छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग का महाघोटाला : 9 करोड़ की दवाई, 1 करोड़ की स्टेशनरी और 57 लाख का ड्रेस ?…..ना टेंडर बुलाया, ना रजिस्टर में लिखा….प्राइवेट प्रापर्टी की तरह सरकारी खजाना लूटाती रही सिविल सर्जन मैडम और उनकी भ्रष्ट टीम…करतूत देख जांच टीम का भी दिमाग घूम गया

Update: 2021-08-06 06:13 GMT

रायपुर 5 अगस्त 2021। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग का महाघोटाला सामने आया है। कोरोना से जब पूरा प्रदेश कराह रहा था, तो उस वक्त स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारी किस तरह से जेबें गरम करने में मशगूल थे, उसका पर्दाफाश जशपुर में हुआ है। सिविल सर्जन और डाक्टर-कर्मचारियों ने यहां घोटाले का ऐसा करतूत अंजाम दिया कि सुनकर नटवरलाल के किस्से भी फींके पड़ जायेंगे। 1 करोड़ की स्टेशनरी, 9 करोड़ की दवाई ना जाने आसमान निगल गया, कि पताल में खो गया…किसी को मालूम ही नहीं। सब खरीदी हवा-हवाई…ना खाता, ना बही…ना अनुमति- ना टेंडर….। सिविल सर्जन और उनकी टीम करोड़ों ऐसे लूट रही थी, मानों सरकारी नहीं, उनकी प्राइवेट प्रापर्टी हो। अब जबकि जांच हुआ तो घोटाले ने जांच टीम का भी दिमाग घूमा दिया।

खुद जशपुर कलेक्टर महादेव कांवरे ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सिविल सर्जन और उनके अधिकारी-कर्मचारियों ने नियमों को ठेंगा दिखाकर 12 करोड़ से ज्यादा का घोटाला कर डाला है, जिसके खिलाफ कार्रवाई की जाये। शर्मनाक बात ये है कि दवा, गलब्स, मास्क जो कोरोना के वक्त की जरूरतें थी, उसके नाम पर करोड़ों हड़पें गये हैं। 12 करोड़ के घोटाले तो पकड़ में आये हैं और ना जाने कितने करोड़ इन भ्रष्ट अफसरों ने पार कर दिये होंगे, जो अब तक सामने ही नहीं आ पाये।

कलेक्टर महादेव कांवरे ने हालांकि इस इस घोटाले में सुरेश टोप्पो लेखापाल, जोगीराम लेखापाल,संदीप दास लेखापाल,स्वाधीन साहू स्टोर लिपिक, तेज प्रसाद चौहान स्टोर लिपिक,हरि प्रसाद डनसेना स्टोर प्रभारी को निलंबित कर दिया है, जबकि महिला सिविल सर्जन डॉ एफ खाखा को राज्य सरकार पहले ही सस्पेंड कर चुकी है। आरएमओ अनुरंजन टोप्पो के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा सरकार को की गयी है, लेकिन सरकार ने अभी तक उस पर एक्शन नहीं लिया है। कुछ कर्मचारी अभी भी इस मामले कार्रवाई से बचे हुए हैं।

हैरानी की बात ये है कि जिस तरह से खुलेआम सरकारी खजाने की डकैती की गयी है, उससे एक बात तो साफ हो गया कि इन घोटालेबाज अफसरों को ना तो कानून का डर था और ना ही नियमों की कोई परवाह। हद तो तब हो गयी कि जिस सिविल सर्जन को उपकरणों व दवाई की खरीदी सिर्फ 1 लाख रूपये तक और अन्य सामिग्री की खरीदी का 50 हजार रुपये तक का ही अधिकार है, उस सिविल सर्जन ने करोड़ों की खरीदी कर ली। ना निविदा बुलवायी और ना ही अधिकारियों से अनुमति ही ली। डंके की चोट पर सरकारी खजाने की हुई लूट की शिकायत कलेक्टर महादेव कांवरे को हुई तो उन्होंने इस मामले में 13 जून 2021 को जांच का निर्देश दिया और जिला पंचायत सीईओ की अगुवाई में एडिश्नल कलेक्टर, जीएम जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र, जिला ट्रेजरी आफिसर और लेखाधिकारी की 5 सदस्यीय कमेटी बनायी। कमेटी ने जांच शुरू की तो एक नहीं दो नहीं अलग-अलग बिंदूओं पर करोंड़ों के घोटाले सामने आ गये।

