Madwi Hidma Biography: खेती-किसानी करने वाला 17 साल का युवक, कैसे बना भारत का सबसे खतरनाक नक्सली कमांडर?
Naxal Commonder Madwi Hidma: दक्षिण बस्तर का पूर्वती गांव जहां एक आदिवासी युवा रहता था। नाम था माड़वी हिड़मा। तब वह परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर खेती बाड़ी किया करता था। सातवीं तक पढ़ाई की थी।

Naxal Commonder Madwi Hidma: दक्षिण बस्तर का पूर्वती गांव जहां एक आदिवासी युवा रहता था। नाम था माड़वी हिड़मा। तब वह परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर खेती बाड़ी किया करता था। सातवीं तक पढ़ाई की थी। 16 साल तक वह गांव का एक सीधा सादा और अपने काम से काम रखने वाला युवा था। 17 वां साल माड़वी हिड़मा के जीवन में एक तूफान लेकर आया जो फिर 45 वर्ष के हिड़मा के होते तक जारी रहा। 17 साल के हाेते-होते माड़वी का पूरा जीवन ही बदल गया। आदिवासी युवा माओवादियों के संपर्क में आया और नक्सली विचारधारा को आत्मसात कर लिया। माओवाद और इससे जुड़े शीर्ष नेताओं से लेकर मैदानी नक्सलियों के बीच उसका सफर और तेजी के साथ आगे बढ़ना हैरान करने वाला रहा। छत्तीसगढ़ के इकलौते नक्सल नेता थे जो सेंट्रल कमेटी तक पहुंचा। माड़वी हिड़मा की नक्सल गतिविधियों मे सफर की शुरुआत यही कोई 1996-97 की है। इसी दरम्यान वह माओवादी संगठन से जुड़ा। माड़वी हिड़मा को और दो नामों से उनके करीबी जानते थे। हिदमाल्लु और संतोष। हिड़मा का जब रुतबा बढ़ा तो उसकी सुरक्षा घेरा भी उसी अंदाज में बढ़ाया गया। तीन लेयर की सुरक्षा घेरा में वह रहता था। खाना भी विशेष बनता था और बनाने वाला और कोई नहीं उसके सुरक्षा घेरा में रहने वाले लोग ही बनाया करते थे।
माडवी हिडमा का प्रोफाइल
पूरा नाम: माड़वी हिड़माअन्य नाम: हिदमल्लु, संतोषजन्म स्थान: दक्षिण बस्तर का पूवर्ती गांव, छत्तीसगढ़समुदाय: आदिवासी (स्थानीय माड़वी जनजाति)शिक्षा: सातवीं कक्षा तकपरिवार का बैकग्राउंड: खेती-किसानी, ग्रामीण जीवनसंगठन: CPI (माओवादी)पहचान: PLGA बटालियन नंबर 1 का प्रमुख, केंद्रीय समिति तक पहुंचने वाला बस्तर का एकमात्र आदिवासी सदस्यगतिविधियों की शुरुआत: 1996–1997 के आसपास (लगभग 17 वर्ष की उम्र में)पहली जिम्मेदारी: जनमिलीशिया – गांव-स्तर का संगठनात्मक कार्य
स्पेशल स्किल्स:
हथियार बनाना और मरम्मतग्रेनेड/लॉन्चर तैयार करनातकनीकी संशोधनगुरिल्ला रणनीति, घात लगाकर हमलेसुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने में माहिर
मुख्य पद:
दक्षिण बस्तर जिला प्लाटून सदस्यPLGA (People’s Liberation Guerrilla Army) यूनिट कमांडरदंडकारण्य स्पेशल ज़ोन कमेटी सदस्यसेंट्रल कमेटी सदस्य (CPI–Maoist)
किन बड़े हमले से जुड़ा नाम:
2007 उरपलमेट्टा हमला (24 CRPF जवान शहीद)2010 ताड़मेटला हमला, दंतेवाड़ा (76 CRPF जवान)2013 झीरम घाटी हमला (33 मौतें)2017 बुरकापाल हमला2020 मिनपा हमला (17 जवान)
सुरक्षा घेरा:
A, B, C — तीन लेयर, हर लेयर में 10 प्रशिक्षित हथियारबंद नक्सलीकुल 200–250 फाइटर्स की सुरक्षाउसके कैंप की लोकेशन अत्यंत गोपनीयकेवल ACM स्तर के सदस्य ही मिलने की अनुमति
इनाम:
कुल ₹1 करोड़ (छत्तीसगढ़ पुलिस + CRPF + केंद्र)स्वभाव (पूर्व नक्सलियों के अनुसार):
मृदुभाषीशांत व्यवहारभेष बदलने में माहिर
