छत्तीसगढ़िया मसाले का देश में अच्छी डिमांड, राज्य सरकार की योजनाओं से प्रदेश में चार लाख टन मसाले का उत्पादन...

Update: 2023-05-24 08:07 GMT

रायपुर 24 मई 2023 I छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार की कोशिशें रंग लाती नजर आ रही है। साल दर साल छत्तीसगढ़ में मसालों की खेती का दायरा बढ़ते जा रहा है। राज्य सरकार की किसान हितैषी नीतियों का खेती-किसानी के क्षेत्र में असर दिख रहा है। किसान नवाचार की ओर बढ़ रहे हैं। सामान्यतः छत्तीसगढ़ में जो किसान धान तथा अन्य परम्परागत फसलों की खेती करते रहे हैं, वे अब मसालों की खेती की ओर भी रूख कर रहे हैं। मसालों की खेती में छत्तीसगढ़ की देश में नई पहचान बन रही है। अब यहां 4 लाख मीट्रिक टन से भी अधिक उत्पादन हो रहा है। यानी छत्तीसगढ़िया मसालों ने देश को अपना दीवाना बना दिया है।

छत्तीसगढ़ में लगभग 9 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सगंध एवं औषधीय फसलों की खेती की जा रही है, जिनसे 60 हजार मेट्रिक टन से अधिक उत्पादन प्राप्त हो रहा है। राज्य की प्रमुख मसाला फसलें अदरक, लहसुन, हल्दी, धनिया एवं मेथी हैं। प्रदेश में लगभग एक लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मसाला फसलों की खेती की जा रही है। जिनसे लगभग 7 लाख मीट्रिक टन उत्पादन मिल रहा है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अंर्गत संचालित विभिन्न केन्द्रों द्वारा मसाला एवं सुगंधित फसलों पर अनुसंधान किया जा रहा है। यहां इन फसलां पर दो अखिल भारतीय समन्वित विकास परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं, जिसके अंतर्गत रायपुर केन्द्र में वर्ष 2010 से अखिल भारतीय औषधीय एवं सगंध फसलें समन्वित विकास परियोजना तथा रायगढ़ केन्द्र में वर्ष 1995-96 ये अखिल भारतीय मसाला फसलें समन्वित विकास परियोजना संचालित की जा रही है। इन दोनों परियोजनाओं के अंतर्गत इन फसलों की अनेक नवीन उन्नत किस्में तथा उत्पादन की उन्नत प्रौद्योगिकी विकसित की गई है। छत्तीसगढ़ की जलवायु और मिट्टी मसालों की खेती के अनुकूल होने के कारण उत्पादन भी अच्छा हो रहा है। राज्य के किसानों को उत्पादन के साथ-साथ अच्छी आमदनी भी मिल रही है। छत्तीसगढ़ में मसालों की मांग और आपूर्ति में संतुलन की स्थिति आ रही है। इस समय मसालों का उत्पादन चार लाख मीट्रिक टन से भी अधिक है। साथ ही इस क्षेत्र में इतने उत्साहजनक परिणाम मिल रहे हैं कि छत्तीसगढ़ से धनिया के भी बीज अन्य राज्यों को आपूर्ति की जा रही हैं।


मसाला उत्पादन के लिए अनुकूल जलवायु

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार छत्तीसगढ़ की जलवायु मसालों के उत्पादन के अनुकूल है। इसलिए यहां मसालों की खेती लगातार बढ़ती जा रही है। हल्दी, अदरक, लाल मिर्च, अजवाईन, ईमली, लहसून की खेती की जा रही है। हल्दी, धनिया, मेथी, लहसून, मिर्च, अदरक की खेती छत्तीसगढ़ के करीब-करीब सभी क्षेत्रों में की जा रही है। वहीं बलरामपुर, बिलासपुर, गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही और मुंगेली में अजवाइन तथा कोंडागांव में काली मिर्च की खेती भी की जा रही है।

सबसे ज्यादा हल्दी का उत्पादन

मसालों की खेती के रकबे के साथ-साथ उत्पादन में भी तेजी से इजाफा देखने को मिल रहा है। छत्तीसगढ में अभी 66 हजार 081 हेक्टेयर में मसालों की खेती हो रही है और लगभग 4 लाख 50 हजार 849 मीट्रिक टन मसालों का उत्पादन हुआ है। छत्तीसगढ़ में हल्दी का रकबा और उत्पादन सबसे अधिक है। उसके बाद अदरक, धनिया, लहसून, मिर्च, इमली की खेती की जा रही है।

