Dilip Singh Judeo: Chhattisgarh Assembly Election: छत्तीसगढ़: देश का पहला चुनाव, जिसमें अर्जुन सिंह से हार कर भी सियासी हीरो बन गए दिलीप सिंह जूदेव

Flashback Dilip Singh Judeo Chhattisgarh Assembly Election: जशपुर के राजघराने में जन्‍में दिलीप सिंह जूदेव छत्तीसगढ़ और देश की राजनीति में अलग पहचान रखते हैं। अटल जी की सरकार में वे वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री थे।

Update: 2023-08-16 14:00 GMT

Dilip Singh Judeo: Chhattisgarh Assembly Election: रायपुर। भाजपा के कद्दावर नेता दिलीप सिंह जूदेव, वह नाम जिसने जशुपर राजघराने से निकलकर राष्‍ट्रीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। सियासत की लंबी पारी में जूदेव के नाम के साथ कई विवाद भी जुड़े। जूदेव की राजनीति में इंट्री कैसे हुई इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक है। रोचक इस वजह से क्‍योंकि लोग चुनाव जीतकर पहचान बनाते हैं, लेकिन जूदेव हार कर हीरो बने थे। वैसे जूदेव का नाम आते ही सबसे पहले ‘घर वापसी अभियान’ याद आता है। वह अभियान जिसके जरिए जूदेव ने बड़ी संख्‍या में धर्म बदल चुके आदिवासियों की हिंदु धर्म में वापसी कराई।

जशपुर से लेकर रायपुर और दिल्‍ली तक जूदेव के कई किस्‍से सियासी गलियरों से लेकर आम लोगों से सुनी जा सकती है। छत्‍तीसगढ़ अलग राज्‍य बनने के बाद 2003 में पहला विधानसभा का चुनाव हुआ। राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी के नेतृत्‍व में कांग्रेस चुनाव मैदान में उतरी थी। भाजपा में भगदड़ मची हुई थी। पंच- सरपंच से लेकर सांसद तक भाजपा छोड़कर जोगी के नेतृत्‍व में कांग्रेस प्रवेश कर रहे थे। भाजपा डरी हुई थी तो जोगी सत्‍ता में वापसी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। माहौल भी कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहा था। ऐसे वक्‍त में जूदेव अचानक मैदान में आए। उन्‍होंने कहा कि यदि भाजपा की सरकार नहीं बनी तो वे अपनी मूंछें कटवा देंगे। जूदेव रुआबदार मूंछ रखते थे और पूरे समय ताव देते रहे थे। ऐसे में चुनावी रण में उनका मूंछ को दांव पर लगाना राष्‍ट्रीय राजनीति में चर्चा का विषय बन गई थी।

अब बात उस चुनाव की जिसमें हार कर जूदेव हीरो बने

यह बात 1988 यानी अविभाजित मध्‍यप्रदेश के दौर की है। इसकी कड़ी पंजाब में आतंकवाद से जुड़ी हुई है। तत्‍कालीन केंद्र सरकार ने आतंकवाद को खत्‍म करने की महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी के साथ अर्जुन सिंह को राज्यपाल बनाकर चंडीगढ़ भेजा। बताते हैं कि सिंह को इस आश्‍वासन के साथ वहां भेजा गया था कि यदि वे अपने काम में सफल होते हैं तो उन्‍हें फिर से मध्‍य प्रदेश का मुख्‍यमंत्री बना दिया जाएगा। अर्जुन सिंह संत हरचंद सिंह लोंगोवाल से समझौता कराकर अपने मिशन में सफल हुए। मिशन पूरा होने के बाद उन्हें मध्‍यप्रदेश लौटना था और मुख्यमंत्री बनने के लिए विधायक बनना जरूरी था। ऐसे में उनके लिए सबसे सुरक्षित सीट की तलाश की गई। कई सीटों का गणित देखने के बाद खरसिया सीट को अर्जुन सिंह के लिए फाइनल किया गया। यह एक अनारक्षित सीट थी। बताया जाता है कि खरसिया के तत्‍काली विधायक लक्ष्मी प्रसाद पटेल ने ही इस सीट से चुनाव लड़ने का सुझाव दिया था। खरसिया सीट का पूरा समीकरण समझने के बाद अर्जुन सिंह इस सीट से चुनाव लड़ने को राजी हो गए। लक्ष्‍मी पटेल ने उनके लिए इस्‍तीफा दे दिया। ऐसे में 1988 में वहां उपचुनाव की घोषणा हो गई।

