Dantewada Naxalite Attack: दुनिया की सबसे बड़ी फोर्स CRPF को 14 साल पहले बस्तर में लगा था सबसे बड़ा झटका: रायपुर से लेकर दिल्ली तक हिल गया था पूरा सिस्टम, पढ़िये- ताड़मेटला में 76 जवानों के शहादत की पूरी कहानी
Dantewada Naxalite Attack: छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग को प्रकृति का भरपूर आशीर्वाद मिला है, लेकिन बस्तर के माथे पर नक्सलवाद का कलंक भी लगा हुआ है। छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के शुरुआती वर्षों में वहां नक्सलवाद चरम पर था। रोज मुठभेड़ और मौत की खबरें आती थीं। अब परिस्थितियों काफी बदल चुकी हैं, बस्तर धीरे-धीरे शांत हो रहा है और विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। बस्तर में इस शांति और विकास के लिए देश के हजारों जवानों ने अपनी शहादत दी है। बस्तर के कई ऐसे स्थान हैं जहां एक साथ दर्जनों जवानों ने अपने प्राणों की आहूति दी है, इनमें ताड़मेटला भी शामिल है।
Tadmetla incident of Dantewada: रायपुर। आज 6 अप्रैल है। यह तारीख हर साल आती है, लेकिन 6 अप्रैल 2010 का एक काला इतिहास भी है। इस तारीख को बस्तर में एक ऐसी घटना हुई जिसने राजधानी रायपुर में बैठी राज्य सरकार ही नहीं राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली बैठी केंद्र सरकार को हिला कर रखा दिया। केंद्रीय गृह मंत्री और गृह मंत्रालय से लेकर रक्षा मंत्रालय तक के अफसर आनन-फानन में बस्तर पहुंच गए। माहौल ऐसा बना कि बस्तर को सेना के हवाले करने की चर्चा होने लगी। सेना उतारने की यह चर्चा यूं ही नहीं थी, इसके पीछे बड़ी वजह थी। कारण यह था कि दुनिया के सबसे बड़े अर्द्ध सैनिक बल केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) को बस्तर में बहुत बड़ा झटका लगा था।
हम बात कर रहे हैं ताड़मेटला कांड की। वहीं ताड़मेटला कांड जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे। यह देश के इतिहास में किसी केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल को लगा सबसे बड़ा झटका था। एक साथ इतनी कैजुअल्टी सीमा पर तैनात अर्द्ध सैनिक बलों को भी इससे पहले नहीं उठानी पड़ी थी। नक्सलियों ने सीआरपीएफ की पूरी कंपनी को चारो तरफ से घेर कर गोलियों की बौछार कर दी थी। इतना ही नहीं जो जवान गोली लगने से घायल हुए थे या उनकी थोड़ी- बहुत सांस चल रही थी ऐसे जवानों के सिर पर कुल्हाड़ी मारकर नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी। इस घटना के बाद बस्तर के साथ ही पूरे देश में नक्सली मोर्चे पर बड़ा बदलाव हुआ। केंद्र सरकार ने यह स्वीकार किया कि नक्सली केवल राज्य की कानून-व्यवस्था का विषय नहीं है बल्कि देश की एकता और अखंडता के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं।
जाने..क्या हुआ था ताड़मेटला में
ताड़मेटला से करीब 4 किलोमीटर दूर चिंतलनार में सीआरपीएफ का कैंप है। यह कैंप 2010 में ही स्थापित किया गया था। उस वक्त इस क्षेत्र में नक्सलियों का पूरा वर्चस्व कायम था। ऐसे में चिंतलनार कैंप में रहने वाले जवानों के लिए सड़क मार्ग से राशन पहुंचाना भी कठिन होता था। चिंतलनार के साथ ही जगरगुंड भी सीएफआरपीए का दूसरा कैंप था।
तय रणनीति के तहत एरिया डोमिनेशन के लिए जवान कैंप से सर्चिंग के लिए निकलते थे। निर्धारित दूरी और एरिया में सर्चिंग के बाद जवान वापस कैंप में लौटते थे। बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यह प्रक्रिया आज भी चल रही है। सुरक्षागत कारणों से इसमें कुछ बदलाव किया गया है, लेकिन नक्सलियों पर नियंत्रण की यही प्रक्रिया चल रही है। बहरहाल योजना के अनुसार 4 अप्रैल को 150 सर्चिंग के लिए निकले थे। करीब 72 घंटे की सर्चिंग के दौरान जवानों का कहीं भी नक्सलियों से आमना- सामना नहीं हुआ और जवान 7 मार्च को कैंप लौट रहे थे। जवान थके हुए थे। इसकी मौके का फायदा उठाते हुए करीब एक हजार से ज्यादा नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों को घेर लिया। नक्सली हमले की अपनी परंपरागत रणनीति के तहत पहले ब्लास्ट किया। आराम कर रहे जवान कुछ समझते और संभलते उससे पहले ही चारो तरफ से उन पर गोलियां बरसने लगी। इसके बावजूद जवानों ने मोर्चा संभाला और जवाबी कार्यवाही की। इसमें 8 से ज्यादा नक्सली भी मारे गए।
जवानों के हथियार, वार्दी के साथ जूता भी खोलकर ले गए नक्सली
ताड़मेटला में कई घंटे तक दोनों तरफ से गोलीबारी चलती रही। जवानों जब शहीद हो गए तो नक्सली उनकी शवों की जांच करने लगे और उनके हथियार, वर्दी और पैसों के साथ ही जूता- मोजा सहित अन्य समान भी ले गए।
घटना की जांच रिपोर्ट में कई खामियां हुई उजागर...
