Chhattisgarh Tarkash 2024: कैडर पर कंट्रोल
Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का 16 सालों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
तरकश, 22 दिसंबर 2024
संजय के. दीक्षित
कैडर पर कंट्रोल
छत्तीसगढ़ की डिरेल्ड हो चुकी ब्यूरोक्रेसी को ट्रेक पर लाने के लिए सुबोध सिंह को दिल्ली से बुलाया गया है। कुछ दिनों में अमित अग्रवाल भी आ जाएंगे। मगर इससे बड़ा प्रश्न है कि रुलिंग पार्टी के बेलगाम हो चुके कैडर को कौन संभालेगा?
कांग्रेस युग में पांच साल तक दुबके बीजेपी के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने सरकार बनते ही धूम मचा दिया है। बड़े नेता से लेकर छोटे कार्यकर्ता तक...हर आदमी जल्दी में है। उनसे यह भी धीरज नहीं रखा जा रहा कि सरकार पांच साल के लिए बनी है। हर दूसरे कार्यकर्ता को ठेका या सप्लाई का काम चाहिए। हर तीसरा आदमी ट्रांसफर-पोस्टिंग का दावा करता फिर रहा है।
एक ठीकठाक विभाग के मंत्री ने स्तंभकार से अपनी पीड़ा शेयर की...क्या बताएं भाई साब, जिस कार्यकर्ता की हैसियत दो लाख की नहीं, वो 100-100 करोड़ के ठेकेदार या सप्लायर को लेकर आ जा रहा। सबकी एक ही बात...भाई साब! देख लीजिए...इसमें मुझे भी कुछ मिल जाएगा।
94 बैच के एक एडिशनल पीसीसीएफ दुखडा़ रो रहे थे...क्या बताएं...साल गुजरने वाला है, पीसीसीएफ का प्रमोशन नहीं हो पाया। हमने कहा...किसी से बात कीजिए। उन्होंने जो कहा...वह हिलाने वाला था। बोले, कहां जाए, जिस नेता के पास जाओ, वह मुंह बाये बैठा है। अब भला बताइये...प्रमोशन के लिए कहीं पैसा देना पड़ता है। मगर स्थिति यह है कि जिस नेता के पास जाइये, पीए सबसे पहले यही पूछेगा, कितना दोगे...या इतना लगेगा।
प्रदेश प्रभारी नीतीन नबीन को इसे देखना चाहिए। उन्होंने सरकार बनाने के लिए बड़ा परिश्रम किया है। जितना लोकल नेताओं ने दौरे नहीं किए, नीतीन उनसे अधिक गांव-कस्बों को छान मारा। बीजेपी ने इसका उन्हें प्रमोशन कर ईनाम भी दिया। मगर उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए कि आखिर किस वजह से सिस्टम नगरीय और पंचायत चुनाव कराने से आगे-पीछे हो रहा है।
विष्णुदेव का सुशासन स्थापित करने के लिए अजय जामवाल और पवनसाय को डंडे चलाने पडे़ेगे। क्योंकि, सरकार जो अच्छे काम कर रही, वह नेताओं की करनियों से ढक जा रहा है।
धन्यवाद पर सवाल
रमन सरकार में एक दशक तक मंत्री रहने वाले अजय चंद्राकर इस बार विष्णु कैबिनेट में शामिल होने से जरूर चूक गए मगर सब्जेक्ट की स्टडी और धारदार सवालों की वजह से विधानसभा में अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं। आलम यह है कि रुलिंग पार्टी के मंत्री विपक्ष से अधिक चंद्राकर से घबराते हैं।
प्रश्नकाल में अगर चंद्राकर का सवाल लगा है तो जाहिर है, मंत्री घिरेंगे ही। शीतकालीन सत्र में उनकी गुगली में दोनों डिप्टी सीएम बुरी तरह से परेशान दिखे। विजय शर्मा के साथ तो एक बार उनका हॉट टॉक भी हो गया। चंद्राकर ने साफ कह दिया, भ्रष्टाचारियों को बचाया जा रहा है। हालांकि, हंगामा मचने पर विजय शर्मा ने चार इंजीनियरों को सस्पेंड करने के साथ ही जांच का ऐलान कर दिया।
मगर दोनों की तेज आवाज पर स्पीकर डॉ. रमन सिंह को टोकना पड़ गया...आप दोनों अपनी आवाज डाउन रखें। विजय शर्मा ने आखिर में जांच का ऐलान किया तो अजय चंद्राकर ने इतना जोर से धन्यवाद बोला कि रमन सिंह को हंसी आ गई। बोले... धन्यवाद को इतना जोर से बोलने की क्या जरूरत है भाई। इस पर सदन में जमकर ठहाका लगा।
किस्मत के धनी DGPजुनेजा
डीजीपी अशोक जुनेजा के दूसरे एक्सटेंशन की चर्चाएं बड़ी तेज हैं। कहा जा रहा कि अमित शाह की प्रतिष्ठा की लड़ाई की निर्णायक घड़ी आ गई है। नक्सलियों की खात्मा के लिए उन्होंने मार्च 2026 का डेट दिया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के डीजीपी को वे कैसे रिटायर होने देंगे, जहां अगला छह महीने काफी हैट्रिक रहने वाला है। जाहिर है, निर्णायक ऑपरेशन बस्तर में ही होना है।
