Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ सरकार के काम बड़े...संदेश छोटे!
Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 17 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश।

तरकश, 28 दिसंबर
संजय के. दीक्षित
काम बड़े...संदेश छोटे!
लास्ट वीक तरकश में एक प्रश्न था...सरकार के कई रिफार्म के बाद भी संदेश क्यों नहीं जा रहे, इसके जवाब अनेक आए। खैर...नई सरकार के दो साल के हिसाब से कैलकुलेट करें तो अतिश्योक्ति नहीं कि 25 साल में सबसे अधिक काम और रिफार्म दो बरस में हुए हैं। देखते-देखते में नक्सलमुक्त छत्तीसगढ़...किसी ने कल्पना नहीं की होगी। नई उद्योग नीति के बाद 8000 करोड़ के निवेश। पहली बार पूंजी निवेश की साइज के आधार पर सब्सिडी की बजाए लोकल लोगों को रोजगार के आधार पर सब्सिडी। सूबे में सेमीकंडक्टर और फार्मा जैसी इंडस्ट्रीज आ रही। राजस्व और पंजीयन में ऐतिहासिक सुधार। जमीनों का आटोमेटिक नामंतरण, ऋण पुस्तिका की समाप्ति, गाइडलाइन रेट का युक्तियुक्तकरण। 13 हजार से अधिक स्कूलों और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण। वर्क कल्चर के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस। पारदर्शिता के लिए ई-ऑफिस सिस्टम...सारी फाइलें, नोटशीट अब ऑनलाइन। देश में छत्तीसगढ़ फर्स्ट स्टेट, जहां मंत्रालय और एचओडी ऑफिस में ऑनलाइन वर्किंग। जीएसटी में सबसे अधिक टैक्स। अब आपका सवाल, इतने काम तो फिर आम आदमी में इसके संदेश क्यों नहीं? दरअसल, ओवरऑल गुड परफार्मेंस के लिए काम और रिफार्म के अलावे सिस्टम का औरा भी जरूरी होता है, जो दो साल में बन नहीं पाया। जाहिर है, जनता इस औरे से ज्यादा चमत्कृत होती है। करप्शन का लेवल कम नहीं हुआ। पहले कुछ परसेंट काम बिना पैसे के हो जाते थे, अब मंत्री-मिनिस्टर या बड़े लोगों की सिफारिशों का भी महत्व नहीं रहा। मंत्रिमंडल में सामूहिक उत्तरदायित्व की कमी। कई ऐसे मसले आए, जब मंत्री अपने साथी मंत्री या सरकार के बचाव में सामने आना मुनासिब नहीं समझा। उल्टे गाइडलाइन रेट को लेकर अपने ही सरकार पर हमलावर। शुरूआती बरस में संगठन में बैठे कुछ दिव्य आत्माओं द्वारा ट्रांसफर, पोस्टिंग और नियुक्तियों में सरकार को डेंट। तो बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं द्वारा सेल्फ गोल। रुलिंग पार्टी के लोग ही लगेंगे सरकार की चाल में मीन-मेख निकालने तो आम आदमी क्या कहेगा? कुछ बुनियादी चीजें भी। सबसे अधिक हेल्थ की हालत खराब। किसी भी सरकारी अस्पतालों में समूचित दवाइयां नहीं। बच्चों के वैक्सीन के लिए भटकता आम आदमी। दवाइयां खरीदने की बजाए ज्यादा कमाई वाला काम बिल्डिंग निर्माण में दिमाग दौड़ाता सीजीएमएससी। सिस्टम का औरा पुलिस से भी दिखता है। मगर पुलिस बाबाओं के पैर छूने में व्यस्त। वीडियो में दिखा ही, अपराधी को पकड़ने में भले ही कोई हड़बड़ी नहीं, मगर बाबाजी को देखते जूता और टोपी उतारने में देर नहीं। महिला डीएसपी को गिफ्ट में 12 लाख के डायमंड हार मगर सिस्टम गांधीजी के तीन बंदर की तरह। डीएसपी, एडिशनल एसपी के ट्रांसफर की नोटशीट महीनों तक डंप। छह महीने से पुलिस अफसरों के खिलाफ इंक्वायरी की फाइल कहीं दबी पड़ी। ऐसी कई वजहें हैं, जो सरकार के अच्छे कामों का माहौल बनने से रोक दे रहीं। वैसे सीएस विकास शील और पीएस टू सीएम सुबोध सिंह ने चीजों को व्यवस्थित करने का प्रयास किया है। मगर राजनीतिक फैसलों के लिए सिस्टम के पास जरूरी है चाबुक चलाने वाले एक शख्सियत की। क्योंकि, सेल्फ गोल से सरकार की छबि को ज्यादा धक्का लग रहा है। इसी कॉलम में एकाधिक बार लिखा जा चुका है कि रमन सिंह की कामयाबी में सौदान सिंह की बड़ी भूमिका रही।
