राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत के उपलक्ष्य में आयोजित ‘‘धन्यवाद भारत कार्यक्रम’ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छत्रपति शिवाजी महाराज कोे स्मरण करते हुए कहा कि ‘कुछ ही दिनों में देश छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण की 350वीं वर्षगांठ मनायेगा, उनका जीवन ध्येय पथ पर बढ़ने की प्रेरणा देता है’। छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक ज्येष्ठ शुक्ल त्र्योदशी विक्रम संवत् 1731 को रायगढ़ में हुआ था। अंग्रेजी तिथि के अनुसार 6 जून 1974 की वह पुण्य तिथि थी। पुर्तगाली एवं ब्रिटिशों सहित अनेक विदेशी लेखकों ने छत्रपति शिवाजी महाराज की तुलना विश्व के महानतम सेनापति नेपोलियन, सीजर, सिकन्दर के साथ करते हुए उनकी वीरता, साहस, प्रशासनिक कुशलता एंव युद्ध शैली की प्रशंसा की है।
16 फरवरी 1630 ईस्वी शिवनेरी किले में शिवाजी महाराज का जन्म साहजी भोंसले एवं माता जीजाबाई के परिवार में हुआ। उनके जन्म के समय परिस्थिति कैसी थी इसका वर्णन समर्थ गुरू रामदास महाराज ने अपने 12 वर्ष के भारत भ्रमण के पश्चात इस प्रकार किया ‘‘या भूमंडलाचे ढायी, धर्मरक्षा ऐसा नाही’’ इस समय इस भूमंडल पर धर्मरक्षक कोई नहीं है। सम्पूर्ण देश में कोई भी मंदिर सुरक्षित नहीं है समाान्य जनता मुगलों के अत्याचार से कराह रही है, किसी भी नदी का जल पवित्र नहीं है, जिससे अभिषेक किया जा सके। इस बिकट परिस्थिति में छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने रणकौशल एवं बुद्धिकौशल से स्वराज की स्थापना की। उनके कुशल प्रशासन को देखने के बाद पुनः स्वयं समर्थ रामदास महाराज ने कहा कि ‘आचारशील, विचारशील, न्याशील, धर्मशील, सर्वज्ञ सुशील जाणता राजा’’ (जाणता अर्थात् सदैव जागरूक)।
किसी भी कार्य की सफलता का आधार नेतृत्वकर्ता के सहयोगी कैसे है इस पर निर्भर करता है। शिवाजी महाराज ने सहयाद्रि में निवास करने वाले सामान्य गरीब, किसान, युवकों में स्वराज की प्रेरणा जगायी। समाज के सामान्य वर्ग से निकले इन्हीं योद्धाओं ने अपने जीवन की बाजी लगाकर स्वराज्य स्थापना का श्रेष्ठतम कार्य किया। औरंगजेब अपनी सेना के एक-एक सेनापति से तुलना करते हुए शिवाजी महाराज के सेनापतियों की विशेषता का वर्णन करते हुए कहता है कि ‘वे झुकते नहीं, रूकते नहीं, थकते नहीं और बिकते भी नहीं’।
छत्रपति शिवाजी महाराज का शासन लोक कल्याण एवं पारदर्शिता से युक्त था। अपने वित प्रबंधन को लेकर वे सदैव सजग थे। अपने मंत्रालयों की समीक्षा करते समय उन्होंनेे अपने लेखपाल से पूछ लिया कि कल तक का हिसाब दैनिंदनी में चढ़ा अथवा नहीं, नकारात्मक उत्तर होने पर लापरवाही के लिए कठोर दंड भी दिया। लगान के उचित संग्रह में लापरवाही पर देश कुलकर्णी आपाजी से जुर्माना भी लिया एवं पद मुक्त भी किया। भ्रष्टाचार विहीन शासन छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन का वैशिष्टया था। भ्रष्टाचार युक्त शासन के लिए उन्होंने रिश्वत लेने पर अपने सौतेले मामा मोहिते को भी कारागार में डाल दिया था। 13 मई
1671 के अपने पत्र में वे लिखते हैं कि अगर आप जनता को तकलीफ देेंगे, कार्य सम्पादन में रिश्वत मागेंगे तो जनता को लगेगा कि इससे तो मुगलों का शासन ही अच्छा था।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने स्वराज संचालन के लिए अष्ट प्रधान शासन प्रणाली की व्यवस्था दी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज जहां एक दूरदर्शी योद्धा थे, वहीं वह एक कुशल प्रशासक भी थे। स्वदेशी जलपोत निर्माण के लिए मुंबई के पास कल्याण एवं भिवंडी में उनके द्वारा स्थापित जलपोत निर्माण करवाना, व्यापार एवं सुरक्षा के प्रति उनकी दृष्टि की ओर इंगित करता है। अंग्रेजों से तोप निर्माण की तकनीक न मिलने पर उन्होंने फ्रांस के सहयोग से पुरंदर किले पर तोपखाना स्थापित कराया। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का यह तंत्र वर्तमान की सरकार का मंत्र भी बना है। भूमि का मापन, पैदावार का मूल्यांकन, आपदा में होने वाली हानि के मूल्यांकन की व्यवस्था शिवाजी महाराज ने उस समय की थी। सिंचाई के लिए बांधा, तालाबों, कुएं, बावड़ी एवं जलाशयों का निर्माण उनकी दूरदर्शिता को प्रकट करते हैं। स्वस्थ भूमि, स्वस्थ उत्पाद, स्वस्थ पर्यावरण के लिए फसलों में विविधता, फलदार वृक्षों को लगवाना उनकी कृषि एवं पर्यावरण के प्रति दृष्टि को प्रकट करते हैं।