योजनाओं से मिल रही मदद

मसाले की खेती के लिए किसानों को राष्ट्रीय बागवानी मिशन, राष्ट्रीय कृषि योजना तथा अन्य योजना के तहत सहायता दी जाती है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत 24 जिलों में मसाले की खेती 13302 हेक्टेयर में की गई है और 93114 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है। वही राज्य में संचालित राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत विगत चार वर्षों में 1837.29 हेक्टेयर में मसाले की खेती की गई एवं औसतन 12861 मीट्रिक टन का उत्पादन प्राप्त हुआ है। इससे लगभग 3500 कृषक लाभान्वित हुए हैं।


भरपूर आय से गदगद किसान

धनिया की खेती करने वाले किसान मयंक तिवारी बताते हैं कि एक हेक्टेयर में बोने पर लगभग 20 हजार रूपए का खर्च आता है। फसल होने पर 60 से 65 हजार तक की आमदनी प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने बताया कि सभी खर्च काटकर 40 से 45 हजार की शुद्ध आमदनी होती है। बलौदाबाजार जिले में हल्दी की खेती करने वाली महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष लोकेश्वरी बाई बताती हैं कि एक एकड़ में हल्दी लगाई है जिस पर 50,000 रूपए का लागत लगी है। फसल काफी अच्छी हुई तथा औसत उत्पादन 50-60 क्विंटल प्राप्त होने की सम्भावना है जिसमे से 5 क्विंटल की खोदाई हो गयी है जिसे पीसकर पैकिंग कर किराना दुकान में बेच रहे हैं जिससे 60-65 हजार की आमदनी हुई है। राजनांदगांव की किसान अरपा त्रिपाठी, गोपाल मिश्र, संजय त्रिपाठी और जैनु राम ने मिलकर 12.208 हेक्टेयर में हल्दी की खेती की है। उन्हें 250-300 मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होने की सम्भावना है। इसी तरह कोरबा जिले के किसान प्रताप सिंह बताते हैं कि उन्होंने 0.400 हेक्टेयर में अदरक की फसल बोई जिसमें 90 हजार रूपए की लागत आई। लगभग 47 क्विंटल उत्पादन हुआ, इसे बेचने पर उन्हें 1.40 लाख रूपए मिले। इस राशि में उन्हें 50 हजार रूपए का शुद्ध फायदा हुआ। बीते चार सालों में लगभग 300 किसानों को अदरक की खेती के लिए प्रशिक्षण दिया गया है। इन किसानों ने 130 हेक्टेयर में अदरक की खेती कर 2000 टन अदरक का उत्पादन किया है।

7 राज्यों में आपूर्ति

छत्तीसगढ़ में मसाला फसलों की बहुत अच्छी संभावना है। अब किसान जागरूक होकर इसकी खेती कर रहे हैं और अच्छी आय प्राप्त कर रहे हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक एस.एच. टूटेजा ने बताया कि बीते सालों में मसालों के बीजों पर शोध किया जा रहा है जिसमें धनिया की दो किस्में सीजी धनिया व सीजी चन्द्राहु धनिया विकसित की गई जिससे अच्छी फसल प्राप्त हो रही है। इसकी स्थानीय स्तर के अलावा अन्य 7 राज्यों में आपूर्ति की जा रही है। इसी तरह हल्दी की भी नई किस्म विकसित की गई है।

सुगंधित फसलों के उत्पादन पर राष्ट्रीय कार्यशाला

छत्तीसगढ़ में मसालों की संभावनाओं और उनकी खेती को प्रोत्साहित करने के लिए बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, सरकंडा, बिलासपुर में राष्ट्रीय कार्यशाला हुई। जिसमें देश के विभिन्न राज्यों के विषय विशेषज्ञ शामिल हुए। साथ ही छत्तीसगढ़ में मसाला एवं सुगंधित फसलों के उत्पादन की संभावनाओं एवं क्षमताओं के संबंध में विचार-विमर्श किया गया। दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान हल्दी, अदरक, काली मिर्च, हरी मिर्च, इलायची, दालचीनी, लौंग, धनियां, मेथी, लहसुन, सौंफ, जीरा आदि मसाला फसलों तथा लेमन ग्रास, सेट्रोनेला, पचौली, मोनार्डा, तुलसी, खस, गेंदा, गुलाब, चमेली, चंदन आदि सगंध एवं औषधीय फसलों के छत्तीसगढ़ में उत्पादन की संभावनाओं एवं क्षमताओं के संबंध में गहन विचार-विमर्श किया गया। इस राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा सुपारी एवं मसाला अनुसंधान संस्थान, कालीकट, केरल, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), रायपुर, उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी निदेशालय, रायपुर तथा छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, रायपुर के सहयोग से किया गया। इस अवसर पर मसाला एवं सगंध फसलों के उत्पादन, प्रसंस्करण तथा मूल्य संवर्धन तकनीकों पर प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया।

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