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ब्यूरोक्रेट्स या गोलकीपर

ब्यूरोक्रेट्स या गोलकीपर
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By NPG News

संजय के. दीक्षित
तरकश, 24 मई 2020
कोई भी सरकार योजना बनाती है, उसके क्रियान्वयन का दायित्व ब्यूरोक्रेसी पर होता है। लेकिन, अगर ब्यूरोक्रेट्स ही डिफेंसिव होकर अपना गोल बचाने लग जाए, तो योजनाओं को धरातल पर उतारने में दिक्कत तो होगी न! छत्तीसगढ़ में दिक्कत यही है कि सीएम तो ट्वेंटी-20 स्टाईल में खेल रहे हैं लेकिन, नौकरशाही में फारवर्ड खेलने वाले अफसर पांच नहीं पुर रहे। जाहिर है, फुटबॉल टीम में पांच फारवर्ड प्लेयर होते हैं…वही आक्रमकता के साथ गोल दागने का काम करते हैं। मंत्रालय में यही चीज नहीं हो रही। पांच क्या…फारवर्ड खेलने वालों में दो-तीन के बाद नाम नहीं सूझेंगे। इसमें एक ब्यूरोक्रेट्स की टिप्पणी गौर करने वाली है…सभी गोलकीपर हो गए हैं। दरअसल, एक तो यहां अफसरों का टोटा है। उपर से कई अफसर पिछले दो-तीन साल में डेपुटेशन पर चले गए हैं। और, जो बचे हैं, उनमें से ज्यादतर गोल बचा रहे हैं।

सिकरेट्री भी बदलेंगे?

गोल बचाने के चक्कर में अपना पारफारमेंस पुअर करने वाले सिकरेट्री भी सरकार की नजर में हैं। सीएम को भी अब डेढ़ साल हो गया है। अफसरों को पहचानने के लिए ये काफी होता है। सीएम के करीबी लोगों का कहना है, साब के पास एक-एक अफसर का रिपोर्ट कार्ड है। उन्हें पता है कि कौन रिजल्ट देने वाला है और कौन पोस्टिंग के लिए बिछने वाला। ऐसे में, कलेक्टरों की लिस्ट के साथ कुछ सिकरेट्री के विभाग भी बदल जाए, तो अचरज नहीं।

मंत्री की भृकुटी!

सूबे के उद्योग और आबकारी मंत्री कवासी लकमा लगते भले ही हैं सहज और सीधे-साधे। मगर उनकी भृकुटी जिस अफसर पर तन जाती है तो उस अफसर की शामत आ जाती है। सुकमा के एसपी जीतेंद्र शुक्ला ने कवासी से पंगा लिया, उनकी वहां से छुट्टी हो गई। इस बार बस्तर का एक तहसीलदार उनके गुस्से का शिकार हो गया। मंत्री को तहसीलदार के खिलाफ कुछ शिकायतें मिली थीं। उन्होंने बस्तर कमिश्नर को हड़काया, अफसर को हटाओ नहीं तो सीएम को फोन कर दूंगा। सीएम के नाम पर कमिश्नर इतना हड़बड़ा गए कि हटाने के साथ तहसीलदार को सस्पेंड भी कर दिया। जाहिर है, कवासी का औरा देखकर रमन सरकार में मंत्री रहे रामविचार नेताम, केदार कश्यप, महेश गागड़ा और रामसेवक पैकरा को ये बात खटक रही होगी कि कांग्रेस सरकार में आदिवासी मंत्री का कितना प्रभाव है।

33 परसेंट पर ठहाके

लॉकडाउन-03 में आफिसों में मैनपावर बुलाने के इश्यू पर चीफ सिकरेट्री ने मंत्रालय में मीटिंग बुलाई थी। इसमें जीएडी सिकरेट्री डॉ0 कमलप्रीत सिंह, डीडी सिंह समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे। मीटिंग में भारत सरकार के गाइडलाइन के आधार पर 33 फीसदी अधिकारियों, कर्मचारियों को बुलाने की बात आई तो एक सिकरेट्री ने चुटकी ली….सर, सही में काम तो 33 फीसदी लोग ही करते हैं, बाकी का तो चाय, गुटखा, तंबाकू, और नेतागिरी….। इस पर जमकर ठहाके लगे।

