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Car Accessories Price Hike : शोरूम का मैजिक : क्यों 7 लाख की कार घर आते-आते 10 लाख की हो जाती है? जानिए एक्सेसरीज़ की कीमत का खेल

Car Accessories Price Hike : शोरूम का मैजिक : क्यों 7 लाख की कार घर आते-आते 10 लाख की हो जाती है? जानिए एक्सेसरीज़ की कीमत का खेल
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Car Accessories Price Hike : शोरूम का मैजिक : क्यों 7 लाख की कार घर आते-आते 10 लाख की हो जाती है? जानिए एक्सेसरीज़ की कीमत का खेल

By UMA

Car Accessories Price Hike : नई दिल्ली। कार खरीदने का विचार आते ही ग्राहक सबसे पहले उसकी एक्स-शोरूम कीमत (Ex-Showroom Price) पर ध्यान देते हैं, जो अक्सर विज्ञापनों में 7 लाख रुपये या उसके आसपास दिखाई देती है। लेकिन जब यही ग्राहक गाड़ी लेने डीलरशिप (शोरूम) पर पहुँचते हैं, तो अंतिम ऑन-रोड कीमत (On-Road Price) देखकर चौंक जाते हैं, क्योंकि वह बेस प्राइस से आसानी से 2 से 3 लाख रुपये तक ज्यादा, यानी 10 लाख रुपये तक पहुँच चुकी होती है। इस बड़े अंतर का मुख्य कारण है—एक्सेसरीज पैक का चमत्कार। यह एक्सेसरीज का पूरा खेल है जिसके जरिए डीलर बेस वेरिएंट की कमियों को जरूरी अपग्रेड बताकर ग्राहक की जेब ढीली करते हैं।

Car Accessories Price Hike : एक्सेसरीज पैक : बेस वेरिएंट को कम्प्लीट बनाने का दबाव

डीलरशिप पर पहुँचने पर, ग्राहक को बताया जाता है कि जिस आकर्षक कीमत पर उन्होंने कार देखी थी, वह बेस वेरिएंट की कीमत है। डीलर तुरंत यह बात स्पष्ट कर देते हैं कि इस बेस वेरिएंट में कई आवश्यक चीजें नदारद हैं। इसके बाद, ग्राहकों पर एक्सेसरी पैक लेने का दबाव बनाया जाता है। ये पैक सुरक्षा, स्टाइलिंग और सुविधा के नाम पर पेश किए जाते हैं, जिनकी कीमत 20,000 से शुरू होकर हाई-डिमांड मॉडलों में 1.50 लाख से 3 लाख तक पहुँच जाती है। ग्राहक अक्सर इस झांसे में आ जाते हैं कि यह जरूरी है, जबकि कई एक्सेसरीज आसानी से बाहर (आफ्टरमार्केट) में 30% से 40% कम कीमत पर उपलब्ध होती हैं।

Car Price Hike : महंगी एक्सेसरीज का जाल

कुछ विशेष एक्सेसरीज हैं जो गाड़ी की अंतिम कीमत को नाटकीय रूप से बढ़ा देती हैं। इनमें सबसे ऊपर हैं अलॉय व्हील्स, जिनकी कीमत 25,000 से 60,000 तक हो सकती है। डीलर इन्हें प्रीमियम लुक के लिए अनिवार्य बताते हैं, जबकि बेस वेरिएंट स्टील व्हील के साथ आते हैं। दूसरा महंगा आइटम टचस्क्रीन इंफोटेनमेंट सिस्टम होता है, जो बेस मॉडल के साधारण म्यूजिक सिस्टम की जगह लेता है और 15,000 से 45,000 तक बिल बढ़ा देता है। इसके अलावा, रिवर्स कैमरा और सेंसर को सुरक्षा का हवाला देकर पैक में शामिल किया जाता है, जिनकी कीमत 8,000 से 25,000 तक हो सकती है, जबकि आफ्टरमार्केट में इनकी दरें आधी होती हैं।

छोटे ऐड-ऑन, बड़ा टोटल

महंगी एक्सेसरीज के अलावा, कई छोटे-छोटे ऐड-ऑन भी मिलकर बिल को भारी बना देते हैं। इनमें क्रोम पैक (डोर हैंडल, ग्रिल पर स्ट्रिप्स) शामिल हैं, जो 5,000 से 12,000 तक जोड़े जाते हैं। इसी तरह, डीलरशिप पर बिकने वाले सीट कवर और फ्लोर मैट (4,000 से 20,000) अक्सर बाहर की कीमत से दोगुने होते हैं। बॉडी किट (स्पॉइलर, स्कफ प्लेट) डिजाइन और स्पोर्टी लुक के नाम पर 12,000 से 40,000 तक बढ़ा दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, 7 लाख रुपये की एक्स-शोरूम कीमत वाली कार में अगर 1.38 लाख रुपये का मस्ट हैव एक्सेसरी पैक जोड़ दिया जाए, तो ऑन-रोड कीमत (जिसमें रजिस्ट्रेशन, इंश्योरेंस और टैक्स पहले से शामिल होते हैं) 9.50 लाख से 10 लाख तक पहुँच जाती है। यह ट्रेंड खासकर कम बजट वाली कारों जैसे मारुति स्विफ्ट, बलेनो, हुंडई आई20, टाटा पंच और निसान मैग्नाइट में आम है।

समझदारी से करें खरीदारी

इस एक्सेसरी के खेल से बचने के लिए ग्राहक को जागरूक होना आवश्यक है। सबसे पहली बात, एक्सेसरी पैक लेना अनिवार्य नहीं है। ग्राहक को केवल वे सुरक्षा फीचर्स डीलरशिप से लेने चाहिए जो वारंटी को प्रभावित कर सकते हैं। बाकी सभी नॉन-इलेक्ट्रॉनिक एक्सेसरीज जैसे सीट कवर, फ्लोर मैट और क्रोम स्ट्रिप्स बाहर से 30-40% कम दाम में लगवाई जा सकती हैं। कार खरीदने से पहले, ग्राहक को एक्स-शोरूम और ऑन-रोड कीमत का स्पष्ट ब्रेकअप पूछना चाहिए और डीलर के दबाव में न आकर केवल अपनी जरूरत की चीजें ही खरीदनी चाहिए। इस समझदारी से ही 7 लाख की कार को 10 लाख होने से रोका जा सकता है।

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