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Hasdev Aranya: हसदेव अरण्य: जानिए... हसदेव वन क्षेत्र में कोयला खदानों का क्‍यों हो रहा है विरोध, अडानी से क्‍या है रिश्‍ता...

Hasdev Aranya: छत्‍तीसगढ़ का हसदेव अरण्‍य (वन क्षेत्र) कोयला खदान और स्‍थानीय लोगों के आंदोलन की वजह से लंबे समय से सुर्खियों में है। हसदेव की चर्चा देश ही नहीं विदेशों में भी हो रही है। इस वन क्षेत्र के साथ देश के बड़े बिजनेस ग्रुप में शामिल अडानी के नाम की भी चर्चा हो रही है।

Hasdev Aranya: हसदेव अरण्य: जानिए... हसदेव वन क्षेत्र में कोयला खदानों का क्‍यों हो रहा है विरोध, अडानी से क्‍या है रिश्‍ता...
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By Sanjeet Kumar

Hasdev Aranya: रायपुर। हसदेव अरण्‍य (वन क्षेत्र) छत्‍तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में है। इस वन क्षेत्र में कोयला के करीब 23भंडार हैं। वैसे तो छत्‍तीसगढ़ में कोरिया से लेकर कोरबा जिला तक कई खदानों से कोयला निकाला जा रहा है, लेकिन हसदेव में कोयला खदानों के आवंटन और खनन का स्‍थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। हसदेव में कोयला खदान आवंटन और कोयला खनन के लिए वनों की कटाई का विरोध करीब 10 साल से चल रहा है। इस दौरान केंद्र व राज्‍य में सरकारें बदल गईं, लेकिन मामला अब तक नहीं सुलझा है। विपक्ष में रहते राजनीतिक दल और उनके नेता आंदोलन का समर्थन करते हैं, लेकिन सत्‍ता में आते ही खदान के पक्ष में खड़े हो जाते हैं।

हसदेव वन में कोयला खदान और पेड़ों की कटाई के विरोध में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने एक दिन पहले पूर्ववर्ती सरकार में डिप्‍टी सीएम रहे टीएस सिंहदेव पहुंचे थे, जब 43 हेक्टेयर में फैले पेड़ों की कटाई हुई तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल से उस समय जब मीडिया ने सवाल किया तो बघेल ने इसे देशहित के लिए जरुरी बताया था। गौर करने वाली बात यह भी है कि 2015 में कांग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी भी इस आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे थे। इस दौरान उन्‍होंने जंगल नहीं कटने देने का वादा किया था, जबकि खदान का आंवटन कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली केंद्र की यूपीएस सरकार ने किया था।

बताते चले कि हसदेव अरण्‍य क्षेत्र में राजस्‍थान राज्‍य विद्युत निगम लिमिटेड को कोयला खदान का आवंटित हुआ है। राजस्‍थान की सरकार ने खदान को माइनिंग डेवलपमेंट ऑपरेटिंग (एमओडी) यानी खदान को विकसित और खनन (कोयला निकालने) करने का ठेका अडानी की कंपनी ने दे रखा है।

2010 में हुआ था कोयला खदानों का आवंटन

जानकारों के अनुसार केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीएस सरकार के दौरान 2010 में राजस्‍थान सरकार को छत्‍तीसगढ़ में 3 कोयला खदानों का आवंटन किया गया था। लेकिन वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हसदेव अरण्य में खनन प्रतिबंधित रखते हुए इसे नो - गो एरिया घोषित कर दिया। इसके बाद में वन मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने अपने ही नियम के खिलाफ जाकर यहां परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला परियोजना को वन स्वीकृति दे दी।

