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ब्यूरोक्रेट्स बड़े या भगवान? कोरोना त्रासदी में मेडिकल लॉबी हुई ताकतवर…डॉक्टरों को भगवान और ब्यूरोक्रेट्स पर तंज कसते ये पोस्ट जमकर हो रहा वायरल, पढिये वायरल पोस्ट को

ब्यूरोक्रेट्स बड़े या भगवान? कोरोना त्रासदी में मेडिकल लॉबी हुई ताकतवर…डॉक्टरों को भगवान और ब्यूरोक्रेट्स पर तंज कसते ये पोस्ट जमकर हो रहा वायरल, पढिये वायरल पोस्ट को
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By NPG News

रायपुर, 28 अप्रैल, 2021। नौकरशाहों और डॉक्टरों के बीच लंबे समय से अप्रत्यक्ष द्वंद्व चल रहा है…कोई कलेक्टर, कमिश्नर या उसके किसी डॉक्टर को झाड़ लगा दे तो डॉक्टर ये मजाक कर खुद को तसल्ली देते हैं कि यह आईएएस मेडिकल इंट्रेंस टेस्ट में पक्का फेल हुआ होगा, इसलिए अपनी खीज मिटा रहा। हालांकि, सभी आईएएस साइंस फील्ड के नहीं होते। इसलिए, मेडिकल इंट्रेंस फेल वाली बात सही नहीं। लेकिन, इससे डॉक्टरों की नौकरशाहों के प्रति भावनाएं समझ में आ जाती है। और ये भी कि, लोगों की जान बचाने वाले डॉक्टर अपनी सेवा और प्रतिष्ठा को लेकर अत्यधिक संजीदा हैं। चूंकि, वे लोगों की पीड़ा दूर करने का काम करते हैं, लिहाजा, खुद को नौकरशाहों से कमतर नहीं आंकते।
जाहिर है, कोरोना संकट में जब देश का सारा सिस्टम ध्वस्त हो गया है तब डॉक्टरों का इम्पोर्टेंस एकदम से बढ़ गया है। पूरा देश मेडिकल के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहा। इन दिनों आईएएस नहीं, दो, चार डॉक्टरों से जिनका अच्छा कनेक्शन है, वह प्रभावशाली समझा जा रहा। ऐसे में, CMC वेल्लूर के एक डॉक्टर का ब्यूरोक्रेट्स पर तंज कसता हुआ सोशल मीडिया में पोस्ट खूब वायरल हो रहा।
हू-ब-हू पढिये वायरल पोस्ट-
नीति नियंता ( beurocrates and health care)
विमान को पायलट चलाते है, एक कमर्शियल पायलट बनने के लिए करीब 3-4 साल की ट्रेनिंग और 1500 घंटो का फ्लाइट एक्सपीरियंस चाहिए होता है। बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है । पायलट को जब हवाई जहाज उतराना होता है तब एयर पोर्ट पर एक एयर ट्रैफिक कंट्रोलर होता है जो पायलट को विमान को हवाई अड्डे पर उतरवाने में मदद करता है। एयर ट्रैफिक कंट्रोलर बनने के लिए भी कम से कम 5 साल लग जाते है, क्योंकि ये भी बड़ी जिम्मेदारी का काम है। एक एयर ट्रैफिक कंट्रोलर पायलट की मदद करता है , किसी दिन जब अनिर्णय की स्थिति होती है तो अंतिम निर्णय पायलट का ही होता है उसे कब कैसे कहाँ वह विमान को उतरेगा।
अब सोचिये की एयर ट्रैफिक कंट्रोलर की जगह एक इतिहास, समाजिक शास्त्र या पोलिटिकल एडमिनिस्ट्रेशन जैसे विषय पड़े हुए आदमी को बिठा दे और उसको पायलट का बॉस भी बना दे तो आप सोचिये क्या होगा। जो पायलट विमान को इतने वर्षों से निर्बाध रूप से उड़ा रहा था अब उसे एक अनुभवहीन व्यक्ति की बातें सुननी पड़ेगी और माननी पड़ेगी। प्लेन क्रैश होंगे और लोगो की जिंदगियां खतरे में पड़ जाएंगी।।।।।।
