Chandrayaan 3: मिशन चंद्रयान 3 अभियान में छत्तीसगढ़ के होनहारों ने दिया योगदान, छत्तीसगढ़ से आधा दर्जन शामिल...
Chandrayaan 3 : रायपुर। चंद्रयान तीन अभियान ने कल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर लिया। चंद्रयान 3 अभियान की सफलता का साक्षी पूरा देश बना और इसके सफल होते ही देशभर में सफलता का जश्न मनाया जाने लगा। चंद्रयान-3 की सफलता में छत्तीसगढ़ के भी आधा दर्जन प्रतिभावान होनहार युवाओं ने अपना योगदान दिया है जाने उनके बारे में।
बिलासपुर की स्वाति स्वर्णकार मेडिकल कांप्लेक्स निवासी रामसिंग स्वर्णकार की पुत्री हैं। स्वाति ने बिलासपुर के कोनी स्थित गवर्मेंट इंजीनियरिंग कालेज से बीई किया हैं। जिसके बाद उन्होंने एमटेक रुड़की आईआईटी से करने के बाद कानपुर आईआईटी से फ्लाइट मेकेनिक्स एंड कंट्रोल में पीएचडी किया। चंद्रयान तीन अभियान में इनका मुख्य योगदान पोस्ट लांच एंड मिशन सपोर्ट एनालिसिस करना है, जिसके तहत लांच व्हीकल से चंद्रयान–3 के अलग होने के बाद जब चंद्रयान अलग अलग फेसेस से होकर गुजर रहा था, जैसे कि पृथ्वी के अलग अलग ऑर्बिट को को पार करना, पार होते हुए चंद्रमा और पृथ्वी के बीच उसे ट्रैक करना और चन्द्रमा के ऑर्बिट में चंद्रयान के प्रवेश करते तक हर एक जरूरी डाटा एनालिसिस करने का काम स्वाति व उनकी टीम का था। कुल मिलाकर स्वाति के कंट्रोल मे चंद्रयान के पृथ्वी से लांच होने के बाद से चंद्रमा की सतह पर पहुंचने तक का कंट्रोल स्वाति और उसकी टीम के हिस्से था। स्वाति को इसरो में मुख्य डोमेन कंट्रोल सिस्टम डिजाइन एंड डेवलपमेंट पर काम करना होता है।
सरकंडा बंगाली पार्क के निवासी विकास श्रीवास भी चंद्रयान टीम के हिस्सा थे उनके पिता दिनेश श्रीवास उद्यानिकी विभाग सेवानिवृत हुए हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा तखतपुर से हुई। इसके बाद हायर सेकेंडरी उन्होंने तिलक नगर सरस्वती शिशु मंदिर से पूरी की। फिर गवर्मेंट इंजीनियरिंग कालेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में इंजीनियरिंग की। विकास का सिलेक्शन 2007 में इसरो में वैज्ञानिक अभियंता के पद पर हुआ। 2007 से विकास तिरुवंतपुर स्थित इसरो केंद्र में कार्यरत है। विकास ने चंद्रयान को चंद्रमा पर भेजने के लिए जिस एलएम तीन व्हीकल और रॉकेट का ढांचा तैयार किया है, उसे बनाने वाली टीम के सदस्य रहें है। उनका चयन परमाणु ऊर्जा आयोग में भी हुआ था पर वहां सिर्फ एक माह की नौकरी के बाद अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि के चलते उन्होंने परमाणु ऊर्जा आयोग की नौकरी छोड़ दी थी। अंतरिक्ष विज्ञान मे विकास की रुचि अपने दादा रिटायर्ड प्रिंसिपल फागूराम श्रीवास की प्रेरणा से मिली थी।
