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छत्तीसगढ़ के वीर शहीद विनोद चौबे की आज पुण्यतिथि, जवानों को बचाने एंबुश में घुस कर नक्सलियों से लड़ने वाले शहीद आईपीएस की रोंगटे खड़े कर देने वाली शौर्य गाथा स्कूली किताबों में क्यों नहीं?

आमतौर पर नक्सली मोर्चे पर कोई एसपी नहीं जाता। मगर विनोद चौबे न केवल फ्रंट पर गए बल्कि एंबुश में घुसकर एक यात्री बस को बचाया। उनके ड्राईवर को गोली लग गई। ड्राईवर को पिछली सीट पर सुला कर गाड़ी चलाते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया। विनोद चौबे को खतरे का अंदाजा था... मगर एंबुश मे फंसे जवानों को छोडना उन्हें गवारा नहीं हुआ।़ अपनी जान की परवाह न करते हुए वे फिर मोर्चे पर पहुंच गए। उनके जवाबी प्रहार से नक्सली लगे जंगलों में पीछे हटने लगे। लेकिन, इसी बीच एक गोली विनोद चौबे को लगी और वे बहादुरी की दास्तां लिख वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसे वीर शहीद को शत-शत नमन!

छत्तीसगढ़ के वीर शहीद विनोद चौबे की आज पुण्यतिथि, जवानों को बचाने एंबुश में घुस कर नक्सलियों से लड़ने वाले शहीद आईपीएस की रोंगटे खड़े कर देने वाली शौर्य गाथा स्कूली किताबों में क्यों नहीं?
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By NPG News

रायपुर। छत्तीसगढ़ के वीर सपूत स्व0 विनोद चौबे की आज तेरहवीं पुण्यतिथि है। वे प्रदेश के इकलौते आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्होंने कर्तव्य की वेदी पर अपना बलिदान दिया है। 12 जुलाई 2009 को नक्सलियों से हुई एक भीषण मुठभेड़ मे पुलिस अधीक्षक राजनांदगावं श्री चौबे समेत 29 पुलिसकर्मी को वीरगति को प्राप्त हुए थे। हालांकि, इस मुठभेड़ में श्री चौबे के अदम्य साहस को देखते हुए भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा श्री चौबे को परम वीर चक्र के बाद भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'कीर्ति चक्र' से मरणोपरांत नवाज़ा गया था। वह कीर्ति चक्र से नवाजे जाने वाले प्रदेश के एक मात्र अधिकारी हैं। मगर छत्तीसगढ़ में उन्हें मरणोपरांत वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे।

स्व0 चौबे की एकमात्र प्रतिमा बिलासपुर में स्थापित की गई है। मुख्यमंत्री बनते ही भूपेश बघेल ने इसके लिए 50 लाख रुपए स्वीकृत किया था। इसके अलावा रायपुर में कुछ नही। उनके अदम्य साहस और वीरता के बारे में लोग जाने, इसके लिए स्थायी तौर पर कुछ नहीं किया गया। स्कूल के पाठ्यक्रम में विनादे चौबे की शौर्य गाथा का वर्णन होना चाहिए था। ताकि, सूबे के नौनिहालों को पता चले कि छत्तीसगढ़ में विनोद चौबे जैसे शहीद पैदा हुए।

ऐसे हुई घटना

पुलिस अधीक्षक राजनांदगांव, को सूचना प्राप्त हुई की नक्सलियों ने मदनवाडा पुलिस कैम्प में दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी है। सूचना मिलते ही श्री चौबे ज़िला मुख्यालय से तत्काल फ़ोर्स की सहायता करने निकल पड़े। उन्होंने मानपुर थाना पहुँच कर थाने में उपलब्ध जवानों को तत्काल घटना स्थल की ओर कूच करने का आदेश दिया एवं वे स्वयं अपने दो अंगरक्षकों के साथ पहले ही घटनास्थल की ओर निकल पड़े। रास्ते में घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने उनकी गाड़ी पर फ़ायरिंग शुरू कर दी जिसमें श्री चौबे के ड्राइवर को गोली लगने से घायल हो गए। इसे देखते ही श्री चौबे ने जवाबी हमला करते हुए स्वयं अपनी गाड़ी को ऐम्बुश से बाहर निकाला और अपने ड्राइवर को सुरक्षित स्थान पर ले गए। इसी बीच उन्होंने रास्ते में एक यात्री बस को ऐम्बुश के बीच फँसे देखा। श्री चौबे चाहते तो सी.आर.पी.एफ के आते तक सुरक्षित स्थान पर रह सकते थे परंतु आम नागरिकों को गोलबारी के बीच फँसा देखकर वह दोबारा ऐम्बुश को चीरते हुए यात्री बस तक पहुँचे और यात्री बस को सकुशल ऐम्बुश से बाहर निकाला। इसी बीच मानपुर थाने से निकली पुलिस की मोटरसाइकल पार्टी नक्सलियों से घिर गयी थी। यात्री बस को बचाते समय श्री चौबे की नज़र रोड के किनारे पड़ी पुलिस मोटरसाइकल पर पड़ी तथा वह समझ गए थे कि उनके साथी जंगल में भीषण गोलाबारी के मध्य फँसे हैं।

यात्री बस को रेस्क्यू करने के बाद श्री चौबे ने इसकी सूचना पुलिस मुख्यालय एवं सी.आर.पी.एफ को दी परंतु बारिश एवं गोलाबारी के कारण अतिरिक्त फ़ोर्स के आने में समय लगने की संभावना थी। अपने साथियों की जान के ख़तरे को देखते हुए श्री चौबे ने फ़ोर्स की प्रतीक्षा न करते हुए पुनः ऐम्बुश में घुसकर नक्सलियों को पीछे धकेला। इसी बीच नक्सलियों द्वारा एक लैंडमाइन ब्लास्ट कर अचानक फ़ायरिंग शुरू कर दी गयी जिसमें श्री चौबे को भी गोली लग गयी एवं वह वीरगति को प्राप्त हो गए।

नक्सलियों के लिए काल थे विनोद

शहीद होने के पूर्व श्री विनोद चौबे ने नक्सलियों के शहरी नेट्वर्क को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था एवं उनके द्वारा बड़ी संख्या में नक्सलियों के शीर्ष नेतृत्व को सुनियोजित रूप से गिरफ़्तार कर उन्हें सलाखों के पीछे भेजा था। एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में नक्सल प्रवक्ता ने स्वीकारा था कि श्री चौबे द्वारा नक्सल शहरी नेट्वर्क के विरुद्ध की गयी कार्यवाही के कारण वह नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे एवं इसी कारण उन्हें इस मुठभेड़ में घेरने की रणनीति बनाई गयी थी।

श्री चौबे के ऊपर पूर्व में भी नक्सलियों ने हमले किए थे परंतु हर बार वह बच निकले। वर्ष 2003 में एक नक्सल मुठभेड़ में उन्हें पैर में गोली लगी थी। उसके बाद वर्ष 2008 में उनके क़ाफ़िले को लैंडमाइन से उड़ाने का प्रयास किया गया था परंतु श्री चौबे के अनुभव और साहस के कारण वह हर बार अपने साथियों और स्वयं को बचाने में कामयाब रहे थे। उन्हें भारत के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा राष्ट्रपति पुलिस पदक से भी सम्मानित किया गया था।

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