इस टेम्परामेंट वाले रहे नहीं। सो, कोरबा में रहें या अंबिकापुर में, उन्हें क्या फर्क पड़ता है। ऐसे में तो ये प्रमोशन ही हुआ न।

सबसे खराब पोस्टिंग?

छत्तीसगढ़ सरकार ने इस हफ्ते 11 आईएएस अधिकारियों के तबादले किए, उनमें सबसे खराब पोस्टिंग अंबिकापुर के कलेक्टर भोस्कर विलास संदीपन की रही। उन्हें एडिशनल इलेक्शन ऑफिसर बनाया गया है। सूबे के टॉप फाइव रैंक के जिले की कलेक्टरी करके आने वाले अफसर को कभी भी इतनी खराब पोस्टिंग नहीं मिली। अभी कोई इलेक्शन भी नहीं है, जिसके लिए वहां अफसरों की जरूरत हो। अलबत्ता, हैरानी इस बात की भी कम नहीं है कि इतने लंबे समय तक अंबिकापुर में वे टिक कैसे गए? छबि तो उनकी साफ-सुथरी है मगर इसके साथ व्यवहारिक होना भी जरूरी है। बहरहाल, यह सवाल बना रहेगा कि डिविजनल हेडक्वार्टर वाले जिले से सीधे निर्वाचन में पटक देना...आखिर ये हुआ क्यों?

प्रमोटी आईएएस मायूस

कलेक्टरों के बहुप्रतीक्षित ट्रांसफर से प्रमोटी आईएएस अधिकारियों को भी बड़ी उम्मीदें थीं। तीन-चार अधिकारी कुछ भाई साहबों की परिक्रमा भी कर चुके थे। मगर लिस्ट आई तो आवाक रह गए। किसी को कामयाबी मिली नहीं। सभी छह जिलों में डायरेक्ट आईएएस को कलेक्टर बनाया गया। प्रमोटी वालों को कम-से-कम बेमेतरा और नारायणपुर से बड़ी आस थी। खास कर नारायणपुर से। क्योकि, पिछले दो-तीन बार से ऐसा हो रहा कि डायरेक्ट वाले वहां से कम समय में ही खो हो जा रहे। कांग्रेस शासनकाल में एक विधायक की नाराजगी से अभिजीत सिंह छह महीने में ही हटा दिए गए थे तो अभी प्रतिष्ठा ममगई को लेकर भी कुछ बातें थीं। मगर सरकार ने नारायणपुर के साथ बेमेतरा में भी डायरेक्ट वालों को पोस्ट करना मुनासिब समझा।

कलेक्टर्स अच्छे और एसपी?

छह कलेक्टरों की पोस्टिंग के बाद 33 में से 20 से अधिक जिलों में कलेक्टरों की टीम अच्छी हो गई हैं। इससे पहले जो लिस्ट आई थी, उसमें भी सरकार ने काम और छबि का ध्यान रखा था...इस बार की लिस्ट में भी इसे टॉप प्रायरिटी दिया गया। जाहिर है, मंत्रालय और डायरेक्ट्रेट सरकार के इंजन होते हैं तो कलेक्टर उसके पहिया। पहिया ही डिफेक्टिव रहेगा तो ट्रेन स्पीड में कैसे दौड़ेगी? बहरहाल, कलेक्टरों की टीम लगभग अच्छी हो गई है मगर पुलिस अधीक्षकों में अभी स्थिति खास बदली नहीं। लिहाजा, रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, जांजगीर और जशपुर जैसे महत्वपूर्ण जिले प्रमोटी आईपीएस संभाल रहे। पिछले कुछ बरसों में आईपीएस का कैडर इतना डिरेल्ड हो गया कि सरकार को उस लायक कोई क्रेन और जेसीबी नहीं मिल रहा कि उसे उठाकर पटरी पर रखा जाए। पूर्व डीजीपी को छह महीने का एक्सटेंशन मिल गया और वर्तमान डीजीपी के आगे से प्रभारी शब्द हट नहीं पा रहा। पूरा दोष पीएचक्यू को भी नहीं दिया जा सकता...आधा दर्जन अधिकारियों के खिलाफ इंक्वायरी की फाइलें छह महीने से घूम रही, अनुमति मिलेगी कि नहीं, ये भी क्लियर नहीं। कुछ मिलाकर छत्तीसगढ़ पुलिस का भगवान मालिक हैं।

आईपीएस के तबादले

31 दिसंबर को आईपीएस अधिकारियों की एक लिस्ट निकलेगी। इसमें आईजी लेवल से लेकर डीआईजी, एसपी रैंक के आईपीएस होंगे। दरअसल, एक जनवरी से रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होना लगभग पक्का हो गया है। आईजी रैंक के किसी आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाया जाएगा और डीआईजी या सलेक्शन ग्रेड वाले को एडिशनल पुलिस कमिश्नर। इसके अलावे चार डीसीपी में से दो आईपीएस एसपी रैंक के होंगे। इसके लिए कुछ दूसरे जिलों से भी आईपीएस अधिकारियों को रायपुर बुलाया जाएगा। कुल मिलाकर आईपीएस की लिस्ट में अबकी गुड गवर्नेंंस दिख सकता है।

सूचना आयुक्तों पर उलझन

विधानसभा का शीतकालीन सत्र भी निकल गया। 17 दिसंबर की देर शाम तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के दावेदार टकटकी लगाए रह गए। शायद जीएडी से कोई आदेश निकल जाए। कई बार सरकार देर रात भी आर्डर जारी कर रही, इसलिए रात आंखों में कट गई। मगर सरकार बड़ी निर्मोही निकली...कम-से-कम अपने एक्स चीफ सिकरेट्री का ही ध्यान रख लेती। वो भी नहीं हुआ। पता चला है, सिफारिशों की बोझ से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की फाइल दब गई है। सिस्टम करें तो क्या करें। इतने भाई साहबों के फोन आ चुके हैं कि सिस्टम कुछ समझ नहीं पा रहा...आखिर किसको नाराज करें। उधर अप्लीमेंट भी पीछे नहीं हैं...सवाल चार लाख महीने सेलरी की है। सवा दो लाख वेतन और उपर से 54 परसेंट डीए। सब मिलाकर एकाउंट में करीब-करीब चार लाख। आवेदकों में कुछ योग्य और काबिल लोग भी हैं। मगर बाकी के चक्कर में उनका मामला भी उलझ गया है।

कमिश्नर, जय रामजी

मनरेगा का नाम बदलकर जी जय रामजी हो गया है। मगर जब तक यह प्रचलन में नहीं आएगा तब तक इस योजना में कार्यरत लोगों को काफी कठिनाई आएगी। अब पदनाम को ही देखिए। छत्तीसगढ़ में इस योजना के कमिश्नर हैं तारन सिनहा। वे अब अपना परिचय क्या देंगे....कमिश्नर जी जय रामजी। कुछ दिन तो लोग समझ नहीं पाएंगे। पूछ रहा हूं पदनाम और बोल रहे जी...जयराम। जय राम जी का उल्टा अर्थ भी निकाला जाता है। याने जय राम हो गए। जी रामजी के इम्प्लाई ग्रुप में भी इस पर खूब चुटकी ली जा रही।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार ने डेपुटेशन पर जा रहीं आईएएस डॉ0 प्रियंका शुक्ला को पाठ्य पुस्तक निगम और समग्र शिक्षा में क्यों बिठाया?

2. सरकार द्वारा कई बड़े रिफार्म करने के बाद भी उसका मैसेज आम जनता में नहीं जा पा रहा, उसके पीछे कौन-सी वजहें हैं?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

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