दक्षिण बस्तर के जिस पूवर्ती गांव का हिड़मा रहने वाला था वहां 40 के करीब युवा माओवादी बनकर निकले। कहा जाता है कि हिड़मा की देखा देखी युवा माओवादी बन गए। हिड़मा को हिंदी नहीं आती थी। सेंट्रल कमेटी में शामिल होने के बाद कमेटी में शामिल लोग अपने कल्चर के हिसाब से हिड़मा को पढ़ाया लिखाया। पढ़ाई के दौरान डांस भी सीखा। हिंदी और अंग्रेजी भाषा की उसको अच्छा ज्ञान हो गया था।
हथियार बनाना और मेंटनेंस करना सीखा
हिड़मा को साल 2000 के आसपास संगठन की उस शाखा में भेजा गया जो माओवादियों के लिए हथियार तैयार करती है। हिड़मा ने वहां हथियार बनाने के लिए नई तकनीकें विकसित करके अपनी प्रतिभा दिखाई थी। "वह हथियार तैयार करने के अलावा मरम्मत करता था और स्थानीय स्तर पर ही ग्रेनेड व लॉन्चर्स का इंतज़ाम करता था।
2001-2002 के क़रीब हिड़मा को दक्षिण बस्तर ज़िला प्लाटून में भेजा गया. बाद में वो माओवादी हथियारबंद दस्ते पीएलजीए (पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) में शामिल हो गया।
थ्री लेयर सिक्योरिटी के बीच रहता था हिड़मा
मोस्ट वांटेंड टॉप नक्सल कमांडर हिड़मा के आसपास हमेशा थ्री लेयर सुरक्षा रहती थी। A, B और C सेक्शन में हिडमा के बॉडीगार्ड्स तैनात किए जाते थे, हर सेक्शन में 10 अनुभवी और पूरी तरह से हथियारबंद नक्सली होते थे।
हिडमा के सभी सुरक्षा गार्डों के पास अत्याधुनिक हथियार होते थे, जिससे हर समय किसी भी तरह के हमले को ज़बरदस्त जवाब दिया जा सके। हिडमा से आम नक्सली नहीं मिल सकते थे। सिर्फ ACM (एरिया कमेटी मेंबर) स्तर के बड़े नक्सली ही उससे मिलने की इजाजत रखते थे।
संगठन के शीर्ष सदस्य हिडमा के आसपास रहते, जिसके कारण उसकी सुरक्षा और गोपनीयता हमेशा बनी रहती थी।
यह सुरक्षा घेरे, खास प्रोटोकॉल और बेहद गुप्त कैंप स्ट्रक्चर के कारण ही सुरक्षा एजेंसियों के लिए हिडमा तक पहुंचना हमेशा सबसे बड़ी चुनौती रहा। लेकिन अंततः आज सुरक्षाबलों ने हिडमा और उसकी पत्नी को एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया। यह सख्त सुरक्षा और प्रोटोकॉल हिडमा को संगठन के सबसे खतरनाक और रहस्यमय कमांडर बनाते थे।
बेसिक ट्रेनिंग लेकर हिडमा तीन साल जनमिलीशिया के रूप में काम करता रहा। भर्ती होने के बाद तीन साल सन 2000 में नक्सलियों के लिए हथियार तैयार करने वाली डिवीजन में भेजा। यहां काम करते करते सातवीं पास हिडमा ने अपनी प्रतिभा दिखाई और हथियार बनाने के लिए नवाचार किए। वह जवानों से लूटे गए हथियारों के कलपुर्जे से तकनीक सिख नक्सलियों के लिए हथियार तैयार करता है। वह हथियार तैयार कर और मरम्मत भी करता था तथा ग्रेनेड व लांचर्स का इंतजाम भी करता था।
1 करोड़ का इनामी था हिडमा
.हिडमा उर्फ संतोष PLGA बटालियन नंबर 1 का प्रमुख था. यह सबसे घातक माओवादी हमला इकाई मानी जाती है. बता दें कि वह CPI (माओवादी) केंद्रीय समिति में बस्तर क्षेत्र का एकमात्र आदिवासी था। मोस्ट वांटेंड हिड़मा पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था।
दर्जन भर नक्सली हमले में रहा शामिल
हिडमा दर्जन भर बड़े नक्सली हमले में शामिल रहा। 2001–2002 के करीब हिडमा को दक्षिण बस्तर के जिला प्लाटून में भेजा गया। बाद में वह पीपल्स लिब्रेशन गुरिल्ला आर्मी में शामिल हो गया। पहले वह 2007 तक सामान्य गतिविधियों में शामिल रहा।
दुर्दांत नक्सली बनने की शुरुआत
सलवा जुडूम के चलते हिडमा सक्रिय हो गया और बड़ी जिम्मेदारियां सम्हालने लगा। मार्च 2007 में उसने पहला बड़ा हमला किया। मार्च 2007 में उरपल मेट्टा इलाके में सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर दो दर्जन जवानों को मौत के घाट उतार दिया गया था। हिड़मा की अगुवाई में यह हमला हुआ था।
