Chhattisgarh Tarkash 2024: ज्वाईनिंग से पहले पोस्टिंग!
Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय दीक्षित का निरंतर 15 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
Chhattisgarh Tarkash: तरकश, 21 अप्रैल 2024
संजय के. दीक्षित
ज्वाईनिंग से पहले पोस्टिंग!
आईएएस सोनमणि बोरा सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। ऋचा शर्मा भी अगले महीने आ रही हैं। सामान्य प्रशासन विभाग जल्द ही सचिव स्तर पर नई पोस्टिंग आदेश जारी करेगा। इसमें इन दोनों वरिष्ठ अधिकारियों को पोस्टिंग दी जाएगी। वैसे, ऋचा को छत्तीसगढ़ में ज्वाईनिंग से पहले भी सरकार चाहे तो पोस्टिंग दे सकती है। इससे पहले भी ऐसा हो चुका है। रमन सिंह सरकार की तीसरी पारी यानी 2015 में डॉ0 आलोक शुक्ला को छत्तीसगढ़ लौटने से पहले हेल्थ और फूड जैसे बड़े विभाग का प्रिंसिपल सिकरेट्री अपाइंट कर दिया गया था। तब हमने इसी तरकश में लिखा था कि सरकार ने आलोक का लाल जाजम बिछा कर स्वागत किया। हालांकि, विधानसभा चुनाव 2008 और लोकसभा चुनाव 2009 के दौरान आलोक के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहते अफसरों के इतने विकेट उड़े थे कि सरकार काफी नाराज हो गई थी। गनीमत रहा आलोक शुक्ला लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए। मगर बाद में सरकार से उनके रिश्ते सुधर गए। दिल्ली में अमन सिंह से उनकी मुलाकात हुई और सारे गिले-शिकवे दूर हो गए थे। ये अलग बात है कि मधुरता ज्यादा दिन चली नहीं। कुछ महीने में ही...नॉन घोटाले के बाद सरकार और आलोक के बीच संबंध बिगड़ गए।
DGP की छुट्टी?
छत्तीसगढ़ में लगातार यह दूसरा लोकसभा चुनाव होगा, जब चुनाव आयोग ने किसी बड़े अफसर पर कार्रवाई नहीं की है। जबकि, विधानसभा चुनाव 2023 में आयोग ने दो कलेक्टर और तीन एसपी के साथ कई अफसरों की छुट्टी कर दी थी। बहरहाल, उपर में आलोक शुक्ला का जिक्र हुआ तो लोकसभा चुनाव 2009 का एपिसोड बरबस याद आ गया। उसा दौरान डॉ0 आलोक मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी थे। तब चुनाव का ऐलान होते ही बिलासपुर कलेक्टर हटा दिए गए तो उसके बाद डीजीपी विश्वरंजन को चुनाव आयोग ने खो कर अनिल नवानी को उनकी जगह बिठा दिया था। दरअसल, 2009 में विश्वरंजन का जलवा चरम पर था। डीजीपी ओपी राठौर की असामयिक मौत के बाद विश्वरंजन को आईबी से बुलाकर लाया गया था। उस समय वे छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर अफसर थे। चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन उनसे पांच बैच जूनियर रहे। पुराने लोगों को याद होगा, विश्वरंजन मंत्रालय पहुंचते थे, तो बड़े-बड़े आईएएस कुर्सी से खड़े हो जाते थे। उनके काफिले में पायलट और फॉलो गाड़ी चलती थी। खैर, बात लोकसभा चुनाव 2009 की। जैसा कि कुछ याद है, निर्वाचन से संबंधित चुनावी मीटिंग में विश्वरंजन ने निर्वाचन के अफसरों को किसी बात पर हड़का दिया था। इसके बाद विश्वरंजन को हटा दिया गया। हालांकि, विश्वरंजन ने एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में आर्टिकल लिखा था, जिसमें आईएएस अधिकारियों पर कुछ कमेंट किए थे। अब ये स्मरण नहीं हो रहा कि चुनाव आयोग द्वारा हटाए जाने के बाद उन्होंने ये आर्टिकल लिखा था या हटाने से पहले। मगर कुल जमा सार यह है कि विश्वरंजन को हटा दिया गया। अलबत्ता, आचार संहिता समाप्त होते ही फिर से रमन सरकार ने उन्हें डीजीपी नियुक्त कर दिया था।
पूत, सपूत कैसे?
