तरकश, 27 अक्टूबर 2024
संजय के. दीक्षित
अफसरों की दिवाली खराब
छत्तीसगढ़ के 19 आईएएस अधिकारियों की दिवाली खराब हो गई। चुनाव आयोग ने उन्हें आब्जर्बर बना दिया है। पहली बार छत्तीसगढ़ की लिस्ट में महिला आईएएस के भी नाम हैं। विदित है, महाराष्ट्र और झारखंड में दो चरणों में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए सभी अधिकारियों को 28 अक्टूबर को संबंधित जिलों में रिपोटिंग करने कहा गया है।
इसके तीसरे दिन ही दिवाली है, सो उन्हें अब घर आने का मौका मिलेगा नहीं। लक्ष्मीपूजा के त्यौहार में ऐन समय अफसरों के बाहर रहने से क्या-क्या नुकसान होगा....उनकी पीड़ा को यहां कुरेदना ठीक नहीं। चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार को कम-से-कम दिवाली का खयाल तो करना था।
भरोसे की पिटाई
बलरामपुर बवाल का वीडियो देखकर छत्तीसगढ़ का आम आदमी हिल गया। बड़ा भयावह दृश्य था....छत्तीसगढ़िया, सबले बढ़ियां...कहे जाने वाले प्रदेश की महिलाओं ने पुलिस पार्टी पर हमला बोल दिया। थाने के सामने एक महिला बत्ती लगी पुलिस की गाड़ी के शीशे को पत्थर बरसा रही थी तो दूसरी महिला जूती निकालकर महिला एडिशनल एसपी की पिटाई करती दिखी।
वीडियो देख सरगुजा रेंज पुलिस, पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग के मुख्तारों को पता नहीं कैसा लगा....मगर अकल्पनीय हालात देख छत्तीसगढ़ का आम आदमी हतप्रभ है। भयभीत भी। दरअसल, पुलिस आम आदमी के भरोसे की प्रतीक होती है।
रसूखदार आदमी रसूख के बल पर और पैसे वाले पैसे के बल पर अपना काम करा लेता है। मगर समाज के 95 परसेंट लोग अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर पुलिस पर निर्भर होते हैं। इस 95 परसेंट पर जब भी कोई संकट आता है तो सीधे थाने दौड़ता है। मगर उसका विश्वास इस तरह जूती से पिटेगा तो घबराना वाजिब है।
हनुमानजी प्रसन्न नहीं!
छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा शपथ लेने के बाद पहली बार पुलिस मुख्यालय पहुंचे थे, तो उन्होंने वहां बजरंगबली की पूजा की थी, नारियल फोड़ने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ हुआ था। मगर पुलिस पर संकट देखकर लगता है, पूजा से हनुमानजी प्रसन्न नहीं हुए। वरना ऐसा थोड़े होता है...डंडे बरसाने वाली पुलिस पर ही डंडे बरस रहे...।
कवर्धा में गृह मंत्री के दो करीबी लोगों को हिंसा में जान गंवानी पड़ गई। एसपी, एडिशनल एसपी का लगातार निलंबन और छुट्टी की कार्रवाई भी प्रभावी नहीं हो पा रही। गृह विभाग को काशी के किसी अच्छे पंडित से अनुष्ठान करा पुलिस की ग्रह-दशा को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।
सवाल 73 विधानसभा सीटों का
बस्तर में नक्सल मोर्चे पर फोर्स को बड़ी कामयाबी मिल रही है। गृह विभाग और पुलिस महकमा इसके लिए सराहना का पात्र है। मगर बस्तर की सफलता मैदानी इलाकों में पुलिस की अ-क्षमता से धुल जा रही है। सिस्टम को यह भी ध्यान रखना होगा कि बस्तर में विधानसभा की केवल 17 सीटें हैं। 73 सीटें मैदानी इलाकों में हैं।
बिहार में लालू यादव और यूपी में मुलायम सिंह यादव के परिवार की सत्ता का अंत हुआ तो इसकी एक बड़ी वजह लॉ एंड आर्डर रही। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बदली तो उसके पीछे कानून-व्यवस्था भी एक कारण रहा। याद होगा, डेढ़ साल पहले रायपुर शहर में नशे में युवती ने एक युवक की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। इसलिए, पीएचक्यू को लॉ एंड आर्डर को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