यह उप चुनाव बेहद रोचक रहा। इस चुनाव को बेहद करीब से देखने और कवर करने वाले वरिष्‍ठ पत्रकार रुद्र अवस्‍थी बताते हैं कि अर्जुन सिंह को बताया गया था कि बिना किसी मेहनत के ही इस सीट से चुनाव जीत जांएगे। लेकिन भाजपा उन्‍हें आसानी से जीतने देना नहीं चाह रही थी। इधर, भाजपा के रणनीतिकार लखीराम जूदेव को विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन जशपुर जिला की सभी सीट आरक्षित थी। ऐसे में अग्रवाल जूदेव के लिए सीट की तलाश में थे। अवस्‍थी के अनुसार अग्रवाल ने इस चुनाव में दिलीप सिंह जूदवे को लांच करने का फैसला किया।

और अर्जुन सिंह के सामने युवा जूदेव को लाकर खड़ा कर दिया।

अवस्‍थी बताते हैं कि अर्जुन सिंह इस सोच के साथ नामांकन दाखिल करने आए थे कि नामांकन जमा करने के बाद वे भोपाल लौट जाएंगे और चुनाव प्रचार पार्टी के लोग करते रहेंगे। संयोग से जिस दिन अर्जुन सिंह नामांकन जमा करने पहुंचे उसी दिन जूदेव की भी नामांकन रैली निकली। उस रैली को देखने के बाद अर्जुन सिंह भोपाल लौटने का हौसला नहीं जुटा पाए। अवस्‍थी के अनुसार रामझरना क्षेत्र में उनके रहने की व्‍यवस्‍था की गई और इसके बाद मतदान तक अर्जुन सिंह खरसिया में ही डटे रहे। जूदेव ने वहां ऐसी टक्‍कर दी कि इस चुनाव की चर्चा पूरे देश में होने लगी।

दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा

हारने के बाद निकाली रैली

वरिष्‍ठ पत्रकार अवस्‍थी बताते हैं कि रायगढ़ के पॉलिटेक्निक कॉलेज में मतगणना स्‍थल बनाया गया था। मतगणना के दौरान जूदेव पूरे समय वहां मौजूद थे। अंतिम मतपेटी की गिनती पूरी होने तक उन्‍होंने जीत की उम्‍मीद नहीं छोड़ी थी। परिणाम सामने आए तो अर्जुन सिंह को 43,912 और दिलीप सिंह जूदेव को 35,254 वोट मिले। इस तरह अर्जुन सिंह 8658 वोट से चुनाव जीत गए। अवस्थी बताते हैं कि जीत के बावजूद अर्जुन सिंह रैली नहीं निकाल पाए, लेकिन हारने के बावजूद जूदेव ने आभार रैली निकाली, इसमें भी भारी भीड़ जुटी थी।

चांदी का पालना बेचकर लड़ा था पहला विधानसभा चुनाव

खरसिया से पहले जूदेव विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े थे। वे जशपुर नगर पालिका के अध्‍यक्ष थे। खरसिया से जब चुनाव लड़ना था तो उन्‍होंने अपना चांदी का पालना 11000 रुपये में बेचकर चुनावी खर्च की व्‍यवस्‍था की। बताया जाता है कि वह पालना जशपुर महाराज ने दी थी।

नगर पालिका उपाध्‍यक्ष से केंद्र में मंत्री तक का सफर

जूदेव का राजनीतिक सफल लंबा रहा। जशपुर नगर पालिका अध्‍यक्ष से लेकर वे केंद्र में मंत्री बने। 1975 में उन्‍होंने नगर पालिका अध्‍यक्ष का चुनाव लड़ा। यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। 1988 में चर्चित खरसिया उपचुनाव के बाद वे 1989 से 91 तक बिलासपुर संसदीय सीट से भाजपा सांसद रहे। 1992 से 98 तक राज्यसभा सदस्य रहे। जनवरी 2003 में जूदेव को तत्‍कालीन अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री बनाया गया।

जूदेव और उनका मिलिट्री ग्रीन कलर

जशपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में कुमार साहब के नाम से प्रसिध्‍द जूदेव को मिलिट्री ग्रीन कलर से बेहद लगाव था। वे अक्‍सर इसी रंग के कपड़े पहनते थे। जूदेव कहते थे कि हरे रंग से ताजगी आती है इसलिए वे अक्सर मिलिट्री कलर की ड्रेस पहनते हैं। उनके पास जीप और टाटा सफारी भी इसी रंग की थी।

हिंदू हृदय सम्राट

जूदेव का जन्‍म 8 मार्च 1949 में जशपुर के राजघराने में हुआ था। उनके पिता राजा विजय भूषण देव जशपुर रियासत के आखिरी शासक थे। राजसी ठाठ जूदेव के में हमेशा दिखाई देती थी। उनकी शिक्षा जशपुर और मेयो कॉलेज अजमेर में हुई। 1980 से 1990 के बीच जूदेव की लोकप्रियता चरम पर थी। तब वे युवाओं के बीच यूथ आईकॉन के रूप में जाने जाते थे। घर वापसी अभियान की वजह से जूदेव को हिंदू हृदय सम्राट कहा जाने लगा था। जूदेव जिस भी क्षेत्र में जाते वहां युवा अपने खून से उनका तिलक करते थे।

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