आईपीएस को विदाई गिफ्ट
2008 बैच के आईपीएस अधिकारियों का अगले महीने जनवरी में आईजी प्रमोशन ड्यू हो जाएगा। मगर डेट ऑॅफ बर्थ के चक्कर में कमललोचन कश्यप के आईजी बनने पर संकट खड़ा हो गया है। सरकारी रिकार्ड में एक जनवरी उनका बर्थ डेट है। जाहिर है, स्कूल में दाखिला लेते समय एक तारीख का डेट दर्ज कराया गया होगा। बहरहाल, रिटायरमेंट नियमों के तहत एक या दो तारीख को अगर जन्म हुआ है तो उसके पहले महीने के लास्ट डेट को रिटायरमेंट हो जाएगा। लिहाजा, कमललोचन इसी 31 दिसंबर को रिटायर हो जाएंगे। अब सवाल उठता है, राज्य सरकार क्या उन्हें आईजी प्रमोट कर विदाई देगी या डीआईजी से ही उन्हें सेवानिवृत्त होना पड़ेगा। इससे पहले कई दृष्टांत है कि आईएएस, आईपीएस को समय से पहले प्रमोशन दिया गया। रमन सिंह की दूसरी पारी में आईपीएस आरसी पटेल को एडीजी प्रमोशन का आदेश रिटायरमेंट की रात 10 बजे जारी हुआ था। जबकि, उनके बैच के प्रमोशन में तीन-चार महीना बाकी था। आईएएस में जवाहर श्रीवास्तव से लेकर आरएस विश्वकर्मा को सचिव से प्रमुख सचिव भी इसी तरह आखिरी दिन बनाया गया। कमललोचन आदिवासी हैं...धुर नक्सली इलाका दंतेवाड़ा से ताल्लुकात रखते हैं...नक्सलियों के खिलाफ उन्होंने लड़ा भी है। छत्तीसगढ आदिवासी राज्य है और मुखिया विष्णुदेव साय भी आदिवासी हैं तो फिर कमललोचन के प्रमोशन को लेकर लोगों की उत्सुकता स्वाभाविक है...सरकार क्या कमललोचन को रिटायमेंट गिफ्ट देगी? पीएचक्यू ने भले ही प्रस्ताव भेजने में लेट किया मगर सरकार के लिए कुछ असंभव नहीं होता। तत्कालीन सीएस सुनिल कुमार फरवरी 2013 में जाते-जाते एएन उपध्याय को 29 साल की सर्विस में डीजी बनवा डाले थे।
खुफिया चीफ और माफी
छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग की स्थिति कैसी है, इस घटना से आप अंदाजा लगा सकते हैं। हाल की बात है...राजधानी रायपुर के बीयर-बारों के बाउंसरों के उत्पातों को रोकने एडीजी इंटेलिजेंस अमित कुमार ने एसएसपी लाल उमेद सिंह से कार्रवाई करने कहा। खुफिया चीफ का आदेश था, इसलिए एसएसपी ने फोर्स भेजकर दर्जन भर से अधिक शिकायती बारों के बाउंसरों को लाकर थाने में बिठा लिया। मगर इसमें से आधे बाउंसरों को पुलिस महकमे के सीनियर अफसरों ने फोन कर छुड़वा लिया। वो इसलिए क्योंकि वीआईपी रोड के कई बीयर-बारों में उनका पैसा लगा है। कुछ के लिए नेताओं ने फोन किया और कुछ को कोर्ट में पेश होते ही जमानत मिल गई। याने पकड़ कर लाने के बाद भी एक भी बाउंसरों को पुलिस जेल नहीं भेज पाई। जाहिर है, इससे पुलिस डिमरलाइज होगी ही। बताते हैं, एसएसपी इस पूरे एपिसोड से बहुत दुखी हुए। उन्होंने अमित कुमार को बताया। अमित बोले...सॉरी लाल उमेद, अब आगे से इस तरह के मामलों में कार्रवाई करने नहीं कहूंगा।
न्यू ईयर गिफ्ट
