Chhattisgarh: अंधा सिस्टमः आम आदमी को जमीन या मकान लेना हो तो एक नंबर के पैसे को दो नंबर करना होगा, कार्रवाई इसलिए नहीं कि ये बड़े लोगों को भाता है

Chhattisgarh: देश में सबसे संपत्ति का सबसे कम सरकारी रेट छत्तीसगढ़ में है। इसमें भ्रष्ट तंत्र के दो नंबर के पैसे खप तो जाते हैं मगर इससे सरकार और इंकम टैक्स को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि, छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार ने रियल इस्टेट में मनी लॉड्रिंग रोकने पर विचार कर रही है।

Update: 2024-05-26 07:53 GMT

Chhattisgarh: रायपुर। इसे अंधेरगर्दी नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे...आम आदमी को किसी प्रायवेट बिल्डर से प्लॉट या मकान लेना हो तो उसे अपनी पसीने से अर्जित एक नंबर की गाढ़ी कमाई को दो नंबर में बदलना होगा। क्योंकि, छत्तीसगढ़ में संपत्ति का सरकारी रेट एक चौथाई है। लिहाजा, तीन चौथाई राशि आपको दो नंबर में देनी होगी। याने कैश में। इसके लिए आपको तीन-तिकड़म कर कैश का जुगाड़ करना होगा। वरना, आप कोई संपत्ति खरीद ही नहीं सकते।

दरअसल इन सबके पीछे बड़ा खेल है। बताया जाता है कि किसी भी प्रोजेक्ट में बिल्डरों को अपना कुछ नहीं होता। जमीन भी नेताओं, मंत्रियों और नौकरशाहों के पैसे से खरीदी होती है और उसके बाद कालोनियां और अपार्टमेंट भी उन्हीं के इंवेस्टमेंट से। अपना कुछ लगा नहीं, सो बैंक का ब्याज या नुकसान की कोई चिंता नहीं। दिखाने के लिए बिल्डर बैंक से लोन लेते हैं और तुरंत ही उसे चूकता कर देते हैं। याने सिर्फ कागजों में शो करने के लिए लोन।

रायपुर राजधानी बनते ही मंत्री से लेकर बोर्ड, आयोगों का गठन तो हुआ ही भोपाल से बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस रायपुर आए। चूकि छत्तीसगढ़ नया प्रदेश था, सो संभावनाए असीमित थी। मंत्रियों से लेकर नौकरशाहों ने बहती गंगा में जमकर डूबकी लगाई। सबसे पहले नेताओं और नौकरशाहों ने रायपुर के चारों तरफ के लगभग 60-70 किलोमीटर एरिया के सारे जमीन खरीद लिए। जब जमीनों में इंवेस्टमेंट हो गया तो फिर बिल्डरों के प्रोजेक्टों में निवेश प्रारंभ हुआ। साल 2010 आते-आते रायपुर के बिल्डरों ने ऐसा ग्रोथ किया कि बाहर के लोग आवाक थे। लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि रायपुर में इतना पैसा कहां से बरस रहा जबकि, मकान बिकने का औसत ग्रोथ अपेक्षाकृत कम है तो फिर मकान और फ्लैट बनाने की होड़ कैसे मच गई है?

5 साल से नहीं बढ़ा है जमीन का भाव

चूकि रायपुर और उसके आसपास के अधिकांश हाउसिंग प्रोजेक्टों में नेताओं और नौकरशाहों का पैसा लगा है, सो कोविड में रियल इस्टेट धड़ाम से जमीन पर आ गया था, तब भी आपको जानकार ताज्जुब हुआ कि अधिकांश बिल्डर अपने पुराने रेट पर अडिग रहे। नहीं बिकेगा सही मगर रेट कम नहीं करेंग। अब आप खेला समझ गए होंगे।

करोड़ों में दो नंबर की राशि

छत्तीसगढ़ का सलाना बजट 5 हजार करोड़ से चालू हुआ था और एक लाख करोड़ से उपर पहुंच गया है। चाहे बीजेपी का टाईम हो या कांग्रेस का, कई मंत्री 30 से 40 परसेंट कमीशन लेते थे। इसके अलावा नौकरशाहों का अपना हिस्सा। इतने बड़े बजट में हर साल कमीशन की राशि निकालेंगे तो हजार करोड़ से उपर जाएगा। और पूरा कैश में आना है। मुठ्ठी भर बड़े लोग इस पैसे को बड़े उद्योगों में या फिर गुड़गांव जैसे जगहों पर इंवेस्ट कर देते हैं। लेकिन, बाकी पैसे यही लगते हैं।

सरकार का संरक्षण

रायपुर के बिल्डरों को सरकार का भी संरक्षण मिल रहा है। पिछली सरकार ने पांच साल से गाइडलाइन रेट नहीं बढ़ाया। उपर से 30 परसेंट की छूट दे दी। रायपुर के कथित आउटर अब पॉश कालोनियों में बदल गया है। मगर गाइडलाइन रेट आज भी हजार से बारह सौ हैं। और बेचते हैं चार से पांच हजार रुपए के रेट में।

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