सस्पेंशन या जूते
छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग के ध्वस्त होने के पीछे बड़ी वजह है पुलिस का लोकलाइजेशन। मध्यप्रदेश में आज भी सिपाहियों को गृह जिले में पोस्टिंग नहीं मिलती। मगर छत्तीसगढ़ में ये वर्जनाएं ऐसी टूटी कि अब नेताजी लोगों की कृपा से पुलिसकर्मियों को उनके गांव के नजदीकी थाने में पोस्टिंग मिल जा रही। कई जिलों की स्थिति ये हो गई है कि लोकल पुलिस का परसेंटेज 70 से 80 पहुंच गया है।
बलौदा बाजार की हिंसा में भी इसे महसूस किया गया, जब भीड़ को देखकर पुलिस मौके से गायब हो गई। असल में, वर्दी वालों से तिमारदारी कराना नेताओं को गर्व की अनुभूति कराता है और जाहिर है, पुलिस वाले नेताओं के जब लटर-पटर वाले काम करेंगे, तो उसकी कीमत भी वसूलेंगे ही।
सूबे में इससे सबसे बड़ा नुकसान पोलिसिंग का हुआ है। पुलिस का पूरा सिस्टम काम धाम छोड़ उगाही में जुट गया। दूसरी बड़ी वजह है...लॉ एंड आर्डर का अनुभव नहीं होना है। पुलिस में गिने-चुने अफसर भी नहीं हैं, जिन्हें विषम परिस्थितियों को संभालने का अनुभव हो। बलरामपुर बवाल में सबको पता था कि मृतक बंगलादेशी रिफ्यूजी परिवार से है। बंगाल और बंग्लादेश में प्रतिरोध का एक अलग तरीका होता है।
ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री डॉक्टरों से नहीं निबट पा रही तो बंग्लादेश में लोगों ने ऐसी लड़ाई लड़ी कि पीएम शेख हसीना को राजपाट छोड़ इंडिया भागना पड़ा। ऐसे में, सवाल उठता है...सरगुजा और बलरामपुर के पुलिस अधिकारियों ने अंडरस्टीमेट कैसे कर लिया। जो चूक सूरजपुर पुलिस ने की, उसी की पुनरावृत्ति बलरामपुर में भी हुई। बाहर से फोर्स बुलाकर अगर तुरंत तैनाती कर दी गई होती तो भीड़ को थाने में घुसने का मौका नहीं मिलता।
तीसरा, पुलिस को उग्र भीड़ से निबटने के लिए फ्री हैंड चाहिए। पुलिस के सामने दोहरा संकट है। बल प्रयोग किया तो सस्पेंड और बल प्रयोग नहीं तो बलरामपुर की तरह पीठ पर जूते खाओ। कवर्धा के लोहारीडीह कांड में अगर एसपी को हटाना ही था तो फिर एडिशनल एसपी को सस्पेंड करने का क्या तुक?
पुलिस को अगर टाईट करनी है तो आपको उसे संरक्षण भी देना होगा। छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग को अगर जिंदा रखनी है तो गृह और पुलिस महकमे को इस पर चिंतन करनी चाहिए।
कड़े और अलोकप्रिय फैसले
सरकार ने तेज-तर्रार नेता विजय शर्मा को गृह मंत्रालय की कमान सौंपी हैं तो उन्हें डिरेल्ड हो चुकी पोलिसिंग को पटरी पर लाने कुछ कड़े और अलोकप्रिय फैसले लेने पड़ेंगे। इसके लिए सबसे पहले पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करना होगा। ट्रांसफर, पोस्टिंग में कुछ साल नो सिफारिश। स्टेट लेवल पर भर्ती नहीं कर सकते तो जिला लेवल पर तो ना ही हो।
पुलिस की भर्ती रेंज स्तर हो और उसमें जिले का विकल्प न दिया जाए। याने संबंधित रेंज के किसी भी जिले में सिपाहियों की पोस्टिंग की जा सकती है। इससे खटराल सिपाहियों को अपराधियों से गठजोड़ टूटेगा। पहले पुलिस के इंफर्मर होते थे, आजकल अपराधियों के इंफर्मर पुलिस हो गई है। ऐसे में, पुलिस का भगवान मालिक है।