जनवरी में 2001 बैच की आईएएस शहला निगार प्रमुख सचिव प्रमोट हो जाएंगी तो 2010 बैच के आईएएस जेपी मौर्या, कार्तिकेय गोयल, सारांश मित्तर, पीएस एल्मा रमेश शर्मा और धमेंद्र साहू सिकेट्री बनेंगे। रानू साहू सस्पेंड हैं, इसलिए उनका प्रमोशन नहीं होगा। हालांकि, सरकार चाहे तो प्रमुख सचिव सुबोध सिंंह और निहारिका बारिक को ड्यू टाईम से एक साल पहले प्रमोट कर एसीएस बना सकती है। एसीएस के छह पद हैं और इस समय मुख्य सचिव को मिलाकर तीन ही अफसर हैं। उसमें भी मनोज पिंगुआ फरवरी-मार्च तक दिल्ली चले जाएंगे और ऋचा शर्मा का भी कोई भरोसा नहीं, कब तक यहां हैं। कहीं दोनों दिल्ली चले गए तो एसीएस की संख्या जीरो हो जाएगी, यह एक अजीब स्थिति होगी। वैसे टाईम से पहले प्रमोशन पहले भी मिलता रहा है। पिछली सरकार में रेणु पिल्ले को समय से छह महीने और सुब्रत साहू को डेढ़ साल पहले एसीएस बनाया गया। रमन सिंह सरकार में सीके खेतान और आरपी मंडल छह महीने पहले सचिव से प्रमुख सचिव बनाए गए थे। सरकार चाहे तो 2002 बैच के आईएएस डॉ0 रोहित यादव और डॉ0 कमलप्रीत सिंह को भी सचिव से प्रमुख सचिव प्रमोट कर सकती है। क्योंकि, प्रमुख सचिव में भी काफी वैकेंसी है। इस समय तीन ही प्रमुख सचिव हैं। सुबोध, निहारिका और सोनमणि बोरा। इसमें भी सुबोध को काउंट नहीं। वे सीएम सचिवालय के हेड हैं। विभागीय पीएस की दृष्टि से देखें तो दो ही प्रिंसिपल सिकेट्री हुए। सचिवों की फौज भी काफी बड़ी हो गई है। लिहाजा रोहित और कमलप्रीत को प्रमुख सचिव बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। दोनों का ड्यू टाईम जनवरी 2027 है।
प्रमोशन में खटका
ऑल इंडिया कैडर के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सर्विस में कुछ सालों से सबसे स्लो पुलिस मुख्यालय है, जिसने अपने ही अफसरों के प्रमोशन की फाइल इस बार भी सबसे लेट सरकार को भेजा। अब अनुमति के लिए कब दिल्ली जाएगा और कब डीपीसी होगी कोई भरोसा नहीं। बहरहाल, 2001 बैच एडीजी, 2008 बैच आईजी, 2012 बैच डीआईजी और 2013 बैच सलेक्शन ग्रेड याने एसएसपी बनेगा। 2001 बैच में डॉ0 आनंद छाबड़ा का सिंगल नाम है। वहीं, आईजी बनने वाले 2008 बैच में पारुल माथुर, प्रशांत अग्रवाल, नीतू कमल, डी0 श्रवण और मिलना कुर्रे हैं। इनमें पारुल माथुर को चार्जशीट इश्यू हो गया है। एक और किसी के खिलाफ जांच प्रक्रियाधीन है। नीतू कमल और डी0 श्रवण डेपुटेशन पर हैं। ऐसे में, इस बार आईजी कौन बन पाएगा, ये सरकार ही बता पाएगी। उधर, 2012 बैच के सात आईपीएस डीआईजी प्रमोट होंगे। इनमें आशुतोष सिंह, विवेक शुक्ला, रजनेश सिंह, शशिमोहन सिंह, राजेश कुकरेजा, राजेश अग्रवाल, विजय अग्रवाल और रामकृष्ण साहू शामिल हैं। आशुतोश सीबीआई में चले गए हैं। इसके अलावा 2013 बैच के चार आईपीएस को सलेक्शन ग्रेड मिलेगा। सलेक्शन ग्रेड मिलने के बाद जिलों में पोस्टेड एसपी का पदनाम बदलकर एसएसपी हो जाएगा। इन चार में जितेंद्र शुक्ला, मोहित गर्ग, अभिषेक पल्लव और भोजराम पटेल हैं। भोजराम इस समय मुंगेली के एसपी है।
रिफार्म
रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया जा रहा है। पुलिस में रिफार्म की दिशा में सरकार की एक अच्छी पहल है। मगर मध्यप्रदेश की तरह एक और प्रयोग किया जा सकता है। एमपी के थानों के प्रधान आरक्षकों को विवेचना का पावर दिया गया है। चूकि एएसआई, एसआई और थानेदारों के पास काम का बोझ ज्यादा रहता है इसलिए कम-से-कम छोटे लूट, जेबकटी और 151 जैसे मामलों की विवेचना हेड कांस्टेबल कर ही सकते हैं। इससे फायदा यह होगा कि थानों में केसेज लंबित नहीं रहेंगे। फिर थाने के बड़े अफसर बड़े मामलों की विवेचना में अपना फोकस कर सकेंगे।
