Animesh Kujur Biography Hindi: कैसे एक छोटे से गांव का लड़का बना नेशनल एथलीट? जानिए अनिमेष कुजूर की असली कहानी – NPG EXCLUSIVE
Animesh Kujur Biography Hindi: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक छोटे से गाँव घुइटांगर में 2 जून 2003 को एक बालक ने जन्म लिया – नाम रखा गया अनिमेष कुजूर। खेतों की हरियाली, मिट्टी की खुशबू और ग्रामीण परिवेश के बीच पले-बढ़े अनिमेष को शायद खुद भी नहीं पता था कि एक दिन वह अपनी दौड़ से भारत और छत्तीसगढ़ का सिर गर्व से ऊँचा करेगा।

Animesh Kujur Biography Hindi: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक छोटे से गाँव घुइटांगर में 2 जून 2003 को एक बालक ने जन्म लिया – नाम रखा गया अनिमेष कुजूर। खेतों की हरियाली, मिट्टी की खुशबू और ग्रामीण परिवेश के बीच पले-बढ़े अनिमेष को शायद खुद भी नहीं पता था कि एक दिन वह अपनी दौड़ से भारत और छत्तीसगढ़ का सिर गर्व से ऊँचा करेगा। उनके माता-पिता – पिता श्री अमृत कुजूर और माता श्रीमती रीना कुजूर, सामान्य ग्रामीण परिवार से थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे की शिक्षा और अनुशासन को लेकर कभी समझौता नहीं किया।
अनिमेश कुजूर की जीवनी : Animesh Kujur Biography Hindi:
- पूरा नाम: अनिमेश कुजूर
- जन्मतिथि: 2 जून 2003
- जन्मस्थान: ग्राम घुइटांगर, जिला जशपुर, छत्तीसगढ़
- माता-पिता: श्रीमती रीना कुजूर (माता), श्री अमृत कुजूर (पिता)
- भाई-बहन: दो भाई, जिनमें अनिमेश बड़े हैं और छोटे भाई का नाम अनिकेत कुजूर है।
बचपन – शिक्षा की पहली सीढ़ियाँ
अनिमेष का बचपन उनके पिता की नौकरी के चलते कई जगहों पर बीता। उनकी प्रारंभिक शिक्षा छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के वेडनर मिशन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से हुई। लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी। पाँचवीं कक्षा के बाद वे कांकेर आ गए, जहाँ उन्होंने सेंट माइकल स्कूल में पढ़ाई की।
छठवीं कक्षा में उनका चयन सैनिक स्कूल अंबिकापुर में हो गया – जो आगे चलकर उनके व्यक्तित्व और खेल जीवन में निर्णायक भूमिका निभाने वाला था। सैनिक स्कूल की सख्त दिनचर्या और अनुशासित जीवनशैली ने उन्हें न सिर्फ पढ़ाई में, बल्कि आत्मविश्वास और अनुशासन में भी तराशा।
कोरोना काल – खेलों की ओर पहला कदम
जब दुनिया कोरोना वायरस के कारण ठहर सी गई थी, तब अनिमेष के भीतर कुछ नया शुरू हो रहा था। 2020–21, जब सब कुछ बंद था, तब सैनिक स्कूल में रहकर उन्होंने खेलों की ओर रुचि लेना शुरू किया। उन्होंने खुद को ट्रैक पर दौड़ते पाया और जल्द ही यह जुनून में बदल गया। बिना किसी औपचारिक कोचिंग, बिना स्पेशल ट्रेनिंग – बस अपने प्रयास और जज़्बे के साथ वे दौड़ने लगे।
जिला स्तरीय पहचान – कांकेर से चमकते सितारे
एक दिन कांकेर जिले के खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। अनिमेष ने इसमें हिस्सा लिया – एक नहीं, दो नहीं, पाँच-पाँच इवेंट्स में।
- 100 मीटर
- 200 मीटर
- लॉन्ग जंप
- हाई जंप
- 400 मीटर
नतीजा? पाँचों में गोल्ड मेडल।
ये वो क्षण था जब पहली बार उनके भीतर की आग ने दुनिया को अपनी चमक दिखाई। इस सफलता ने उन्हें रायपुर के वेस्ट ज़ोन प्रतियोगिता के लिए चुने जाने का रास्ता दिखाया।
रायपुर से राष्ट्रीय पथ की ओर
रायपुर में हुए वेस्ट ज़ोन मुकाबले में उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर दोनों स्पर्धाओं में भाग लिया – और दोनों में गोल्ड मेडल जीते। उनका आत्मविश्वास अब आसमान छू रहा था। रायपुर से सीधा उन्हें नेशनल अंडर-18 स्पर्धा के लिए गुवाहाटी भेजा गया। लेकिन यहाँ एक मोड़ आया – अब तक उन्होंने कभी स्पाइक शूज़ नहीं पहने थे, जो एथलीट्स की दौड़ में ज़रूरी होते हैं। प्रतियोगिता से ठीक पहले, उनके पिता ने नए स्पाइक शूज़ खरीदकर दिए, और पहली बार उन जूतों को पहनकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर मैदान में कदम रखा।
बिना किसी विशेष प्रैक्टिस, बिना ट्रेनिंग कैम्प – और परिणाम?
100 मीटर और 200 मीटर – दोनों में चौथा स्थान।
यह उपलब्धि कोई मामूली नहीं थी। छत्तीसगढ़ से पहले एथलीट बने जिन्होंने 100 मीटर दौड़ में नेशनल लेवल पर यह मुकाम हासिल किया।
कोच से मुलाकात – और सही दिशा की शुरुआत
गुवाहाटी से लौटने के बाद अनिमेष की मुलाकात दिनेश तांडी नामक कोच से हुई, जो वन विभाग में कार्यरत थे। दिनेश तांडी ने उनके अंदर की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें सही तकनीकी मार्गदर्शन देना शुरू किया। यह वह समय था जब अनिमेष का खेल जीवन एक नये मोड़ पर था – अब उनके पास अनुभव भी था, मार्गदर्शन भी और जुनून तो बचपन से ही था।
वर्तमान और भविष्य की ओर
आज अनिमेष कुजूर बीएससी कंप्यूटर साइंस में अध्ययनरत हैं, लेकिन उनकी असली पहचान उनके ट्रैक से है। वो गाँव का एक साधारण लड़का नहीं रहा, वो अब उन युवाओं में है जो संसाधनों की कमी के बावजूद देश को अपनी मेहनत से गौरवान्वित कर रहे हैं।
मिट्टी की खुशबू से राष्ट्रीय मंच तक
अनिमेष की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रतिभा किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती। कभी खेतों की पगडंडियों पर दौड़ने वाला बालक आज नेशनल ट्रैक पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है। जहाँ कई युवा सुविधाओं के बावजूद लक्ष्य नहीं साध पाते, वहाँ अनिमेष ने अभावों में भी सपना देखा, उसे जिया और उसे साबित भी किया।
उनकी यह कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो गांव से निकलकर देश का नाम रोशन करना चाहता है।