ठीक ऐसा ही कुछ हुआ है हमारे हेल्थ केअर सिस्टम के साथ , हमने उस विषय के वरिष्ठ जानकार और अनुभव प्राप्त व्यक्ति के ऊपर एक इतिहास , समाजशास्त्र, और पोलटिकल साइंस पढ़े हुए नौकरशाह व्यक्ति को बैठा दिया। अब सारे निर्णय वही लेता है जिसे न मेडिकल फील्ड का ज्ञान है ना अनुभव। अगर कोई विषय का जानकार उसे कुछ समझाना भी चाहे तो वह नही सुनता। बंद AC कमरो में बैठ कर कुछ ब्यूरोक्रेट्स निर्णय लेते है जिसका धरातल से कोई सम्बंध नही, और अनुभवी पायलट की राय को भी दरकिनार कर दिया जाता है, नतीजा क्रैश पर क्रैश हुए जा रहे है और लोग मर रहे है।।।।।।
अब एक ब्यूरोक्रेट्स डॉक्टर को बताता है कि मरीज का इलाज कैसे करना है, कब करना है, किस मरीज को ICU देना है, कौन सी दवाई आनी है कौन सी नही आई है ।।।।
जब दुनिया के सारे देशो में कोरोना की दूसरी लहर ने हा हा कर मचाया तो हमारे देश मे कोई तैयारी क्यों नही की।
क्या प्रधानमंत्री की टीम में कोई एपिडेमियोलॉजिस्ट था, और अगर था तो क्या उसे कोई ऑटोनोमी थी। अगर होती तो ये विकराल स्थिति होती ही नही। फरवरी में जब धीरे धीरे केसेस बढ़ने शुरू हुए तभी डॉक्टर्स और एक्सपर्ट ने आशंका जतानी शुरू कर दी कि संभवतः दूसरी लहर आने वाली है पर इतिहास पढ़े हुए किसी नौकरशाह ने कोई निर्णय नही लिया, नतीजा क्रैश……..
आज भी जब नीतिया बनाई जा रही है तब क्या किसी भी बड़े निर्णय में रेजिडेंट डॉक्टर या मेडिकल ऑफिसर की राय ली जा रही है जो कि धरातल पर काम कर रहे है और आधारभूत समस्याओ को जानते है???? अब एक नौकरशाह जिसने अपने जीवन मे सिर्फ एक एग्जाम पास की है वह नीतिया बनाता है और एक डॉक्टर जिसने 10 साल पढ़ाई की अनुभव लिया, जीतोड़ मेहनत कर नीट और NEET PG पास किया ( यकीन मानिए NEET PG निकालने में UPSC से कही अधिक परिश्रम लगता है) उसे कही रखा भी नही जाता।
अगर आपको किसी सरकारी संस्थान का नाम लेना हो जो अपने आप मे एक मिसाल है, जिसका नाम और काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है तो जो नाम सामने आएगा वह है ISRO । क्या आप जानते है इसरो में ब्यूरोक्रेसी नही है , और जो थोड़े बहुत बयूरोक्रेट है वह भी ISRO के पदाधिकारीयो के अनुसार काम करते है उनके मालिक नही बनते। अब आप फ़र्ज़ करे कि ISRO का डायरेक्टर कोई नौकरशाह होता तो क्या आज हम मंगलयान, या चंद्रयान बना पाते । क्या हम अंतरिक्ष मे वह मुकाम हासिल कर पाते जो हमारे वैज्ञानिको ने कर दिखाया है।
आज चिकित्सा और स्वास्थ्य को भी नौकरशाही से आज़ादी की दरकार है ….…….

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