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Chhattisgarh News: CG सरकार ने नीति बना दी, लेकिन अफसर की नियुक्ति करना भूल गई: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कुछ इस अंदाज में पूछा......

Chhattisgarh News: नई भूअर्जन नीति बनाने के बाद पीठासीन अधिकारी की अगर नियुक्ति नहीं की गई है तो इसमें भूमि स्वामियों की गलती कहां है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्यों ना इस विलंब के लिए भूमि स्वामियों को जिनकी भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया है अतिरिक्त मुआवजा दिया जाए। मामले की अगली सुनवाई 4 अक्टूबर को निर्धारित की गई है। लिहाजा इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल का राज्य शासन को अपने ला अफसर के माध्यम से जवाब पेश करना होगा।

Chhattisgarh News: CG सरकार ने नीति बना दी, लेकिन अफसर की नियुक्ति करना भूल गई: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कुछ इस अंदाज में पूछा......
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By Radhakishan Sharma

Chhattisgarh News: बिलासपुर। नई भू अर्जन नीति बनाने के बाद राज्य सरकार ने पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति करना ही भूल गई है। इस मामले में सरकार फंस गई है। भू अर्जन नीति के तहत मुआवजा के एक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा अब तक पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति ना कर पाने को गंभीरता से लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा है कि नियुक्ति ना होने के कारण भूमि स्वामी याचिकाकर्ता को आर्थिक नुकसान क्यों उठाना पड़ रहा है। इस स्थिति में क्यों ना उसे अतिरिक्त मुआवजा दिया जाए। छत्तीसगढ़ में सैकड़ों की संख्या में इस तरह के प्रकरण लंबित है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भूमि स्वामियों की नजरें टिकी हुई है।बहरहाल इस पूरे मामले में राज्य शासन को अब अपना जवाब पेश करना होगा।

नई भू अर्जन नीति और अधिनियम के तहत मुआवजा की मांग को लेकर दायर याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस फैसले के खिलाफ भूमि स्वामी बाबूलाल ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है। एसएलपी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन से पूछा है कि विलंब के लिए भूमि स्वामी क्यों दोषी होंगे। इसके लिए क्यों ना भूमि स्वामियों को अतिरिक्त मुआवजा दिया जाए। मामले की अगली सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर की तिथि तय कर दी है। बता दें कि प्राधिकरण एवं पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति ना होने के कारण भूअर्जन और भुगतान में विलंब हो रहा है। इसका खामियाजा भूमि स्वामियों को भुगतना पड़ रहा है।

21 जून 2024 को मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने भूमि स्वामी बाबूलाल की याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पूरा मामला निजी हित के कारण है। हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए भूमि स्वामी बाबूलाल ने अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में बताया है कि याचिकाओं की सुनवाई के बाद कोर्ट द्वारा राज्य शासन को पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति का निर्देश दिया था। इसके बाद भी राज्य शासन ने गंभीरता से नहीं लिया है। इसके चलते सैकड़ों भूमि स्वामियों को मुआवजा की राशि नहीं मिल पा रही है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि , नए कानून के अंतर्गत छत्तीसगढ़ राज्य में भू अर्जन प्राधिकरण में पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति बीते 10 माह से नहीं हुई है। राज्य शासन द्वारा पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति ना किए जाने के कारण भुगतान नहीं हो पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने विलंब का कारण पूछने के साथ ही राज्य शासन से यह भी पूछा है कि क्यों ना भूमि स्वामियों को अतिरिक्त मुआवजा दिया जाए।

ये है भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013

इस अधिनियम का उद्देश्य उन ज़मीन मालिकों के लिए उचित मुआवजा और पुनर्वास सुनिश्चित करना है जिनकी भूमि का अधिग्रहण किया गया है। यह कानून भूमि अधिग्रहण के परिणामस्वरूप लोगों के अनैच्छिक विस्थापन को कम करने का भी प्रयास करता है। इस अधिनियम के अनुसार, भूमि अधिग्रहण के लिये निजी क्षेत्र की परियोजनाओं और सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना हेतु कम-से-कम 80 फीसद और 70 फीसद भू-मालिकों की सहमति को अनिवार्य कर दिया है।

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