Bihar Assembly Election: बिहार विधानसभा चुनाव: डिलीवरी वर्सेस वायदा, जीत डिलीवरी की हुई
Bihar Assembly Election: बिहार विधानसभा चुनाव की तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है। एनडीए को दो तिहाई से भी अधिक बहुमत मिलते दिखाई दे रहा है। मौजूदा चुनाव में एक खास बात दिखाई दी और वह है डिलीवरी वर्सेज वायदा। जीत डिलीवरी की हुई। राजनीतिक पंडित ऐसा भी कह रहे हैं कि डिलीवरी वर्सेज वायदा में जीत हमेशा डीलिवरी की ही होती है।

Bihar Assembly Election: बिहार विधानसभा चुनाव की तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है। एनडीए को दो तिहाई से भी अधिक बहुमत मिलते दिखाई दे रहा है। मौजूदा चुनाव में एक खास बात दिखाई दी और वह है डिलीवरी वर्सेज वायदा। जीत डिलीवरी की हुई। राजनीतिक पंडित ऐसा भी कह रहे हैं कि डिलीवरी वर्सेज वायदा में जीत हमेशा डीलिवरी की ही होती है।बिहार के मौजूदा चुनाव में यही सब देखने को मिला। सियासी पंडित भी इस बात पर जोर दे रहे हैं और बिहार में जो कुछ हुआ वह डिलीवरी का ही नतीजा है। महिलाओं ने नीतीश कुमार और एनडीए पर भरोसा जताया है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने एक बड़ा सियासी दांव खेला। महिलाओं के बैंक खाते में 10 हजार रुपये डाल दिया। 10 हजार रुपये के सरकारी तोहफे ने चुनाव में गजब का काम किया। मतदान के दौर में पोलिंग बूथों में महिलाओं की भीड़ इस बात के संकेत देने शुरू कर दिया था कि उपहार में मिली बड़ी धनराशि को महिलाओं ने स्वीकार किया है और प्रतिसाद स्वरुप नीतीश सरकार को वोट के रूप में आशीर्वाद देने मतदान केंद्र तक पहुंची है। महिलाओं का आशीर्वाद ईवीएम में वोट के रूप में एनडीए को जमकर मिला। यही डिलीवरी सिस्टम ने गजब का काम किया। तभी तो सियासी पंडित इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वायदा से ज्यादा असरकारी डिलीवरी होता है। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भी यही सब देखा है। जब राज्य सरकारों ने वायदा करने के बाद डिलीवरी सिस्टम पर भरोसा जताया। दोनों ही राज्यों में राजनीतिक रूप से खेले गए दांव असरकारी और प्रभावकारी रहा है। यही सब बिहार में दिखाई दिया। नतीजा अब सबके सामने है। महागठबंधन ने चुनावी वायदे तो किए पर मतदाताओं ने वायदों पर भरोसा नहीं किया। महागठबंधन ने सरकार बनाने की स्थिति में परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी का वायदा किया था। वायदा पर मतदाताओं ने भरोसा नहीं किया।
वायदा पर डिलीवरी इसलिए भारी पड़ गया कि मतदाताओं को लगता है कि जो कुछ मिल रहा है लगातार मिलने की उम्मीद पाल लेते हैं और यह मिलने लगे तो लोगों को उस पर ज्यादा भरोसा होता है। नीतीश कुमार का यह दांव फौरीतौर पर कामयाब रहा।
