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Road accidents in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में सड़क हादसों की बढ़ती संख्या,क्या हैं इसके कारण? अब तक के आकड़ों पर डालें एक नजर...

छत्तीसगढ़ में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं की समस्या एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, लगातार सड़क दुर्घटनाओं में लोगों की जानें जा रहिह हैं। इस लेख में 2024 में हुए हादसों, सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और हाईकोर्ट की भूमिका को समझाया गया है। जानें सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए उठाए गए प्रयास, ब्लैक स्पॉट पर किए गए सुधार और हादसों को रोकने के उपाय।

Road accidents in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में सड़क हादसों की बढ़ती संख्या,क्या हैं इसके कारण?
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By Harrison Masih
Road accidents in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में सड़क हादसे लगातार बढ़ते जा रहे हैं और यह अब एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है। तेज रफ्तार, सड़क की खराब स्थिति, लापरवाही और यातायात नियमों की अनदेखी इसके मुख्य कारण बताए जाते हैं। सरकार और हाईकोर्ट दोनों इस पर चिंता जता चुके हैं, लेकिन हालात में अभी भी संतोषजनक सुधार नहीं दिख रहा है।

हर साल बढ़ते हादसे और मौतें
पिछले पाँच सालों के आंकड़े देखें तो तस्वीर चौंकाने वाली है। 2020 में जहाँ 11,656 हादसे हुए थे, वहीं 2024 तक यह आंकड़ा बढ़कर 14,853 तक पहुँच गया। मौतों की संख्या भी इसी दौरान 4,606 से बढ़कर 6,944 तक पहुँच गई। यानी छत्तीसगढ़ में सड़क पर निकलना हर साल और खतरनाक होता जा रहा है।
सिर्फ हादसे ही नहीं, घायलों की संख्या भी चिंताजनक है। 2024 में 12,573 लोग घायल हुए। 2023 में यह आंकड़ा 11,723 था। इसका मतलब है कि दुर्घटनाएँ न सिर्फ जान ले रही हैं बल्कि हजारों लोग स्थायी रूप से अपंग भी हो रहे हैं।

बड़े शहरों में हालात और गंभीर
राजधानी रायपुर जैसे बड़े शहर हादसों के मामले में सबसे आगे हैं। 2024 में रायपुर में 2,069 हादसों में 595 लोगों की जान गई। रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर और सरगुजा जैसे शहरों में भी हादसों का ग्राफ लगातार बढ़ा है। कोरबा में 380 मौतें, रायगढ़ में 379, बिलासपुर में 359 और सरगुजा में 352 मौतें दर्ज की गईं। यानी यह समस्या सिर्फ हाइवे तक सीमित नहीं है, बल्कि शहरों और कस्बों में भी लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।

ग्रामीण इलाकों में और खतरनाक हालात
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो और भी चिंताजनक है। यहां मालवाहक वाहन ही सवारी वाहन बन जाते हैं और लोग मजबूरी में इन पर सफर करते हैं। 2024 में कवर्धा जिले में ऐसा ही एक हादसा हुआ जिसमें 19 बैगा आदिवासियों की जान चली गई। यह उदाहरण बताता है कि सामूहिक परिवहन व्यवस्था के अभाव में ग्रामीण लोग किस तरह जान जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर हैं।



बिलासपुर हाईकोर्ट का सख्त रुख

सड़क सुरक्षा पर सरकार की ढीली कार्यप्रणाली को देखते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट ने कई बार स्वतः संज्ञान लिया है। अदालत ने खराब सड़कों, ब्लैक स्पॉट, और सड़कों पर घूमते मवेशियों जैसी समस्याओं पर सवाल उठाए हैं। जुलाई 2025 में चीफ जस्टिस रमेश सिंह ने एक बार फिर इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए सरकार से जवाब मांगा। हाईकोर्ट पहले भी पुलिस और प्रशासन को यह निर्देश दे चुका है कि सड़कों पर से मवेशियों को हटाया जाए और ब्लैक स्पॉट सुधार पर तेजी से काम हो। लेकिन हकीकत यह है कि हालात में बड़ा बदलाव नहीं आया है।

सरकार के प्रयास और एक्शन प्लान
छत्तीसगढ़ सरकार ने सड़क सुरक्षा के लिए एक्शन प्लान बनाया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने हाल ही में हुई राज्य सड़क सुरक्षा परिषद की बैठक में स्पष्ट कहा कि सड़क हादसों में कमी लाना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
एक्शन प्लान के तहत कई कदम उठाए जा रहे हैं:
स्कूलों में यातायात शिक्षा: कक्षा 1 से 10 तक के पाठ्यक्रम में यातायात नियमों को शामिल किया गया है ताकि बचपन से ही सड़क सुरक्षा की आदत विकसित हो।
इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस:
रायपुर, बिलासपुर और नया रायपुर में आधुनिक निगरानी प्रणाली लगाई गई है।
ब्लैक स्पॉट सुधार: सितंबर 2023 से अक्टूबर 2024 के बीच 101 ब्लैक स्पॉट और 748 जंक्शन पर सुधार का काम किया गया है।
सरकार का दावा है कि इन कदमों से धीरे-धीरे हादसों में कमी आएगी।

विकास और सुरक्षा में संतुलन की चुनौती
पिछले दो दशकों में छत्तीसगढ़ की सड़कें जरूर बेहतर हुई हैं, गाड़ियाँ और परिवहन व्यवस्था भी बढ़ी है। लेकिन सड़क सुरक्षा उतनी मजबूत नहीं हो सकी। यही वजह है कि 2000 के बाद से हादसे और मौतें दोगुनी हो गई हैं। दरअसल, विकास की रफ्तार के साथ यातायात प्रबंधन की तैयारी कमजोर रही। सड़कें बनीं लेकिन पैदल यात्रियों, दोपहिया चालकों और ग्रामीण यात्रियों की सुरक्षा के लिए जरूरी इंतज़ाम नहीं हो पाए।

सवाल उठाता है हर हादसा
हर बड़ा हादसा सिर्फ आंकड़ा नहीं होता, बल्कि एक परिवार का जीवन बर्बाद कर देता है। रायपुर, कोरबा, सरगुजा और कवर्धा जैसे हादसों ने यह साफ कर दिया है कि सड़क सुरक्षा सिर्फ सरकारी योजना या कोर्ट की टिप्पणी से संभव नहीं है। इसके लिए समाज और सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा। वाहन चालकों की लापरवाही, ओवरलोडेड वाहन, शराब पीकर गाड़ी चलाना, और पैदल यात्रियों की सुरक्षा के प्रति उदासीनता – ये सभी मुद्दे मिलकर सड़क हादसों को बढ़ावा देते हैं।
छत्तीसगढ़ में सड़क हादसे अब सिर्फ यातायात समस्या नहीं रह गए हैं, बल्कि यह जीवन और सुरक्षा से जुड़ा बड़ा सवाल बन चुके हैं। सरकार ने कदम उठाए हैं लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। सवाल यही है कि क्या विकास की तेज़ रफ्तार के साथ सड़क सुरक्षा को भी प्राथमिकता मिलेगी? और क्या आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ अपने लोगों को सुरक्षित यात्रा का भरोसा दे पाएगा?
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