आईएएस रेणु पिल्ले और पूर्व आईपीएस संजय पिल्ले की बेटी आईपीएस सलेक्ट हुई है। इससे दो साल पहले उनका बेटा अक्षय आईएएस बना था। अक्षय को उड़ीसा कैडर मिला है। छत्तीसगढ़ का यह फर्स्ट अफसर कॅपल होगा, जिनके दोनों बच्चे देश की शीर्षस्थ सर्विस में सलेक्ट हुए हैं। वैसे ऐसे मामले कम ही होते हैं। हालांकि, इसी तरह का एक सुखद संयोग मध्यप्रदेश के 1989 बैच के आईपीएस मुकेश जैन के साथ भी हुआ है। एक बेटा उनका 2021 में आईएएस बना और दूसरा इस बार। नौकरशाही में इसे बड़ा सम्मान के साथ देखा जाता है। क्योंकि, ज्यादतर बड़े अफसरों के बच्चे उनके उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। इसकी वजह यह है कि आईएएस, आईपीएस बनने के बाद माता-पिता जमीन से दो इंच उपर हो जाते हैं तो उनकी संतानें चार इंच। पढ़ाई एक तपस्या है...महंगे, लग्जरी और नावाबी रहन-सहन में ये कतई संभव नहीं। पिताजी लोग दिन-रात डीएमएफ, कमीशन, जमीन, प्लॉट और इंवेस्टमेंट में दो नंबर का पैसा खपाने में लगे रहेंगे तो फिर पूत सपूत कैसे निकलेगा।
मंत्री ने दिया ठेके में विभाग
अभी तक आपने सड़क, बांध जैसे निर्माण कार्यों को ठेके पर दिए जाने की बातें सुनी होगी। मगर छत्तीसगढ़ के एक मंत्री ने अनोखा आईडिया निकालते हुए पूरे विभाग को एक लक्ष्मीपुत्र के हवाले कर दिया है। मंत्रीजी ने सभी तरफ मैसेज करा दिया है...फलां आदमी पूरा काम देखेगा। हालांकि, विभाग का काम जून के बाद ही चालू होगा, मगर वीआईपी चौराहे पर स्थित एक लग्जरी कालोनी में पूरे ऐश्वर्य के साथ रहने वाले लक्ष्मीपुत्र ने सारे सप्लायरों को बुलाकर बताना शुरू कर दिया है...20 परसेंट मंत्रीजी को, 10 परसेंट मेरा...बाकी तुमलोग जानो। उन्होंने एडवांस लेकर अभी से जिले भी अलॉट करना शुरू कर दिए हैं...फलां जिले में सप्लाई ये करेगा तो फलां में वो। जिलों के मुलाजिम परेशान हैं कि सप्लायार जब 30 परसेंट उपर दे देगा तो हमलोगों का क्या होगा? जाहिर है, कुछ-न-कुछ जिलों में भी बंटेगा। फिर बीच में कुछ सरकारी एजेंसियां हैं, वहां के अफसरों को भी चाहिए। याने 100 रुपए के काम में 50 पैसा उपर लेनदेन में बंट जाएगा। अब काम क्या होगा, इसे आप समझ सकते हैं।
तीन सीटों पर फोकस
लोकसभा चुनाव के संदर्भ में छत्तीसगढ़ के सियासी पंडित जो भी आंकलन करें, बीजेपी और संघ ने तीन लोकसभा सीटों पर पूरी ताकत लगा दी है। सबसे टॉप पर जिन तीन सीटों को रखा गया है, उनमें कांकेर, राजनांदगांव और जांजगीर शामिल हैं। इन सीटों पर विशेष तौर से फोकस और प्लानिंग के साथ काम किया जा रहा है। जाहिर है, बीजेपी बाकी आठ सीटों को खतरे से बाहर मानकर चल रही है। बीजेपी के रणनीतिकारों की कोशिश है कि इन तीन में से वोटिंग का डेट आते-आते कम-से-कम दो और क्लियर होने की स्थिति बन जाए। जाहिर है, बीजेपी की टॉप प्रायरिटी वाली तीन सीटों से कांकेर और राजनांदगांव में 26 अप्रैल और जांजगीर में सात मई को वोटिंग होगी।
कांग्रेस 2 से आगे नहीं
छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ रहा है। मगर आप आंकड़ों को देखेंगे तो पता चलेगा सिर्फ विधानसभा चुनाव के मामले में। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हमेशा ठीकठाक सीटें मिलती रही हैं। पिछले 10 चुनावों की बात करें तो सिर्फ एक बार 1991 के लोकसभा चुनाव में, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आत्मघाती हमले में मौत हो गई थी, कांग्रेस को 11 की 11 लोकसभा सीटें मिली थी। इसके अलावा सभी लोकसभा चुनावों में बीजेपी को छह, सात, आठ सीटें मिलती रही। यहां तक कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था। 15 साल सत्ता में रहने वाली सरकार 15 सीटों पर सिमट आई थी। तब राजनीतिक समीक्षक भाजपा को पांच से अधिक सीटें नहीं दे रहे थे। मगर नतीजे आए तो बीजेपी की झोली में नौ सीटें थी।
ये भी फैक्ट
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने 1999 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रायपुर में वादा किया था कि आपलोग बीजेपी को जीताएं हम छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनाकर देंगे। तब शायद लोगों को उनके कहे पर उस तरह का एतबार नहीं हुआ। 98 में बीजेपी को सात सीटें मिली थी, इस घोषणा के बाद 99 में सिर्फ एक सीट बढ़ी। यानी 11 में आठ सीट। लेकिन, नवंबर 2000 में अटलजी ने छत्तीसगढ़ राज्य का गठन कर दिया तो लोग इतने प्रसन्न हुए कि 2004 से लेकर 2014 तक 11 में 10 सीटें बीजेपी को मिलती रहीं। 2019 में भी इसमें से सिर्फ एक सीट कम हुई है। अब देखना है कि अटलजी ने बीजेपी के पक्ष में छत्तीसगढ़ में हवा का रुख बदला था, वह इस बार बरकरार रहेगा?
अंत में दो सवाल आपसे
1. सतनामी समाज के गुरू को पार्टी में शामिल करने और उनके बेटे को विधानसभा का टिकिट देने के बाद भी बीजेपी दलित वोटों को क्यों नहीं साध पा रही?
2. देश के एक प्रभावशाली औद्योगिक समूह के अफसरों को बुलाकर निर्देश देने वाले बीजेपी के किस बड़े नेता का पर कतर दिया गया?