Chhattisgarh Tarkash 2024: आईएएस अफसरों को प्रमोशन गिफ्ट
Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का 16 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
तरकश, 29 दिसंबर 2024
संजय के. दीक्षित
आईएएस अफसरों को प्रमोशन का गिफ्ट
यूपी में 2009 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों के प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में भी इस बैच को सिकरेट्री बनाने की अटकलें तेज हो गई है। 2009 बैच के छत्तीसगढ़ में 11 आईएएस हैं। छह आरआर और पांच प्रमोटी।
आरआर के छह में से समीर विश्नोई कोयला घोटाले में जेल में हैं, और तंबोली अय्याज फकीरभाई सेंट्रल डेपुटेशन पर। बची डॉ. प्रियंका शुक्ला, किरण कौशल, अवनीश शरण, सौरव कुमार, सुनील जैन, कुमार चौहान, विपिन मांझी, डोमन सिंह और केडी कुंजाम। ये सभी नए साल में सचिव प्रमोट हो जाएंगे। इनमें चौहान और मांझी छह महीने ही सचिव रह पाएंगे। मई में दोनों एक साथ रिटायर हो जाएंगे।
विभाग नो चेंज!
प्रमोशन के बाद 2009 बैच के आईएएस अधिकारियों का विभाग बदलेगा, ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा। क्योंकि, सिकरेट्री में पहले से ही ओवरफ्लो हो रहा है। लिहाजा, प्रियंका शुक्ला हेल्थ में डायरेक्टर से कमिश्नर हो जाएंगी। किरण कौशल कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन पहले से हैं। सौरव कुमार एनआरडी और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग में हैं, उनकी भी पोस्टिंग यथावत रहने वाली।
इस बैच के एकमात्र कलेक्टर अवनीश शरण इस समय बिलासपुर में हैं। अवनीश को पिछली सरकार में पूरे पांच साल हांसिये पर रखा गया। इसलिए लगता है वे बिलासपुर में शायद कंटीन्यू कर जाएं।
सचिव बनने के बाद कलेक्टर रहने के छत्तीसगढ़ में कई दृष्टांत रहे हैं। आरपी मंडल सात महीने राजस्व सिकरेट्री रहने के बाद रायपुर के कमिश्नर बनाए गए थे।
बहरहाल, विष्णुदेव सरकार सूबे के 50 से अधिक आईएएस अधिकारियों को प्रमोशन का गिफ्ट देगी, जिनमें 2012 बैच के 11 आईएएस स्पेशल सिकरेट्री और 2016 बैच के 18 आईएएस अफसर ज्वाइंट सिकरेट्री बनेंगे।
95 बैच के दोनों आईएएस डेपुटेशन पर हैं और 2000 बैच जीरो है, इसलिए एसीएस और प्रिंसिपल सिकरेट्री में कोई प्रमोशन नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ के 3 जिलों में डीआईजी
छत्तीसगढ़ में 17 आईपीएस अधिकारियों को न्यू ईयर में प्रमोशन का गिफ्ट मिलेगा। इनमें दीपक झा और रामगोपाल गर्ग आईजी बनेंगे। वहीं 2011 बैच के सात आईपीएस संतोष सिंह, इंदिरा कल्याण ऐलेसेला, लाल उमेद सिंह, अजात बहादुर सिंह, जीआर ठाकुर, टीआर कोशिमा, प्रशांत ठाकुर डीआईजी प्रमोट होंगे।
इनके अलावा 2012 बैच के आशुतोष सिंह, विवेक शुक्ला, शशिमोहन सिंह, राजेश कुकरेजा, श्वेता राजमणि, राजेश अग्रवाल, विजय अग्रवाल और रामकृष्ण साहू को सलेक्शन ग्रेड मिलेगा। याने इन सभी का ओहदा बढ़कर एसपी से अब एसएसपी हो जाएगा
आईपीएस प्रमोशन के बाद छत्तीसगढ़ में तीन डीआईजी पुलिस अधीक्षक होंगे तो पांच सलेक्शन ग्रेड वाले। याने अब पांच जिलों में एसएसपी और तीन जिलों में सुपर एसएसपी होंगे।
हालांकि, छत्तीसगढ़ में यह पहली बार नहीं हो रहा...डीआईजी प्रमोट होने के बाद कप्तान रहने वालों की लिस्ट बड़ी लंबी है। बहरहाल, 33 में से आठ जिलों में अब सीनियर एसपी होंगे...ऐसे में लॉ एंड आर्डर की स्थिति सुधरने की उम्मीद की जा सकती है।
प्रशासन का कबाड़ा
अंग्रेजों के समय से सिस्टम बनाया गया था...कलेक्टरों को गाइड करने के लिए संभागों में कमिश्नर बिठाए जाते थे। इससे कलेक्टरों को फायदा यह होता था कि प्रशासन की गाड़ी अटकने पर वे कमिश्नरों से मार्गदर्शन ले लेते थे। मध्यप्रदेश के दौर में छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक धाकड कमिश्नर रहे। बीएस बासवान से लेकर हर्षमंदर तक।
मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह सिस्टम ध्वस्त हो गया। अजीत जोगी सरकार ने इसे औचित्यहीन मानते हुए कमिश्नर सिस्टम खतम कर दिया था। बीजेपी की सरकार ने 2005 में इसे फिर से चालू किया मगर दो-एक मौकों को छोड़ कभी आरआर वालों को कमिश्नर नहीं बनाया।
अंदर की बात यह है कि अधिकांश कलेक्टर नहीं चाहते कि कोई डायरेक्ट आईएएस उनके उपर कमिश्नर बनकर बैठ जाए। इसलिए, शुरू से कुतर्क देते हुए लाबिंग की गई...डायरेक्ट आईएएस कमिश्नर बनने पर समानांतर दुकान खोल देगा...कलेक्टरों से टकराव होगा।
समझने की बात है कि उपर में जब सरकार बैठी है...चीफ सिकरेट्री हैं...जीएडी सिकरेट्री हैं, तब कमिश्नर अपनी मनमानी कैसे चलाएंगे। और कमिश्नर अगर दुकानदारी किए तो सरकार के पास स्कू कसने के लिए पेंचिस तो है।
मगर कमिश्नर-कलेक्टर में तालमेल बिगड़ने का परसेप्शन फैलाकर अधिकांश संभागों में डमी कमिश्नर बिठा दिया गया। ताकि, कलेक्टर डीएमएफ से लेकर जिसमें मन चाहे अपनी चला सकें।
अभी सरगुजा कमिश्नर की पोस्टिंग होनी है। 31 दिसंबर को जी0 चुरेंद्र रिटायर होने जा रहे हैं। सरगुजा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का खुद का संभागीय मुख्यालय है। ऐसे में, सरकार को सरगुजा से इसकी शुरूआत करनी चाहिए।
बड़ा जिला, सीनियर कलेक्टर-एसपी
एक दशक पहले तक प्रशासन का थंब रुल था कि बड़े जिलों में सबसे सीनियर अफसरों को कलेक्टर, एसपी बनाया जाता था। मध्यप्रदेश के समय में इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और रायपुर के कलेक्टर-एसपी छांट के बनाए जाते थे। इन पांचों के कलेक्टर और कप्तान बनना गर्व की बात होती थी।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद एक दशक तक ये परंपरा चलती रही। मगर उसके बाद ऐसे-ऐसे पठरु लोगों को कलेक्टर-एसपी बना दिया जा रहा है कि लोगों को उनका नाम तक पता नहीं होता। जाहिर है, पहले के कलेक्टर, एसपी का नाम लोगों की जुबां पर होता था।
पिंक महल, DMF और प्रशासन का शीर्षासन
छत्तीसगढ़ में भी कम-से-कम संभागीय मुख्यालयों में तो सीनियर अफसरों को बिठाना चाहिए। प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी इसका फायदा होता है। आसपास के जिलों के कलेक्टर भी उसके अच्छे कामों को फॉलो करते हैं। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के डिवीजनल कमिश्नर और पुलिस रेंज के आईजी की पोस्टिंग में भी सरकार को ऐसा सोचना चाहिए। तब जाकर रिजल्ट दिखाई देगा।
लक्ष्मीजी के बल पर या जोर-जुगाड़ लगाकर कलेक्टर, एसपी, कमिश्नर, आईजी अपनी पोस्टिंग करा लेते हैं, उसका परिणाम छत्तीसगढ़ में दिख ही रहा है। सिस्टम रहा नहीं। न प्रशासन बचा है और न पुलिस। विकास हुआ है तो सिफ कलेक्टर और एसपी के बंगले का। डीएमएफ के पैसे से छत्तीसगढ़ के कलेक्टर, एसपी के बंगले पिंक महल बन गए हैं। ये हम नहीं कह रहे सरकार के पास रिपोर्ट आई है कि कलेक्टरों ने सरकारी बंगलों पर कैसे डीएमएफ का करोड़ों रुपए फूंक दिया।
हालांकि, राहत की बात यह है कि पुलिस अधीक्षकों ने बंगलों और गार्डन को सजाने में सरकारी खजाने का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने कोयला, कबाड़ी और जुआरियो-सटोरियो का इस्तेमाल किया। पुलिस अधीक्षकों को उतना कसूर नहीं।
कलेक्टरों से कंपीटिशन में एसपी डिरेल्ड हुए और कलेक्टरों की वर्किंग डिरेल्ड हुई करोड़ों रुपए के डीएमएफ से। रिजल्ट ये निकला कि छत्तीसग़ढ़ में प्रशासन से लेकर कानून-व्यवस्था सिर के बल है। और आम आदमी? इसका जवाब है...छत्तीसगढ़ियां, सबले बढ़ियां।
ऐसे भी अफसर
