OBC Politics: 76% आरक्षण पर सियासत फिर गरमाने वाला लेटर पॉलिटिक्स, सीएम ने गर्वनर को लिखा पत्र
OBC Politics:चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में फिर जातिगत आरक्षण का मुद्दा गरमाते दिख रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मामले में राज्यपाल को पत्र लिखकर मिलने के लिए समय मांगा है।
रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक तरफ सत्तारुढ़ कांग्रेस वापसी की तैयारी में है तो दूसरी तरफ भाजपा 5 साल पहले हाथ से निकली 15 साल की सत्ता वापस हासिल करना चाह रही है। दोनों राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाए हुए हैं। दोनों ही पार्टियां वोटरों को रिझाने का कोई भी मौका हाथ से निकलने नहीं दे रही हैं। इसके बावजूद जातिगत आरक्षण जैसे बड़े मुद्दे पर अभी तक कोई बात नहीं हो रही थी, आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लेटर पॉलिटिक्स ने इस मुद्दे को भी गरमा दिया है। सीएम भूपेश ने राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन को पत्र लिखकर मिलने का समय मांग लिया है। अब इसको लेकर अगले कुछ दिनों तक सियासत गर्म रहने की संभावना है।
प्रदेश में जातिगत आरक्षण का मुद्दा करीब दो साल से चल रहा है। दिसंबर 2022 में विधानसभा के विशेष सत्र में आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर मंजूरी के लिए तत्कालीन राज्यपाल अनुसुईया उईके को भेजा गया। तब से यह विधेयक राजभवन में लंबित है। राज्यपाल बदल गए, लेकिन अब तक विधेयक कानून नहीं बना पाया है। यानी राज्यपाल ने अभी तक उसे मंजूरी नहीं दी है और न ही राजभवन से उसे सरकार को लौटाया है।
कांग्रेस-भाजपा आमने-सामने
आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा आरक्षण विरोध है और राज्यपाल को हस्ताक्षर करने नहीं दे रही है। वहीं भाजपा कहती है कि सरकार की आरक्षण देने की मंशा ही नहीं है।
इस वजह से गरमा रहा है जातिगत आरक्षण का मुद्दा
राजधानी रायपुर में अभी एक दिन पहले 27 अगस्त को ओबीसी महासम्मेलन हुआ था। इस कार्यक्रम के दौरान छत्तीसगढ़ ओबीसी महासभा और छत्तीसगढ़ पिछड़ा वर्ग कल्याण संघ ने सीएम से मिलने का समय मांगा और जब मुलाकात हुई तो आरक्षण की लंबित मांग उठा दी। चूंकि आरक्षण का मामला राजभवन के पाले में इस वजह से सीएम ने सीधे राज्यपाल से ही मिलने का वक्त मांग लिया।
इस मामले में मुख्यमंत्री की राज्यपाल से पहले हो चुकी है चर्चा
जातिगत आरक्षण को लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच पहले एक बार हो चुकी है। मौका विश्वभूषण हरिचंदन के छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के रुप में पदभार ग्रहण करने का था। राजभवन पहुंचे सीएम भूपेश ने इस मामले में राज्यपाल से बात की थी। इतना ही नहीं सीएम ने बाहर मीडिया से चर्चा में इस बात की जानकारी भी दी। उन्होंने कहा कि मैंने आरक्षण के मामले में राज्यपाल से बात की है, उनको बताया है कि प्रदेश में सरकारी भर्ती रुकी है। हम चाहते हैं कि इस पर जल्द निर्णय हो। ताकि प्रदेश के हित में काम हो सके, राजनीति अपनी जगह है। सब का उद्देश्य जनता का हित है, युवा पीढ़ी का भविष्य प्रभावित हो रहा है। इसलिए तत्काल संज्ञान लेकर फैसला करने के लिए राज्यपाल से आग्रह किया था।
राज्यपाल कह चुके हैं आस्क टू सीएम
जातिगत आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर राज्यपाल हरिचंदन का भी एक बार जवाब आ चुका है। 18 अप्रैल 2023 को राज्यपाल एक विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। मंच पर मुख्यमंत्री भूपेश भी थे। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद राज्यपाल जब जाने लगे तो मीडिया ने आरक्षण विधेयक को लेकर उनसे प्रश्न किया। राज्यपाल ने इसका सीधा उत्तर देने से बचते हुए कहा कि आस्क टू सीएम यानी मुख्यमंत्री से पूछिए।
अब समझिए क्या है पूरा मामला
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त 2019 को मुख्यमंत्री भूपेश ने जनता को संबोधित करते हुए राज्य में जातिगत आरक्षण बढ़ाने की घोषणा की। सीएम ने जातिगत आरक्षण को 58 से बढ़कर 72 फीसदी करने का ऐलान कर दिया। इसमें आदिवासी (एसटी) के 32 फीसदी आरक्षण में कोई बदलाव नहीं किया। लेकिन अनुसूचित जाति (एससी) को मिलने वाला आरक्षण 12 से बढ़कार 13 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की घोषणा कर दी। सरकार की तरफ से जब इसका नोटिफिकेशन जारी हुआ तो इसमें आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण और जोड़ दिया गया। जानकारों के अनुसार संविधान की व्यवस्था के अनुसार 51 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसको आधार बनाते हुए कुछ लोगों ने सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने आरक्षण के नए आदेश पर रोक लगाते हुए सरकार से इसका आधार पूछा।
सरकार ने कराया सर्वे
जातिगत आरक्षण का कोर्ट में आधार बताने के लिए सरकार ने सर्वे कराया। इसके लिए सितंबर 2019 में सरकार ने सेवानिवृत्त जिला जज छविलाल पटेल की अध्यक्षता में क्वांटिफायबल डाटा आयोग का गठन किया। आयोग ने एक सितंबर 2021 से काम शुरु किया। आयोग का कार्यकाल नौ बार बढ़ाया गया। सितंबर 2022 में आखिरी बार इसका कार्यकाल बढ़ाकर 31 अक्टूबर किया गया था। इसके बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। वह रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य की कुल आबादी में ओबीसी का हिस्सा 41 प्रतिशत बताया है।
हाईकोर्ट ने दिया फिर झटका
हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में फैसला सुनाते ही छत्तीसगढ़ में चल रहे 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया। इसके बाद सरकार ने विधेयक लाकर आरक्षण बहाल करने का फैसला किया।
दिसंबर में पास हुआ संशोधन विधेयक
सरकार ने दिसंबर 2022 में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण संशोधन विधेयक 2022 सर्वसम्मति पारित किया। इसमें एससी 13, एसटी 32, ओबीसी 27 और ईडब्ल्यूएस को 4 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। बिल पास करने के तुरंत बाद राज्य के मंत्रियों की टीम राजभवन पहुंची और राज्यपाल को विधेयक सौंप कर शीघ्र हस्ताक्षर करने का आग्रह किया। तत्कालीन राज्यपाल ने पहले विधेयक पर तुरंत हस्ताक्ष करने की बात कही, लेकिन विधि विशेषज्ञों और राष्ट्रपति भवन से चर्चा करने की बात कहते-कहते अनुसुईया उइके यहां से स्थानांतरित होकर मणिपुर चली गईं।
तत्कालीन राज्यपाल ने विधेयक को लेकर पूछे थे 10 प्रश्न
राज्यपाल ने विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए सरकार से 10 प्रश्न पूछे थे। इनमें पहला प्रश्न था- क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण। 1992 में आए इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है। उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है। सरकार यह भी बताए कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं। आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे।