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Chhattisgarh Tarkash 2024: ब्यूरोक्रेट्स, बायोमेट्रिक और हाय-तोबा

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय दीक्षित का पिछले 15 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Chhattisgarh Tarkash 2024: ब्यूरोक्रेट्स, बायोमेट्रिक और हाय-तोबा
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By Sanjay K Dixit

तरकश, 25 अगस्त 2024

संजय के. दीक्षित

ब्यूरोक्रेट्स, बायोमेट्रिक और हाय-तोबा

कहा जाता है, सिस्टम में किसी चीज की शुरूआत उपर से होनी चाहिए। तभी नीचे उसका मैसेज पहुंचता है। बॉस अगर कर्मठ और ईमानदार है तो मुलाजिम से भी ऐसी अपेक्षा की जा सकती है। मगर उपर के लोग अगर बायोमेट्रिक अटेंडेंस को लेकर हाय-तोबा मचा देंगे तो फिर कर्मचारियों से ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती है। मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा ही हो रहा है। एक तरफ तो आबकारी, पंजीयन, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, पौल्यूशन बोर्ड में बायोमेट्रिक अटेंडेंस अनिवार्य किया जा रहा है। वहीं, दूसरी तरफ सबसे पहले मंत्रालय से इसकी शुरूआत करने की बात की गई थी, मगर अब उसे कोई याद नहीं कर रहा। दरअसल, सरकार चाह रही थी कि डिजिटल अटेंडेंस की शुरूआत मंत्रालय से हो। ई-ऑफिस के साथ ही बायोमेट्रिक को भी लांच किया जाना था। किन्तु अधिकारियों के विरोध के बाद यह ठंडे बस्ते में चला गया। आईएएस अधिकारियों की बायोमेट्रिक के विरोध के पीछे दलील यह है कि उनके पास कई-कई विभाग हैं, वहां उन्हें जाना पड़ता है। फिर, उन्हें लाइन लगाकर बायोमेट्रिक में हाजिरी लगानी होगी। जबकि, नौकरशाहों की सुविधा के लिए ऐसा बायोमेट्रिक डिजाइन किया गया था कि उन्हें कर्मचारियों की तरह लाइन लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ उन्हें अपने मोबाइल में ऐप डाउनलोड करना था। वे जैसे ही मंत्रालय या किसी और आफिस में पहुंचते, मोबाइल के स्क्रीन पर सिर्फ एक क्लिक करना था। उसमें सुविधा ये भी थी कि वे जिस आफिस में जाएंगे, वहां का सर्वर ऑन हो जाएगा। और वहां भी अपने मोबाइल से ही अटेंडेंस लगा सकते थे। अफसरों को आरटीआई का डर भी सता रहा है। कोई आरटीआई में अगर जानकारी मांग लिया तो क्या होगा? यही वजह है कि मंत्रालय में बायोमेट्रिक पर फिलहाल ब्रेक लग गया है।

20 फीसदी को परेशानी

छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में सभी आईएएस बायोमेट्रिक का विरोध नहीं कर रहे। कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें सांस लेने की फुरसत नहीं। साढ़े दस से पहले आफिस पहुंच जाते हैं और और वहां से लौटने का कोई टाईम नहीं। ब्यूरोक्रेसी के लोग भी मानते हैं कि 10 परसेंट अफसर आउट स्टैंडिंग हैं। 40 परसेंट अवेरेज। दोनों को मिलाकर हुआ 50 प्रतिशत। इसके बाद 30 फीसदी अफसर ऐसे हैं, जिनमें संभावनाएं हैं मगर देखादेखी वे डिरेल्ड हो गए हैं...थोड़े प्रयास से उन्हें पटरी पर लाया जा सकता है। सो, बायोमेट्रिक से प्राब्लम सिर्फ 20 प्रतिशत नौकरशाहों को है, जो यूपीएससी क्लियर करके आईएएस तो बन गए मगर उनमें काम करने वाला जिंस नहीं है। वे पैसा कमा शाही ठाठबाट मेंटेन करने को ही आईएएस का उद्देश्य समझ बैठे हैं। इनमें कई ऐसे भी मिलेंगे, जो एकाध घंटा के लिए मंत्रालय जाते हैं और उसके बाद फिर घर। उन्हें बायोमेट्रिक से ज्यादा दिक्कत है।

कलेक्टर, एसपी और कबूतर

छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में 15 अगस्त के कार्यक्रम में एसपी के हाथों कबूतर गिर कर मर जाना देश के मीडिया में सुर्खियों में रहा। दरअसल, चीफ गेस्ट और कलेक्टर का कबूतर उड़ गया मगर एसपी ने जैसे ही उसे उड़ाया, वह लूढ़ककर जमीन पर गिरा और दम तोड़ दिया। सोशल मीडिया में जब इस वायरल वीडियो पर मजाक बनना शुरू हुआ तो एसपी ने इसकी जांच के लिए कलेक्टर को पत्र लिखा और कलेक्टर ने भी आनन-फानन में जांच अधिकारी नियुक्त कर डाला। याने ब्यूरोक्रेसी का फुल जोक हुआ मुंगेली में। उधर, नौकरशाही के लोगों का कहना है कि कबूतर उड़ाना अब बैन कर दिया गया है। जाहिर है, रायपुर में न मुख्यमंत्री कबूतर उड़ाए और न ही राज्यपाल राजभवन में। फिर सवाल यह भी उठता है कि मुख्य अतिथि कबूतर उड़ाए या कौवा....उन्हें राजनीति करनी है। साथ में खड़े कलेक्टर, एसपी को कबूतर उड़ाने का शौक क्यों पालना? 15 अगस्त और 26 जनवरी के समारोह में कलेक्टर, एसपी का काम असिस्ट करना होता है, न कि जो चीफ गेस्ट करें, वो करने लगें। जीएडी को इसके लिए गाइडलाइन जारी करनी चाहिए। ताकि, आगे अब इस तरह की मजाक न बनें।

सीनियर, जुनियर का फर्क

निश्चित तौर पर ऑल इंडिया सर्विस में आईएएस फर्स्ट और आईपीएस दूसरे पायदान पर आता है। इसलिए जिलों में एसपी से दो-तीन साल जूनियर आईएएस को कलेक्टर बना दिया जाता है। मगर इसकी भी एक लिमिट होनी चाहिए। मुंगेली में कुछ ज्यादा हो गया है। वहां कलेक्टर हैं 2016 बैच के और एसपी 2010 के। एसपी डीआईजी रैंक के आईपीएस बन चुके हैं। उपर से कलेक्टर से छह साल सीनियर। आमतौर पर मुंगेली किसी आईपीएस के लिए एसपी के तौर पर पहला जिला होता है। मगर अभी जो वहां एसपी हैं, उनका यह चौथा जिला है। पिछली सरकार में ये परिपाटी शुरू हुई थी। तब डीआईजी रैंक के आईपीएस को जशपुर, गरियाबंद और बलौदा बाजार का एसपी बनाया गया था। आमतौर पर एसपी की पोस्टिंग में उनके रैंक का ध्यान रखा जाता है। डीआईजी या सलेक्शन ग्रेड के आईपीएस अफसरों को अगर एसपी बनाया भी जाता है, तो फिर बड़े जिलों में। सिस्टम को इसके सनद रखना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि जिन कलेक्टरों का दो साल हो गया है, उनका नंबर अगली लिस्ट में लग सकता है?

2. बड़े-बड़े आईजी साहबों को बिना काम के भारी-भरकम पगार देना क्या सही है?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

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