अलबत्ता, जिन्हें अमित शाह वाले तर्क पर एतबार नहीं, उन्हें जुनेजा की किस्मत पर जरूर भरोसा है। अशोक जुनेजा छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्होंने 35 साल के कैरियर में लूप लाईन तो दूर की बात, कभी पुअर पोस्टिंग नहीं देखी। वे रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग जैसे जिले के एसपी रहे तो रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के आईजी। वे ट्रांसपोर्ट कमिश्नर रहे तो सिकरेट्री होम भी। कुछ दिन डायरेक्टर स्पोर्ट्स का दायित्व भी संभाला।
डेपुटेशन पर सेंट्रल नारकोटिक्स में दिल्ली गए तो वहां से तुरंत जंप लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स के सिक्यूरिटी इंचार्ज बन गए। दिल्ली से लौटने पर रमन सिंह ने उन्हें इंटेलिजेंस चीफ बनाया। 2018 में सरकार बदली तो डीजीपी से लेकर पूरा अमला बदल गया मगर जुनेजा की हैसियत पर कोई आंच नहीं आई। पहले वे नक्सल चीफ बने, फिर बाद में उन्होंने डीएम अवस्थी को रिप्लेस कर डीजीपी की कुर्सी संभाली।
विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान अशोक जुनेजा के खिलाफ बीजेपी नेताओं ने शिकायतों की अंबार लगा दी थी। उसे देख प्रतीत हो रहा था कि सरकार का पहला आदेश जुनेजा का ही निकलेगा। मगर कुंडली में बुध और गुरू का कमाल देखिए...साल भर में ही वे इतने स्ट्रांग हो गए हैं कि आज की तारीख में किसी बीजेपी नेता की हिम्मत नहीं कि जुनेजा का 'ज' बोल दे।
जुनेजा को किंचित झटका लगा था 2003 में, जब एसआरपी कल्लूरी कोरबा से आकर बिलासपुर में उन्हें रिप्लेस किया। तब बिलासपुर कलेक्टर आरपी मंडल के साथ उनकी जबर्दस्त ट्यूनिंग थी। जय-बीरू की जोड़ी टूटने पर जुनेजा आहत हुए थे।
मगर उस समय भी अजीत जोगी ने उन्हें बिलासपुर से हटाकर दुर्ग जैसे जिले का एसपी बनाया था। याने कमजोर पोस्टिंग उस समय भी नहीं मिली। जूनेजा को करीब से जानने वाले को दूसरे एक्सटेंशन पर कोई ताज्जुब नहीं हो रहा है। फिर लास्ट में लाख टके की बात...युद्ध के बीच में कमांडर थोड़े बदला जाता है।
तीन बच्चे और बीजेपी
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ा बयान दिया है...जनसंख्या दर की गिरावट पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा है कि समाज को विलुप्त होने से बचाने के लिए कम-से-कम तीन बच्चे पैदा करें। अब ये प्रश्न बाद में कि सरकारों द्वारा परिवार नियोजन के जो कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उसका क्या होगा? नौकरी, प्रमोशन में दो बच्चों वालों को जो छूट मिलती है, उसका क्या?
पहले तो इस पर चर्चा कि बीजेपी की सबसे बड़ी वैचारिक संस्था के सबसे बड़े व्यक्ति द्वारा कही गई बातों को बीजेपी नेता किस तरह ले रहे हैं। बता दें, भागवत जी के बयान के बाद एक-दो बच्चे वाले बीजेपी नेता बेहद चिंतित हो गए हैं। दरअसल, छत्तीसगढ़ के अधिकांश नेताओं के दो या दो से कम बच्चे हैं। विष्णुदेव कैबिनेट भी इससे अलग नहीं है।
बड़े नेताओं में पुन्नूलाल मोहले जरूर अपवाद होंगे, जो एकाध और किसी नेता के बच्चों को मिला लें, तो क्रिकेट टीम बन सकती है। बहरहाल, भागवत जी के विचार को एक तरह से बीजेपी के लिए आदेश ही समझा जाना चाहिए। अब देखना दिलचस्प होगा कि संगठन और सरकार में बैठे बड़े लोग क्या इस पर अमल करेंगे? जिनके सामने रास्ते खुले हैं, वे अपना नंबर बढ़ाने की कोशिश कर ही सकते हैं।
आईएएस की दूरदर्शिता
मोहन भागवत ने जो कहा है, उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देश के 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जनसंख्या दर गिरकर 1.5 से भी नीचे आ गया है। जानकारों का कहना है कि भारत में परिवार नियोजन का ऐसा आक्रमक कैंपेन चला कि दो के बाद कोई तीसरे की ओर कदम नहीं बढ़ा रहा। साउथ के राज्यों में स्थिति और खराब हो गई है। तमिलानडू और आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों ने लोकल चुनाव में दो बच्चों की छूट को समाप्त कर दिया है।