केंद्र सरकार ने इस घटना की जांच सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सेवानिवृत्त डीजी ईएन राममोहन को सौंप दी। राममोहन ने अपनी रिपोर्ट में बस्तर में सुरक्षा बलों के नक्सल विरोधी अभियान में कई खामियां बताई। सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में 10 मार्च की एक घटना का उल्लेख किया गया है, जो ताड़मेटला में 76 जवानों के शहादत स्थल से महज 300 मीटर की दूरी पर था। 10 मार्च को नक्सलियों ने सीआरपीएफ की कंपनी को घेरने का प्रयास किया था। इस दौरान हुई गोलबाारी में एक जवान शहीद हो गया था।
इस घटना के बाद सीआरपीएफ के डीआईजी नलिन प्रभात ने बड़ा सर्चिंग अभियान चलाने की तैयारी की। रिपोर्ट के अनुसार अभियान का नेतृत्व एक ऐसे डिप्टी कमांडेंट को सौंपी गई जो हाल ही में वहां आया था और उसे एरिया की पूरी जानकारी नहीं थी। रणनीति के तहत जवानों को अपने कैंप के चारों तरफ 5 से 7 किलो मीटर के क्षेत्र को कवर करना था। प्लान के अनुसार जवान चिंतलनार कैंप से 4 अप्रैल को शाम 7 बजे रवाना हुए उन्हें 7 अप्रैल को सुबह कैंप वापस लौटना था। रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि जवानों ने रात 12.30 बजे मुखराम गांव में रुक गए और स्थानीय लोगों की मदद से खिचड़ी पकाई और वहीं आराम करने के बाद 6 अप्रैल की सुबह ताड़मेटला की ओर बढ़ गए और आगे जाकर नक्सलियों के जाल में फंस गए। सुबह करीब पौने छह बजे नक्सलियों ने उन पर हमला बोल दिया।
घटना के बाद नक्सलियों की प्रेस कांफ्रेंस...
ताड़मेटला की घटना में बस्तर और आंध्रप्रदेश के कुख्यात नक्सलियों का नाम सामने आया। इनमें रमन्ना, कोसा और हिडमा शामिल थे। वारदात के बाद कई दिनों तक नक्सली घटना स्थल के कुछ किलो मीटर की दूरी पर ही कैंप लगाकर बैठे रहे। इस दौरान उन्होंने मीडिया को बुलकार सीआरपीएफ के जवानों से लूटे गए करीब 80 हथियारों को भी दिखाया।
2 साल बाद कलेक्टर को उठा ले गए नक्सली
इस घटना के 2 वर्ष बाद 2012 में सुकमा अलग जिला बना। तब एलेक्स पाल मेनन वहां के कलेक्टर बनाए गए। अंदरुनी क्षेत्र के दौरे पर निकले कलेक्टर मेनन को नक्सली अगवा करके ले गए। इस दौरान नक्सलियों ने मेनन के सुरक्षा गार्ड को गोली मार दी। मेनन को नक्सलियों ने ताड़मेटला क्षेत्र में ही रखा था।
कहां है ताड़मेटला
ताड़मेटला आज सुकमा जिला में आता है, लेकिन 2010 में यह दंतेवाड़ा जिला में शामिल था। इस बड़ी घटना के करीब 2 साल बाद 2012 में सुकमा को अलग जिला बनाया गया। बस्तर संभाग के जिन क्षेत्रों में अब भी नक्सलियों का दबदबा है उनमें सुकमा जिला भी शामिल है। सुकमा जिला की सीमाएं 3 नक्सल प्रभावित राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा से लगती है।