CG Paddy: 80 अरब का चूना लगाने वाले अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं, मिलरों को बिना पैसे धान टिका कर वाहवाही बटोर रहे मार्कफेड के अफसर...
CG Paddy: लोन लेकर धान खरीदी करने वाले स्टेट के अधिकारी अगर मिस मैनेजमेंट से आठ हजार करोड़ याने 80 अरब रुपए का नुकसान कर दें, तो इसके लिए कोई जिम्मेदारी तय नहीं की जानी चाहिए? छोटे से मामलों में पटवारी सस्पेंड हो जाता है, मगर 80 अरब के नुकसान में किसी एक अधिकारी को नोटिस तक इश्यू नहीं की गई है। आलम यह है कि किसानों से 4100 रुपए में धान खरीद मिलरों को बिना पैसा टिकाया जा रहा है। और पीठ थपथपाई जा रही कि 3.5 करोड़ क्विंटल में से 1.9 करोड़ क्विटंल धान का डिस्पोजल कर दिया गया है। जबकि, वास्तविकता यह है कि मिलरों को धान उस पैसे के एवज में दिया जा रहा, जिसे सूबे के मिलर मान चुके थे कि ये पैसा अब नहीं मिलने वाला। जाहिर है, पिछली कांग्रेस सरकार में मिलिंग में प्रोत्साहन राशि को लेकर बड़ा खेल हुआ था, जिस मामले में ईडी ने मार्कफेड के एमडी समेत कइयों को जेल भेज चुकी है। अफसरों ने समय रहते अगर बचे धान की नीलाम कर ली होती, तब भी 1800 करोड़ से ज्यादा नुकसान होने से बच गए होते।

CG Paddy
CG Paddy: रायपुर। पिछले हफ्ते धान पर बनाई गई मंत्रिमंडलीय उप समिति की बैठक हुई। इसके बाद प्रेस नोट जारी किया गया, उसमें बताया गया कि मिलिंग के बाद बचे 3.5 करोड़ क्विंटल धान में से एक लाख 18 क्विंटल धान का निराकरण कर दिया गया है। मगर सवाल उठता है उसका पैसा? तो जवाब मिलेगा बिना पैसे का। याने किसी तरह धान को मिलरों की जी-हुजूरी कर टिकाया जा रहा। ताकि बारिश में धान खराब हुआ तो उससे अपनी चमड़ी बचाई जा सकें।
अफसर या कुंभकरण?
अफसर यह कहकर नहीं बच सकते कि धान खरीदी अधिक हो गई। सरकार ने रेट बढ़ाया है और फिर रकबा भी तो स्वाभाविक तौर से धान की आवक बढ़नी थी। मगर समय रहते अफसरों ने धान के डिस्पोजल की कोई तैयारी नहीं की। संग्रहण केंद्रों में धान के बोरे जमा होते गए और अफसर कुंभकरण की नींद्रा में सोते रहे। जब जागे तब तक मिलिंग का टाईम खतम हो गया था और तीन करोड़ 50 लाख क्विंटल धान अतिशेष बच गया। ये बात जनवरी, फरवरी की रही होगी। जानकारों का कहना है कि उस समय भी फूड और मार्कफेड के अधिकारियों ने अगर त्वरित फैसला ले लिया होता तो भी खजाने का करीब दो हजार करोड़ बच गया होता। मगर अफसरों को होश तब आया, जब बरसात सिर पर आ गया। सरकार ने फूड सिकरेट्री और मार्कफेड एमडी को चेंज किया, मगर तब तक टाईम बहुत कम बच गया था। समय पर निर्णय न लिए जाने का खामियाजा यह हुआ कि रबि का धान आ गया, जिससे बाजार काफी गिर गया। जो धान फरवरी से अप्रैल तक 2400-2500 मिल रहा था, वह अब गिरकर 1800 पर आ गया है। याने उस समय अगर धान की नीलामी हो गई होती तो 1800 से 2200 करोड़ रुपए खजाने का बच जाता।
मिलरों को बिना पैसे धान
मार्कफेड के सामने अब चुनौती यह है कि तीन करोड़ 50 लाख क्विंटल धान को निकाला कैसे जाए। इसमें रास्ता निकाला गया कि किसी तरह मिलरों को धान दिया जाए। मगर मिलरों के पास खुद ही धान भरे पड़े हैं। ऐसे में, उन्हें प्रलोभन दिया गया कि धान उठा लो, पैसा मत देना। याने पुराने पैसे में उसे एडजस्ट कर दिया जाएगा। इसके बाद भी 3 करोड़ 50 लाख क्विंटल में से करीब आधे धन बच गए हैं।
बारिश से खराब होने का खतरा
मंत्रिमंडलीय उप समिति की बैठक के बाद प्र्रेस नोट में अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि अभी भी एक करोड़ 20 लाख क्विंटल से अधिक धान अभी भी बचे हुए हैं। छत्तीसगढ़ में गोदामों की सुविधा है नहीं। तिरपाल खरीदने के नाम पर मार्कफेड हर साल करोड़ों रुपए खर्च करता है, उसके बावजूद धान बच नहीं पाता। ऐसे में, समझा जा सकता है कि इस बार क्या होगा?
मिस मैनेजमेंट की पराकाष्ठा
राज्य निर्माण के बाद 25 साल में जो नहीं हुआ, वह फूड और मार्कफेड के अधिकारियों ने कर डाला। लोन के पैसे से खरीदे गए धान का ऐसी बर्बादी कभी नहीं हुई। छोटे से मामले में पटवारी सस्पेंड हो जाता है। मगर हजारों करोड़ का चूना लगाने वाले अधिकारियों को अभी तक नोटिस भी जारी नही की गई है।
3100 का धान, पड़ता 4100
किसानों से धान 3100 में खरीदा जाता है मगर उसकी सूखत, बारदाना, परिवहन समेत दीगर खर्च मिलाकर वह धान 4100 रुपए प्रति क्विंटल पड़ता है। इतना महंगा धान अगर 1900 के रेट में नीलाम किया जाए। वो भी बिना पैसे का। याने सिर्फ कागजों में 1900 रुपए दिखाया जा रहा है। फिलहाल कोई पैसा नहीं मिल रहा। इसके अलावा भी खुले आसमान में करोड़ों का धान बारिश में भीग रहा है, उसकी जिम्मेदारी किसी को तय करना चाहिए।
सरकार को कौवा मारकर टांगना होगा
धान की खरीदी को लेकर सिस्टम अगर चौकस नहीं हुआ, कुंभकरणों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, तो हर साल खजाने को इसी तरह नुकसान होता रहेगा। क्योंकि, धान का रेट और रकबे की मात्रा बढ़कर 10 से 15 बोरा होने पर हर साल ये स्थिति आएगी।
