Chhattisgarh Tarkash 2025: मुलाकात टैक्स 25 हजार
Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का 16 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

तरकश, 13 अप्रैल 2025
संजय के. दीक्षित
मुलाकात टैक्स 25 हजार
ये दीया तले अंधेरा, जैसा मामला है। रायपुर में एक बड़े साब से किसी आरगेनाइजेशन को मिलना है, तो उसके लिए नजराना याने मुलाकात टैक्स देना पड़ता है। नजराना भी हल्का-फुल्का नहीं...25 हजार से उपर का। हाल ही की बात है, एक रेपुटेडेट संस्था के प्रतिनिधियों ने साब से मिलने के लिए टाईम मांगा। टाईम तो मिल गया मगर साथ में पीए का टका सा निर्देश भी मिला...ठीकठाक कोई गिफ्ट लेते आइयेगा। संस्था के लोगों के लिए ये नया अनुभव था। फिर भी सम्मानजनक गिफ्ट खरीद लिया। मिलने पहुंचे तो सवाल हुआ...कितने का है? बोले, 12 हजार का। प्रशासनिक महिला अफसर बोली...नहीं चलेगा। जहां से लेकर आए हैं, वहां जाकर वीडियोकॉल कर दिखाइये। संस्था वाले गिफ्ट शॉप गए। वीडियोकॉल पर महिला अफसर ने 35 हजार का गिफ्ट सलेक्ट किया। तब जाकर बात बनी। खैर, ये तो छोटी बात है, कई संस्थाओं में मेंबरों की नियुक्तियों के लिए रेट फिक्स कर दिया गया है। बड़ी नियुक्तियों का तो और बड़ा रेट। संभव है, बड़े साब को इन चीजों का भान न हो। अगर ऐसा है तो उन्हें अपने तंत्र पर निगरानी बढ़ानी चाहिए। वरना, मोदीजी का 360 डिग्री वाला राडार एक्टिव हुआ, तो फिर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। रायपुर के लोगों ने बड़े लोगों का अच्छा-खासा कैरियर चौपट होते देखा है।
कलेक्टर बहादुर अली
ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ ने आईएएस अफसरों को बुलाकर उन्हें शुचिता का पालन करने की समझाइश दी थी। बताया था कि ब्यूरोक्रेसी के इस बुरे दौर में बहादुर अली बनकर कैडर की और छीछालेदर मत कराओ। मगर नौकरशाहों के जिंस में करप्शन का वायरस ऐसा घुस गया है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके भले की बात कर रहा है, कौन जेल में है, और कौन जेल जाने वाला है। हम बात कर रहे हैं सूबे के एक स्मार्ट क्लेक्टर की। डीएमएफ में सप्लाई का काम करने के लिए उन्होंने अपने साले को बुला लिया है। फर्जी कंपनी बनाकर साला अब पूरे जिले में डीएमएफ और अपने जीजा का झंडा बुलंद कर रहा है। मगर ऐसी बातें छुपती कहां है। छोटी जगह है...पुराने सप्लायरों के पेट पर चोट पहुंचेगी तो वे चुप थोड़े ही बैठेंगे....इसकी कानाफूसी अब राजधानी रायपुर पहुंचने लगी है। ऐसे में, ऋचा और मनोज का कर लेंगे। उन्होंने तो रास्ता दिखाने का काम किया था। अब कोई अपना कब्र खोदने पर अमादा है, तो कोई कुछ नहीं कर सकता।
बड़ी जांच और 3 सवाल
राज्य सरकार ने अभनपुर भारतमाला मुआवजा घोटाले की ईओडब्लू जांच का ऐलान किया था। मगर राजस्व विभाग ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए जांच का दायरा बढ़ाकर 11 जिलों में किया ही, पांचों कमिश्नरों से इसकी रिपोर्ट मांग ली है। जाहिर है, इन ग्यारहों जिलों में नेशनल हाईवे के मुआवजे की बंदरबांट की जांच हो गई तो दर्जन भर से अधिक आईएएस, आईपीएस सलाखों के पीछे जाएंगे, इससे कुछ अधिक राजनेताओं की फजीहत होगी। सैकड़ों सेठ-साहूकारों के खिलाफ केस दर्ज होगा, जिन्होंने भारत सरकार के पैसे को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जाहिर है, ईमानदारी से इस स्कैम की जांच हो गई तो इतना बड़ा बम फूटेगा कि शायद उसके बाद करप्शन से लोग तोबा कर लें। यही वजह है...