2012 में पहले चरण की खुदाई के लिए मंजूरी दे दी गई। केंद्र ने पहले फेज के लिए 762 हेक्टेयर में फैले 137 मिलियन टन कोयले की खुदाई की मंजूरी दी थी। राज्‍य की तत्‍कालीन भाजपा राज्य सरकार ने भी पहले चरण की खुदाई के लिए सभी मंजूरी दे दी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने खनन पर रोक लगाई लेकिन 2015 में खनन फिर से शुरू हो गया। इस खदान से कोयला निकालने का काम अभी चल रहा है। इसके बाद दूसरे चरण की खुदाई को लेकर विरोध शुरू हो गया।

जमकर हो रही है राजनीति

एक तरफ स्‍थानीय लोग और पर्यावरण प्रेमी जंगल को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं दूसरी तरफ जमकर सियासत भी हो रही है। छत्तीसगढ़ विधानसभा ने हसदेव अरण्य को खनन मुक्त रखने के लिए 26 जुलाई 2022 को अशासकीय संकल्प सर्वानुमति से पारित किया था। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही राज्‍य सरकार ने खदान को अनुमति दे दी। अब कांग्रेस खदान के लिए भाजपा को जिम्‍मेदार बता रही है तो दूसरी तरफ भाजपा कांग्रेस पर ठिकरा फोड़ रही है।

राहुल पहुंचे थे आंदोलनकारियों के बीच

कांग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने जून 2015 में सरगुजा का दौरा किया। राहुल हसदेव अरण्य के गावं में गए और पैदल यात्रा भी की। इसके बाद मदनपुर गांव में आयोजित आम सभा में राहुल गांधी ने लोगों से वादा किया था कि वो जंगल नहीं कटने देंगे।

तीन राज्‍यों को जोड़ता है हसदेव अरण्‍य

हसदेव अरण्‍य तीन राज्‍यों के जंगलों को जोड़ता है। एक तरफ इसका एक छोर मध्‍य प्रदेश के कान्‍हा जंगल से जुड़ी हुई तो दूसरा छोर झारखंड के पलामू तक फैला है। छत्तीसगढ़ में इस यह जंगल कोरबा, सरगुज़ा और सूरजपुर जिलों में फैला है। इसी जंगली क्षेत्र में हसदेव नदी बहती है। जंगल इस नदी के कैचमेंट एरिया में है। हसदेव नदी पर बना मिनी माता बांगो बांध जिससे बिलासपुर, जांजगीर-चाम्पा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है। इस जंगल मे हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है। करीब 1 लाख70 हजार हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहां गोंड, लोहार और ओरांव , पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है। 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। इनमें से 18 वनस्पतियों अपने अस्तित्व के खतरें में है।

लेमरु हाथी रिजर्व

केंद्र सरकार की तरफ से 2018 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार छत्‍तीसगढ़ में देश के केवल एक प्रतिशत हाथी छत्‍तीसगढ़ में हैं लेकिन इसी जंगली सीमा ओडिशा, झारखंड और मध्‍य प्रदेश से लगी हुई है। इस वजह से यह हाथियों की आवाजाही का रास्‍ता है। वनों की कटाई के कारण प्रदेश में हाथी मानव द्वंद्व की घटनाएं बढ़ गई हैं। स्‍थानीय लोगों की मांग और हाथियों के संरक्षण के लिए वन क्षेत्र के करीब 2 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को हाथी रिजर्व घोषित किया गया है। इस रिजर्व को लेमरु हाथी रिजर्व नाम दिया गया है।

यह है विरोध की असली वजह

हसदेव अरण्‍य का पूरा क्षेत्र पांचवीं अनूसूची में आता है। ऐसे में वहां खनन के लिए ग्राम सभा की मंजूरी जरुरी है। आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि ग्राम सभा ने मंजूरी नहीं दी है। वजह यह है कि परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है जिसमे से 137 हेक्टेयर काटा जा चुका है। इसके साथ ही परसा कोल ब्लॉक के 1267 हेक्टेयर काटा जाएगा। लगभग 9 लाख पेड़ काटे जाएंगे। इससे वन्‍य जीवों और वनस्पति के साथ हसदेव नदी का केचमेंट भी प्रभावित होगा।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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