Begin typing your search above and press return to search.

Chhattisgarh Tarkash 2024: बड़े लोग, बड़ा स्कैम

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित संजय के. दीक्षित का 15 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Chhattisgarh Tarkash 2024: बड़े लोग, बड़ा स्कैम
X
By Sanjay K Dixit

तरकश, 31 मार्च 2024

संजय के. दीक्षित

बड़े लोग, बड़ा स्कैम

राज्य सरकार ने जमीनों का गाइडलाइन रेट की छूट को न बढ़ाकर अच्छा काम किया है। इससे किसानों को भी फायदे होंगे। मगर सरकार को ये भी सनद रखना होगा कि भारत माला सड़कों के अगल-बगल की किसानों के अधिकांश जमीनों को नेताओं और नौकरशाहों ने खरीद लिया है। ईडी की विभिन्न जांचों में इस तरफ इशारा भी किया गया है कि कई कलेक्टरों ने जमकर इसमें चांदी काटा है। छत्तीसगढ़ के कई प्रभावशाली नेताओं और कलेक्टरों, अफसरों ने किसानों से सस्ते रेट पर एकड़ में जमीन खरीद लिए और उसे छोटे टुकड़े कर करोड़ों रुपए का मुआवजा ले लिया या मुआवजे के लिए लाइन में हैं। बता दें, भारत सरकार के नई अधिग्रहण नीति के तहत छोटो प्लाटों का मुआवजा चार गुना अधिक मिलता है। कलेक्टरों और नेताओं को चूकि पता होता है कि कहां से सड़क निकलनी है। सो, किसानों को रेट से कहीं अधिक में एकड़ों में जमीन खरीद लेते हैं। और फिर उसे टुकड़ों में बांट अपने नाते-रिश्तेदारों, नौकर, चाकर, पीए, प्यून के नाम पर रजिस्ट्री करवाने का खेला किया जाता है। कायदे से यह सीबीआई जांच का इश्यू हो सकता है। क्योंकि, इसमें अधिकांश बड़े लोगों ने मलाई काटा है और किसान बेचारे ठगे गए हैं। सीबीआई जांच अगर हो गई तो सूबे के कई पूर्व कलेक्टर सलाखों के पीछे होंगे।

बड़े आसामी

छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल साल में अस्पताल और नर्सिंग होम के संचालकों ने भी खूब खेला किया है। पहले जिधर जाओ, पता चलता था कि ये फलां नेताजी की जमीन है तो फलां आईएएस, आईपीएस का फार्महाउस। अब इसमें अस्पताल संचालकों का नाम भी ऐड हो गया है। दरअसल, कोविड में अस्पतालों में क्या हुआ, वह सबको पता है। रोज अटैची में भरकर अस्पतालों से घर पैसे जाते थे। उसे कहीं-न-कहीं इंवेस्ट होना ही था। वे पैसे बिल्डरों के प्रोजेक्ट में लगे या फिर जमीनों में। अभी स्थिति यह है कि रायपुर से 100 किलोमीटर दूर तक रोड पर जमीन नहीं बची है। कोविड के पैसे का ही नतीजा रहा कि बिल्डरों ने महामारी में भी अपना रेट डाउन नहीं किया। क्योंकि, बड़े बिल्डरों के प्रोजेक्ट में पहले मंत्रियों, नौकरशाहों की काली कमाई लगती थी, अब इसमें अस्पतालों की कमाई भी शामिल हो गई है। छत्तीसगढ़ में बिल्डरों को तेजी से फलने-फूलने का रहस्य यही है।

सबसे बड़ी जीत

छत्तीसगढ़ में यह बहुत कम लोगों को पता होगा लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत छत्तीसगढ़ से मिल चुकी है। वो भी निर्दलीय प्रत्याशी की। सीट है बस्तर और चुनाव था 1952 का। तब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मुचकी कोसा चुनावी मैदान में थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को 1,41,331 मतों से हराया। उस चुनाव में सबसे छोटी जीत पश्चिम बंगाल में कांग्रेस प्रत्याशी को मिली थी। कोंतई संसदीय सीट से वे 127 मतों से जीते थे। बता दें, आजादी के बाद देश में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था।