राजस्व विभाग की इस मेगा जांच पर स्वाभाविक जिज्ञासा और सवाल खड़े हो रहे हैं। पहला, राजस्व विभाग की कड़ाई से जांच वाली छबि नहीं रही। इसलिए आशंका ये व्यक्त की जा रही कि ईओडब्लू जांच से घबरा लिंगारान करने के लिए कहीं कमिश्नरों से जांच तो नहीं कराई जा रही। दूसरा, जांच के लिए कमिश्नरों को पत्र लिखा गया है, उसकी भाषा से प्रतीत होता है, किसी को बख्शा नहीं जाएगा। क्योंकि, लेटर में लिखा है कि अनियमितता का पूरा डिटेल अपने वेबसाइट पर अपलोड करें। गड़बड़ियों की जानकारी ऑनलाइन होते ही प्रदेश में रायता फैल जाएगा...इतने बड़े-बड़े चेहरे बेनकाब होंगे कि छत्तीसगढ़ हिल जाएगा। और तीसरा सवाल यह है कि क्या भारत सरकार या केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय ने कोई पेंच फंसाया है? अभनपुर स्कैम की जांच के लिए नेशनल हाईव के चीफ विजिलेंस आफिसर ने 2021 से 2024 के बीच कई बार पत्र लिखा था, उसके बाद भी राजस्व विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। कुल मिलाकर इस जांच के पीछे कोई बड़ा राज छिपा है।
सीएस के दावेदार
पिछली सरकार में एसीएस टू सीएम रहे आईएएस सुब्रत साहू का नाम अभी तक मुख्य सचिव के दावेदारों में नहीं लिया जा रहा था। मगर पिछले एक हफ्ते में आश्चर्यजनक रूप से उनकी नाम की चर्चाएं तेज हो गई हैं। सीएस के लिए इस समय पांच दावेदार हैं। रेणु पिल्ले और ऋचा शर्मा के नाम को अलग कर दें तो तीन बचते हैं। सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल और मनोज पिंगुआ। अमित दिल्ली में हैं। अमित शाह उन्हें यहां भेज दें तो बात अलग है। या फिर किसी ईश्वरीय चमत्कार से नारी शक्ति में से कोई दुर्गा बनकर प्रगट हो जाए। वरना, सलेक्शन सुब्रत और मनोज में से होना है। दोनों को तराजू पर तौला जा रहा है। सरकार के मापदंड में जो खरा उतरेगा, उसके नाम पर मुहर लग जाएगा। अब ये अलग बात है कि सलेक्शन के लिए मापदंड क्या रखे गए हैं...जैसा चल रहा है, चलते रहने देना या फिर बदनाम ब्यूरोक्रेसी की छबि बदलना।
एमडी और सीईओ का रहमोकरम
निगम-मंडलों में पोस्टिंग को लेकर राजनीतिज्ञों में बड़ी उत्सुकता रहती है। उन्हें लगता है चेयरमैन बन गए तो फिर तो जलवे होंगे। मगर वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं होता। पांच-सात मलाईदार निगमों में भी सीईओ और एमडी के रहमोकरम से कुछ मिल जाए, तो बात अलग है। वरना, थोड़ा नवाबी दिखाए तो फिर गाड़ी के डीजल, पेट्रोल पर सवाल उठभ् जाएंगे...आपको इतने की पात्रता है, इससे अधिक नहीं। दरअसल, सरकारें नेताओं को खुश करने के लिए निगम-मंडलों में पोस्टिंग दे देती है वरना इनका कोई संवैधानिक अस्त्तिव नहीं है। पूरा पावर एमडी और सीईओ में समाहित होता है। टेंडर फायनल करने से लेकर चेक काटने तक। सभी एमडी, सीईओ आईएएस होते हैं। वे उन्हीं चेयरमैनों की थोड़ा-बहुत भाव देते हैं, जो दबंग हो, साथ ही सरकार से करीबी ताल्लुकात। दोनों में से कोई एक हुआ तब भी बात नहीं बनेगी। इस बार निगम की पोस्टिंग के बाद एक मलाईदार चेयरमैन से एमडी मिलने पहुंची तो भावविह्वल होकर उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल दिया...