जांच दल ने अपनी अनुशंसा में साफ कहा है कि 9 करोड़ 85 लाख रुपये की खरीदी में नियमों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया गया। दवा, मेडिकल उपकरण, स्टेशरी जैसी खरीदी के लिए ओपन टेंडर निकाला जाना था. लेकिन ना किसी से अनुमति ली गयी, ना टेंडर निकाला गया और ना ही समानों का सत्यापन कराया गया। जांच टीम जब मौके पर पहुंची, तो ना उन्हें वो समान मिला, स्टॉक रजिस्टर में दर्ज दिखा और ना ही अफसर उन सामानों की जानकारी दे पाये। वहीं 2 करोड़ 61 लाख रुपये की वैसी खरीदी की गयी, जिसे स्टाक में दर्ज ही नहीं किया गया था, वहीं वैसे समानों की भी खरीदी की गयी, जिसकी कोई जरूरत ही नहीं थी। जांच टीम ने इस मामले में सिविल सर्जन, आरएमओ और स्टोर प्रभारी को जिम्मेदारी बताया था। जांच टीम को जांच के दौरान जो रसीद उपलब्ध कराये गये, उसमें भी बड़ा गड़बड़झाला था। कई रसीद एक ही दिन में अलग-अलग बुकलेट नंबरों की काटी गयी थी, तो कुछ सामान उन दुकानों के भी ,जहां उस समान की बिक्री होती भी होगी या नहीं, वो संदिग्ध है।

57 लाख रूपये से ज्यादा की नर्सों के लिए ड्रेस खरीदी

जशपुर जैसे छोटे जिले में स्वास्थ्य विभाग में दो साल में नर्सों व कर्मचारियों ने 57 लाख 14 हजार रूपये के ड्रेस पहनाये हैं। हद तो इस बात को लेकर है कि ग्रामोद्योग और हथकरघा विकास विभाग से कपड़े की खरीदी का निर्देश है, लेकिन जशपुर के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने भंडार क्रय नियम की अनदेखी कर इन विभागों से खरीदी नहीं की। जिस मेसर्स कुमुद टेक्सटाईल से 11 लाख के कपड़े की खरीदी की गयी, उस दुकान का पंजीयन भी नहीं है। जांच टीम ने इस खरीदी को नियम विरूद्ध खरीदी बताया है। ये खरीदी अक्टूबर 2019 से मार्च 2021 के बीच की गयी है।

1.67 करोड़ की खरीदी स्टॉक में दर्ज ही नहीं

जशपुर के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से 2019 के अप्रैल महीने से मार्च 2021 के बीच 1 करोड़ 67 लाख 5 हजार 700 रुपये की अलग-अलग सामिग्री खरीदी गयी है, लेकिन उसका कोई भी विवरण स्टाक रजिस्टर में दर्ज नहीं है। जिन सामिग्री की खरीदी की गयी, उनमें मेडिकल, बिजली का समान, कंप्युटर, सर्जिकल, स्टेशनरी, टायर सहित अन्य समान हैं, लेकिन ये खरीदी सिर्फ और सिर्फ कागजों पर हो गयी। इन समानों की खरीदी और उपलब्धता का जिक्र रजिस्टरों में नहीं दर्शाया गया।

25 हजार रूपये के बजाय 21 लाख का करवा लिया काम

जशपुर के स्वास्थ्य विभाग में सिविल वर्क कराने के नाम पर भी बड़ा घोटाला हुआ है। विभाग को रिपयेरिंग वर्क के लिए सिर्फ 25 हजार रुपये तक ही काम कराने का अधिकार है, लेकिन सिविल सर्जन ने 21 लाख 2 हजार 635 रूपये का काम करवा लिया। हैरत की बात ये कि 21 लाख का काम सुनील कुमार मिश्रा के फर्म से 8 महीने के भीतर करवाये गये।

