Begin typing your search above and press return to search.

Supreme Court News: वकीलों को उठक-बैठक करवाने वाले जज बर्खास्त: बर्खास्तगी को जज ने सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा...

Supreme Court News: सहकर्मियों के साथ बदसलूकी करने व वकीलों को उठक-बैठक करवाने जज की हरकतों को गंभीरता से लेते हुए जबलपुर हाई कोर्ट ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए जज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जज की याचिका को खारिज करते हुए जबलपुर हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। परिवीक्षा अवधि के दौरान जज इस तरह की बदसलूकी कर रहा था।

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला,
X

Supreme Court News

By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। जबलपुर हाई कोर्ट ने परिवीक्षा अवधि के दौरान सहकर्मियों से अभद्र व्यवहार करने व बार के वकीलों को अवमानना का डर दिखाकर उठक-बैठक कराने वाले एक जज की सेवा समाप्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त जज की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को उचित ठहराया है। बार के सदस्यों को माफी मांगने के लिए उठक-बैठक करने का भी आरोप लगाया गया था।

0 ये है आरोप

बार सदस्यों के खिलाफ न्यायालयीन अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का भय दिखाकर माफी मंगवाने, कान छूने और माफी के लिए उठक-बैठक करने। कोर्ट की महिला स्टाफ सहित न्यायालय के कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार, शारीरिक प्रताड़ना की धमकी, बिना अनुमति मुख्यालय छोड़ने के मामले में शिकायतें प्राप्त हुई थीं। इन आचरणों के लिए, मुख्य न्यायिक मजिस्टेट, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बार एसोसिएशन और पुलिस अधीक्षक ने याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले की रिपोर्ट की थी। एक मामला यह भी शामिल था जिसमें उसने अपने ही कोर्ट के चपरासी को कदाचार के लिए दो महीने के साधारण कारावास और 50 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

0 सुप्रीम कोर्ट ये कहा

मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कुछ सामग्री होनी चाहिए जिस पर वह इस निष्कर्ष पर पहुंच सके कि क्या परिवीक्षा अवधि के दौरान उसका प्रदर्शन और आचरण ऐसा रहा है कि कर्मचारी की सेवा की पुष्टि की जा सके या उसे छुट्टी दे दी जाए। बेंच ने कहा कि यदि सक्षम प्राधिकार के पास कुछ सामग्री है, जिसके आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि संबंधित अधिकारी उपयुक्त अधिकारी नहीं बनेगा तो यह नहीं कहा जा सकता कि उक्त अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई है।

0 पीठ की गंभीर टिप्पणी

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि अधिकारियों को बरी करने की कार्रवाई केवल एक ऐसी कार्रवाई नहीं है जो कदाचार पर आधारित है या कदाचार पर प्रेरित है। कदाचार के लिए दंडात्मक कार्रवाई करना एक बात है और इस संतुष्टि पर पहुंचना कि परिवीक्षा अवधि के दौरान प्रदर्शन के आधार पर अधिकारी एक उपयुक्त अधिकारी के रूप में आकार लेगा या नहीं, यह पूरी तरह से अलग बात है। दोनों के बीच बहुत अंतर है और वर्तमान मामले में, यह पूर्व के आदेश और प्रस्तावों से विधिवत स्थापित होता है कि याचिकाकर्ता को बिल्कुल भी दंडित नहीं किया गया है और न ही किसी भी कोण से आरोपमुक्ति आदेश दंडात्मक प्रकृति का है।

बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रशासनिक समिति और पूर्ण न्यायालय ने याचिकाकर्ता के मामले पर उचित और अर्थपूर्ण तरीके से विचार किया है और उचित और न्यायपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते हैं। लिहाजा याचिका को खारिज की जाती है।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि डिस्चार्ज ऑर्डर में भी कदाचार के किसी भी कारणों का उल्लेख नहीं है। केवल यह उल्लेख किया गया है कि सक्षम प्राधिकारी यानी प्रशासनिक समिति और पूर्ण न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि याचिकाकर्ता परिवीक्षा अवधि को संतोषजनक और सफलतापूर्वक पूरा करने में असमर्थ रहा है। इसी कारण को आदेश में दर्शाया गया है। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के बर्खास्तगी आदेश के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।

Next Story