लैंडमाइंस से बंदूकों की तरफ हिडमा ने ही नक्सलियों को मोड़ा
हिड़मा के नेतृत्व में हुए इस पहले बड़े हमले में नक्सलियों के हमला करने का तरीका भी बदला था। इससे पहले नक्सली लैंड माइंस ब्लास्ट कर सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाते थे, यह पहला हमला था जिसमें पुलिस से नक्सलियों ने आमने-सामने की मुठभेड़ की थी। इस हमले के बाद हिड़मा देशभर में नक्सलियों के बीच आक्रामक रणनीति को लेकर प्रसिद्ध हो गया और उसे संगठन में बड़ी जिम्मेदारियां सौंप जाने लगी। 2007 में हुए हमले में 24 सीआरपीएफ जवानों को करने के बाद 2008 में उसे पहली बार बटालियन का कमांडर बनाया गया। माना जाता है कि लैंडमाइंस से बंदूकों की तरफ हिडमा ने ही नक्सलियों को मोड़ा था।
ताड़मेटला के बाद लिया गया जोन कमेटी में
दूसरे बड़े हमले में हिडमा का नाम आया ताड़मेटला कांड में। अप्रैल 2010 में सर्चिंग के लिए निकली सीआरपीएफ जवानों की टीम जब दंतेवाड़ा के ताड़मेटला गांव के बाहर रात्रि विश्राम के लिए रुकी थी तो नक्सलियों ने हिडमा के नेतृत्व में एंबुश लगा नींद में सोए 76 सीआरपीएफ जवानों को मौत के घाट उतार दिया वे। इसके बाद हिड़मा को नक्सल संगठन में पदोन्नत कर दिया गया। उसे दंडकारण स्पेशल जोन कमेटी का सदस्य बनाया गया।
मार्च 2017 बुरकापाल में 12 सीआरपीएफ जवानों की भी नक्सली हमले में शहादत हुई थी। इसका जिम्मेदार हिड़मा को माना गया था। खास बात यह है कि हिडमा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए सुरक्षा बलों ने कई बार अभियान चलाया पर हिड़मा हर बार बचकर निकलता रहा। हिड़मा के बारे में कहा जाता है कि वह भेष बदलने में माहिर था। बहुत समय तक उसकी पहचान पुलिस और सुरक्षा बलों के पास भी नहीं थी। कई बार हिडमा सुरक्षाबलों के पास से गुजरता भी था पर उसे पहचान पाना मुश्किल था।
250 लोगों की सुरक्षा घेरा में रहता था हिड़मा
केंद्रीय कमेटी में पहुंचने और कई बड़े नक्सली हमले में नाम आने के बाद हिड़मा मोस्ट वांटेड हो गया, उस पर छत्तीसगढ़ में 50 लाख के इनाम के साथ ही सीआरपीएफ,आंध्र सरकार और केंद्र सरकार ने कुल मिलाकर एक करोड रुपए का इनाम रखा। तब हिड़मा लगभग 250 सशस्त्र नक्सलियों की सुरक्षा घेरे में रहने लगा। उससे मिल पाना नक्सली संगठन के लोगों के लिए ही दुष्कर कार्य हो गया। वह संगठन में ही हर किसी से नहीं मिलता था। पर नक्सल संगठन में काम करने के दौरान उससे मिल चुके और नक्सल संगठन छोड़कर मुख्य धारा में आए कुछ नक्सलियों ने मीडिया को बताया था कि हिडमा बहुत ही मृदुभाषी है और अपने से मिलने वाले को बहुत सम्मान देकर बात करता है। उससे मिलने वालों को बिल्कुल नहीं लगेगा कि वह इतनी दुर्दांत घटनाओं में शामिल है।
2013 में झीरम घटना का मास्टरमाइंड
2013 में दरभा झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में कांग्रेस नेताओं समय सुरक्षा बलों की मौत हो गई थी। उसमें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा विद्या चरण शुक्ला और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं तथा सुरक्षा बलों समेत 33 लोगों की मौत हो गई थी। इसमें हिड़मा को मास्टर माइंड माना गया। इसके अलावा मार्च 21 मार्च 2020 को मिनपा में हुए हिड़मा के नेतृत्व में हुए हमले में 17 जवान शहीद हुए थे।
