छत्तीसगढ़: मां की इच्छा पूरी करने बेटों ने बनवा दिया कबूतरों के लिए 11 मंजिला लव टॉवर

Update: 2022-10-10 08:01 GMT

कबूतरों के लिए 11 मंजिला लव टॉवर

NPG ब्यूरो \ रायगढ़। शाहजहां ने पत्नी की याद में भव्य ताजमहल बनाया जो सारी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। लेकिन छत्तीसगढ़ में भी एक अनोखी बिल्डिंग है, जिसे स्थानीय लोग "लव टाॅवर" कहते हैं। यह ताजमहल से बहुत अलग है क्योंकि ये प्रतीक है एक माँ और उसके बेटों के विशुद्ध और अतुलनीय प्रेम का। माँ को कबूतरों से बेहद प्यार था। वे गुज़र गईं तो बेटों ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने कबूतरों के लिए ग्यारह मंजिला घर ही बनवा दिया जो आज भी सैकड़ों कबूतरों का बसेरा है।

कबूतरों का यह टाॅवर 1946 में रायगढ़ के सामजी परिवार की ओर से बनवाया गया।और रायगढ़ स्टेट के दीवान जे एन महंत के हाथों इसका उद्घाटन कराया गया। धीरे-धीरे कबूतरों ने यहां बसना शुरू कर दिया क्योंकि यहां उनके लिए दाने-पानी की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी। शायद अपने प्रति दर्शाए गए प्यार को बेज़ुबान कबूतरों ने भी समझ लिया और सैकड़ों की संख्या में आकर वे यहां बस गये। आज भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।

*ऐसे अस्तित्व में आया कबूतरों का घर बताते हैं कि पहले गांधीगंज में अनाज की मंडी लगती थी। उसे मंगल बाजार के नाम से जाना जाता था। इस मंडी में दूर-दराज से व्यापारी अनाज बेचने आते थे। उठा-धरी में अनाज ज़मीन पर भी गिर जाया करता था। जिसे चुगने बड़ी संख्या में कबूतर यहां इकट्ठा हुआ करते थे। मंडी के पास ही तब राय साहब हरी लाल सामजी रहा करते थे। वे भी इसी मंडी में व्यवसाय करते थे।उनकी माँ भानी बाई को कबूतरों से बहुत प्यार था। वे उनके लिए दाने के साथ पानी का प्रबंध किया करती थीं। और चिंता किया करती थीं कि कहीं कबूतरों का यहां आना किसी कारणवश बंद न हो जाए।

माँ के गुज़रने पर कच्छ कुंम्हरिया निवासी रायसाहब हरीलाल सामजी, बाबू नन्हेंलाल सामजी, बाबू गोविंद सामजी और बाबू वासुदेव सामजी ने ही कबूतरों के इस ग्यारह मंजिला घर का के निर्माण कराया जो आज भी एक नायाब इमारत के रूप में खड़ा हुआ है

*डिज़ाइन भी किया गया कबूतरों के हिसाब से

इस टाॅवर को विशेष रूप से कबूतरों के रहवास को देखते हुए डिजाइन किया गया है, जिसमें ऊपर छोटे-छोटे बने घरौंदों में कबूतर रह सकते हैं। उसके थोड़ा नीचे एक चकरी नुमा प्लेट बनी है, जिसमें पानी भरा जाता था और नीचे जमीन पर दाना गिराया जाता था। इस 11 मंजिला इमारत के हर खण्ड में 44 कबूतर एक साथ रह सकते हैं। कुल मिलाकर इस टाॅवर में 400 से अधिक कबूतर एक साथ अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ा रहे हैं। इस इमारत के निर्माण के पीछे का उद्देश्य भी यही था कि बेजुबान पक्षियों को आश्रय मिले और वे अपना परिवार सुरक्षित रहते हुए आगे बढ़ा सकें।

*मंडी का स्थान बदला, लोगों का दिल नहीं

रायगढ़ की अनाज मंडी आज़ादी से पहले से यहीं गांधी गंज के मंगल बाजार में लगा करती थी लेकिन 1980 में इसका स्थान बदल दिया गया और यह इतवारी में लगने लगी। कबूतरों के दाने- पानी की व्यवस्था में भी दिक्कत आने लगी। लेकिन इतने सालों से कबूतरों का रहवास लोग के दिल में भी जगह बना चुका था। लोगों ने सहर्ष यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।

*हर दिन सुबह पहुंचते हैं शहर के लोग

शहर के एक बुज़ुर्ग बताते हैं कि गांधीगंज में ही पैदा हुए और बचपन से इस टावर को यूं देखते आ रहे हैं। आज भी इस टॉवर के पास लोग सुबह-शाम आते हैं। कबूतरों को दाना देते हैं। वहां रखे पात्रों में पानी भरते हैं और चले जाते हैं। ऐसा करके लोगों को काफी सुकून भी मिलता है।

*बर्थडे भी मनता है और केक भी कटता है

इतना ही नहीं, हर वर्ष यहां इमारत बनने की तारीख पर कबूतरों का बर्थ डे भी सेलिब्रेट किया जाता है।गुब्बारों से सजावट की जाती है, बच्चे पटाखे फोड़ते हैं और केक भी काटा जाता है, जिसमें रायगढ़ वासियों के अलावा सामजी परिवार अपनी नई पीढ़ी के सदस्यों के साथ शामिल होता है।

कबूतरों की इस इमारत को प्रेम व शांति का प्रतीक माना जाता है। यह इंसानों को अन्य प्राणियों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास भी कराती है और इस बात को भी प्रमाणित करती है कि रायगढ़ को दानवीरों का शहर यूं ही नहीं कहा जाता।

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