Chhattisgarh Tarkash 2024: 15 % निकम्मे आईएएस!
Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय के. दीक्षित का निरंतर 15 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
तरकश, 12 मई 2024
संजय के. दीक्षित
15 परसेंट निकम्मे आईएएस!
मंत्रालय में हाजिरी लगाने के लिए जब से बायोमेट्रिक सिस्टम लगाने की कोशिशें शुरू हुई हैं, आईएएस अफसरों के हाथ-पांव फुल गए हैं। अफसरों की एक लॉबी प्रेशर बना रही कि किसी भी सूरत में बायोमेट्रिक वाला मामला पेंडिंग में चला जाए। इसीलिए, भांति-भांति के कुतर्क दिए जा रहे हैं...कोई आरटीआई में उनका अटेंडेंस निकाल लेगा तो हमारी फजीहत हो जाएगी...हमारे पास दो-दो, तीन-तीन प्रभार होते हैं...कभी इस आफिस में, कभी उस ऑफिस में जाना होता है तो हमारी हाजिरी कैसे लगेगी? उधर, चीफ सिकरेट्री ने रिव्यू कर जीएडी और सुशासन विभाग को गो कर दिया है। जाहिर है, चीफ सिकरेट्री जीएडी के हेड होते हैं। अफसरों को यही तकलीफ है कि सुनील कुमार जैसे तेज-तर्रार सीएस ने ऐसा कुछ नहीं किया तो अमिताभ जैन हमलोगों को क्यों फंसा रहे हैं। अलबत्ता, पूरे सिस्टम में 15 परसेंट ही ऐसे आईएएस हैं, जिनके न मंत्रालय आने का टाईम है और न जाने का। इनमें से कई 12 बजे के बाद ही मंत्रालय या इंद्रावती भवन पहुंचते हैं और तीन बजे के पहले घर पहुंचकर खाना खाकर सो जाते हैं। जिस दिन सीएस की कोई मीटिंग या फिर दिल्ली की कोई वीसी हुई तभी वे मंत्रालय में दिखेंगे वरना...। ये वे अफसर हैं, जो विधानसभा सत्र के दौरान न मंत्रालय में होते हैं और न विधानसभा में। पीए का रटारटाया जवाब मिलेगा, साब विधानसभा गए हैं। कोई काम बताइये तो टका-सा जवाब...मालूम नहीं, विधानसभा चल रहा है। जीएडी के एक अफसर ने बताया...इन 15 परसेंट शाही मिजाज वाले ब्यूरोक्रेट्स की देखादेखी 35 परसेंट अफसर और बिगड़ गए। बाकी करीब 50 परसेंट अफसर आज भी टाईम पर ऑफिस आते हैं और ईमानदारी से ड्यूटी निभाते हैं। बायोमेट्रिक उन 15 परसेंट निकम्मे अफसरों के लिए लगाया जा रहा है। वे ठीक हो जाएंगे, तो पूरा सिस्टम दुरूस्त हो जाएगा।
अफसरों से ज्यादती?
ब्यूरोक्रेसी में ही यह मानने वालों की कमी नहीं कि छत्तीसगढ़ के आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर नहीं जाना चाहते क्योंकि, दिल्ली में काम करना पड़ता है। आप उंगलियों पर गिन कर देख लीजिए, पुराने समयों में पांच आईएएस भी डेपुटेशन पर नहीं होते थे। दरअसल, दिल्ली में सिकरेट्री भी बायोमेट्रिक में अपना थंब लगाते हैं। जबकि, वे राज्यों के चीफ सिकरेट्री के समकक्ष़्ा होते हैं। वहां नौ बजे दफ्तर पहुंचने का टाईम है, लौटने का नहीं। जो अफसर अभी दिल्ली से लौटकर आए हैं, उनसे आप पूछ लीजिए वहां किस तरह काम होता है। कलेक्टर लेवल के अफसरों को गाड़ी शेयर करके ऑफिस आना पड़ता है। ज्वाइंट सिकरेट्री को एक गाड़ी मिलती है। मेम साहबों और बच्चों के लिए कोई व्हीकल नहीं। जबकि, छत्तीसगढ़ में किसी भी आईएएस के पास तीन से कम गाड़ी नहीं होती। अब सुनने में आ रहा कि बायोमेट्रिक सिस्टम लगाने के बाद जीएडी गाड़ियों की पड़ताल कराने वाली है...किसके पास कितनी गाड़ियां हैं। खजाने की स्थिति को लेकर वित्त महकमा भी चिंतित है। असल में, विभागीय पुल से अफसरों को एक ही गाड़ी मिलती है, उनके विभाग में बोर्ड और निगम होते हैं, उनसे 50 हजार से लेकर 75 हजार तक किराये पर वे गाड़ियां मंगवा लेते हैं। इसका बोझ आखिर जनता पर ही पड़ता है। मगर ये जीएडी की ज्यादती होगी...दिल्ली की बात अलग है। दो इंच जमीन से उपर रहने वाले नौकरशाहों से एक तो हाजिरी लगवाई जाएगी, और उपर से गाड़ियों की निगरानी, तो फिर क्या मतलब उनके आईएएस बनने का? आखिर कुछ ही लोग तो जनसेवा या कुछ कर गुजरने के लिए आईएएस बनते हैं, बाकी को आप देख ही रहे हैं...।
मंत्री होने का मतलब?
