नक्सलियों की नई चाल : दरभा डिवीजन ने अरनपुर हमले की ली जिम्मेदारी, डीआरजी को गुंडा कहा, जानें इनसे क्यों डरते हैं नक्सली

Update: 2023-04-27 12:44 GMT

जगदलपुर / रायपुर. छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल और नक्सल समस्या से जूझ रहे बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के 10 जवानों और एक ड्राइवर की आईईडी ब्लास्ट कर हत्या कर दी. राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार ने भी जवानों की इस शहादत का बदला लेने की बात कही है. इस घटना के बाद नक्सलियों के दरभा डिवीजन ने घटना की जिम्मेदारी ली है. दरभा डिवीजन के सचिव साइनाथ ने एक पत्र जारी कर इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए पुलिस बल और बस्तर के युवाओं को भ्रमित करने के लिए भी अपील की है. इसमें युवाओं को पुलिस के बजाय दूसरे विभागों में नौकरी मांगने और पुलिस को अपने खिलाफ युद्ध में शामिल नहीं होने की अपील की है. इस पत्र में नक्सलियों ने डीआरजी के जवानों को गुंडा बताया है. आखिर क्यों नक्सली डीआरजी में शामिल इन आदिवासी युवाओं से इतना डरते हैं? पढ़िए यह रिपोर्ट...

डीआरजी के जवानों के बारे में जानने से पहले नक्सलियों के गुरिल्ला युद्ध के बारे में जान लेते हैं. गुरिल्ला युद्ध या छापामार शैली के युद्ध की शुरुआत 360 ईसवी पूर्व चीन में हुई थी. (विकिपीडिया के अनुसार) इसमें अलग-अलग टुकड़ियों में अपने प्रतिद्वंद्वी से छल या धोखे से छिपकर लड़ाई लड़ी जाती है. नक्सलियों ने इसी गुरिल्ला युद्ध को अपनाया. बस्तर के घने जंगलों में सुरक्षा बलों को जानकारी नहीं होती थी कि उन पर कब और किस तरफ से हमला हुआ. वे घिर जाते थे और बड़ा नुकसान होता था.

छत्तीसगढ़ में 2008 में सबसे पहले डीआरजी का गठन किया गया था. कांकेर और नारायणपुर जिले में डीआरजी को नक्सलियों के खिलाफ उतारा गया. इसमें स्थानीय युवाओं को शामिल किया गया. सरेंडर करने वाले कुछ नक्सली भी शामिल किए गए. नक्सलियों के खिलाफ पुलिस बल, खासतौर पर अर्द्ध सैनिक बल के जवानों को बस्तर की भौगोलिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए नक्सली उन्हें बार-बार चकमा देने में कामयाब हो जाते थे. सैकड़ों बार नक्सलियों ने इस कमजोरी का फायदा उठाया.

स्थानीय युवा जब पुलिस के साथ शामिल हुए तब एक बड़ा बदलाव यह आया कि जिस जंगल में ऑपरेशन होना है, वह किस तरह का है, यह जानना आसान हो गया. सरेंडर करने वाले नक्सलियों के शामिल होने से नक्सली किस तरह से एंबुश लगाते हैं. अलग-अलग पक्षियों के आवाज में उनके कोड वर्ड क्या हैं, यह पता चलने लगा. बस्तर के आदिवासी युवा प्राकृतिक रूप से शिकारी होते हैं. यही वजह है कि डीआरजी के ऑपरेशन में लगातार सफलता मिली और नुकसान में कमी आई.

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डीआरजी के गठन के बाद दो जिलों में जो सफलता मिली, उसके बाद 2013 में बीजापुर और बस्तर, फिर 2014 में सुकमा और 2015 में दंतेवाड़ा में भी गठन किया गया. इस दौरान अर्द्धसैनिक बलों और स्थानीय पुलिस के बीच को-ऑर्डिनेशन को लेकर लगातार बैठकें होती रहीं. बेहतर समन्वय की कोशिशों के परिणाम के बाद डीआरजी, एसटीएफ और सीआरपीएफ की जॉइंट टीमों ने ऑपरेशन में हिस्सा लेना शुरू किया. इसमें भी डीआरजी की भूमिका काफी अहम थी, क्योंकि वे ऑपरेशन के लिए निकली टीम के सामने चलते थे और उनके बीच एसटीएफ और सीआरपीएफ के जवान होते थे.


बस्तर में डीआरजी के गठन के बाद एक और बड़ा बदलाव यह भी आया कि जो नक्सली पहले ग्रामीण युवाओं को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जाते थे, उनके पास अब दो विकल्प थे. नक्सलियों के साथ जाने में सरकारी वेतन या सुविधा नहीं थी, जबकि डीआरजी में होने वाली भर्ती में उन्हें पुलिस का दर्जा मिलता था. एक सम्मान की नौकरी मिलती थी. इस बीच राज्य सरकार की तरफ से बस्तर क्षेत्र में होने वाली भर्तियों में कई शर्तों में ढील दी. साथ ही, सीआरपीएफ ने भी बस्तरिया बटालियन के अंतर्गत स्थानीय युवाओं की भर्ती की. पुलिस की ओर से भी स्थानीय युवाओं को नक्सलियों के साथ जाने से रोकने के लिए पुलिस और सेना में भर्ती के लिए प्रशिक्षित किया गया.

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पहला बड़ा नुकसान 2022 में

जब डीआरजी ने नक्सलियों के खिलाफ चल रही आर-पार की लड़ाई में बड़ी भूमिका निभानी शुरू की, तब नक्सलियों ने उन्हें पहली बार मार्च 2022 में निशाना बनाया. सुकमा के एल्मागुंडा में 17 जवान शहीद हुए थे और 14 जवान घायल हुए थे. इस घटना में शहीद होने वाले 12 जवान डीआरजी के थे. पहली बार डीआरजी को इतना बड़ा नुकसान हुआ था. इसके बाद बुधवार को दंतेवाड़ा के अरनपुर में 10 जवानों को नक्सलियों ने टार्गेट किया. इसमें दस जवानों की शहादत के साथ एक ड्राइवर की भी जान चली गई.

घटना पर क्या कहा नक्सलियों ने

नक्सलियों की दरभा डिवीजन के सचिव साइनाथ ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले नक्सलियों के उन्मूलन के बयान का उल्लेख करते हुए अरनपुर की घटना को बदला बताया है. नक्सलियों ने ड्रोन हमले और हेलिकॉप्टर के जरिए निगरानी का भी आरोप लगाया है. साथ ही, अपने डर का भी उल्लेख किया है कि बस्तर इलाके में पुलिस नौकरियों में भर्ती के लिए योग्यता व मापदंड बदल दिया गया और अनपढ़ व फिजिकल फिटनेस नहीं होने के बावजूद आदिवासी युवाओं को नौकरी दी गई है.

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