Chhattisgarh Tarkash 2024: हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस
Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का 15 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
तरकश, 20 अक्टूबर 2024
संजय के. दीक्षित
हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस
सूरजपुर घटना को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बंद कमरे में पुलिस अधिकारियों की जमकर क्लास ली। उनका प्वाइंटेड प्रश्न था...आरोपी जब एक दिन पहले थाने में आकर धमका गया था तो पुलिस एक्शन में क्यों नहीं आई? अपराधियों के खिलाफ पुलिस सख्ती क्यों नहीं बरत रही? सीएम का गुस्सा जायज था। वैसे गुस्से में आम पब्लिक भी है और सूबे के 70 हजार पुलिस परिवार भी। पु
लिस ने बलरामपुर बस स्टैंड में नाटकीय ढंग से मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी की, उससे पुलिस परिवारों का खून खौल गया। आरोपी हाफ पैंट में ठसन के साथ चल रहा था और पुलिस उसके साथ फोटो और वीडियो बनवा रही थी। पुलिस अधिकारियों के मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा तब हो गई, जब हाफ पैंट में ही आरोपी को प्रेस के सामने पेश कर दिया।
जिस समय पुलिस बलरामपुर में अपराधी के साथ फोटो सेशन करवा रही थी, उसी दौरान टीवी पर यूपी के बहराइच कांड के जख्मी आरोपी का वीडियो चल रहे थे, जिसमें वह कराह रहा था...साब गल्ती हो गई, अब कभी ऐसा नहीं होगा। एनकाउंटर में दोनों के पैर में गोली लगी थी। और हमारी छत्तीसगढ़ की पुलिस...? बताते हैं, मुख्य आरोपी को बचाने उसके पुलिसिया खैरख्वाह एक्टिव हो गए थे। योजनाबद्ध ढंग से उसे गढ़वा से बुलाया गया, यह गारंटी देकर कि कुछ नहीं होगा, आ जाओ। फिर स्टोरी प्लांट की गई...गढ़वा से अंबिकापुर आ रहा था। तभी पुलिस को इनपुट मिले और उसे बलरामपुर बस स्टैंड में दबोच लिया गया।
पता नहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस में पानी बचा है या नहीं। हेड कांस्टेबल के घर में घुसकर पत्नी और बेटी की हत्या हो जाती है, उसके बाद भी लहू गरम नहीं होता। मुख्य आरोपी के अहसान से दबे सूरजपुर पुलिस का एक धड़ा उसे बचाने में जुट गया है। जाहिर है, सीजी पुलिस के लिए आजकल सबसे बड़ा रुपैया हो गया है...ईमान-धरम सब पीछे।
पुलिस अफसर और जुआ
राजधानी रायपुर से लगे अमलेश्वर में कुछ सीनियर राजपत्रित पुलिस अधिकारी हाई प्रोफाइल जुआ खिलवा रहे थे। खुफिया चीफ अमित कुमार को इसकी भनक लग गई। उन्होंने अधिकारियों को बुलवाकर जमकर हड़काया। दिल्ली से 12 साल बाद छत्तीसगढ़ लौटे अमित हैरान थे कि छत्तीसगढ़ पुलिस को आखिर क्या हो गया है...पैसे के लिए पुलिस इतनी नीचे गिर जाएगी! दरअसल, अतीत में जो हुआ, वह पोलिसिंग को चौपट कर दिया। वर्दी वालों को पैसे की ऐसी लत लग गई कि छत्तीसगढ़ में कौन अफसर काबिल और कौन नाकाबिल...इसका भेद खतम हो गया है। सट्टा और जुआ ने कई उर्जावान अफसरों का कैरियर चौपट कर डाला। हालत यह है कि सरकार एक आईजी लॉ एंड आर्डर बनाना चाहती है मगर इसके लायक कोई अफसर नहीं दिखाई पड़ रहा।
महिला पुलिस और उपयोगिता
छत्तीसगढ़ पुलिस की ट्रेनिंग चौपट हो गई है, उपर से लाखों रुपए खर्च कर ट्रेनिंग हो रही, उसका भी उपयोग नहीं किया जा रहा। सूबे में ढाई-तीन दर्जन महिला डीएसपी, एडि. एसपी होंगी। इनमें से अधिकांश बटालियन या फिर चिटफंड और आईयूसीएडब्लू में पोस्टेड हैं। सवाल उठता है कि पीएससी में सलेक्ट होकर सीट अकुपाई करने वाली महिला पुलिस अधिकारी फील्ड में काम क्यों नहीं करना चाहतीं और पुलिस मुख्यालय पोस्टिंग के समय इस पर गौर क्यों नहीं करता? महिला पुलिस अधिकारी एसी चेंबर, गाड़ी, बंगला और अर्दली से ही संतुष्ट क्यों हो जा रही...पीएचक्यू को इसकी स्टडी करानी चाहिए।
