Chhattisgarh Institute of Medical Sciences: सिस्टम को शर्म मगर आती नहीं: CIMS में ऑर्थो के डॉक्टरों को दे रहे 13 लाख वेतन, पर 3 साल से कोई ऑपरेशन नहीं, चीफ जस्टिस साहब इसे भी...
Chhattisgarh Institute of Medical Sciences: हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने सिम्स की अव्यवस्थाओं पर संज्ञान लिया।
Chhattisgarh Institute of Medical Sciences: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के दूसरे बड़े जिले और मेडिकल कॉलेज (Chhattisgarh Institute of Medical Sciences) के हॉस्पिटल की क्या स्थिति है, यह बयां करने के लिए इतना ही काफी है कि पिछले तीन साल से यहां ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट में कोई मेजर ऑपरेशन नहीं हुआ है, जबकि हर महीने यहां डॉक्टरों को 12-13 लाख रुपए वेतन दिए जा रहे हैं। दूसरी तरफ मरीज और उनके परिजन निजी अस्पताल में हड्डी के ऑपरेशन के लिए 40-50 हजार रुपए खर्च कर रहे हैं। यहां पदस्थ डीन और अधीक्षक गाल बजाते बैठे रहे पर यह ध्यान देने की जहमत नहीं उठाई कि मरीजों को कोई परेशान न हो।
मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने Chhattisgarh Institute of Medical Sciences (CIMS) सिम्स की अव्यवस्थाओं पर संज्ञान लिया। इसके बाद जब प्रशासन की नजर पड़ी, तब पता चला कि कलेक्टर से भी ज्यादा वेतन पाने वाले डॉक्टरों को मरीजों की सुविधा से कोई लेना-देना नहीं था. मरीजों के लिए स्ट्रेचर नहीं मिलते। व्हील चेयर उपलब्ध नहीं है, या टूटे फूटे हैं। कमरों में बदबू आती है। टॉयलेट की ठीक से सफाई भी नहीं होती। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने इस मामले में सिम्स प्रबंधन के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को भी तलब किया है।
हाई कोर्ट की सख्ती के बाद अब वहां की कई खबरें सामने आ रही हैं। इनमें एक खबर यह भी है कि ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट में पिछले तीन साल से डॉक्टर सिर्फ मुंह दिखाने का वेतन पा रहे हैं। यहां तीन साल से एक मशीन नहीं होने के कारण बड़े ऑपरेशन भी नहीं हो रहे. इस मशीन का सी-आर्म है, जिसकी मदद से यह पता चलता है कि ऑपरेशन के वक्त हड्डी पर कितना ड्रिल करना है. स्क्रू या प्लेट कहां लगाना है। ऐसा नहीं है कि यह मशीन उपलब्ध नहीं है। सीजीएमएससी से सी-आर्म मशीन उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन डॉक्टरों को पसंद नहीं आई तो उन्होंने ऑपरेशन ही करना छोड़ दिया। बताते हैं, प्राइवेट अस्पतालों की मिलीभगत से डॉक्टर आर्म मशीन मंगाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। क्योंकि, इससे निजी अस्पताल उपकृत हो रहे हैं। ताज्जुब यह कि सिम्स प्रबंधन की इस मनमानी पर बिलासपुर के किसी नेता ने भी संज्ञान नहीं लिया। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के समर्थक बड़ी संख्या में बिलासपुर में रहते हैं। उनकी तरफ से भी कोई आवाज नहीं उठी और गरीब लूटता रहा। जबकि, सिम्स में दो-दो प्रोफेसर हैं। छत्तीसगढ़ के किसी मेडिकल कॉलेज के आर्थो विभाग में दो प्रोफेसर नहीं हैं। इसके अलावा दो एसोसिएट प्रोफेसर, दो असिस्टेंट प्रोफेसर, तीन सीनियर रेजिडेंट। मगर एक भी मेजर आप्रेशन नहीं।
जैसा वीडियो वैसी रिपोर्ट नहीं
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने दशहरे के दिन जब छुट्टी थी, तब मामले में दूसरी सुनवाई की। इस दौरान मीडिया में छपी खबरों और कलेक्टर अवनीश शरण के दौरे के समय बने वीडियो को देखकर कहा कि जैसा वीडियो में दिख रहा, वैसी रिपोर्ट नहीं बनी है। लोगों से शिकायत-सुझाव के लिए जो पेटी लगी है, वह भी खराब स्थिति में है। स्वास्थ्य सचिव ने जो रिपोर्ट दी है, उसमें यह नहीं बताया कि कितनी मशीनें हैं और सभी मशीनें चालू हालत में है, या नहीं? इसकी जांच करने के लिए चिकित्सा शिक्षा सचिव पी. दयानंद सिम्स पहुंचेंगे। उनके साथ कलेक्टर अवनीश शरण, सीएमएचओ व बाकी अधिकारी भी रहेंगे।
सिर्फ रेफरल सेंटर बना सिम्स
सिम्स की स्थिति अभी सिर्फ रेफरल सेंटर जैसी है, क्योंकि यहां ज्यादातर जांच की सुविधाएं नहीं है। यहां डॉक्टर इलाज के बजाय मरीजों को दूसरे अस्पताल ले जाने की सलाह देने से भी नहीं चूकते, जबकि निजी अस्पतालों की तरह स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करने की जिम्मेदारी डॉक्टरों की होती है। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे सिम्स में सर्दी-खांसी और बुखार आदि सामान्य बीमारियों का इलाज हो रहा है, जबकि गंभीर किस्म की बीमारियों के लिए लोग निजी अस्पतालों का रुख करते हैं। बिलासपुर व इससे लगे गांव-कस्बों के गरीब लोग ही सिम्स पहुंचते हैं, जिनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। फिर भी डॉक्टर चुप हैं।