नेताजी लोग मंत्री आजकल जनसेवा के लिए लोग नहीं बनते। शपथ लेते ही एकमात्र ध्येय बन जाता है लूट-खसोट। 24 घंटे इसी गुनतारे में...कहां से कितना निकाल लें। अब देखिए न, पिछली सरकार के एक मंत्रीजी विभाग में लूटपाट मचाए ही जिस जिले का भी उन्हें प्रभारी मंत्री बनाया गया, उनके बेटे ने वहां डीएमएफ के सप्लाई का पूरा काम ले लिया था। इससे भी मन नहीं भरा तो मंत्रीजी ने अपने जिले में बंगलादेशी रिफ्यूजियों को सरकार से मिली जमीन को भी छल-कपट करके हड़प लिया। दरअसल, 1971 में सरकार ने जब जमीन दिया था, तब वह इलाका निर्जन था। मगर 50 साल में अब वो शहर के प्राइम लोकेशन पर आ गया है। कई बड़े बिल्डरों की नजरें उन जमीनों पर थी। मगर ऐसे काम की जगह पर पहला अधिकार मंत्रीजी का बनता था। सो, उन्होंने...। जबकि, बंगलादेश से आए लोगों को जीवन यापन के लिए इस शर्त पर जमीन दी गई थी कि सिर्फ गंभीर बीमारी के इलाज के केस में ही जमीन बेच सकते हैं। मगर मंत्रीजी के पास पावर था...उनके लोगों ने जोर-जबर्दस्ती कर डॉक्टरों से गंभीर बीमारी का पर्चा बनवाया। फिर आनन-फानन में कलेक्टरों से अनुमति दिलवा अपने रिश्तेदारों के नाम पर रजिस्ट्री करवा ली। चूकि बड़ा लैंड स्कैम था, इसलिए ईडी को शिकायत की गई। ईडी ने पिछले दिनों पूर्व मंत्री के यहां छापा मारा। छापे में काफी कुछ मिल भी गया है। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी ने पूर्व मंत्री को लोकसभा का टिकिट नहीं दिया। और बीजेपी इसी इंतजार में थी कि टिकिट दे कि जमीन घोटाला ओपन कर दिया जाए।
बीजेपी की वाशिंग मशीन
उपर में जिस पूर्व मंत्री के लैंड स्कैम का जिक्र किया गया है, वे जोगीजी के प्रिय रहे ही, पिछली सरकार में भी काफी प्रभावशाली रहे। मगर अब घपले-घोटाले में इस कदर घिर गए हैं कि उन्हें जेल जाने से बचने का एक ही रास्ता दिख रहा है बीजेपी प्रवेश। इसके लिए उनके करीबी लोगों ने कोशिशें भी शुरू कर दी है। बीजेपी के पास भी उस इलाके में कोई ढंग का नेता नहीं है। एक हैं तो उन्हें कोई पसंद नहीं करता। ऐसे में, बीजेपी को भी उस क्षेत्र में एक नेता की जरूरत है, जो जमीन पर रहे...महत्वाकांक्षी न हो। मगर दिक्कत यह है कि पूर्व मंत्री का बीजेपी प्रवेश हुआ तो छत्तीसगढ़ में भी वाशिंग मशीन से दाग धोने वाला आरोप मुखर हो जाएगा।
आईएएस की जांच
आचार संहिता के दौरान ट्रांसफर-पोस्टिंग के फेर में पड़े एक आईएएस की मुश्किलें बढ़ सकती है। सरकार के निर्देश पर स्पेशल सिकरेट्री चंदन कुमार ने जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक विवेचना में कई गंभीर तथ्य उजागर हुए हैं। ट्रांसफर में नियम-कायदों की धज्जियां उड़ा दी गई। देखना है, जांच रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।
निर्वाचन आयोग में पोस्टिंग-1
फर्स्ट वीक में आचार संहिता समाप्त होने के बाद सरकार को पहली पोस्टिंग राज्य निर्वाचन आयुक्त की करनी होगी। यह पद पिछले सात महीने से खाली है। कायदे से संवैधानिक पदों को खाली नहीं रखा जा सकता। उपर से तब, जब छत्तीसगढ़ में चार महीने बाद नगरीय निकायों के चुनाव होने हैं। रिटायर आईएएस ठाकुर राम सिंह आखिरी राज्य निर्वाचन आयुक्त थे। वे कार्यकाल का रिकार्ड बनाकर पिछले साल नवंबर में विदा हुए। उन्हें रमन सिंह की सरकार ने इस आयोग में ताजपोशी की थी। मगर आश्चर्यजनक तौर पर भूपेश बघेल सरकार ने छह साल का टेन्योर पूरा होने के बाद छह-छह महीने का तीन एक्सटेंशन दिया। चूकि नवबंर में विधानसभा चुनाव के आचार संहिता के दौरान उनका तीसरा