हालांकि, इससे इंकार नहीं कि महिला अधिकारियों के लिए व्यवस्थागत खामियां भी है। छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक गृह मंत्री और डीजीपी हुए मगर आज तक किसी ने ये नहीं सोचा कि महिला सिपाही या अधिकारी को फील्ड में ड्यूटी लगाई जाएगी तो वे वॉशरुम कहां जाएंगी। वीआईपी के लिए चलित शौचालय का बंदोबस्त हो जाता है मगर किराये की गाड़ी के नाम पर हर साल कई करोड़ रुपए बहाने वाली पुलिस अपने महिला स्टाफ के लिए एक मोबाइल टॉयलेट नहीं खरीद सकती।
दूसरा, पीएचक्यू को ये भी देखना चाहिए कि पुरूष प्रभुत्व सिस्टम में महिला अफसरों के साथ कोई नाइंसाफी तो नहीं हो रही। बहरहाल, समाज में डे-टू-डे महिला अपराध बढ़ रहे, तब महिला पुलिस अधिकारियों की फील्ड पोस्टिंग और जरूरी हो जाती है।
ब्यूरोक्रेसी और रिफार्म
जब देश में अंग्रेजों के टाईम के कानून बदले जा रहे हैं...तब छत्तीसगढ़ का राजस्व विभाग ने तहसीलदारों के आगे घूटने टेकते हुए उन्हें अंग्रेजों की बनाई न्यायालयीन संरक्षण उपलब्ध करा दिया। याने अब बिना विभागीय अनुमति के तहसीलदारों, नायब तहसीदारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। असल में, नौकरशाही के साथ दिक्कत यह है कि सिस्टम के सुधार में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। चूकि, इसमें रिस्क होता है, इसलिए ब्यूरोक्रेसी की सिंगल लाईन होती है...जैसा चल रहा, चलने दो। खैर...छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य तेलांगना ने राजस्व न्यायालय को समाप्त कर दिया है।
मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश जैसे कई राज्यों में ़ऋण पुस्तिका की भी अब आवश्यता नहीं। अनेक ऐसे स्टेट हैं, जहां रजिस्ट्री होते ही आटोमेटिक नामंतरण हो जाता है। और इधर छत्तीसगढ़ में....। राजस्व महकमे के मुलाजिमों से वैसे भी पब्लिक त्राहि माम कर रही है। खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी एकाधिक बार स्वीकार कर चुके हैं कि सबसे अधिक उनके पास राजस्व विभाग की शिकायतें आती है। कलेक्टर कांफ्रेंस में पहली बार अबकी राजस्व, बंटवारा और नामंतरण का एजेंडा सबसे उपर रखा गया था। बावजूद इसके राजस्व विभाग ने राजस्व अधिकारियों के आगे नतमस्तक हो गया, तो फिर क्या कहा जा सकता है।
फिर बर्खास्त क्यों नहीं?
जाहिर है, राजस्व अधिकारी आएं-बाएं फैसला पारित करते हैं और न्यायालय की आड़ में बच जाते हैं। उनके गलत फैसलों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। राजस्व विभाग में कोई विजिलेंस सेल नहीं है। जबकि, ज्यूडिशरी में निगरानी का अपना एक सिस्टम है। जजों को विशेष संरक्षण मिला है मगर वो अगर गलत फैसला देते हैं, तो हाई कोर्ट के राडार पर आते हैं और साल में 10-12 जजों की बर्खास्तगी भी होती है। किन्तु गलत फैसले के लिए आपने कभी एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार को बर्खास्त होते देखा है? जब दोषपूर्ण फैसलों पर राजस्व अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं तो फिर उन्हें विशेष संरक्षण क्यों? सिस्टम को इस पर विचार करना चाहिए। क्योंकि, सबसे अधिक अगर किसी विभाग में करप्शन है तो वह राजस्व विभाग है।