केरल समेत साउथ के पांच राज्यों की चिंता यह है कि आबादी इसी तरह गिरी तो भारत सरकार से मिलने वाला राजस्व तो कम होगा ही, अगले परिसीमन में सांसदों की सीटें भी कम हो जाएंगी। इससे उन राज्यों का अभी देश की राजनीति में प्रभाव है, वह कम होगा। दरअसल, प्रजनन दर गिरने का असर अभी नहीं, 25-30 साल बाद पता चलेगा। जब 50 से अधिक उम्र वाले करीब 60 करोड़ नहीं रहेंगे।
भारत को युवाओं का देश जरूर कहा जा रहा मगर इसमें विडंबना यह है कि इसमें 40 साल से उपर वालों को भी शामिल कर लिया जा रहा। पिछले एक दशक में स्थिति यह हो गई है कि दो से कम होकर अब एक के बाद फुलस्टॉप हो जा रहा है। इससे देश की जनसंख्या तेजी से गिरेगी।
बहरहाल, छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अफसर को करीब दशक भर पहले बिलासपुर के प्रायवेट अस्पताल में तीसरा बच्चा हुआ था। मैंने उन्हें बधाई के लिए फोन लगाया। मुझे अच्छी तरह याद है...उन्होंने कहा था, एटलिस्ट तीन बच्चे तो होना ही चाहिए। मोहन भागवत का बयान सुनकर मुझे आईएएस की याद आ गई।
पिंगुआ की पीड़ा
एसीएस मनोज पिंगुआ के वर्क लोड के बारे में पहले भी इस स्तंभ में जिक्र किया जा चुका है। ताजा अपडेट यह है कि स्वास्थ्य मंत्री उन्हें छोड़ना नहीं चाहते और मनोज चाहते हैं कि किसी तरह वर्क लोड कुछ कम हो जाए। जब भी कोई अफसर डेपुटेशन से लौटता है, उनकी उम्मीदें जवां होती है कि अब कुछ वर्क लोड कम होगा। मगर ऐसा हो नहीं रहा।
मनोज के पास इस समय गृह, जेल, स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मिलाकर चार विभाग हैं। गृह में उन्हें तीन साल से ज्यादा हो गया है मगर वह इसलिए नहीं छूट रहा कि इसमें एसीएस लेवल का अफसर चाहिए। एसीएस अभी चार हैं। इनमें दो लेडी। गृह सचिव आमतौर पर लेडी को बनाया नहीं जाता। उपर से नक्सल स्टेट में तो बिल्कुल नहीं।
एसीएस सुब्रत साहू का ग्रह-नक्षत्र इस समय ठीक नहीं, इसलिए उनकी चर्चा बेमानी है। बचे एकमात्र मनोज पिंगुआ। रही बात हेल्थ की तो अब देखना है कि मंत्री का आग्रह स्वीकार कर सीएम मनोज पिंगुआ को हेल्थ में कंटीन्यू करते हैं या फिर किसी दूसरे अफसर को हेल्थ सिकरेट्री का दायित्व सौंपते हैं। कह सकते हैं, पिंगुआ की पीड़ा कम होगी...इसमें अभी संशय है।
सचिव स्तर पर सर्जरी
आईएएस सुबोध सिंह को मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनाया गया है। शुक्रवार शाम आदेश निकलने के कुछ देर के भीतर सुबोध सीएम हाउस पहुंचकर अपना कार्यभार ग्रहण कर लिए। उन्होंने सचिवालय के सभी सचिवों और ओएसडी की बैठक ली।
अलबत्ता, पहले ये चर्चा थी कि सुबोध को पोस्टिंग के साथ ही कोई बड़ा विभाग दिया जाएगा। मगर संकेतों से लगता है कि अभी सिर्फ अमित कटारिया को पोस्टिंग मिलेगी। बाकी बाद में होंगे। इसका मकसद यह है कि सुबोध थोड़ा अफसरों के परफर्मेंस के बारे में समझ लें। फिर सर्जरी की जाएगी। तब तक वे मुख्यमंत्री सचिवालय में हेड की भूमिका में काम करते रहेंगे।
वैसे भी सीएम का सिकरेट्री अपने आप में बड़ी पोस्टिंग मानी जाती है। सीएम सिकरेट्री सुनने के बाद कोई विभाग नहीं पूछता। दरअसल, सीएम सचिवालय प्रदेश का सबसे बड़ा पावर सेंटर होता है। सारे विभागों की अहम फाइले सीएम सचिवालय से होते हुए मुख्यमंत्री तक पहुंचती है। इससे बड़ा पावर और क्या चाहिए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. मंत्रिमंडल की होने वाली सर्जरी में किस ओबीसी मंत्री के उपर तलवार लटकी हुई है?
2. किरण सिंहदेव मंत्री बनेंगे, तो उनकी जगह पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व किस ओबीसी नेता को मिलेगा?