Chhattisgarh Tarkash 2016: ओपी चौधरी...पंगा नहीं, व्यापारियों की सरकार है, सबसे लंबे समय तक कलेक्टर कौन? आईएएस को बचाने दो प्रदेश के सीएम जुटे
Chhattisgarh Tarkash 2016: Old is Gold...वास्तव में पुरानी चीजें कई बार अच्छी लगती है। खासकर, ब्यूरोक्रेसी और सियासत की चटपटी खबरें तो और भी। फेसबुक के मेमोरी में आज 18 अप्रैल 2016 का तरकश दिखा। इसे फिर से रिपोस्ट किया जा रहा है। पढ़ियेगा आपको अच्छा लगेगा।
तरकश, 18 अप्रैल 2016
संजय के. दीक्षित
सीआईसी के लिए जस्टिस
छत्तीसगढ़ के मुख्य सूचना आयुक्त के लिए एक और नाम प्रमुखता से उभरा है। शख्सियत हैं न्यायपालिका से। चूकि, सीआईसी का पोस्ट सुप्रीम कोर्ट केजस्टिस के समतुल्य है। रिटायरमेंट के बाद भी ड्राईवर या चपरासी की सुविधा ताउम्र मिलती है। बेसिक भी चीफ सिकरेट्री से अधिक है। 90 हजार। सीएस का बेसिक है, 80 हजार। लाल बत्ती। नौकर, चाकर, गाड़ी, बंगला, सब कुछ। उपर से पांच साल की पोस्टिंग। इसलिए, सीआईसी का अपना चार्म है। ज्यूडीशरी से जुड़े व्यक्ति का नाम आने के बाद 82 बैच के आईएएस डीएस मिश्रा की राह कठिन लग रही है। उन्हें सीआईसी का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। वैसे भी, अभी तक दोनों सीआईसी सीएस या एसीएस लेवल से रिटायर नौकरशाह रहे हैं। सो, डीएस की स्थिति मजबूत थी। लेकिन, अब ऐसा नहीं है। डीएस के रिटायरमेंट में अब 13 दिन बच गए हैं। 30 अप्रैल को वे रिटायर होंगे। इसके बाद ही उनकी स्थिति साफ हो पाएगी।
जरा धीरे...ओपी
रायपुर की कमान संभालते ही कलेक्टर ओपी चौधरी ने धमाल मचा दिया है। हफ्ते भर में इतने मोर्चे! रजिस्ट्री आफिस में आग लगी तो जिला रजिस्ट्रार को नोटिस। स्कूल वालों को बुलाकर बसों में महिला अटेंडर की अनिवार्यता समेत ढेर सारे निर्देश। व्यापारियों को सात दिन के भीतर डुमरतराई जाने का अल्टीमेटम। ओपी, आखिर ये क्या कर रहे हो। ये रायपुर है। दंतेवाड़ा और जांजगीर नहीं। रायपुर भले ही राजधानी है। यहां पूरी सरकार बैठती है। मगर चलती भइया लोग की है। आपको जानकारी होनी चाहिए, भइया लोगों को असुविधा ना हो इसलिए, सरकार ने अमरेश मिश्रा को रायपुर एसपी बनाने का इरादा ऐन वक्त पर बदल दिया था। आरपी मंडल नाक रगड़ कर रह गए, फाफाडीह से स्टेशन चौक तक 500 मीटर रोड चौड़ीकरण नहीं करा पाए। जाम के चलते कइयों की रोज ट्रेन छूट जाती है। रायपुर के दोनों भइया व्यापारी परिवार से ही ताल्लुकात रखते हैं। सरकार भी व्यापारियों की। ऐसे में ओपी, व्यापारियों से पंगा क्यों। 12 साल पहले आरपी मंडल एक कलेक्टर होते थे। कई नई सड़कें बनवाई। मगर बीजेपी के एक टूटपूंजिये नेता ने उनका विकेट ले लिया। सुबोध सिंह रायपुर में बढ़ियां काम कर रहे थे। सिटी ट्रांसपोर्ट उन्हीं ने चालू कराया। लेकिन, उन्हें एक दिन अचानक सीएम सचिवालय पोस्ट कर दिया गया, तो इसका कारण वे भी नहीं समझ पाए। ओपी, आप माटी पुत्र हो। बाकी माटी पुत्रों की तरह आप भी माटी में दिल लगाओ। राजधानी और राजधानी के आसपास बहुत माटी है। जरा सा दिमाग लगाओगे, साल भर में 25-50 प्लाट के मालिक तो तय मानों। दो-चार फार्म हाउसेज भी हो जाएंगे। आप भी खुश। धनपशुएं भी खुश।