बिलासपुर की बहू शूजा भट्टाचार्य भी चंद्रयान-3 मिशन की डिप्टी डायरेक्टर रही। बिलासपुर के हेमू नगर निवासी स्वर्गीय एसके भट्टाचार्य के बेटे अमिताभ भट्टाचार्य से शूजा की शादी हुई है। शूजा मूलतः केरल की रहने वाली है और पिछले दस वर्षों से इसरो में वैज्ञानिक के पद पर पदस्थ हैं। शूजा के पति और बिलासपुर के बेटे अमिताभ भट्टाचार्य भी इसरो में पदस्थ थे। वह अभी प्रतिनियुक्ति पर रोबोटिक्स के लिए अमेरिका में है। उन्होंने इसरो में रहते हुए ही अपने ही जैसी वैज्ञानिक शूजा से विवाह किया जो इसरो में ही वैज्ञानिक हैं। शूजा का 7 माह का बेटा है, जिसे वह सास के पास छोड़कर दिन के 12 से 14 घंटे तक चंद्रयान अभियान को समय देती हैं। जुलाई में चंद्रयान 3 की लॉन्चिंग की गई तो इन्हे काफी अधिक समय तक काम करना पड़ा। लांचिंग के पिछले चार से पांच दिनों तक तो शूजा जा घर भी नही गई थी।
अंबिकापुर के निशांत और बालोद जिले के भानपुरी के मिथलेश भी चंद्रयान–3 टीम का हिस्सा रहें हैं। अंबिकापुर के गोधनपुर निवासी 30 वर्षीय निशांत सिंह कांग्रेस नेता अनिल सिंह के पुत्र हैं। वैसे मूलतः निशांत के पिता बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर निवासी है। वहां से निशान के पिता सभी को लेकर अंबिकापुर आ गए थे। निशांत की प्राथमिक शिक्षा अंबिकापुर के कार्मेल कान्वेंट स्कूल से हुई। दसवीं तक की पढ़ाई उन्होंने नवोदय स्कूल बसदेई सूरजपुर से की। दसवीं में टॉप करने के बाद स्कूल प्रबंधन ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए केरल भेज दिया था जहां से 11th 12th की पढ़ाई के बाद उन्होंने दिल्ली से इंजीनियरिंग की और वैज्ञानिक बने।
बालोद के गुरुर ब्लॉक के भानपुरी गांव निवासी 30 वर्षीय मिथलेश साहू भी इस मिशन का हिस्सा रहें। उनके पिता ललित साहू गांव के ही शासकीय स्कूल में प्रधान पाठक से सेवानिवृत हुए हैं। मिथलेश साहू ने गांव के सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर भिलाई के शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज से 2007 में कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की डिग्री ली। चंद्रयान 2 मिशन के अलावा चंद्रयान मिशन 3 में भी इसरो में इन्हे कंप्यूटर डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी दी गई थी।
भिलाई के चंद्रयान 3 सफलता पूर्वक चंद्रमा के पहुंचाने वाली टीम में भिलाई–3, चरोदा के 23 वर्षीय युवा के भरत कुमार भी शामिल है। उनके पिता चंद्रमोहन बैंक में सुरक्षा गार्ड का काम करते हैं। उनकी मां खर्चे की पूर्ति के लिए इडली दोसे की दुकान लगाते है। उन्होंने बारहवीं तक की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय से की। दसवीं में उनका 93 और बारहवीं में 94 प्रतिशत हैं। गरीब घर से आने वाले भरत की मां इडली डोसा की दुकान चलाती है। भरत भी स्कूल से आकर मां के दुकान में बर्तन धोने समेत अन्य काम करते थे। फिर सुबह जल्दी उठ कर पढ़ाई करते थे। आर्थिक तंगी के चलते नवीं कक्षा में उन्हें टीसी दी जा रही थी, पर स्कूल ने उनकी फीस माफ कर दी। शिक्षकों ने उनके कापी किताब का खर्चा उठाया था। 12वीं में भरत ने फिजिक्स में 99 केमिस्ट्री में 98 और गणित में 99 अंक हासिल किया था। गरीबों के चलते आईआईटी में पढ़ने का सपना धूमिल होने ही वाला था कि रायपुर के उद्योगपति अरुण गोयल और जिंदल ग्रुप ने भरत की आर्थिक मदद की। भरत ने आईआईटी निकाल आईआईटी धनबाद में मैकेनिकल ब्रांच में एडमिशन लिया और टॉप करते हुए गोल्ड मेडल हासिल किया। जब वे सातवे सेमेस्टर में थे तभी इसरो ने उन्हें कैम्पस प्लेसमेंट के जरिए सलेक्ट किया।