कप्तानी का रिकार्ड
आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईपीएस में कप्तानी का रिकार्ड बद्री नारायण मीणा और संतोष सिंह के नाम दर्ज है तो स्टेट सर्विस वाले आईपीएस में प्रशांत ठाकुर सबसे आगे हैं। प्रशांत जशपुर, जांजगीर, बेमेतरा, बलौदा बाजार, दुर्ग, धमतरी जिले के एसपी रह चुके हैं। सूरजपुर में हेड कांस्टेबल की पत्नी और बेटी की हत्या के बाद सरकार ने उन्हें वहां का एसपी अपाइंट किया है। सूरजपुर उनका सातवां जिला हुआ। बद्री और संतोष को छोड़ दें तो सात जिला किसी आरआर वाले आईपीएस ने भी नहीं किया होगा।
वीवीआईपी कलेक्टर
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने गृह जिले जशपुर के कलेक्टर के लिए रोहित व्यास को चुना है। सत्ता से नजदीकी दिखाने वाला जशपुर का एक बड़ा वर्ग कलेक्टर के रूप में जिपं के पूर्व सीईओ को देखना चाहता था। मगर सीएम ने रोहित का नाम ओके कर दिया।
दरअसल, कोरोना के समय बगीचा के एसडीएम रहे रोहित की वर्किंग को सीएम भलीभांति जानते थे। 2017 बैच के आईएएस रोहित के बारे में आम धारणा है कि वे अनावश्यक राजनीतिक प्रेशर में नहीं आते।
कलेक्टर से सीपीआर
छत्तीसगढ़ में यह दूसरा मौका है, जब सरकार ने कलेक्टर को जिले से बुलाकर सीपीआर याने जनसंपर्क प्रमुख बनाया है। इससे पहले 2014 में ओपी चौधरी को दंतेवाड़ा कलेक्टर से रायपुर बुलाकर डीपीआर बनाया गया था। बाद में ओपी यहीं से जांजगीर कलेक्टर बनकर गए और वहां से फिर रायपुर कलेक्टर बनें। उनके बाद जशपुर कलेक्टर डॉ0 रवि मित्तल को कलेक्टर से जनसंपर्क प्रमुख बनाया गया है।
हालांकि, राज्य बनने से पहले सुनिल कुमार रायपुर कलेक्टर से डीपीआर बने थे। उस समय अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। वे एक दिन के दौरे पर रायपुर आए थे। और लौटे तो दूसरे दिन सुनिल कुमार को डीपीआर बनाने का आदेश हो गया। बहरहाल, खास बात यह है कि जशपुर दौरे में सीएम ने तीन कलेक्टरों समेत 10 आईएएस अधिकारियों को बदलने के आदेश पर साइन किया तो कलेक्टर के रूप में रवि वहीं थे। सोशल मीडिया में आदेश वायरल होते ही रवि को बधाइयां मिलने लगी।
ऐसा ही कुछ 2016 में हुआ था...जब मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह ने मंच से ऐलान किया किया था कि आपके कलेक्टर मुकेश बंसल को मैं बड़ा काम कराने के लिए रायपुर ले जा रहा हूं...तो सभा स्थल पर मुकेश को बधाइयों का तांता लग गया था। बता दें, रवि मित्तल की सहायक कलेक्टर के रूप में पहली पोस्टिंग राजनांदगांव रही और मुकेश से ही उन्हें प्रशासन का प्रारंभिक गुरूज्ञान मिला।
दिलफेंक प्रोफेसर
राजधानी रायपुर के एक दिलफेंक प्रोफेसर की चर्चा इन दिनों बड़ी सरगर्म है। वे कपड़े की भांति अपना दिल बदलते हैं। उनके खिलंदरपन से परेशान होकर पत्नी ने संबंध विच्छेद कर लिया, इसके बाद भी प्रोफेसर साब का दिल समझने को तैयार नहीं हैं। अलबत्ता, सिक्सटी प्लस उम्र भी उनके हौसले पर कोई असर नहीं डाल पा रहा। रामविचार जी को देखना चाहिए, कहीं कुछ उंच-नीच हो गया तो खामोख्वाह बदनामी होगी।
अंत में दो सवाल आपसे
1. सांसद बृजमोहन के खासमखास सुनील सोनी को रायपुर दक्षिण से टिकिट मिलने के बाद कांग्रेस क्या दमखम के साथ चुनाव लड़ेगी?
2. राज्य मानवाधिकार आयोग में किस रिटायर अफसर की पोस्टिंग हो रही है?