महिलाओं के प्रति उनके हृदय में सम्मान एवं महिलाओं के प्रति कुदृष्टि डालने पर कठोर दंड उनके शासन की व्यवस्था थी। मुस्लिम महिला गोहरबानू के प्रति उनके उदगार काश मेरी मां भी इतनी सुंदर होती, सखोजी गायकवाड़ को दंड उनकी न्यायप्रियता को प्रकट करते हैं। स्वराज के हित को प्रथम रखते हुए उन्होंने व्यापारिक संबंध सभी से रखे थे। व्यापार के लिए मध्य एशिया के देशों तक उन्होंने संबंध बनाये थे। उसमें मस्कट के इमाम भी प्रमुख थे। उन्होंने अंधविश्वास एवं कुरीतियों को तोड़ते हुए वैज्ञानिक दृष्टि को अपने राज्य संचालन का आधार बनाया। उनके शासन में वृद्ध, बीमार एवं बच्चों को छोड़कर अन्य किसी के लिए भी मुफ्त सुविधा की व्यवस्था नहीं थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज की शासन प्रणाली में स्वभाषा एवं स्वसंस्कृति को विशेष महत्व था। गुलामी के प्रतीकों को हटाकर स्वाभिमानी समाज जागृत करने के लिए उन्होंने किलों के नामों को नामांतरण भी किया। उर्दू और फारसी के शब्द बदलकर स्वराज संचालन के लिए 1400 हिन्दी शब्दों का कोष भी बनाया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज की गुप्तचर व्यवस्था, शत्रु को पहचानने की उनकी अचूक दृष्टि उनकों शेेष भारतीय राजा-महाराजाओं से अलग करती है। उत्तर भारत की मुगल शक्ति एवं दक्षिण की आदिलशाही, कुतुबशाही के भेद का उन्होंने उचित उपयोग किया था। अंग्रेज व्यापारी स्वभाव के है, उन्होंने इसको अच्छे से पहचानकर उसी दृष्टि से उनके साथ व्यवहार भी किया था। शत्रु की कमजोरी उनके साथ ‘जैसे को तैसा व्यवहार’ (शठे शाठमय समाचरेत) शाइस्ताखन, अफजलखान एवं औरंगजेब से युद्ध करते समय उन्होंने अपनाया था। व्यापार एवं सुरक्षा के लिए नौसेना के तहत्व को पहचान कर सिंधुदुर्ग सहित समुंद्र किनारे अनेक दुर्गाें की स्थापना उन्होंने की थी। अपने धर्म से विमुख हुए लोगों को अपने धर्म में पुनः वापसी भी उन्होंने करायी थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने न केवल हिन्दवी साम्राज्य स्थापित किया, बल्कि सम्पूर्ण समाज में स्वराज्य, स्वधर्म के प्रति समर्पण की भावना भी जागृत की। देशभर में स्वराज की रक्षा के लिए संघर्षरत समस्त राजा-महाराजाओं के प्ररेणा पुंज भी वह बने। बुंदेलखंड के महराजा छत्रसाल, समय के लाचिद बड़फूकन उन्हीं से प्रेरणा लेकर संघर्ष कर रहे थे। विजय प्राप्ति पर अहोम राजाओं ने कहा कि हमारी प्रेरणा का केंद्र शिवाजी है।
अपनी माता की मृत्यु के समय भी बिना अवकाश लिए वे राज्य का सूत्र संचालन करते रहे और न ही कोई शासकीय अवकाश घोषित किया। स्वराज संस्थापन के लिए निःस्वार्थ भाव से कार्य करना ही उनकी प्रेरणा थी। स्वराज स्थापन यह ‘‘श्री’’ का कार्य है यह मान कर उन्होंने सम्पूर्ण जीवनभर संघर्ष किया। अपने सहयोगियों में भी उन्होंने यही भाव कूट-कूट कर भरा था। सहयोगियों से वे कहते थे कि हमारे कार्य की दिशा ठीक है यह पवित्र कार्य है। हमारा कार्य पवित्र होने के कारण पवित्र अदृश्य शक्तियां हमारा सहयोग करेंगी। मां तुलजा भवानी एवं परमेश्वर पर यह आस्था ही उनके संघर्ष की प्रेरणा थी। निमित्तता के इसी निःस्वार्थ भाव के कारण उन्होंने एक कागज पर लिखकर अपना राज्य अपने प्रेरणा स्रोत समर्थ रामदास स्वामी महाराज की छोली में डाल दिया था।
हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के इस पुनीत अवसर पर हम छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन आदर्श से प्रेरणा लेकर अपने देश को आत्मनिर्भर, आर्थिक संपन्न, सुरक्षित एवं सांस्कृतिक मूल्यों से संरक्षित कर विश्व वन्दनीय भारत बनाएं।