पिछले हफ्ते एक महिला आईएएस ने किसी रिश्तेदार के नाम पर एक जमीन का नामंतरण कराया। उन्हें नामंतरण और सीमांकन के लिए दो लाख रुपए देने पड़े, तब जाकर काम हो पाया। दरअसल, अंग्रेजी शासन के प्रारंभ में कलेक्टरों को फांसी देने का अधिकार होता था। बाद में ये पावर ले लिया गया। मगर सिविल मामलों का अधिकार इसलिए उनके पास यथावत रखा क्योंकि, उस समय लगान से ही सरकार को मुख्य राजस्व प्राप्त होता था। उस समय सरकार के पास पैसे होते नहीं थे। इसीलिए कलेक्टर नाम पड़ा...रेवेन्यू कलेक्ट करने वाला। राजस्व अमलों को न्यायालयीन अधिकार करप्शन को ढकने का एक बड़ा प्रोटेक्शन बन गया है।
आईएएस की पोस्टिंग
2004 बैच के आईएएस अमित कटारिया अगले महीने छुट्टी से लौट आएंगे। वे एक सितंबर को सात साल का डेपुटेशन कंप्लीट कर दिल्ली से लौटे थे। ज्वाईन करने के बाद वे दो महीने के अवकाश पर चले गए थे। अगले महीने वे लौटेंगे तो सचिव स्तर पर एक सर्जरी होगी। कटारिया चूकि भारत सरकार से लौट रहे हैं, इसलिए उन्हें ठीकठाक ही पोस्टिंग मिलेगी। कटारिया कवर्धा, रायगढ़ और बस्तर के कलेक्टर के साथ ही नगर निगम कमिश्नर रह चुके हैं। निगम कमिश्नर के तौर पर रायपुर में मंत्रालय, मोतीबाग, बस स्टैंड के आसपास के बेजा कब्जा हटाने में अमित की अहम भूमिका रही।
पिंगुआ को वेट
एसीएस मनोज पिंगुआ के पास इस समय चार विभाग हैं। गृह, जेल, हेल्थ और मेडिकल एजुकेशन। छत्तीसगढ़ लेवल के अन्य राज्यों में इन चारों विभाग के लिए चार अलग-अलग सिकरेट्री होते हैं। रजत और रोहित यादव के दिल्ली से लौटने पर हुई सर्जरी में हेल्थ से पिंगुआ से हेल्थ हटने की चर्चाएं थी मगर ऐसा हुआ नहीं। अब अमित कटारिया छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं तो फिर कहा जा रहा कि उन्हें हेल्थ दिया जाएगा। मगर अंदर से जो खबरें आ रही, उसके मुताबिक पिंगुआ को विभागों के लोड से हल्का होने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। क्योंकि, अमित को एक डिप्टी सीएम का विभाग मिलने वाला है।
बिफोर प्रमोशन
छत्तीसगढ़ में सचिवों की भरमार हो गई है मगर प्रमुख सचिव स्तर पर अधिकारियों की भारी कमी है। इसको देखते चर्चा है 2000 बैच के साथ ही 2002 बैच का प्रिंसिपल सिकरेट्री पद प्रमोशन दे दिया जाएगा। मंत्रालय में सिस्टम का बैकबोन होता है। याने क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो मध्यक्रम के बल्लेबाज। छत्तीसगढ़ में सिर्फ दो ही पीएस हैं। निहारिका बारिक और सोनमणि बोरा। गौरव द्विवेदी, मनिंदर कौर द्विवेदी और सुबोध सिंह पीएस हैं मगर वे इस समय सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। 99 बैच के बोरा पिछले साल प्रमुख सचिव बने थे। उनके बाद 2000 बैच में शहला निगार हैं। जनवरी में शहला भी पीएस बन जाएंगी।
उनके बाद 2001 बैच खाली है। 2002 में डॉ0 रोहित यादव और डॉ0 कमलप्रीत सिंह हैं। प्रमुख सचिव के पोस्ट भी काफी हैं। सो, समझा जाता है शहला के साथ रोहित और कमलप्रीत भी प्रमुख सचिव बन जाएंगे। इससे पहले कई बार ऐसा हो चुका है जब समय से पहले अफसरों को प्रमोशन दिया गया। सीके खेतान और आरपी मंडल को छह महीने पहले प्रमुख सचिव बना दिया गया था। तो पिछली सरकार में रेणु पिल्ले को छह महीने पहले एसीएस बनाया गया तो सुब्रत साहू डेढ़ साल पहले एसीएस प्रमोट हो गए थे।
प्रमुख सचिव की संख्या बढने पर सरकार के पास विकल्प रहेगा कि वह कुछ महत्वपूर्ण विभागों में सचिव के उपर प्रमुख सचिव पोस्ट कर दें। मध्यप्रदेश में चूकि अधिकारियों की संख्या काफी है, इसलिए वहां लगभग सारे विभागों में प्रमुख सचिव रहते हैं। कई में सिकरेट्री, प्रिंसिपल सिकरेट्री के उपर एडिशनल चीफ सिकरेट्री भी होते हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. रीता शांडिल्य पीएससी की कार्यकारी अध्यक्ष बनी रहेंगी या किसी शिक्षाविद को पूर्णकालिक चेयरमैन बनाया जाएगा?
2. मुख्यमंत्री के बाद क्या अब मंत्री और अधिकारी भी नया रायपुर जाएंगे रहने?