9 करोड़ की 2 साल में दवा खरीदी

ना निविदा मंगवाया और ना ही अधिकारियों की अनुमति ली, सिविल सर्जन और अधिकारी-कर्मचारियों ने किस तरह से सालों तक मनमर्जी की दुकान चलायी, उसकी उदाहरण दवा खरीदी में सामने आयी। 5 सदस्यीय जांच टीम ने पाया कि रायपुर, रायगढ़, जशपुर सहित कई जिलों से दवा और मास्क, गलब्स की इतनी खरीदी कर ली गयी, जितने का अधिकार विभाग को था ही नहीं। राज्य सरकार ने जिलों में सिविल सर्जन को दवाईयों के लिए 1 लाख और अन्य सामिग्री के लिए 50 हजार की खरीदी का ही अधिकार दिया है, लेकिन अफसरों ने नियमों को जूते की नोंक पर रख दिया। घोटाले की हद का पता इसी बात से लगता है कि 80 लाख 53 हजार रुपये की दवा की खरीदी की गयी, जबकि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन के लिए जेनरिक दवाओं के खरीदी का निर्देश दिया है। सिविल सर्जन और उनके घोटालेबाज टीम ने इस नियम को ठेंगा दिखाते हुए 80 लाख से ज्यादा की गैर जेनरिक दवा खरीद ली।

15 महीने में 1 करोड़ की स्टेशनरी खरीदी

जशपुर के स्वास्थ्य विभाग ने हर महीने लगभग 6 लाख रूपये की सिर्फ स्टेशनरी का इस्तेमाल कर दिया। जांच टीम ने पाया कि 15 महीने में विभाग ने 97 लाख रुपये की स्टेशनरी खरीदी। हद तो तब हो गयी। करीब 1 करोड की खरीदी का हिसाब विभाग नहीं दे सका। इतने बड़े पैमाने पर कागजों की हुई खरीदी का हिसाब सिर्फ कागजों पर ही था, ना तो इसे स्टाक रजिस्टर में इंट्री किया गया और ना खरीदे समान के वितरण की जानकारी दी गयी। जांच टीम ने जब खरीदी और उसके वितरण की जानकारी अफसरों से मांगी तो वो भी विभाग के पास नहीं था।

नियम के खिलाफ 37 लाख की फर्नीचर खरीदी

राज्य सरकार ने जिलों में खरीदी के लिए खुली निविदा जारी करने के सपष्ट निर्देश दे रखे हैं, लेकिन विभाग की तरफ से उस नियम की बिल्कुल भी परवाह नहीं की गयी। बिना टेंडर बुलाये ही सिविल सर्जन ने 37 लाख 60 हजार रुपये की खरीदी कर ली। फर्नीचर खरीदी गयी, लेकिन उसका क्या इस्तेमाल किया गया और कहां वितरित किया गया, इसकी भी जानकारी विभाग उपलब्ध नहीं करा सका।

1 करोड़ का बिजली विभाग के काम में भी घोटाला

जशपुर सिविल सर्जन ने दो फर्म से 95 लाख रुपये का बिजली का काम कराया। नियम के मुताबिक इस काम के लिए भी टेंडर बुलाया जाना चाहिये था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। टेंडर तो छोड़िये क्रय समिति से अनुमोदन भी नहीं कराया गया। जब जांच टीम ने खरीदे गये समान की जानकारी मांगी तो विभाग की तरफ से उसका भी सत्यापन नहीं कराया जा सका। जबकि पहले तो इतने बड़े रकम का काम बिना टेंडर के कराया नहीं जाना था, अगर कराया भी जाना था, तो बिजली विभाग के इंजीनियर से उसका सत्यापन कराना था, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। जांच टीम ने इसे अत्यधिक वित्तीय अनियमितता करार दिया।

निर्धारित कीमत से ज्यादा दर पर हुई स्टेशनरी और दवाओं की खरीदी

स्टेशनरी, दवा की हुई 88 लाख 39 हजार की खरीदी में भी बड़ी लारवाही मिली थी। स्टेशनरी की खरीदी से कलेक्टर की तरफ से निर्धारित कीमत से भी ज्यादा दर पर की गयी। वहीं छत्तीसगढ़ भंडार क्रय नियम की तरफ से टेंडर के जरिये खरीदी के निर्देश का भी उल्लंघन किया गया। टेंडर के बजाय सिविल सर्जन ने खुद ही खरीदी की।

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