Buxar(Bihar) District History: बक्सर जिले का इतिहास, जानें धार्मिक, सांस्कृतिक और चुनावी विकास की पूरी जानकारी
Buxar ka Itihas: बक्सर, बिहार के पश्चिमी छोर पर गंगा नदी के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक नगर है, जिसका प्राचीन नाम ‘व्याघ्रसर’ था। इस नाम की उत्पत्ति उस समय हुई जब यह क्षेत्र बाघों का प्रमुख निवास स्थान माना जाता था।

Buxar ka Itihas: बक्सर, बिहार के पश्चिमी छोर पर गंगा नदी के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक नगर है, जिसका प्राचीन नाम ‘व्याघ्रसर’ था। इस नाम की उत्पत्ति उस समय हुई जब यह क्षेत्र बाघों का प्रमुख निवास स्थान माना जाता था। धार्मिक दृष्टिकोण से भी बक्सर का विशेष स्थान है क्योंकि यहां विश्वामित्र मुनि का आश्रम स्थित था, जहां भगवान राम और लक्ष्मण को उनका प्रारंभिक शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था।
बक्सर का जिला बनने तक का आंदोलन
बक्सर को जिला का दर्जा दिलवाने के लिए जनता को 11 वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा। 1980 से 1990 तक चले इस आंदोलन में पांच बार बक्सर बंद कराया गया। इन आंदोलनों में 18 प्रमुख आंदोलनकारियों की जान भी चली गई। अंततः 17 मार्च 1991 को बक्सर को स्वतंत्र जिला घोषित किया गया, जिससे यह क्षेत्र प्रशासनिक रूप से और सशक्त हुआ।
चौसा का युद्ध: मुगलों और अफगानों के बीच निर्णायक संघर्ष
इतिहास में बक्सर के महत्व को 26 जून 1539 को लड़े गए चौसा के युद्ध से भी देखा जा सकता है। इस युद्ध में मुगल सम्राट हुमायूं और अफगान शासक शेरशाह सूरी आमने-सामने हुए थे। यह संघर्ष बक्सर स्थित चौसा के मैदान में हुआ और इसने भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीतिक दिशा को बदल दिया।
कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित होता है विशाल मेला
बक्सर न केवल ऐतिहासिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह आयोजन धार्मिक उत्सवों के साथ व्यापारिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। बक्सर में स्थित प्रमुख कारागार भी चर्चित है, जहां अपराधियों को कपड़ा बुनाई व अन्य लघु उद्योगों में संलग्न किया जाता है।
बक्सर की निर्णायक लड़ाई: 1764 का ऐतिहासिक युद्ध
1764 में बक्सर के मैदान में ब्रिटिश सेनाओं और भारतीय शासकों – शुजाउद्दौला, कासिम अली खां तथा मीर कासिम की सेनाओं के बीच निर्णायक युद्ध हुआ। इस लड़ाई में अंग्रेजी सेना के मेजर मुनरो ने निर्णायक विजय प्राप्त की। इस युद्ध में लगभग दो हजार भारतीय सैनिक मारे गए या गंगा में डूब गए। यह युद्ध भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभुत्व का मार्ग प्रशस्त करने वाला बना।
ब्रह्मपुर का प्राचीन ब्रह्मेश्वर मंदिर
बक्सर जिले का ब्रह्मपुर गांव ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मंदिर मोहम्मद गजनवी के काल से मौजूद है। मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था। आज यह मंदिर आस्था और प्राचीन स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है।
बक्सर लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
बक्सर लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें आती हैं और इसका राजनीतिक इतिहास अत्यंत रोचक रहा है। 1952 के पहले आम चुनाव में कमल सिंह ने बतौर निर्दलीय जीत दर्ज की। 1952 से 1984 तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा, सिवाय 1977 के जब रामानंद तिवारी भारतीय लोकदल के प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए। 1989 में इस सीट पर कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के तेज नारायण सिंह ने जीत दर्ज की।
90 के दशक से शुरू हुआ भाजपा का प्रभाव
1996 में पहली बार भाजपा का कमल इस सीट पर खिला और लाल मुनि चौबे लगातार चार बार सांसद चुने गए। 2009 में यह सीट राजद के जगदानंद सिंह ने जीती, लेकिन 2014 के चुनाव में अश्विनी चौबे ने भाजपा के टिकट पर एक बार फिर विजय प्राप्त की। 2019 में भी अश्विनी चौबे ने यहां से जीत हासिल की, हालांकि चुनावी परिस्थितियों में जातीय समीकरण के साथ विकास एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरा।
बक्सर की जनसंख्या और सामाजिक स्वरूप
2011 की जनगणना के अनुसार बक्सर जिले की कुल जनसंख्या 24,73,959 थी, जिसमें 92 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में तथा शेष 8 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। यहां सवर्ण मतदाताओं की संख्या विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिनमें ब्राह्मणों की भागीदारी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। यही कारण है कि कई बार बाहरी ब्राह्मण उम्मीदवारों को भी जनता का समर्थन मिला है।
बक्सर एक ऐसा भूभाग है जो धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सभी दृष्टियों से अत्यंत समृद्ध रहा है। रामायण काल से लेकर ब्रिटिश काल तक और आज के लोकतांत्रिक दौर तक, बक्सर की भूमिका हमेशा विशेष रही है। आज यह शहर आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए भी अपनी ऐतिहासिक पहचान को संजोए हुए है।
