15 साल नक्सलियों के कब्जे में सड़क : अरनपुर-जगरगुंडा सड़क नक्सलियों के खिलाफ युद्ध में काफी अहम, व्यापारिक लाभ भी, कई जवानों ने दी शहादत

Update: 2023-04-26 12:06 GMT

जगदलपुर / रायपुर. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले में डीआरजी के 10 जवान और एक ड्राइवर की जिस अरनपुर-जगरगुंडा सड़क पर शहादत हुई, वह 15 साल तक नक्सलियों के कब्जे में रही. सड़क निर्माण के दौरान कई जवानों ने अपनी शहादत दी. बड़े पैमाने पर आईईडी बरामद हुए. साथ ही, बारूदी सुरंग भी, जिसे डिफ्यूज कर छत्तीसगढ़ पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों ने इसे तैयार किया है.

नक्सलियों के खिलाफ चल रहे युद्ध में यह काफी महत्वपूर्ण सड़क है. साथ ही, लोगों की सहूलियत और व्यापारिक लाभ वाला भी है. उतना ही महत्वपूर्ण यह नक्सलियों के लिए भी था, क्योंकि जगरगुंडा का हिस्सा बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले का बॉर्डर का हिस्सा है. नक्सलियों के लिए भी यह रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यहां से वे तीनों जिलों में अपनी गतिविधियों को अंजाम देते थे और बॉर्डर में जाकर छिप जाते थे. इस सड़क पर कभी राज्य परिवहन निगम की बस चला करती थी, लेकिन सलवा जुड़ूम अभियान के बाद नक्सलियों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया. जगरगुंडा का हिस्सा किसी टापू की तरह बन गया था, जहां तैनात पुलिसकर्मियों के लिए हेलिकॉप्टर की मदद से राशन पहुंचाया जाता था. दंतेवाड़ा के तत्कालीन एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव पहले अफसर थे, जो 15 साल बाद बाइरोड सफर कर जगरगुंडा पहुंचे थे. यह बात 2020 की है. इसके बाद 15 जनवरी 2023 को बस सेवा की शुरुआत हुई थी. सड़क बनने के बाद लोगों की आवाजाही तो शुरू हो गई, लेकिन नक्सलियों ने इससे अपना अधिकार खत्म नहीं किया था. वे ताक में थे, जिससे सुरक्षा बलों को फिर नुकसान पहुंचाकर अपनी मौजूदगी का अहसास दिला सकें. आखिरकार आज नक्सलियों को वह मौका मिल गया, जिसका खामियाजा हमने अपने जवानों की शहादत से चुकाया है.


नक्सलियों की तीन एरिया कमेटी

अरनपुर-जगरगुंडा तक सड़क का हिस्सा नक्सलियों के दक्षिण बस्तर दरभा डिवीजन के अंतर्गत आता है. इसके अंतर्गत तीन एरिया कमेटी है. इसमें मलांगीर, जगरगुंडा और केरलापाल शामिल है. किसी समय में यह हिस्सा नक्सलियों का सबसे सेफ जोन माना जाता था. जानकारों के मुताबिक नक्सलियों के बड़े नेता पापाराव, जगदीश, विनोद, देवा, गुंडाधूर से लेकर गणेश उइके तक इस क्षेत्र में तैनात रहे. उनकी मौजूदगी देखी गई. सड़क के रणनीतिक लाभ को देखते हुए ही केंद्र व राज्य की सरकार ने मिलकर इसका निर्माण कराया. इसमें बड़ी राशि खर्च की गई है.


सड़क बनाने से क्या फायदा?

एक सवाल मन में आता है कि धुर जंगल में सड़क बनाने से क्या फायदा है, जबकि दूसरी तरफ से और भी रास्ते उपलब्ध हैं. जानकारों का कहना है कि दूसरी तरफ से रास्ता होने के बावजूद कम दूरी तय करने और ज्यादा दूरी तय करने, समय और ईंधन का खर्च तो लगता ही है. ऐसे स्थान जहां नक्सल या उग्रवादी घटनाएं होती हैं, वहां सड़क बन जाने से लोगों की आवाजाही शुरू हो जाती है. ऐसे में नक्सलियों को आईईडी लगाने या किसी भी तरह की वारदात करने में दिक्कत आती है. नक्सलियों के मूवमेंट की खबर पुलिस को मिल जाती है. पुलिस को पहुंचने में भी आसानी होती है.


जगरगुंडा बड़ा व्यापारिक केंद्र

जगरगुंडा किसी समय बस्तर में वनोपज का बड़ा व्यापारिक केंद्र था. वनोपज के बड़े सौदे यहां होते थे. हालांकि करीब 15 साल तक यह नक्सलियों के कब्जे में रहा. इसके बाद इस क्षेत्र की मुश्किलें बढ़ती गई. अरनपुर-जगरगुंडा सड़क बनने से कोंडासवली, जगरगुंडा, मिलमपल्ली, कामरगुड़ा, नरसापुरम जैसे दर्जनभर से ज्यादा गांव मुख्य धारा से जुड़ गए. बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले को जोड़ने वाली सड़क बन गई. साथ ही, इस रास्ते से आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के लिए भी रास्ता खुल गया.

जब बस सेवा शुरू हुई थी, तब सीएम भूपेश बघेल ने यह ट्वीट किया था.


दंतेवाड़ा में मौके से जवानों के ये हथियार बरामद किए गए हैं.

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