जबर्दस्त मैनेजमेंट
मध्यप्रदेश के एसीएस आरएस जुलानिया को गिरफ्तारी से बचाने के लिए दोनों सरकारों ने अद्भूत मैनेजमेंट किया। बताते हैं, शिवराज सिंह ने यहां फोन खटखटाया। उसके बाद यहां का सिस्टम भी हरकत में आया। जुलानिया के आईएएस मित्रों भी आगे आए। मैनेजमेंट का असर ऐसा हुआ कि फरियादी ही पीछे हो गया। जुलानिया के खिलाफ अविभाजित मध्यप्रदेश में जब वे कोरिया में अपर कलेक्टर थे, जब्ती की गई निजी जीप का यूज करने का आरोप था। कोर्ट ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी का समंस जारी किया था। पूरी सेटिंग्स के बाद जुलानिया कोरिया पहुंचे। वहां उन्हें जमानत मिल गई।
अब डांगी भी
आईपीएस रतनलाल डांगी ने भी अब डेपुटेशन पर दिल्ली जाने का मन बना लिया है। उन्होंने सरकार से इसकी अनुमति मांगी है। राजेश मिश्रा और ध्रुव गुप्ता ने भी डेपुटेशन के लिए अप्लाई किया हुआ है। अंकित गर्ग हाल ही में दिल्ली गए हैं। कवर्धा एसपी राहुल भगत भी केद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय के पीएस बन गए हैं। पीएचक्यू को पता लगाना चाहिए कि उनके अफसर दिल्ली की राह क्यों पकड़ रहे हैं।
IPL में PIL का पेंच
रायपुर में होने वाले आईपीएल में हाईकोर्ट का पेंच आ गया है। हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई गई थी कि सरकार सुरक्षा का खर्चा लिए बगैर स्टेडियम से लेकर खिलाड़ियों को सिक्यूरिटी मुहैया करा रही है। बाकी राज्यों में आईपीएल वाले पुलिस को तीन करोड़ रुपए पे करते हैं। पिछले साल छत्तीसगढ़ पुलिस ने भी आयोजकों से तीन करोड़ मांगा था। पर पुलिस की आवाज नक्कारखाने में दब गई थी। मगर अब, पीआईएल की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने खेल विभाग को नोटिस जारी कर दिया है। तो जाहिर है, मामला अब उछलेगा।
जय बोलो गडकरी की
यूपीए गवर्नमेंट में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री रहने के दौरान कमलनाथ ने अपने गृह राज्य मध्यप्रदेश को उपकृत करने मे कोई कमी नहीं की। रिमोट इलाके में भी सड़कों का जाल बिछा दिया। लेकिन, छत्तीसगढ़ के साथ हमेशा दोहरा व्यवहार ही हुआ। नीतिन गडकरी ने अब इसकी भरपाई कर दी है। बल्कि, यूं कहें कि छत्तीसगढ़ पर अपना प्रेम उड़ेल दिया है। गडकरी ने छत्तीसगढ़ के लिए 54 हजार करोड़ का बजट दिया है। जबकि, अपने से तीन गुना बड़ा मध्यप्रदेश के लिए 50 हजार करोड़। बम्पर बजट का ही तकाजा है कि राज्य सरकार ने अगले तीन साल में सड़क को टाप प्रायरिटी में रखा है। बार-बार सूबे में सड़कों का जाल बिछाने की बात दोहराई जा रही है। बस्तर से सरगुजा तक 40 हजार करोड़ की सड़कों का रोडमैप बनाने का काम भी शुरू हो गया है। बहरहाल, बजट को देखकर पीडब्लूडी से जुड़े नेताओं और अफसरों की नींद उड़ गई है। पूरे सर्विस में इतना नहीं बनाए होंगे पीडब्लूडी के अधिकारी, जितना अगले पांच साल में हो जाएगा। चलो सब मिलकर, जय बोलो गडकरी की।
