डाॅक्टरों की खराब हैंडराइटिंग कैसे बन जाती है मरीजों की जान की दुश्मन, पढ़िए NPG की विशेष रिपोर्ट
NPG DESK I एक डाॅक्टर के हाथों लिखा प्रिस्क्रिप्शन इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।ये फेक है या रियल, ये तो प्रमाणित नहीं हुआ है लेकिन लोग हैरान इसलिए हैं क्योंकि प्रायः डाॅक्टरों के जटिल हैंडराइटिंग में लिखे पर्चे लोगों की परेशानी का सबब बनते हैं। उन्हें पढ़ना मरीज तो दूर,कभी-कभी फार्मासिस्ट के लिए भी चुनौतीपूर्ण काम बन जाता है। यहाँ तक कि ऐसी खबरें भी आती हैं कि एक अक्षर गलत पढ़ लेने के कारण बिल्कुल विपरीत असर वाली दवा दे दी गई जिसका खामियाज़ा मरीज को उठाना पड़ा।सरकार के स्पष्ट निर्देश हैं कि डाॅक्टर कैपिटल लेटर्स और पठनीय हैंडराइटिंग में प्रिस्क्रिप्शन लिखें, बावजूद इसके डाॅक्टर इस संबंध में गंभीर नहीं हैं। जबकि यह लोगों की ज़िन्दगी से जुड़ा मामला है। कैसे डाॅक्टर की खराब हैंडराइटिंग से लोगों की जान पर बन आती है, कैसे लड़ी गई इसके खिलाफ लड़ाई और कैसे बदला नियम,एक पड़ताल...
ऐसे उठा मामला-डाॅक्टरों की खराब हैंडराइटिंग और उन्हें गलत पढ़कर अलग दवा दे देने के मामले और इसमें सुधार को लेकर एक्शन लेने के लिए कुछ एनजीओ और व्यक्तियों ने लंबा संघर्ष किया। 2012 में सरकार ने लोकसभा को सूचित किया कि एमसीआई (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) के पास डॉक्टरों को अपने नुस्खे बड़े अक्षरों में लिखने का निर्देश देने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
तेलंगाना के एक फार्मासिस्ट ने आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट में दायर किया मामला
2013 के अंत में, वर्तमान तेलंगाना राज्य के नलगोंडा जिले के सी परमात्मा नाम के एक फार्मासिस्ट ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से अनुरोध किया कि डॉक्टरों को केवल बड़े अक्षरों में अपने नुस्खे लिखने का निर्देश दिया जाए। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि कुछ दवाओं के नाम केवल एक अक्षर से भिन्न होते हैं और कभी-कभी हैंडराइटिंग क्लियर न होने के कारण फार्मासिस्ट लोगों को गलत दवा दे देते हैं।हालांकि उनकी याचिका एमसीआई को भेज दी गई थी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने तत्कालीन आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। अपनी जनहित याचिका में, उन्होंने ड्रग्स के कुछ उदाहरणों का हवाला दिया और बताया कि कैसे उनके नाम एक अक्षर से भिन्न होते हैं। जनहित याचिका में, उन्होंने तेलंगाना में हुई एक घटना का भी उल्लेख किया, जहां एक फार्मासिस्ट ने खराब हैंडराइटिंग के कारण मिसोप्रोस्ट 200 को MICROGEST 200 समझ लिया था। MICROGEST 200 महिलाओं को उनकी गर्भावस्था में मदद करने के लिए है जबकि MISOPROST गर्भपात के लिए है।
जनहित याचिका का निपटारा करते हुए, एपी उच्च न्यायालय ने एक अनुकूल आदेश पारित करने में असमर्थता व्यक्त की क्योंकि कानून द्वारा ऐसी कोई आवश्यकता नहीं थी। हालांकि, अदालत ने महसूस किया कि कारण बिल्कुल उचित है और इसलिए एमसीआई को इस मुद्दे को देखने का निर्देश दिया।
आखिर सरकार ने नियमों में संशोधन किया
आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद, सरकार ने संबंधित विनियमन में संशोधन को मंजूरी दी । 2014 के अंत में, सरकार ने लोकसभा को सूचित किया कि संबंधित नियमों में संशोधन को मंजूरी दी गई है। लगभग 2 वर्षों के बाद, सरकार ने 2016 में 'इंडियन मेडिकल काउंसिल (पेशेवर आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002' में संशोधन को अधिसूचित किया, जो सभी डॉक्टरों के लिए जेनेरिक नामों के साथ दवाओं को सुपाठ्य और अधिमानतः बड़े अक्षरों में लिखना अनिवार्य बनाता है।
आखिर क्यों डाॅक्टर इतनी अबूझ हैंडराइटिंग में पर्चा लिखते हैं?
- नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट स्वीकार करती है कि डॉक्टर्स की लिखावट ऐसी होती है कि कई बार वो खुद अपना लिखा हुआ नहीं समझ पाते हैं। उनकी ऐसी लिखावट की वजह है, दिनभर में अधिक मरीजों को देखना और उनके लिए दवाएं लिखना।कम समय में ज्यादा मरीज देखने के कारण प्रिस्क्रिप्शन को भी तेजी से लिखना होता है,और हैंडराइटिंग बिगड़ जाती है।
- टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, दिनभर प्रिस्क्रिप्शन लिखते-लिखते डॉक्टर्स की हाथों की मांसपेशियां जरूरत से ज्यादा थक जाती है। इस तरह एक समय के बाद हाथ थक जाता है, यह भी एक कारण है कि इनकी हैंडराइटिंग बिगड़ती जाती है।
खराब हैंडराइटिंग के कारण कैसी-कैसी गड़बड़ियां होती हैं, कुछ अन्य दवाओं के उदाहरण -
-डाइकालिस (dicalis) का उपयोग मल्टी विटामिन सप्लीमेंट के तौर पर होता है। वहीं दूसरी दवा है डाइकारिस ( dicaris)। इस दवा का उपयोग कीड़े मारने के अलावा त्वचा पर संक्रमण के लिए भी किया जाता है। दोनों के नाम में सिर्फ एक अक्षर का ही अंतर है। अंग्रेजी के अक्षर एल के स्थान पर आर आते ही दवा का नाम और इसका प्रभाव पूरी तरह बदल जाता है।
- डेक्सिन (dexin) का उपयोग बैक्टीरिया के संक्रमण में होता है। आंख में संक्रमण से बचाव के लिए इसका आई ड्रॉप भी आता है। वहीं दूसरी ओर डेपिन (depin) का उपयोग उच्च रक्तचाप के मामलों में किया जाता है। इनके नाम में भले ही अंग्रेजी अक्षर एक्स और पी का अंतर हो, लेकिन दोनों के उपयोग में जमीन आसमान का अंतर है।
और भी ऐसी बहुत ही दवाएं हैं जिनके नाम गलत पढ़ाई आ जाने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है, जैसे-
susten gel- अनियमित माहवारी के लिए है तो sustane-gel आई ड्रॉप है।
omen-बीपी के लिए है, omez-गैस के लिए है।
teleact- हाई बीपीके लिए है तो tadact- नसों में खून के बहाव से जुड़ी समस्याओं में उपयोगी है।
metolor-हाइपरटेंशन के लिए है तो meltor-सूजन कम करने के लिए।
छत्तीसगढ़ में मंत्री को दे दी गलत दवा
रमन सिंह सरकार में अमर अग्रवाल पहले स्वास्थ्य मंत्री और बाद में नगरीय प्रशासन और आबकारी मंत्री रहे। बीबीसी की ख़बर के मुताबिक़ मंत्री जी का एक कर्मचारी राजधानी रायपुर के एक मेडिकल स्टोर में पहुंचा।उसने डॉक्टर की पर्ची दिखा कर कुछ दवाइयां लीं।आरोप है कि दवा खाने के बाद मंत्री जी का ब्लड प्रेशर लो हो गया। हालत ये हुई कि उन्हें बैठक छोड़कर घर लौटना पड़ा। डॉक्टरों को बुलाया गया तो पता चला कि मेडिकल स्टोर के दुकानदार ने ग़लत दवा दे दी है। इसकी पूरी जानकारी ज़िले के कलेक्टर को दी गई। कलेक्टर ने खाद्य और औषधि विभाग को तलब किया।खाद्य और औषधि विभाग ने तुरंत दुकान पर छापा मार कर दवा दुकान पर ताला जड़ दिया।
यहां मामला मंत्री से जुड़ा था तो प्रशासन ने इतनी सक्रियता दिखाई लेकिन आम आदमी की किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती। उसे तो परेशानी भी झेलनी पड़ती है और शिकायत पर आसानी से कोई कार्रवाई भी नहीं होती। इसलिए आम आदमी के हित में तो यही है कि डॉक्टर सरकार के निर्देश का पालन करें और कैपिटल लेटर्स व साफ हैंडराइटिंग में प्रिस्क्रिप्शन लिखें, मेडिकल स्टोर पर प्रशिक्षित फार्मासिस्ट हो, जिससे एक अक्षर के हेरफेर की कीमत पर एक परिवार की खुशियां न छिनने पाएं।