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CG पुलिस का कमाल: बंद हॉस्पिटल की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर हत्या की कोशिश की धारा जोड़ी और युवक को जेल भेज दिया, फजीहत हुई तो अस्पताल संचालक को नोटिस

मारपीट के एक मामले में 9 महीने बाद गंभीर धारा जोड़कर युवक को जेल भेजकर फंसी बिलासपुर पुलिस। अपनी गलती छिपाने अस्पताल पर दोष।

CG पुलिस का कमाल: बंद हॉस्पिटल की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर हत्या की कोशिश की धारा जोड़ी और युवक को जेल भेज दिया, फजीहत हुई तो अस्पताल संचालक को नोटिस
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By NPG News

बिलासपुर। मारपीट के एक मामले में 9 महीने बाद पुलिस को ब्रह्म ज्ञान हुआ। हत्या की कोशिश का जुर्म दर्ज किया और आनन-फानन में युवक को जेल भेज दिया। जिस अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर गंभीर धारा जोड़ी गई, वह बंद हो चुकी थी। डॉक्टरों ने रिपोर्ट देने की बात पर हाथ खड़े कर दिए। यह मामला तब सामने आया जब 27 दिन तक जेल में रहे युवक की मां ने अस्पताल से जानकारी जुटाई।

यह कमाल किया है सिविल लाइंस थाने की पुलिस ने। जब यह मामला खुला और फजीहत हुई तो पुलिस अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए अस्पताल संचालक को नोटिस जारी किया है। धारा 307 हटाने की बात कही जा रही है। इस मामले में सबसे अहम सवाल यह है कि किसके कहने पर पुलिस ने बंद अस्पताल से जारी हुई मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर युवक को गिरफ्तार किया। सवाल यह भी है कि पुलिस गंभीर थी, तब 9 महीने तक चालान क्यों पेश नहीं कर पाई थी। जब मेडिकल रिपोर्ट पेश की गई, तब किसी ने जांच क्यों नहीं की? इस पूरे मामले में सरकंडा के थानेदार परिवेश तिवारी और विवेचना अधिकारी की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

पहले घटनाक्रम समझ लें...

मिली जानकारी के अनुसार सरकंडा के जबड़ापारा में रहने वाले शक्ति सिंह के खिलाफ 12 जनवरी को अर्चना विहार में रहने वाले उत्कर्ष दुबे ने सिविल लाइन थाने में सरकंडा के जबड़ापारा निवासी शक्ति सिंह के खिलाफ मारपीट की एफआईआर लिखाई थी। उस समय पुलिस ने धारा 323, 294, 506, 341, 34 के तहत अपराध दर्ज किया था। उत्कर्ष दुबे को जिला हास्पिटल में मुलाहिजा के लिए ले जाया गया था, जहां से वह बिना एक्सरे के वापस लौट गया था। फिर 4 अक्टूबर को मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर मामले में धारा 307 जोड़ कर शक्ति सिंह को जेल भेज दिया गया। आपको यह बता दें कि पहले जो धाराएं थीं, वह जमानती थीं। हत्या की कोशिश का अपराध गैर जमानती है।

अब आगे क्या हुआ यह पढ़ें

जिस स्काई हास्पिटल की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर शक्ति सिंह को जेल भेज दिया गया था, उसके डॉक्टरों ने मेडिकल रिपोर्ट बनाने से ही इंकार कर दिया। मामले का प्रार्थी उत्कर्ष दुबे था, जो स्काई हॉस्पिटल के मैनेजर अंकित दुबे का भाई है। लिहाजा संदेह के आधार पर शक्ति सिंह की मां आशा सिंह ने मेडिकल रिपोर्ट बनाने वाले स्काई हॉस्पिटल के तत्कालीन डॉक्टर राजीव सखूजा और डॉक्टर नरेश कृष्नानी से संपर्क किया। तब उन्होंने ऐसी कोई भी मेडिकल रिपोर्ट प्रार्थी उत्कर्ष दुबे की बनाने से मना करते हुए अपनी सील व साइन होने से इंकार कर दिया। मामले में आशा सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस कर पुलिस प्रशासन पर गम्भीर आरोप लगाते हुए कहा कि एक प्राइवेट हॉस्पिटल की फर्जी रिपोर्ट के आधार पर उनके बेटे को जेल भेज दिया गया है, जबकि जनवरी में घटना के 9 माह बाद अचानक से मेडिकल कैसे आ गया। वहीं, दूसरी तरफ जिन डॉक्टरों की सील व साइन से मेडिकल रिपोर्ट बनाई गई है, उन्होंने भी इसे फर्जी बताते हुए सरकंडा व सिविल लाइन थाने में अपने सील साइन का दुरुपयोग करने वालों पर कार्रवाई की मांग की है।

हॉस्पिटल का मैनेजर सगा भाई

पूरे मामले को इसलिए संदिग्ध माना जा रहा है, क्योंकि जिस हास्पिटल से मेडिकल रिपोर्ट बनाई गई, उसका मैनेजर अंकित दुबे प्रार्थी उत्कर्ष दुबे का भाई है। वही सिविल लाइन पुलिस पर आरोप लग रहे हैं कि पुलिस एक तो 9 माह तक सामान्य से मारपीट के मामले में चालान पेश नहीं कर सकी, वहीं 9 माह बाद अचानक बंद हॉस्पिटल की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर गैर जमानतीय धारा का अपराध दर्ज कर शक्ति सिंह को जेल भेज दिया गया। इस मामले में जब डॉक्टरों ने शपथ पत्र दिया कि उनके द्वारा कोई मेडिकल रिपोर्ट प्रार्थी उत्कर्ष दुबे का नहीं बनाया गया है, तब 27 दिनों तक जेल में रहने के बाद शक्ति सिंह की जमानत हो सकी।

इस मामले में सिविल लाइन पुलिस का कहना है कि आरोपी शक्ति सिंह ने 9 माह तक एफआईआर में मुचलका नहीं लिया था, इसलिए पुलिस चालान पेश नहीं कर सकी थी। जहां तक डॉक्टरों के फर्जी मेडिकल रिपोर्ट की बात है तो अस्पताल प्रबंधन को नोटिस जारी कर सारे दस्तावेज मांगे गए हैं, जो अब तक अप्राप्त है। पुलिस का कहना है कि प्रकरण से धारा 307 हटाने की कार्यवाही की जा रही है। वहीं, बंद अस्पताल के जिन डॉक्टरों के नाम की मेडिकल रिपोर्ट पेश की गई थी, उन्होंने भी सरकंडा थाने में अपने सील व साइन का दुरुपयोग कर फर्जी सील व साइन से मेडिकल रिपोर्ट बनाने की शिकायत दर्ज करवाई है। शहर में चर्चा है कि जिस दौरान घटना हुई उस दौरान अस्पताल का संचालन शहर की प्रसिद्ध समाजसेवी और विजडम ट्री फाउंडेशन की कर्ता धर्ता डाक्टर पलक जायसवाल थी। अंकित दुबे उन्हीं के अस्पताल का मैनेजर था। डॉक्टर पलक जायसवाल को कई कार्यक्रमो के दौरान बड़े पुलिस व प्रशासनिक अफसरों के अलावा नेताओं के साथ देखा जाता है। सोशल मीडिया में उनकी अफसरों व नेताओं के साथ तस्वीर भी है। इसलिए पुलिस के ऊपर उनके दबाव में आकर धारा 307 जोड़ने की कार्यवाही का आरोप पीड़ित पक्ष भी लगा रहा है।

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