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Chhattisgarh Assembly Election 2023: राजा के चक्कर में RKC में दाखिले के लिए जाति बदलना पड़ा भारी, अब टिकिट का मोहताज, जानें जूदेव परिवार के मित्र का दिलचस्प किस्सा

Chhattisgarh Assembly Election 2023: राजा के चक्कर में RKC में दाखिले के लिए जाति बदलना पड़ा भारी, अब टिकिट का मोहताज, जानें जूदेव परिवार के मित्र का दिलचस्प किस्सा
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By yogeshwari varma

Chhattisgarh Assembly Election 2023रायपुर. जशपुर राजघराने के मित्र परिवार को आखिर भाजपा का बागी क्यों बनना पड़ा. ऐसी क्या परिस्थितियां बनीं कि इस परिवार के कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. स्व. दिलीप सिंह जूदेव के दत्तक पुत्र के कारण भाजपा ऐसी सीट से हार गई, जहां 35 सालों से भाजपा का कब्जा था. दरअसल, यह कहानी थोड़ी पुरानी है. स्व. दिलीप सिंह जूदेव के पिता के जमाने की. पहले आपको एक पात्र से परिचय कराते हैं...नाम है - प्रदीप नारायण सिंह दीवान. 2018 के चुनाव में जशपुर सीट से एक निर्दलीय प्रत्याशी को 10646 वोट मिले थे. यह एक बड़ी वजह थी कि भाजपा प्रत्याशी गोविंद भगत की कांग्रेस प्रत्याशी विनय भगत से 7769 वोटों से हार हो गई थी. प्रदीप सिंह ही वे निर्दलीय प्रत्याशी थे. पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री स्व. जूदेव के दत्तक पुत्र प्रदीप चाहते थे कि भाजपा उन्हें टिकट दे. भाजपा ने टिकट नहीं दिया और वे बागी हो गए थे.भारी

इस बगावत की कहानी जानने के लिए फ्लैशबैक पर चलते हैं. प्रदीप नारायण सिंह दीवान के दादा और स्व. जूदेव के पिता विजय भूषण सिंह जूदेव के मित्र थे. यह तब की बात थी, जब रायपुर के राजकुमार कॉलेज में सिर्फ राजघराने के बच्चों को ही एडमिशन मिलता था. प्रदीप वैसे तो पहाड़ी कोरवा हैं और कोरवा समाज के राजा परिवार के हैं. लेकिन आदिवासी होने के कारण राजकुमार कॉलेज ने उन्हों दाखिला देने से इंकार कर दिया। लेकिन, विजय भूषण जूदेव चाहते थे कि उनका दोस्त उनके साथ आरकेसी में पढ़े। उन्होंने रास्ता निकालते हुए अपने आदिवासी मित्र दीवान को बघेल क्षत्रीय जाति का सर्टिफिकेट बनवा दिया। इस आधार पर राजकुमार कॉलेज में दीवान को दाखिला मिल गया। और इसी वजह से वे पहाड़ी कोरवा होते हुए भी सामान्य वर्ग के हो गए. हालांकि, सालों बाद विजय भूषण सिंह के बेटे दिलीप सिंह जूदेव की कोशिशों से प्रदीप सिंह को आदिवासी का सर्टिफिकेट तो मिल गया, लेकिन टिकट देने की जब बारी आई, तब यह बात भी आई कि सभी समाज में स्वीकार्यता नहीं है...आदिवासी समुदाय उन्हें आदिवासी नहीं मानता। इसलिए टिकिट नहीं देंगे. इस वजह से 2018 के विधानसभा चुनाव में वे बागी हो गए थे. इस चक्कर में भाजपा से बाहर हो गए. इसके बाद फिर से वापसी हो गई, लेकिन इस बार भी टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर वे चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

जशपुर की तीनों सीटें आरक्षित इसलिए राज परिवार 400 किमी दूर

जशपुर जिले में वैसे तो राज परिवार का अच्छा प्रभाव है, लेकिन तीनों सीटें आरक्षित होने के कारण राज परिवार के सदस्य 200 और 400 किलोमीटर दूर से चुनाव लड़ रहे हैं. स्व. दिलीप सिंह जूदेव के छोटे बेटे युद्धवीर सिंह जूदेव की पत्नी संयोगिता 200 किलोमीटर दूर चंद्रपुर से चुनाव लड़ रही हैं. वहीं युद्धवीर के बड़े भाई प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कोटा विधानसभा सीट से लड़ रहे हैं. इधर, इसी महीने के पहले हफ्ते में जशपुर घराने के राजा रणविजय सिंह जूदेव पार्टी के सभी वाट्सएप ग्रुप से लेफ्ट हो गए. यह भी कहा कि टिकट नहीं मिलने पर भी वे निर्दलीय नहीं लड़ेंगे

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