Chhattisgarh Tarkash 2025: सीएस और सीआईसी पर मौन
Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 16 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

तरकश, 4 मई 2025
संजय के. दीक्षित
सीएस और सीआईसी पर मौन
छत्तीसगढ़ ब्यूरोक्रेसी में इस समय नए चीफ सिकरेट्री और चीफ इंफार्मेशन कमिश्नर हॉट टॉपिक है मगर इन दोनों विषयों पर सिस्टम खामोश है। सीआईसी के लिए 16 अप्रैल को सलेक्शन कमेटी की बैठक होनी थी। मगर सीएम के बस्तर दौरे की वजह से टल गई। इसके बाद पखवाड़ा गुजर गया, अगली बैठक की कोई सुगबुगाहट नहीं है। कुछ दिन पहले तक सीएस अमिताभ जैन का सीआईसी बनना तय माना जा रहा था, किंतु रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा की इंट्री के बाद इस पर धूंध छा गया है। फिर भी पलड़ा अमिताभ की ही भारी बताया जा रहा है। उधर, नए मुख्य सचिव की तस्वीर भी साफ नहीं हो पा रही है। इस शीर्ष पद के लिए रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ पात्रता रखते हैं। पर आम परसेप्शन ये बन गया है कि मुख्य मुकाबला सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ के बीच होगा। रेणु पिल्ले, अमित या ऋचा को 80 से 90 परसेंट लोग रेस से बाहर बता रहे हैं। इन तीनों में से कोई एक नाम अगर आश्चर्यजनक रूप से सामने आ गया तो, वो किसी अद्श्य शक्ति का कमाल होगा। इसमें भारत सरकार का इंटरफेयरेंस भी एक हो सकता है। जैसे मध्यप्रदेश, ओड़िसा, राजस्थान और हरियाणा में हुआ। संभवतः यही वजह है कि सुब्रत और मनोज का नाम तो लोग ले रहे मगर कांफिडेंट कोई नहीं। आखिर, एमपी में अनुराग जैन का नाम दिल्ली से तब आ गया था, जब राज्य सरकार ने सीएस अपाइंटमेंट की नोटशीट चला दी थी। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में देखना है मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इन पांच में से किसे मौका देते हैं।
यमराज बड़ा या पटवारी!
पंजीयन विभाग के 10 सुधारों के आगाज के मौके पर राजस्व और पंजीयन विभाग आज सबके निशाने पर रहा। यहां तक कि हवा का रुख देख राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा बोले...जनता को राजस्व विभाग के चक्कर से अब छूटकारा मिलेगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का भड़ास भी आज बाहर आ गया। पटवारी, तहसीलदारों की मनमानियों का जिक्र करते हुए उन्होंने यहां तक कह डाला कि पटवारी यमराज से बड़े हो गए हैं...जिंदा आदमी को कागज में मार देते हैं। फिर जिंदा आदमी को साबित करने महीनों, सालों कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ जाता है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद किसी विभाग के खटराल मुलाजिमों के बारे में उनका पहली बार इस तरह गुस्सा बाहर आया होगा। वहीं, पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी ने बताया कि सुधारों के लिए किस तरह उन्हें उंगली टेढ़ी करनी पड़ी। उन्होंने दिलचस्प किस्सा बताते हुए कहा कि 10 परसेंट जो कभी नहीं सुधरते, पंजीयन विभाग में वे आंदोलन का माहौल बनाने लगे थे। उन्होंने छह लोगों की फाइल तैयार करवाई। फिर मंत्रालय में बुलाया। बोला...देख लो, इसमें क्या करना है। उसके बाद सभी के जोश ठंडे पड़ गए। उन्होंने इसका भी खुलासा किया, उन छह फाइलों में से तीन ही सही थी, तीन फाइलों में फर्जी पेपर रखे थे। ओपी के कहने का आशय यह था कि किसी भी सुधार के लिए लंबा पापड़ बेलना पड़ता है, विरोधों का सामना करना पड़ता है। उसमें सियासत भी आड़े आती है।