कांग्रेस का बी फार्म

कांग्रेस में टिकिट का ऐलान होने के बाद चेहरे बदल जाने के अनेक दृष्टांत हैं। कई बार तो बी फार्म भी बदल जाते हैं। विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान इसी कॉलम में बिलासपुर विधानसभा चुनाव-1998 में नामंकन के आखिरी दिन बी फार्म बदलने का जिक्र किया किया गया था। उसमें नामंकन भरने के आखिरी दिन बी फार्म बदलकर चार्टर प्लेन से नया बी फार्म आया था। 2009 के लोकसभा चुनाव में बिलासपुर संसदीय सीट से कांग्रेस ने आशीष सिंह का नाम की घोषणा कर दी थी। कांग्रेस पार्टी का अधिकृत आदेश मीडिया में प्रकाशित भी हो गया। मगर दो दिन बाद रेणू जोगी को मैदान में उतार दिया गया। इसी तरह का एक पुराना किस्सा नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत का भी है। 1991 में महंत को जांजगीर लोकसभा से चुनाव लड़ने बी फार्म आ गया था। मगर नामंकन भरने के दिन दिल्ली से उनके पास फोन आ गया...अभी फार्म मत भरिये, भवानीलाल वर्मा को टिकिट दिया जा रहा है। और फिर रातोरात सड़क मार्ग से वर्मा के नाम से बी फार्म भेज दिया गया। अब आजादी के बाद कांग्रेस ने 70 बरस राज किया है, तो जाहिर तौर पर किस्से-कहानियां उसे के होंगे न।

मंत्रियों की मुश्किलें

लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। क्योंकि, तीन महीने हुए विधानसभा चुनाव में जांजगीर और राजनांदगांव को छोड़कर लगभग सभी इलाकों मेंं बीजेपी को ठीकठाक रिस्पांस मिला। अब अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो सवाल खड़े होंगे ही। जाहिर है, कुछ संसदीय सीटों के नतीजे मंत्रियों के भविष्य तय करेंगे। मंत्रिमंडल में अभी एक सीट खाली है। और 4 जून को बृजमोहन अग्रवाल के जीतने पर एक सीट और खाली हो जाएगी। अगर किसी और मंत्री के इलाके में लोकसभा चुनाव के परिणाम अच्छे नहीं आए तो फिर पार्टी परफारमेंस का रिव्यू करेगी ही। वैसे भी सियासी गलियारों में अटकलबाजी चल रही कि लोकसभा चुनाव के बाद दो-एक पुअर परफारमेंस वाले मंत्रियों को किनारे किया जा सकता है। हालांकि, इतनी जल्दी मंत्रिमंडल में सर्जरी होती नहीं, फिर भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के युग में कुछ भी संभव है।

इन तीन सीटों पर नजर

छत्तीसगढ़ की 11 में से नौ लोकसभा सीटें इस समय सत्ताधारी पार्टी के पास है। कांग्रेस के पास सिर्फ दो सीटें कोरबा और बस्तर है। देश और राज्य में जिस तरह का माहौल है और कांग्रेस चुनाव को लेकर जिस तरह डिफेंसिव है, उससे नहीं लगता कि बीजेपी की सीटें कम होंगी। अलबत्ता, बढ़ भी सकती है। फिर भी सूबे की तीन सीटों के नतीजों पर लोगों की निगाहें टिकी रहेंगी। पहला राजनांदगांव, दूसरा कोरबा और तीसरा कांकेर। राजनांदगांव से खुद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव मैदान में हैं। तीन महीने पहले तक भूपेश मुख्यमंत्री थे। जमीनी नेता भी हैं। उपर से बीजेपी ने संतोष पाण्डेय को रिपीट किया है। संतोष का भी कुछ-न-कुछ एंटी इंकाबेंसी होगा ही। कोरबा में ज्योत्सना महंत को कांग्रेस ने रिपीट किया है तो बीजेपी ने दुर्ग से सरोज पाण्डेय को कोरबा भेजा है। याने एक का एंटी इंकाबेंसी और दूसरा बाहरी। ऐसे में, मुकाबला दिलचस्प होगा। कांकेर में बीजेपी के भोजराम नाग के खिलाफ कांग्रेस ने बीरेन ठाकुर को उतारा है। बीरेन 2019 के लोकसभा चुनाव में पांचेक हजार के मामूली अंतर से हारे थे। ऐसे में इन तीनों सीटों पर लोगों की नजरें रहेंगी ही, सत्ताधारी पार्टी को भी इन सीटों पर एक्सट्रा वर्क करना होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि लोकसभा चुनाव के बाद ईओडब्लू बड़ी कार्रवाई करते हुए कुछ रसूखदार लोगों को तलब करने वाली है?

2. लोकसभा चुनाव के बाद परफारमेंस के आधार पर अगर दो-एक मंत्रियों का ड्रॉप किया गया, तो वे कौन होंगे?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

Read MoreRead Less

Next Story