पहले मंडल, फिर ठाकुर
10 अप्रैल के तरकश में रिकार्ड कलेक्टरी में ठाकुर राम सिंह का जिक्र हुआ था। इसमें आंशिक चूक हुई थी। सिर्फ छत्तीसगढ़ की बात करें तो ठाकुर राम सिंह जरूर पहले नम्बर पर रहे। उन्होंने नौ साल कलेक्टरी की। मगर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की बात करें तो अजीत जोगी के बाद सर्वाधिक समय तक कलेक्टरी का रिकार्ड आरपी मंडल के नाम दर्ज है। मंडल ने नौ साल नौ महीने कलेक्टरी की। खंडवा और दमोह में सबसे अधिक साढ़े छह साल। बिलासपुर में ढाई साल। और, आखिर में जोगी का लेवल लगे होने के बाद भी राजधानी की कलेक्टरी करने में कामयाब रहे।
कमिश्नर भी होंगे चेंज
कलेक्टरों के साथ रायपुर, बिलासपुर समेत कुछ नगर निगमों के कमिश्नर भी चेंज हो सकते हैं। बिलासपुर कमिश्नर मातृत्व अवकाश पर जाने वाली है। सो, वहां तो वैसे भी नया कमिश्नर अपाइंट करना होगा। रायपुर वाले से सरकार बहुत प्रसन्न नहीं है।
अब बात कांग्रेस की
रायपुर में हुई कांग्रेस की प्रदेश स्तरीय बैठक में आज खूब किचकिच हुई३सुझाव आये नहीं३लेकिन एक-दूसरे की शिकायतें जमकर हुई। पदाधिकारियों को कार्यकर्ताओं से३ कार्यकर्ताओं को विधायक से३.और कोषाध्यक्ष को जिलाध्यक्षों से ३सबको सबसे शिकायत३.बिलासपुर के जिलाध्यक्ष राजेंद्र शुक्ला ने तो अपने क्षेत्र के विधायकों की सबके सामने ही पोल पट्टी खोल दी। शुक्ला ने कहा बिलासपुर जिले के हमारे विधायक आजकल खुद को संगठन से ज्यादा बड़ा समझने लगे हैं३ ना तो वो कार्यक्रम में आते हैं३और ना ही सहयोग करते हैं३.ये तो छोड़िये, मुलाकात तक नहीं होती विधायक से३ मैं भी कभी विधायक बनूंगा३३लेकिन इसका मतलब क्या खुद को हम संगठन से बड़ा समझने लेगेंगे। सियाराम कौशिक का तो नाम लेकर राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि बिल्हा से सियाराम नहीं कांग्रेस जीती है३वो तो कभी भी संगठन के काम में शामिल ही नहीं होते। खिच्चम-खिंचाई का ये दौर चल ही रहा था कि कि माइक प्रदेश कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल ने थाम लिया। रामगोपाल ने प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के सामने ही विधायकों और जिला संगठनों की शिकायत शुरू कर दी। रामगोपाल अग्रवाल ने कहा कि ३.सभी जिला संगठन पैसे के नाम पर कन्नी काट रहे हैं३..कुछ विधायक तो ऐसे हैं.. जिन्होंने पांच-पांच साल से पार्टी फंड में पैसा ही नहीं जमा कराया३..राहुल गांधी भी बार-बार पूछते हैं प्रदेश कार्यालय बनाने का काम कहां तक पहुंचा३और आपलोग पैसा ही नहीं दे रहे तो कैसे बनेगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. रामप्रताप सिंह ने आनन-फानन में चेयरमैन मेडिसिनल प्लांट का पदभार ग्रहण क्यों किया?
2. अगले फेरबदल में श्रुति सिंह और संगीता पी को कलेक्टर बनने का मौका मिलेगा?