छत्तीसगढ़ में शैक्षणिक संस्थाओं के लिए आरक्षण की स्थिति स्पष्ट नहीं और HNLU में एडमिशन अंतिम चरण में, जुलाई से क्लासेस
रायपुर. छत्तीसगढ़ में शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एडमिशन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. वहां जुलाई से क्लास शुरू करने की तैयारी है. ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि जब आरक्षण की स्थिति ही स्पष्ट नहीं है, फिर किस आधार पर यह एडमिशन किया जा रहा है? इसे यदि कोर्ट में चुनौती दी जाएगी, उसके बाद की स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार होगा, क्योंकि काउंसिलिंग के लिए छात्रों ने फीस दी और अब एडमिशन फीस लेने की तैयारी चल रही है.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को अपने फैसले में 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस साल एक मई को अपने फैसले में सिर्फ नौकरियों में भर्ती और प्रमोशन के लिए अंतरिम राहत दी है. राज्य सरकार 58 प्रतिशत आरक्षण के आधार पर नौकरियों के लिए विज्ञापन जारी कर रही है. इसके विपरीत शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए फिलहाल आरक्षण की स्थिति शून्य है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इसके विपरीत हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी द्वारा 50 प्रतिशत आरक्षण (16:20:14 रोस्टर) के आधार पर प्रोविजनल एडमिशन की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है. यूनिवर्सिटी ने बाकायदा ने ऑल इंडिया और छत्तीसगढ़ कोटे की सीटों का आरक्षण के आधार पर आबंटन कर दिया है.
NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के पूर्व रिसर्च कंसल्टेंट बीके मनीष का कहना है कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, जहां कानून की पढ़ाई होती है, वहां इस तरह की धोखाधड़ी की जा रही है. यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट को यह स्पष्ट करना चाहिए कि किस आधार पर आरक्षण तय किया गया है, जबकि राज्य सरकार ने शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के समय जो प्रावधान लागू होगा, उसके मुताबिक प्रवेश के लिए सभी विभागों को निर्देश जारी किया है.
2012 से पहले की स्थिति कैसे?
छत्तीसगढ़ शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम 2012 मूल अधिनियम था, जो 2012 के मार्च-अप्रैल सत्र में पारित हुआ था. इससे पहले शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के संबंध में आरक्षण के लिए कोई कानून नहीं था. ऐसी स्थिति में 58 प्रतिशत आरक्षण असंवैधानिक होने की स्थिति में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू करने पर भी सवाल उठ रहे हैं. यह पूरा मामला अभी कोर्ट के अधीन है. 50 प्रतिशत आरक्षण की स्थिति में आदिवासी छात्रों को 10 सीटों का नुकसान हो रहा है. वहीं, आरक्षण शून्य की स्थिति मानें तो 43 सीटें आरक्षित होने से सामान्य वर्ग के उन छात्रों को नुकसान हो रहा है, जिन्हें ज्यादा नंबर मिले थे.