छह महीने का एक्सटेंशन पूरा हुआ, इसलिए सरकार उनका कार्यकाल बढ़ा नहीं सकी। और तब से यह पद खाली है। इस साल नवंबर में सूबे में नगरीय सरकार का चुनाव है। सितंबर से चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इससे पहले मतदाता सूची तैयार किया जाएगा। लोकल चुनाव में सबसे बड़ा टास्क मतदाता सूची को फायनल करना होता है। सबसे अधिक इसी में खेला होता है, सारे नेता चाहते हैं अपने वार्डों में बाहरी लोगों का नाम जुड़वा दें, जिससे उनकी जीत सुनिश्चित हो जाए। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को इसके लिए कुछ करना चाहिए, ताकि शीघ्र इस पद पर नियुक्ति हो जाए। वरना, जितनी देरी होगी, मुश्किलें उतनी बढ़ेंगी।
निर्वाचन आयोग में पोस्टिंग-2
राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद वैसे तो मुख्य सचिव रैंक का है। अधिकांश राज्यों में रिटायर चीफ सिकरेट्री को इस पद पर बिठाया जाता है। आईएएस अधिकारियों को स्टेट इलेक्शन कमिश्नर बनाने का मतलब यह होता है कि जिलों में कलेक्टर पोस्टिंग के दौरान उन्हें चुनाव कराने का अनुभव होता है। इसलिए, समझा जाता है कि नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव कराने में उन्हें दिक्कत नहीं जाएगी। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में सिर्फ एक बार रिटायर चीफ सिकरेट्री शिवराज सिंह राज्य निर्वाचन आयुक्त रहे हैं। वरना, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर से रिटायर आईएएस ही इस पद पर बिठाए गए। सबसे पहले डॉ0 सुशील त्रिवेदी, उनके बाद पीसी दलेई और फिर ठाकुर राम सिंह। इस समय सरकार को दिक्कत जाएगी कि इस समय कोई ब्यूरोक्रेट्स रिटायर नहीं है। हालांकि, पीसी दलेई ने रिटायरमेंट से छह महीने पहले वीआरएस लेकर इस पद पर अपनी पोस्टिंग करा ली थी। अब देखना है कि आगे रिटायर होने वाले कोई अफसर वीआरएस लेता है या फिर पहले रिटायर किसी अफसर को यह जिम्मेदारी मिलती है।
जीत का रिकार्ड
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में किसको कितनी सीट मिलेगी, इसको लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। मगर एक दावा दिलचस्प है...वह है छत्तीसगढ़ से जीत का रिकार्ड बनने का। रायपुर लोकसभा से बीजेपी के बृजमोहन अग्रवाल सबसे बड़ी लीड अगर ना भी मिले तो भी टॉप फाइव में रहने की अत्यधिक संभावना है। इस दावे में दम इसलिए प्रतीत हो रहा कि बृजमोहन जीत के लिए चुनाव नहीं लड़े। शुरू से ही उन्होंने लीड पर टारगेट किया। उनके समर्थकों का कहना है कि भैया का जादू कांग्रेसी इलाकों में भी इस बार दिखेगा। क्योंकि, कांग्रेस के भीतर भी मोहन भैया का अच्छा प्रभाव है। फिर टिकिट मिलते ही माउथ पब्लिसिटी चालू हो गई थी, भैया रिकार्ड मतों से जीतेंगे। फिर, सिर्फ रायपुर दक्षिण ही नहीं, पूरे रायपुर में उनका प्रभाव है। जिनको वे मदद किए हैं या शादी-समारोहों, गमी में शरीक हुए हैं, उनके विधानसभा सीट से बाहर भी ऐसे लोगों की तादात काफी है। सो, ऐसे लोग बृजमोहन के लिए कार्यकर्ता से भी बढ़कर काम किए हैं। बृजमोहन के समर्थकों का कहना है, रायपुर संसदीय सीट पर करीब 17 लाख वोटिंग हुई है...मोहन भैया करीब सात लाख लीड से जीतेंगे। चलिए, चार जून को पता चलेगा कि रायपुर से बृजमोहन क्या वाकई जीत का रिकार्ड बनाएंगे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट 9/2 रहेगा या 11/0?
2. इन चर्चाओं में कितनी सत्यता है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद चार नए मंत्री शपथ लेंगे?