कमिश्नर ऑफिस में पुलिस
रायपुर में एक जनवरी से पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होगा या आगे टलेगा, यह 31 दिसंबर के कैबिनेट में तय हो जाएगा। वैसे यह लगभग तय हो चुका है कि नया कमिश्नरेट बिल्डिंग बनने तक डिविजनल कमिश्नर ऑफिस में पुलिस कमिश्नर बैठेंगे। डिविजनल कमिश्नर महादेव कांवड़े नए भवन में शिफ्ट हो गए हैं। सो, कमिश्नर ऑफिस खाली है। उसमें पुलिस अधीक्षक कार्यालय जाने वाला था। मगर जब पुलिस अधीक्षक सिस्टम खतम हो जाएगा तो फिर उस ऑफिस का औचित्य नहीं। ऐसे में, सरकार डिविजनल कमिश्नर कार्यालय में पुलिस कमिश्नर को बिठाने पर विचार कर रही है।
पुलिस में बड़ी उलटफेर
रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम को देखते पुलिस महकमे में बड़े बदलाव का अंदेशा है। पुलिस कमिश्नरेट के बाद रायपुर ग्रामीण नाम से नया पुलिस रेंज बनेगा। इसका मुख्यालय महासमुंद होगा या रायपुर से कार्य संचालित होगा, इस बारे में अभी कोई खुलासा नहीं हुआ है। मगर उसके लिए एक अलग आईजी की पोस्टिंग करनी होगी। रायपुर कमिश्नरेट में कम-से-कम तीन आईपीएस की पोस्टिंग की जाएगी। पुलिस कमिश्नर के बाद सबसे अधिक उत्सुकता एडिशनल पुलिस कमिश्नर को लेकर है। किसी जिले के एसएसपी को इस पद पर बिठाया जाएगा। वो रायपुर, जशपुर, बिलासपुर और दुर्ग एसएसपी में से कोई भी हो सकता है।
बदनाम निगम
2009 बैच की आईएएस प्रियंका शुक्ला सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली जा रही हैं। उन्हें मेरा युवा भारत का सीईओ बनाया गया है। उनकी जगह सरकार को समग्र शिक्षा और पाठ्य पुस्तक निगम में एमडी नियुक्त करना होगा। सरकार को पाठ्य पुस्तक निगम को बदनामी से उबारने का प्रयास करना चाहिए। कायदे से वहां ढांचागत बदलाव की जरूरत है। एमडी से अधिक वहां जीएम पावरफुल हो जाते हैं। एमडी का काम सिर्फ कमीशन लेकर चुप बैठना होता है। बाकी काम जीएम संभालते हैं। पापुनि में कागज का टेंडर अलग, प्रिंटिंग का अलग, उसे स्कूलों तक पहुंचाने का अलग टेंडर होता है। जबकि, बाकी राज्यों में सारे कामों का टेंडर एक साथ हो रहा है। मगर अलग-अलग कामों का अलग-अलग टेंडर करने से कमीशन ज्यादा मिलता है। भले ही स्कूलों में टाईम पर किताबें न पहुंच पाए। इस साल दिसंबर बीतने को है, ढेरों स्कूलों में अभी तक किताबें नहीं पहुंची हैं।
कलेक्टरों की वैकेंसी
हाल में राज्य सरकार ने आधा दर्जन जिलों के कलेक्टर बदले। इसके बाद एक लिस्ट और निकल सकती है। दरअसल, दो जिलों के कलेक्टरों को राज्य सरकार ने सेंट्रल डेपुटेशन के लिए एनओसी दे दिया है। जनवरी में हो सकता है भारत सरकार में उनकी पोस्टिंग हो जाए। ऐसे में कलेक्टर पोस्टिंग की एक और लिस्ट निकलेगी। कलेक्टर के दावेदारों के लिए ये गुड न्यूज है...नए साल में जिला मिलेगा।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. क्या ये सही है कि पाठ्य पुस्तक निगम की छपने वाली किताबों के पन्नों का वेट 70 जीएसएम से बढ़ाकर 80 जीएसएम किया गया है ताकि बिलिंग ज्यादा हो सके?
2. कांग्रेस में प्रियंका गांधी के स्ट्रांग होने से छत्तीसगढ़ कांग्रेस की राजनीति में भूपेश बघेल और मजबूत होंगे?