ऐसा भी नहीं कि छत्तीसगढ़ के सारे अफसर डिरेल्ड हो गए हैं। कुछ पहले भी ट्रेक पर थे और आज भी रास्ता नहीं बदले हैं। डेपुटेशन से रायपुर लौटे एक सीनियर आईपीएस अफसर सोफा लेने फर्नीचर दुकान पहुंचे।
अफसर के कद के हिसाब से दुकान वाला रेट बताना शुरू किया...। 12 लाख से लेकर जब वह डेढ़ लाख पर आया तो आईपीएस ने कोने में रखे सोफे का रेट पूछा। दुकान वाला बोला...23 हजार। अफसर बोले, इसी को दे दो।
दुकानदार हैरान...छोटे-मोटे डीएसपी, एडिशनल एसपी इतने लो लेवल पर नहीं आते और इतने बड़े साब....? कलेक्टरों में कुछ इतना बढ़ियां काम कर रहे हैं कि आप जानकर हैरान रह जाएंगे। लेकिन, दुकान में सरेआम रेट लिस्ट लगाने वालों की तुलना में अच्छे कलेक्टरों की संख्या मामूली है। इसलिए उनकी कोई चर्चा नहीं।
डेट ऑफ बर्थ का लोचा
पंजीयन सचिव शारदा वर्मा 31 दिसंबर को आईएएस से रिटायर हो जाएंगी। हालांकि, उनका डेट ऑफ बर्थ 1 जनवरी है। मगर रिटायमेंट का नियम है कि दो तारीख तक अगर कोई पैदा हुआ है तो उसका रिटायरमेंट लास्ट मंथ के लास्ट डेट को होगा। और दो के बाद...तो फिर वह पूरा महीना कंप्लीट करेगा।
मसलन, शारदा वर्मा की जन्मतिथि अगर 3 जनवरी होती तो फिर वह 31 जनवरी को रिटायर होतीं। ऐसे में, जो लोग बच्चों को स्कूल में दाखिले के टाईम जन्मतिथि एक लिखवा देते हैं, उन्हें इस बात को सनद रखना चाहिए।
अफसरों के लिए सबक
सरगुजा के डिवीजनल कमिश्नर जी0 चुरेंद्र आज से तीन दिन बाद 31 दिसम्बर को रिटायर हो जाएंगे। आईएएस के कैरियर में उन्होंने कमिश्नर पोस्टिंग का रिकार्ड बनाया है। बिलासपुर को छोड़ वे सभी संभागों में आयुक्त रह लिए। सबसे बड़े रायपुर संभाग में भी।
मगर उन्हें ताउम्र यह मलाल रहेगा कि स्पेशल सिकरेट्री से रिटायर होना पड़ा। चुरेंद्र के खिलाफ एसडीएम रहने के दौरान राजस्व के कुछ केस बने थे और उसमें उन्हें क्लीन चिट नहीं मिल पाई। इससे उनका सिकरेट्री प्रमोशन नहीं हो पाया। ब्यूरोक्रेसी के लिए यह सबक है।
ठीक है...पूर्व जन्मां के कुछ अच्छे कर्मों की वजह से सभी पकड़े नहीं जाते। मगर छत्तीसगढ़ में दो आईएएस, दो आईटीएस अफसर, दो एसडीएम समेत कई ज्वाइंट डायरेक्टर, एसई, ईडी जैसे अफसर जेल में हैं। तीर्थराज अग्रवाल और आरती वासनिक आईएएस अवार्ड से वंचित हो गए। ये घटनाएं आंखें खोलने के लिए होती हैं। मगर खुले तब तो।
मनमोहन की विनम्रता
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह कितने विनम्र थे, छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी से जुड़ी इस छोटे से वाकये से आप समझ जाइयेगा। बात 14-15 साल पुरानी होगी। यही कोई 2009-10 के आसपास की। तब छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम प्रधानमंत्री कार्यालय में पोस्टेड थे। डेपुटेशन की निर्धारित अवधि सात वर्ष से दो बरस क्रॉस कर चुकी थी।
चूकि उस दौरान छत्तीसगढ़ में अफसरों की भारी कमी थी, लिहाजा सरकार चाह रही थी केंद्र उन्हें वापिस भेज दे। इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ सरकार से जब बार-बार रिमाइंडर जाने लगा तो डीओपीटी सिकरेट्री ने मनमोहन सिंह से बात की। बताते हैं, उन्होंने विनम्रता से कहा, क्या प्रधानमंत्री अपने कार्यालय में अपनी पसंद का एक आईएएस नहीं रख सकता?
प्रधानमंत्री की भावना का सम्मान करते हुए सीजी सरकार ने फिर इस चेप्टर को क्लोज कर दिया। यद्यपि, सुब्रमणियम छत्तीसगढ़ लौटे, जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई।
अंत में दो सवाल आपसे
1. सरकार के एक मंत्री का नाम बताइये, जिन्होंने अपने विभाग के वसूली का काम जिलेवार प्रायवेट लोगों को सौंप दिया है?
2. छत्तीसगढ़ में एमपी कैडर के लास्ट और छत्तीसगढ़ कैडर के फर्स्ट आईएएस, आईपीएस कौन-कौन हैं?