कलेक्टरों की निगरानी
महत्वपूर्ण योजनाओं के क्रियान्वयन में कलेक्टरों की पुअर रिपोर्ट मिलने के बाद सीएम सचिवालय ने कलेक्टरों पर निगरानी का काम प्रारंभ कर दिया है। इसके लिए अटल मॉनिटरिंग पोर्टल बनाया गया है। इस पोर्टल से कलेक्टरों की मुश्किलें इसलिए बढ़ेगी कि अब वे आंकड़ों की बाजीगरी नहीं कर पाएंगे। जाहिर है, सीएम सचिवालय अपने स्तर पर विभागों से डेटा लेकर कलेक्टरों को आईना दिखाता रहेगा कि उनके जिले में क्या चल रहा है। सीएम सचिवालय ने उदाहरण के लिए कलेक्टरों से सभी 33 जिलों की राजस्व कोर्ट का डेटा शेयर किया है। इसमें बस्तर संभाग को छोड़ दे ंतो सरगुजा और मैदानी इलाकों का बुरा हाल है। कई जिलों में 50 परसेंट भी राजस्व मामलों का निबटारा नहीं हुआ है।
डीएमएफ में बिजी कलेक्टर
दरअसल, कलेक्टरों के राजस्व न्यायालय में दिलचस्पी न लेने की एक बड़ी वजह यह है कि राज्य बनने के बाद इस पर सिस्टम ने ध्यान नहीं दिया। मध्यप्रदेश के दौर में सन 2000 तक बड़े-बड़े कलेक्टर कोर्ट में बैठकर राजस्व केस निबटाते थे। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ में पैसे का फ्लो ऐसे बढ़ा....ब्यूरोक्रेसी यह भूल गई कि ईश्वर ने उन्हें देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस के लिए चुना है तो ईश्वर को थैंक्स के नाम पर कुछ अच्छा भी कर जाएं। जाहिर है, राज्य निर्माण के बाद नवंबर 2000 से 2002 तक सिस्टम सेट होने में लगा। 2003 से 2010 तक नौकरशाही खेत-खलिहान, फार्म हाउस बनाने में उलझी रही। इसके बाद कलेक्टरों के पास डीएमएफ आ गया। डीएमएफ के बाद कलेक्टरों के पास राजस्व कोर्ट में बैठने का फुरसत कहां। 60 फीसदी कलेक्टर सुबह से कैलकुलेटर लेकर बैठ जाते हैं...और जो थोड़े-बहुत अच्छे हैं, उन्हें लगता है कि जमीन-जायदाद के पचड़े में फालतू पड़ना क्यों? यही वजह है कि पिछले एक दशक में कलेक्टर्स अपने न्यायालयीन दायित्व को लगभग भूल गए। अधिकांश कलेक्टरों ने अपना कोर्ट अपर कलेक्टरों के हवाले कर दिया है। बहरहाल, सीएम सचिवालय ने अब मॉनिटरिंग शुरू की है...पीएस टू सीएम सुबोध सिंह इसे देख रहे हैं...उन्होंने सभी कलेक्टरों को मैसेज कर खबरदार भी किया है....तो उम्मीद करें कि छत्तीसगढ़ में कलेक्टर कोर्ट की रौनक लौटेगी।
दो को सजा, दो को ईनाम
मध्यप्रदेश के बंटवारे के बाद दो-चार स्वाभिमानी ब्यूरोक्रेट्स भोपाल से रायपुर आए थे, उनमें आईएएस केके चक्रवर्ती भी शामिल थे। उन्होंने ही 2003 में छत्तीसगढ़ का पहला विधानसभा चुनाव कराया। उसके बाद वे सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए। उनके बाद 2008 का विधानसभा चुनाव डॉ0 आलोक शुक्ला, 2009 का लोकसभा, 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव सुनील कुजूर, 2018 का विधानसभा और 2019 का लोकसभा चुनाव सुब्रत साहू तथा 2013 का विधानसभा और 2024 का लोकसभा चुनाव रीना बाबा कंगाले ने बतौर सीईओ कराया। इनमें से डॉ0 आलोक शुक्ला और सुनील कुजूर के टेन्योर के दौरान विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसा हुआ कि रमन सरकार को नागवार गुजरा। आचार संहिता में हाई प्रोफाइल डीजीपी विश्वरंजन से लेकर कई अफसरों की छुट्टी हो गई। आलम यह हुआ कि आलोक को लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ छोड़कर दिल्ली जाना पड़ गया...