एमडी साहिबा से आत्मीय मुलाकात हुई। अब आप समझ सकते हैं...आगे क्या होगा। चेयरमैनों को अपना सम्मान बनाए रखना है तो सरकार को चाहिए कि संजय श्रीवास्तव से दो दिन की ट्रेनिंग दिला दें कि घोड़े की सवारी कैसे करनी चाहिए। संजय इसमें माहिर हो चुके हैं।
बीरबल की खिचड़ी
छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल का विस्तार बीरबल की खिचड़ी हो गई है, जो पकने का नाम नहीं ले रही है। दिसंबर में शपथ होते-होते नहीं हुआ और इस बार तो बेचारे एक भावी मंत्रीजी ने पंडरी से लीनेन का कपड़ा लेकर दर्जी से रातोरात कुर्ता और जैकेट सिलवाया, क्योंकि दिसंबर में बनवाए थे, वो थोड़ा टाईट हो गया था। इस बार उन्होंने बधाइयां भी स्वीकार करना शुरू कर दी थी। मगर राजभवन में शपथ लेने का ख्वाब बिखर गया, जब 9 अप्रैल को देर शाम तक शपथ का कोई फोन नहीं आया। बताते हैं, दिसंबर में एक बड़े नाम पर ब्रेक लग गया और इस बार एक छोटे नाम पर उपर में सहमति नहीं बन पाई। बहरहाल, इस बार मिं़त्रमंडल विस्तार को ऐसा करंट लगा कि अब जब तक अधिकारिक घोषणा नहीं होगी, कोई भरोसा नहीं करेगा। दिक्कत यह है कि सौदान सिंह टाईप दिल्ली में दमदारी से बात रखने वाला छत्तीसगढ़ बीजेपी में कोई पर्सनाल्टी नहीं है। इसका नुकसान राज्य का हो रहा है। कैबिनेट में दो-दो, तीन-तीन पद लंबे समय से खाली हैं।
अजब एसडीएम, गजब करप्शन
शासन-प्रशासन में करप्शन के भांति-भांति के किस्से अपन सुनते हैं। मगर ये जरा हटकर है। बिलासपुर के एक एसडीएम और पटवारी ने हॉरिजंटल नहर को वर्टिकल बना दिया। दरअसल, कोविड काल में जब लोग जान बचाने बदहवास थे, तब 1141 करोड़ के नहर के मुआवजा के खेल में एसडीएम और पटवारी व्यस्त थे। दोनों ने नहर के एलाइनमेंट में आएं-बाएं चेंज करके कइयों को करोड़पति बना दिया और खुद भी कई खोखा भीतर कर लिया। बिलासपुर शहर से लगे सकरी में एक फर्जी व्यक्ति को साढ़े तीन करोड़ का मुआवजा देने कागजों में नहर को 200 मीटर शो कर, जिस जमीन का 20 लाख एकड़ रेट था, उसे 12.5 करोड़ रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा दे दिया। वो भी जिसकी जमीन थी, उसे नहीं किसी और को। उन्हें लगा कि कोविड में कौन बचेगा, कौन नहीं? फिर देखा जाएगा। मगर उनकी सोच गलत निकली। जिसकी जमीन थी, वह कोविड में बच गया और प्रगट होकर शिकायत कर दी। शिकायत में एसडीएम समेत राजस्व विभाग के छह मुलाजिम दोषी पाए गए। मगर वक्त का खेल देखिए कि अभनपुर मुआवजा घोटाले में दो राप्रसे अधिकारी कुर्रे और साहूजी सस्पेंड हो गए मगर अरपा भैंसाझाड़ नहर वाले एसडीएम तिवारीजी बड़े चतुर निकले...जुगाड़ लगा वे बिलासपुर में नोट छापने वाली जगह पर बैठ गए। है न कमाल की बात। ठीक कहते हैं, समरथ को, नहीं, दोष गोसाई।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. किस ब्यूरोक्रेट्स ने अपने लाड़ले के लिए 75 लाख का घोड़ा खरीदा है?
2. चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा है, राजा को राजकाज में अतिसंकोची नहीं होनी चाहिए?