भारत में विलुप्त क्यों हुए चीते! सबसे तेज दौड़ना क्या चीतों के जान गंवाने की वजह बनी!! पढ़िए NPG की रिसर्च स्टोरी

Update: 2022-09-16 13:08 GMT

NPG DESK

मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीका से लाए चीतों को बसाने की खबर सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल अपने जन्मदिन के अवसर पर इन चीतों को पिंजरे से आज़ाद करेंगे। इसके अलावा एक तस्वीर भी मीडिया में छाई हुई है जिसमें कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव तीन चीतों के शिकार के बाद उनके शव के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। हालांकि इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि यही तीन चीते आखिरी तीन चीते थे, पर यदि थे भी तो इनका मात्र तीन शेष रहना भी बताता है कि देश में इनके लिए सही माहौल नहीं था। क्या खासियत हैं चीते की और कौन से वे कारण थे जिनके कारण भारत को चीते विलुप्त घोषित करने पड़े। आइए जान लेते हैं।

पहले जान लेते हैं चीते और उसकी रफ्तार के बारे में चीता शब्द संस्कृत के 'चित्रकाय' शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है चित्तीदार या रंग-बिरंगा धब्बेदार। वन क्षेत्रों से जुड़े हुए चरागाहों में रहने वाला संसार का यह सबसे फुर्तीला प्राणी अपनी खूबसूरत और आकर्षक खाल के लिए शुरू से ही आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसकी खूबसूरत और महंगी खाल को सजावट के सामान की तरह प्रदर्शित कर पुराने जमाने में अपने रुतबे का अहसास कराया जाता था।

दुनिया के तमाम प्राणियों में चीते को सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी माना जाता है। चीते की गति इतनी अधिक होती है कि वह 40 सेकेंड में 700 गज की दूरी नाप सकता है। इसका अर्थ है कि चीता एक घंटे में 70 मील की रफ्तार से दौड़ सकता है।हालांकि चीता लम्बी दूरी तक नहीं दौड़ता उसकी गति सामान्यत: शिकार करते समय तीव्रतम होती है एवं वह साधारणत: 300 फीट की दूरी से अपने शिकार की ओर झपटता है।चीते की यही रफ्तार उसकी प्रजाति के लिए नुकसानदायक साबित हुई। क्योंकि वह राजाओं के लिए बहुत काम का साबित हुआ।

राजाओं का शौक पड़ा भारी-एक तो फर्राटेदार चीते को मार गिराना राजा-महाराजाओं के लिए वैसे ही शान की बात थी कि वे इतने सिद्धहस्त शिकारी हैं। तिसपर जब शिकार करने के लिए ही चीतों को पालने का विचार अमल में लाया गया तब तो जगह-जगह चीते पालतू बना लिए गए। बताते हैं कि मुगल बादशाह अकबर ने 9000 चीते पाल रखे थे। जो शिकार में उनकी मदद करते थे।

अकबर के दरबारी अबुल फज़ल ने लिखा था कि अकबर ने चीतों को पकड़ने के लिए नया तरीका खोजा था।छिछले गड्ढे खोदकर उसके ऊपर ऑटोमैटिक जालीदार दरवाजा लगवाया जाता था। पहले गहरे गड्ढों में गिराकर चीतों को पकड़ा जाता था पर इससे उनके पैर टूट जाते थे। इसलिए अकबर का तरीका अधिक कारगर साबित हुआ।

अकबर ही नहीं, भारत की छोटी-छोटी अन्य रियासतों के राजा भी शिकार के लिये चीतों को पालते थे। अधिकतम छह महीने में चीते को ट्रेड कर लिया जाता फिर चीतों को बकायदा बैलगाड़ी में बैठा कर शिकार के लिये जंगल ले जाया जाता था।चीता स्वयं ही शिकार झपट लेता और थोड़ा सा हिस्सा लेकर संतुष्ट हो जाता। और शिकार किए गए जानवरों की दर्ज संख्या और राजा का गुणगान बढ़ जाता।

