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Chhattisgarh News छत्‍तीसगढ़ में रेशमी धागों से महिलाएं बुन रही हैं जीवन के ताने-बाने

Chhattisgarh News छत्तीसगढ़ में कोसा से धागा निकालने का कार्य कुछ चुनिंदा जगहों पर ही किया जाता है। एक बार धागा निकालने की कला सीखने के बाद कमाई का जरिया पारंपरिक रूप से यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती जाती है।

Chhattisgarh News  छत्‍तीसगढ़ में रेशमी धागों से महिलाएं बुन रही हैं जीवन के ताने-बाने
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By Sanjeet Kumar

Chhattisgarh News रायपुर। स्व-सहायता समूह की महिलाएं अब कोसा से धागा निकालने की कला सीखकर अपने जीवन के ताने-बाने बुन रही हैं। इसी कड़ी में जशपुर जिले के कुनकुरी, फरसाबहार, पत्थलगांव और कांसाबेल विकासखण्ड में 07 महिला स्व-सहायता समूह गठन किया गया। महिला समूह के द्वारा टसर धागाकरण कार्य कर धागा उत्पादन किया जा रहा हैं। उत्पादित धागे का समूह के द्वारा बेचकर 1 करोड़ 95 लाख 40 हजार 383 रूपए का लाभ अर्जित किया गया। स्व-सहायता समूह की महिलाएं अपनी आमदनी को बढ़ाते हुए जीवन स्तर को बेहतर बना रही हैं। पूर्व में आय के स्रोत के रूप में सिर्फ खेती, घर के बाड़ी व वन उत्पादों से जीविकोपार्जन कर रही थीं।

स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने शासकीय कोसा बीज केन्द्र कुनकुरी में चल रहे टसर धागाकरण योजनान्तर्गत संचालित टसर मशीनों को देखने आई एवं धागाकरण कार्य को देखकर स्व-प्रेरित होकर स्वयं भी इस कार्य को करने के लिए इच्छा प्रकट की। विभाग द्वारा इन महिलाओं को समूह बनाकर टसर धागाकरण प्रशिक्षण दिया गया । प्रशिक्षण के उपरांत स्व-सहायता समूह की महिलाएं कोसा से धागा निकालने की कला को निखारते हुए निरंतर इस कार्य को कर रही हैं। वर्ष-2022-23 में टसर धागाकरण 7 समूह की 501 महिलाओं के द्वारा 33,55,279 किलोग्राम रिलींग धागा, 2315.273 किलोग्राम घींचा धागा एवं वेस्ट सामग्री से 547.148 किलाग्राम धागा का उत्पादन किया गया हैं। उपरोक्त टसर धागारकण कार्य में महिलाओं को स्व-रोजगार से जोड़ने हेतु डीएमएफ एंव आईटीडीपी तथा विभागीय योजना से महिलाओं को मशीन प्रदाय किया गया। समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण हेतु राशि जिला प्रशासन के द्वारा उपलब्ध कराया गया, जिसके द्वारा 501 महिलाएं टसर धागाकरण कार्य कर स्वावंलम्बी हो चुकी हैं।



छत्तीसगढ़ में कोसा से धागा निकालने का कार्य कुछ चुनिंदा जगहों पर ही किया जाता है। एक बार धागा निकालने की कला सीखने के बाद कमाई का जरिया पारंपरिक रूप से यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती जाती है। स्व-सहायता समूह की महिलाएं कोसा खरीदी से लेकर धागा बनाने और बेचने तक का काम सीख चुकी हैं। कोसा से धागा निकालने की प्रक्रिया में सबसे पहले महिलाएं कोसे की ग्रेडिंग करती हैं। ग्रेडिंग के उपरांत प्रतिदिन के हिसाब से कोसा उबाला जाता है और उबले हुए कोसे से धागा बनाया जाता है। धागा पैकिंग कर व्यापारियों को बेच दिया जाता है। प्राप्त पैसे से कोसे फल का पैसा रेशम विभाग को दिया जाता है और बचे हुए पैसे से महिलाएं अपना घरेलू व्यवसाय को आगे बढ़ा रही हैं और स्वावलंबन की राह में आगे बढ़ते हुए महिलाओं की किस्मत भी कोसे की तरह चमकने लगी है।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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