Parliament Security Breach: नई संसद में सुरक्षा चूक के लिए भी नेहरू जिम्मेदार!
Parliament Security Breach: कहते हैं कि 'इतिहास अपने आपको दोहराता है'। यह भी कहते हैं कि इतिहास से सबक लेना चाहिए'। चूंकि हमने इतिहास से सबक नहीं लिया इसलिए उसने अपने आपको दोहरा दिया...
Parliament Security Breach: कहते हैं कि 'इतिहास अपने आपको दोहराता है'। यह भी कहते हैं कि इतिहास से सबक लेना चाहिए'। चूंकि हमने इतिहास से सबक नहीं लिया इसलिए उसने अपने आपको दोहरा दिया। पर इतनी जल्दी दोहरायेगा वो भी उसी दिन इसका अंदाजा शायद ही किसी को रहा हो।
हुआ यह कि आज से 22 साल पहले आज ही के दिन कुछ लोग संसद के नए भवन में घुस आए और दहशत फैलाना शुरू कर दिया। यह तो कुछ सांसदों की सूझबूझ थी कि गंभीर घटना नहीं घटी। सांसदों ने उस युवक को दबोचा और पिटाई कर सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर दिया जबकि होना यह चाहिए था कि,अंदर तैनात सुरक्षाकर्मी पकड़ते और स्पीकर के हवाले करते। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार हमलावरों/आतंकियों ने दुस्साहस कर गैस से भरा सिलेंडर/कंटेनर/कनस्तर मुख्य भाग में फेंक दिया। बात सिर्फ इतनी सी नहीं थी इससे थोड़ी देर पहले ठीक इसी तरह की घटना संसद परिसर के बाहर घटी। अब दोनों घटनाओं में कितनी देर का अंतर था यह तो बाद में पता चलेगा और यह भी कि, इससे पीछे मंशा क्या थी। हालांकि गोदी मीडिया इसे आतंकवादी घटना का रूप देने में जुटा है तो सोशल मीडिया सुरक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर रहा है। कुछ भी हो मामला सुरक्षा व्यवस्था के दावे की धज्जियां उड़ा रहा है।
बहरहाल गोदी मीडिया का एक हिस्सा खालिस्तानी आतंकवादी संगठन से इसके तार जोड़ते हुए हाल ही में खालिस्तानी नेता पन्नू द्वारा संसद भवन को उड़ा देने की धमकी से जोड़ रहा है तो कुछ खबरिया चैनल किसान आंदोलन के तार इससे जुड़ा होने की बात कर रहा है।
महीनों या यूं कहें कि सालों बाद 'टूल किट' शब्द फिर सुनने को मिला वो भी तिहाड़ शिरोमणि के श्रीमुख से। हां एक बार फिर से टी-शर्ट पहने राहुल गांधी को तिहाड़ शिरोमणि फिर अपने कार्यक्रम में ले आए। अब यह अलग बात है कि, सुरक्षा व्यवस्था को बड़े से बड़ा गोदी ऐंकर नजरांदाज नहीं कर पा रहा है। यही नहीं कुछ चीजें वह चाह कर भी नहीं ला पा रहा है। वह ऐसा इसलिए भी नहीं कर पा रहा है कि पकड़े गए लोगों में एक भी मुसलमान नहीं है।
नये संसद भवन में प्रवेश के लिए पास की संस्तुति करने वाला सांसद भी कांग्रेस, टीएमसी या अन्य विपक्षी दल का नहीं है। यदि होता तो कब एक धर्म विशेष के प्रतीक चिन्हों पर धरना प्रदर्शन के साथ हिंसक घटनाएं हो चुकी होती। पास की संस्तुति किसी कांग्रेस सांसद ने की होती तो कई राज्यों की राजधानी में उसके दल के कार्यालयों पर तोड़फोड़ हो गई होती। पास अगर कांग्रेस सांसद की संस्तुति पर जारी किया गया होता तो इसके लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दोषी ठहराया जा चुका होता, रवि शंकर प्रसाद संवाददाता सम्मेलन कर राहुल गांधी से इस्तीफा मांग चुके होते, बिहार वाले गिरीराज सिंह उस सांसद को पाकिस्तान जाने का फरमान जारी कर चुके होते और स्मृति ईरानी को इसके पीछे गांधी परिवार का हांथ दिख गया होता।
ख़ुदा का शुक्र है कि एक भी मुसलमान नहीं था।
अब बात सुरक्षा से जुड़े पहलुओं की। तो सभी जानते हैं कि संसद भवन की इमारत सबसे ख़ास भवनों में से एक थी फिर नये संसद भवन की तो और भी क्योंकि यह देश को 2014 के बाद असली आज़ादी वाले भारत (न्यू इंडिया) की महत्वपूर्ण इमारत थी। फिर यह आज़ादी के अमृतलाल का तोहफा था और यह मोदी जी के ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा भी जिससे गुलामी की बू नहीं आती थी।
नये भारत के नए भवन में कथित अभेद सूचक सुरक्षा व्यवस्था के दावे को तार तार करते हुए साधारण से दिखने वाले युवक-युवतियों ने अपने मकसद को अंजाम दिया वह बहुत से सवाल खड़े करता है। संसद भवन के परिसर के प्रवेश की प्रक्रिया को मैं नहीं जानता। लखनऊ स्थित सचिवालय के पंचम तल का नाम सुना है देखा नहीं। संसद भवन को टीवी के छोटे से पर्दे पर ही देखा है। सुना है कि इसमें घुसना चक्रव्यूह भेदने से कम नहीं है।