अग्रेजी शासनकाल में मारने वाले को दिया गया ईनाम व्यापारिक मानसिकता वाले अंग्रेजों ने काॅफी और चाय प्लांटेशन के लिए जंगल साफ कराए। रहने लायक जगह और आहार की कमी से भी जंगलों में बचे चीतों की संख्या घटने लगी। तत्पश्चात चीते से मुठभेड़ में एक अधिकारी इरविन की मृत्यु के बाद तो अंग्रेजों ने चीतों को मार कर लाने के लिए बकायदा ईनाम घोषित कर दिया । इस तरह चीतों की आबादी घटती ही चली गई।

चीतों को पालने से कम हुआ उनका प्रजनन - चीतों को पालने से उनकी प्रजनन दर घट गई। क्योंकि मादा चीता एकांत पसंद करती हैं। स्मिथसोनियन कंजर्वेशन बायोलॉजी इंस्टीट्यूट के चीता प्रजनन कार्यक्रम के प्रमुख एड्रिएन क्रॉसियर कहते हैं, "उन्हें हम एक मूक एस्ट्रेस कहते हैं, जिसका अर्थ है कि जब वे संभोग के लिए तैयार होती हैं तो वे संकेत नहीं देती हैं।उन्हें जंगल के माहौल और एकांत की चाह रहती है जो उन्हें पालने वाले राजा-महाराजाओं के यहां नहीं मिलता।तो वे कटकर अलग-थलग रहती हैं। वर्ष 1613 में मुगल सम्राट जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहाँगीरी में कैद में रखे गए किसी चीता द्वारा शावक को जन्म देने का दुर्लभ वर्णन किया है। यह अब तक का पहला तथा अंतिम साक्ष्य है जिसमें किसी ऐसी घटना का वर्णन किया गया है।

वर्तमान में लौटते हैं - इस तरह भारत ने धीरे-धीरे अपने सभी चीते गंवा दिए और 1952 में चीते को विलुप्त प्राणी घोषित करने के सिवाय कोई चारा न रहा। अब सात दशक बाद अफ्रीका से समझौते के तहत वहां के चीतों को भारत लाकर बसाया जा रहा है।

खबर के मुताबिक पीएम नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में कल 17 सितंबर को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में में 8 चीते (5 मादा और तीन नर) छोड़े जाएंगे। ये चीते नामीबिया से भारत लाए जाएंगे।जिन्हें 16 सितंबर को नामीबिया की राजधानी विंडहॉक से एक विशेष विमान के जरिए भारत लाया जाएगा। 17 सितंबर की सुबह यह 8 चीते जयपुर लाए जाएंगे फिर यहां से इन्हें हेलीकॉप्टर के जरिए कूनो नेशनल पार्क जाया जाएगा।

लॉरी मार्कर नामक मशहूर जूओलजिस्ट हैं। उन्होंने चीतों को बचाने के लिए खूब काम किया। इसके लिए वे अमेरिका से नामीबिया शिफ्ट भी हुईं। उनका कहना है जैव विविधता हमें जिंदा रखती है। एक प्रजाति कम होती है तो पूरी दुनिया का ताना-बाना टूटता है। अगर चीता खत्म होता है तो टॉप-डाउन इफेक्ट होगा। दरअसल चीता शिकारियों में सबसे ऊपर आता है। यह हमारे इको सिस्टम की सेहत के लिए जरूरी है। चीता अपनी जरूरत के लिए शिकार करता है लेकिन वह गीदड़, परजीवी पक्षी और कीड़ों को भी भोजन देता है।

निसंदेह जैव विविधता और आहार श्रंखला का बना रहना पारिस्थितिकी संतुलन के लिए बेहद ज़रूरी है।अब भारत ने अफ्रीका से चीतों को भारत लाने और बसाने का प्रयास किया है, उनके लिए ज़रूरी वातावरण तैयार किया है तो देखते हैं देश का यह प्रयास कितना सफल होता है।

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