आईएएस बनने में मेहनत

कोरोना में भी चीफ सिकेरट्री आरपी मंडल खूब दौरे कर रहे हैं। इस हफ्ते बस्तर संभाग के अधिकारियों की उन्होंने कांकेर में बैठक बुलाई थी। वहां उन्होंने कलेक्टरों को टास्क दिया कि सभी जिलों में 20-20 आदिवासी आश्रमों को तैयार करें कि वो सुविधाओं के मामलों में किसी गेस्ट हाउस से कम न लगे। कमरे, बाथरुम, आरओ वाटर, जेनरेटर सब हाईक्लास के। वो भी दो महीने के भीतर। इस पर बस्तर के एक कलेक्टर के चेहरे पर शिकन झलकी…सीएस ताड़ गए। बोले…कोई परेशानी। कलेक्टर ने कहा, सर ये तो कठिन काम है…दो महीने में। सीएस इस पर विफर पड़े…मिस्टर कलेक्टर! आईएएस बनने में क्या कठिनाई नहीं होती। सीएम साब ने कहा है…करना है मतलब करना है। इस पर मीटिंग में सन्नाटा छा गया।

चूक गए जनाब…?

कहते हैं, ब्यूरोक्रेट्स अगर पोस्ट पर रहते पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का इंतजाम कर ले तो ठीक वरना, एक बार गाड़ी आगे बढ़ गई तो फिर कोई पूछता नहीं। तब सीएम हाउस में इंट्री पाना भी आसान नहीं रहता। हालांकि, कांग्रेस सरकार में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का औसत खराब नहीं है। सीएम भूपेश बघेल के राज्य की कमान संभालने के बाद आईएएस में अजय सिंह, सुनील कुजूर, केडीपी राव, सुरेंद्र जायसवाल, हेमंत पहाड़े, एनके खाखा, आलोक अवस्थी और दिलीप वासनीकर तथा आईपीएस में एएन उपध्याय, गिरधारी नायक और बीके सिंह रिटायर हुए हैं। इनमें अजय सिंह, कुजूर, जायसवाल और पहाड़े को तत्काल पोस्टिंग मिल गई। वहीं, आईपीएस में सिर्फ नायक को। जिन्हें पोस्टिंग नहीं मिल पाई, उनमें केडीपी राव, आलोक अवस्थी, एनके खाखा और दिलीप वासनीकर। तथा आईपीएस में बीके सिंह और एएन उपध्याय। हालांकि, बीके सिंह बोरिया-बिस्तर समेटकर यहां से चले गए। उपध्याय जरूर यहां हैं। इनमें सबसे अधिक उम्मीद केडीपी राव को रही होगी। लेकिन, नगरीय निकाय चुनाव, विधानसभा का बजट सत्र और फिर कोरोना के चलते उनका मामला मामला गड़बड़ा गया।

व्यापम पर नजर

डॉ0 आलोक शुक्ला स्कूल एजुकेशन के प्रिंसिपल सिकरेट्री के साथ माध्यमिक शिक्षा मंडल और व्यापम के चेयरमैन भी हैं। शुक्ला का 31 मई को रिटायरमेंट हैं। इसको देखते ऑल इंडिया सर्विस के कई वर्तमान और रिटायर अफसरों की नजर व्यापम चेयरमैन की पोस्ट पर है। लेकिन, उनके साथ अंगूर खट्टे हैं….वाला ही मामला होगा। क्योंकि, व्यापम खाली नहीं नहीं हो रहा।

फिल्म भी, सियासत भी

दो बार विधायक रहे परेश बागबहरा कुछ महीने पहले जोगी कांग्रेस से भाजपा ज्वाईन किए। और फिर से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उतरने जा रहे हैं। इससे पहिले वे 93 में सन्नी देओल के साथ गुनाह फिल्म बनाए थे। जिसमें खुद में एक गाने में गाना गाते हुए नजर आए थे। 2002 में उन्होंने छत्तीसगढ़ी में भोला छत्तीसगढ़ियां बनाई। कई फिल्मों के वे फायनेंसर भी रहे। अब वे बड़े बजट के छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने जा रहे हैं। याने परेश की सियासत भी चलेगी और अब फिल्म भी। वैसे भी, छत्तीसगढ़ में विपक्ष के लिए दो साल कोई काम है नहीं।

प्रमोटी कलेक्टर्स

कलेक्टरों की लिस्ट आने वाली है। इसमें इस बार स्टेट सर्विस से आईएएस बने अफसरों की संख्या कुछ कम हो सकती है। अभी नौ ऐसे कलेक्टर हैं। हालांकि, एक समय तो 13 तक पहुंच गए थे। लेकिन, डायरेक्ट आईएएस दावेदारों की संख्या को देखते संकेत हैं कि प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या कुछ और कम की जाएगी। याने कुछ को कलेक्टरी से वापिस बुलाया जाएगा तो कुछ नए भेजे जाएंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बोर्ड, आयोगों में नेताओं की नियुक्ति क्या लंबे समय के लिए आगे बढ़ जाएगी?
2. चीफ सिकरेट्री किस मिशन पर गुप्त रूप से 19 मई को बिलासपुर पहुंचे थे?

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