और सुनील कुजूर ने भले ही एक विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव कराने का रिकार्ड बनाया, मगर सरकार की नाराजगी ऐसी तीव्र थी कि उन्हें लंबे समय तक प्रमोशन से वंचित रहना पड़ा। प्रमोटी आईपीएस राजीव श्रीवास्तव जब डीजी हो गए तो बैजेंद्र कुमार पहुंच गए सीएम के पास। उसके बाद कुजूर फिर प्रमुख सचिव बनें। अलबत्ता, सुब्रत साहू और रीना कंगाले को विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत का ईनाम मिला। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई थी और कांग्रेस की ऐतिहासिक विजय। सुब्रत को लोकसभा चुनाव के बाद सीएम सचिवालय की पोस्टिंग मिली तो 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आश्चर्यजनक जीत के लिए रीना कंगाले को फूड में पोस्टिंग देकर सरकार ने बड़ा संदेश दिया है।
तीन अफसरों का पेनल
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी नियुक्त करने के लिए राज्य सरकार ने तीन आईएएस अधिकारियों का पेनल भारत निर्वाचन आयोग को भेजा था। इनमें यशवंत कुमार, शिखा राजपूत और केडी कुंजाम शामिल है। यशवंत चूकि राजभवन में सचिव रहे हैं इसलिए प्रोफाइल बढ़ियां होने के चक्कर में वे बेचारे फंस गए। निर्वाचन आयोग ने उनके नाम पर टिक लगा दिया। हालांकि, संकेत हैं कुछ दिन बाद सरकार उन्हें निर्वाचन आयोग से इजाजत लेकर कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी देगी, जैसा कि पहले होता आया है। वैसे भी अगला विधानसभा चुनाव नवंबर 2028 में है। और ये भी आवश्यक नहीं कि यशवंत ही चुनाव कराएंगे। हो सकता है, उसके पहले उनका प्रभार बदल जाए। उनके पहले भी कई सीईओ रहे, जिन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं कराया। सुब्रत से पहले निधि छिब्बर भी विधानसभा चुनाव से पहले डेपुटेशन पर चली गईं थीं।
मंत्री और लाल बत्ती उलझी
लगता है, विष्णुदेव साय कैबिनेट का विस्तार किसी ग्रह-नक्षत्र का शिकार हो गया है। क्योंकि, पहलगाम की आतंकी घटना के बाद अब कुछ महीनों तक कम-से-कम कोई राज्य सरकार मंत्रिमंडल विस्तार या सर्जरी की बात तो नहीं ही करेगा। यही हाल लाल बत्ती में भी होगा। जिन्हें निगम-मंडलों में पोस्टिंग मिल गई, वे किस्मती रहे। सभी ने झंका-मंका के साथ अपना पदभार ग्रहण कर लिया। मगर कुछ दिनों के लिए अब इस पर ब्रेक समझिए। बीजेपी के अंदरखाने की जानकारी रखने वालों का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार पर राहू-केतु की कुदृष्टि पड़ गई है। मुख्यमंत्री को इसके लिए कोई अनुष्ठान करा लेना चाहिए। ताकि, पाकिस्तान से युद्ध ठीकठाक निबटने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार की बात बढ़ाई जा सकें।
सीएस की भाषण कला
जैसे-जैसे रिटायरमेंट का समय नजदीक आता जा रहा, सीएस अमिताभ जैन के चेहरे की रौनक बढ़ती जा रही, वैसे ही उनके भाषण कला में निखार आता जा रहा है। नवा रायपुर के एक बड़े होटल में पंजीयन विभाग के कार्यक्रम में उन्होंने ऐसे सधे और मारक अंदाज में भाषण दिया कि पूछिए मत! उन्होंने हरीत, लाल और सुधार क्रांति की बातें कर डालीं। उन्होंने राजस्व विभाग के खटराल सिस्टम को निशाने पर लेते हुए कहा कि अधिकारियों और कर्मचारियों का अधिकार कम कर ये सरकार जनता को सुविधाएं मुहैया करा रही है...ये एक बड़ा विजनरी बदलाव है।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. काफी जोर होने के बाद भी राज्य सरकार ने राहुल देव को बिलासपुर का कलेक्टर क्यों नहीं बनाया?
2. क्या आईएएस सोनमणि बोरा अगले प्रिंसिपल सिकरेट्री होम होंगे?